ਬਿਨਵੰਤ ਨਾਨਕ ਕਰ ਦੇਇ ਰਾਖਹੁ ਗੋਬਿੰਦ ਦੀਨ ਦਇਆਰਾ ॥੪॥
बिनवंत नानक कर देइ राखहु गोबिंद दीन दइआरा ॥४॥
नानक प्रार्थना है की है दीनदयाल गोविन्द! अपनी कृपा का हाथ रखकर मेरी रक्षा कीजिए।४ ॥
ਸੋ ਦਿਨੁ ਸਫਲੁ ਗਣਿਆ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲਾਇਆ ਰਾਮ ॥
सो दिनु सफलु गणिआ हरि प्रभू मिलाइआ राम ॥
वह दिन बड़ा शुभ गिना जाता है जब परमात्मा से मिलन होता है।
ਸਭਿ ਸੁਖ ਪਰਗਟਿਆ ਦੁਖ ਦੂਰਿ ਪਰਾਇਆ ਰਾਮ ॥
सभि सुख परगटिआ दुख दूरि पराइआ राम ॥
सभी सुख ऐश्वर्य प्रत्यक्ष हो गए है तथा दुःख मुझ से दूर हो गए हैं।
ਸੁਖ ਸਹਜ ਅਨਦ ਬਿਨੋਦ ਸਦ ਹੀ ਗੁਨ ਗੁਪਾਲ ਨਿਤ ਗਾਈਐ ॥
सुख सहज अनद बिनोद सद ही गुन गुपाल नित गाईऐ ॥
नित्य ही जगत पालक गोपाल का गुणगान करने से सदैव सहज सुख एवं आनंद-विनोद की उपलब्धि होती है।
ਭਜੁ ਸਾਧਸੰਗੇ ਮਿਲੇ ਰੰਗੇ ਬਹੁੜਿ ਜੋਨਿ ਨ ਧਾਈਐ ॥
भजु साधसंगे मिले रंगे बहुड़ि जोनि न धाईऐ ॥
संतों की सभा में शामिल होकर मैं प्रभु के नाम का भजन करता हैं, जिसके फलस्वरूप मुझे दोबारा योनियों में नहीं भटकना पड़ेगा।
ਗਹਿ ਕੰਠਿ ਲਾਏ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ਆਦਿ ਅੰਕੁਰੁ ਆਇਆ ॥
गहि कंठि लाए सहजि सुभाए आदि अंकुरु आइआ ॥
परमात्मा ने सहज-स्वभाव ही मुझे अपने गले से लगा लिया है और मेरे पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का अंकुर अंकुरित हो गया है।
ਬਿਨਵੰਤ ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਮਿਲਿਆ ਬਹੁੜਿ ਕਤਹੂ ਨ ਜਾਇਆ ॥੫॥੪॥੭॥
बिनवंत नानक आपि मिलिआ बहुड़ि कतहू न जाइआ ॥५॥४॥७॥
नानक प्रार्थना करता है कि भगवान स्वयं ही मुझे मिल गया है और वह कदाचित मुझसे दोबारा दूर नहीं जाता ॥ ५ ॥ ४ ॥ ७॥
ਬਿਹਾਗੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ ॥
बिहागड़ा महला ५ छंत ॥
बिहागड़ा महला ५ छंत ॥
ਸੁਨਹੁ ਬੇਨੰਤੀਆ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰੇ ਰਾਮ ॥
सुनहु बेनंतीआ सुआमी मेरे राम ॥
हे मेरे स्वामी ! मेरा निवेदन सुनो,
ਕੋਟਿ ਅਪ੍ਰਾਧ ਭਰੇ ਭੀ ਤੇਰੇ ਚੇਰੇ ਰਾਮ ॥
कोटि अप्राध भरे भी तेरे चेरे राम ॥
हम जीवों में चाहे करोड़ों ही अपराध भरे हुए हैं किन्तु फिर भी हम तेरे ही सेवक हैं।
ਦੁਖ ਹਰਨ ਕਿਰਪਾ ਕਰਨ ਮੋਹਨ ਕਲਿ ਕਲੇਸਹ ਭੰਜਨਾ ॥
दुख हरन किरपा करन मोहन कलि कलेसह भंजना ॥
हे दुःखनाशक ! हे कृपा करने वाले मोहन ! हे कलह-क्लेश के नाशक !
ਸਰਨਿ ਤੇਰੀ ਰਖਿ ਲੇਹੁ ਮੇਰੀ ਸਰਬ ਮੈ ਨਿਰੰਜਨਾ ॥
सरनि तेरी रखि लेहु मेरी सरब मै निरंजना ॥
हे सर्वव्यापक निरंजन ! मैं तेरी शरण में आया हूँ, दया करके मेरी लाज प्रतिष्ठा रखे।
ਸੁਨਤ ਪੇਖਤ ਸੰਗਿ ਸਭ ਕੈ ਪ੍ਰਭ ਨੇਰਹੂ ਤੇ ਨੇਰੇ ॥
सुनत पेखत संगि सभ कै प्रभ नेरहू ते नेरे ॥
प्रभु सभी को सुनता एवं देखता है, वह हम सभी के साथ है और निकट से अति निकट है।
ਅਰਦਾਸਿ ਨਾਨਕ ਸੁਨਿ ਸੁਆਮੀ ਰਖਿ ਲੇਹੁ ਘਰ ਕੇ ਚੇਰੇ ॥੧॥
अरदासि नानक सुनि सुआमी रखि लेहु घर के चेरे ॥१॥
स्वामी ! नानक की प्रार्थना सुन लो और मुझे अपने घर के सेवक की तरह रख लो॥ १॥
ਤੂ ਸਮਰਥੁ ਸਦਾ ਹਮ ਦੀਨ ਭੇਖਾਰੀ ਰਾਮ ॥
तू समरथु सदा हम दीन भेखारी राम ॥
हे राम ! तू सदैव सर्वशक्तिमान है परन्तु हम जीव तो दीन भिखारी है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਮਗਨੁ ਕਢਿ ਲੇਹੁ ਮੁਰਾਰੀ ਰਾਮ ॥
माइआ मोहि मगनु कढि लेहु मुरारी राम ॥
हे मुरारी प्रभु ! मैं माया के मोह में मग्न हूँ, दया करके मुझे माया से निकाल लीजिए।
ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਬਿਕਾਰਿ ਬਾਧਿਓ ਅਨਿਕ ਦੋਖ ਕਮਾਵਨੇ ॥
लोभि मोहि बिकारि बाधिओ अनिक दोख कमावने ॥
लोभ, मोह एवं विकारों में फंसकर मैंने अनेक दोष कमाए हैं।
ਅਲਿਪਤ ਬੰਧਨ ਰਹਤ ਕਰਤਾ ਕੀਆ ਅਪਨਾ ਪਾਵਨੇ ॥
अलिपत बंधन रहत करता कीआ अपना पावने ॥
जीव अपने किए हुए शुभाशुभ कर्मों का फल भोगता रहता है।
ਕਰਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਬਹੁ ਜੋਨਿ ਭ੍ਰਮਤੇ ਹਾਰੀ ॥
करि अनुग्रहु पतित पावन बहु जोनि भ्रमते हारी ॥
हे पतितपावन ! मुझ पर अनुग्रह करो, क्योंकि मैं अनेक योनियों में भटकता हुआ हार गया हूँ ।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਹਰਿ ਕਾ ਪ੍ਰਭ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੀ ॥੨॥
बिनवंति नानक दासु हरि का प्रभ जीअ प्रान अधारी ॥२॥
नानक प्रार्थना करता है कि मैं परमात्मा का सेवक हूँ और यह मेरी आत्मा एवं प्राणो का आधार है।॥ २ ॥
ਤੂ ਸਮਰਥੁ ਵਡਾ ਮੇਰੀ ਮਤਿ ਥੋਰੀ ਰਾਮ ॥
तू समरथु वडा मेरी मति थोरी राम ॥
है राम ! तू सर्वकला समर्थ एवं बहुत बड़ा है किन्तु मेरी बुद्धि बड़ी तुछ है,
ਪਾਲਹਿ ਅਕਿਰਤਘਨਾ ਪੂਰਨ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਤੇਰੀ ਰਾਮ ॥
पालहि अकिरतघना पूरन द्रिसटि तेरी राम ॥
तू कृतघ्न जीवों का भी पालन पोषण करता है और सब जीवों पर तेरी पूर्ण कृपा-दृष्टि है।
ਅਗਾਧਿ ਬੋਧਿ ਅਪਾਰ ਕਰਤੇ ਮੋਹਿ ਨੀਚੁ ਕਛੂ ਨ ਜਾਨਾ ॥
अगाधि बोधि अपार करते मोहि नीचु कछू न जाना ॥
हे जग के रचयिता ! तू अपार है और तेरा ज्ञान अनन्त है किन्तु मैं नीच जीव कुछ भी नहीं जानता।
ਰਤਨੁ ਤਿਆਗਿ ਸੰਗ੍ਰਹਨ ਕਉਡੀ ਪਸੂ ਨੀਚੁ ਇਆਨਾ ॥
रतनु तिआगि संग्रहन कउडी पसू नीचु इआना ॥
मैं तो पशु समान विमूढ़ एवं नीच हूँ जो तेरे अमूल्य नाम-रत्न को त्याग कर कौड़ियाँ एकत्रित की हैं।
ਤਿਆਗਿ ਚਲਤੀ ਮਹਾ ਚੰਚਲਿ ਦੋਖ ਕਰਿ ਕਰਿ ਜੋਰੀ ॥
तिआगि चलती महा चंचलि दोख करि करि जोरी ॥
हे प्रभु! मैंने दोष कर करके यह माया अर्जित की है, जो महा चंचल है और जीव को त्याग कर चली जाती है।
ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਸਮਰਥ ਸੁਆਮੀ ਪੈਜ ਰਾਖਹੁ ਮੋਰੀ ॥੩॥
नानक सरनि समरथ सुआमी पैज राखहु मोरी ॥३॥
नानक का कथन है कि हे सर्वकला समर्थ प्रभु! मैं तेरी शरण में हूँ, दया करके मेरी लाज रखो ॥ ३ ॥
ਜਾ ਤੇ ਵੀਛੁੜਿਆ ਤਿਨਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਆ ਰਾਮ ॥
जा ते वीछुड़िआ तिनि आपि मिलाइआ राम ॥
जिस परमात्मा से जुदा हुआ था, उसने स्वयं ही अपने साथ मिला लिया है।
ਸਾਧੂ ਸੰਗਮੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ਰਾਮ ॥
साधू संगमे हरि गुण गाइआ राम ॥
संतों की सभा में सम्मिलित होकर श्री हरि का गुणगान किया है।
ਗੁਣ ਗਾਇ ਗੋਵਿਦ ਸਦਾ ਨੀਕੇ ਕਲਿਆਣ ਮੈ ਪਰਗਟ ਭਏ ॥
गुण गाइ गोविद सदा नीके कलिआण मै परगट भए ॥
उस जगतपालक की गुणस्तुति करने से कल्याणस्वरूप ईश्वर प्रत्यक्ष हो गया है।
ਸੇਜਾ ਸੁਹਾਵੀ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਭ ਕਰਿ ਲਏ ॥
सेजा सुहावी संगि प्रभ कै आपणे प्रभ करि लए ॥
प्रभु के संग मेरी हृदय-सेज सुहावनी हो गई है और उसने मुझे अपना बना लिया है।
ਛੋਡਿ ਚਿੰਤ ਅਚਿੰਤ ਹੋਏ ਬਹੁੜਿ ਦੂਖੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
छोडि चिंत अचिंत होए बहुड़ि दूखु न पाइआ ॥
मैं चिन्ता को त्याग कर निश्चित हो गया हूँ और मैंने पुनः कोई दु:ख प्राप्त नहीं किया।
ਨਾਨਕ ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਿ ਜੀਵੇ ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਗਾਇਆ ॥੪॥੫॥੮॥
नानक दरसनु पेखि जीवे गोविंद गुण निधि गाइआ ॥४॥५॥८॥
नानक कथन है की वह तो परमात्मा के दर्शन करके ही जीवित रहता है एवं गुणों के भण्डार प्रभु का यशोगान करता रहता है ॥ ४ ॥ ५ ॥ ८ ॥
ਬਿਹਾਗੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ ॥
बिहागड़ा महला ५ छंत ॥
बिहागड़ा महला ५ छंत ॥
ਬੋਲਿ ਸੁਧਰਮੀੜਿਆ ਮੋਨਿ ਕਤ ਧਾਰੀ ਰਾਮ ॥
बोलि सुधरमीड़िआ मोनि कत धारी राम ॥
हे सुधर्मी मानव जीव ! बोल, क्यों मौन धारण किया हुआ है ?
ਤੂ ਨੇਤ੍ਰੀ ਦੇਖਿ ਚਲਿਆ ਮਾਇਆ ਬਿਉਹਾਰੀ ਰਾਮ ॥
तू नेत्री देखि चलिआ माइआ बिउहारी राम ॥
अपने नेत्रों से तूने माया का व्यव्हार करने वाले देख लिए है जो सभी नाशवान है।
ਸੰਗਿ ਤੇਰੈ ਕਛੁ ਨ ਚਾਲੈ ਬਿਨਾ ਗੋਬਿੰਦ ਨਾਮਾ ॥
संगि तेरै कछु न चालै बिना गोबिंद नामा ॥
है मानव जीव ! गोविन्द के नाम के अतिरिक्त तेरे साथ कुछ भी नहीं जाना।
ਦੇਸ ਵੇਸ ਸੁਵਰਨ ਰੂਪਾ ਸਗਲ ਊਣੇ ਕਾਮਾ ॥
देस वेस सुवरन रूपा सगल ऊणे कामा ॥
देश, वस्त्र, स्वर्ण तथा चांदी ये सभी कार्य व्यर्थ हैं।
ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਨ ਸੰਗਿ ਸੋਭਾ ਹਸਤ ਘੋਰਿ ਵਿਕਾਰੀ ॥
पुत्र कलत्र न संगि सोभा हसत घोरि विकारी ॥
पुत्र, पत्नी, दुनिया की शोभा जीव का साथ नहीं देते एवं हाथी-घोड़े तथा अन्य आकर्षण विकारों की तरफ प्रेरित करते रहते है।
ਬਿਨਵੰਤ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਸਾਧਸੰਗਮ ਸਭ ਮਿਥਿਆ ਸੰਸਾਰੀ ॥੧॥
बिनवंत नानक बिनु साधसंगम सभ मिथिआ संसारी ॥१॥
नानक प्रार्थना करता है कि संतो की संगति के बिना सारा जगत मिथ्या है ॥ १ ॥