Hindi Page 626

ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥
सुख सागरु गुरु पाइआ ॥
जब सुखों के सागर गुरु को पाया तो

ਤਾ ਸਹਸਾ ਸਗਲ ਮਿਟਾਇਆ ॥੧॥
ता सहसा सगल मिटाइआ ॥१॥
मेरे सभी भ्रम मिट गए ॥१॥

ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
हरि के नाम की वडिआई ॥
सृष्टि में हरि-नाम की ही बड़ाई है।

ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥
आठ पहर गुण गाई ॥
इसलिए मैं तो आठ प्रहर उसका ही गुणगान करता हूँ और

ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर पूरे ते पाई ॥ रहाउ ॥
यह देन हमें पूर्ण गुरु से प्राप्त हुई है॥ रहाउ॥

ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥
प्रभ की अकथ कहाणी ॥
प्रभु की कहानी अकथनीय है।

ਜਨ ਬੋਲਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ॥
जन बोलहि अम्रित बाणी ॥
उसके भक्तजन अमृत वाणी बोलते रहते हैं।

ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਵਖਾਣੀ ॥
नानक दास वखाणी ॥
हे नानक ! उस दास ने ही वाणी का ही बखान किया है

ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਜਾਣੀ ॥੨॥੨॥੬੬॥
गुर पूरे ते जाणी ॥२॥२॥६६॥
जिसने पूर्ण गुरु से अमृत-वाणी का ज्ञान प्राप्त कर लिया है॥२॥२॥६६॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਆਗੈ ਸੁਖੁ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ॥
आगै सुखु गुरि दीआ ॥
यहाँ पहले गुरु ने सुख दिया है और

ਪਾਛੈ ਕੁਸਲ ਖੇਮ ਗੁਰਿ ਕੀਆ ॥
पाछै कुसल खेम गुरि कीआ ॥
भविष्य में भी उसने कुशलक्षेम की व्यवस्था कर दी है।

ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ਸੁਖ ਪਾਇਆ ॥
सरब निधान सुख पाइआ ॥
मुझे तब सर्व सुखों का भण्डार मिल गया

ਗੁਰੁ ਅਪੁਨਾ ਰਿਦੈ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥
गुरु अपुना रिदै धिआइआ ॥१॥
जब अपने गुरु का हृदय में मैंने ध्यान किया ॥ १॥

ਅਪਨੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
अपने सतिगुर की वडिआई ॥
यह मेरे अपने सतगुरु की बड़ाई है कि

ਮਨ ਇਛੇ ਫਲ ਪਾਈ ॥
मन इछे फल पाई ॥
मुझे मनोवांछित फल प्राप्त हो गए हैं।

ਸੰਤਹੁ ਦਿਨੁ ਦਿਨੁ ਚੜੈ ਸਵਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
संतहु दिनु दिनु चड़ै सवाई ॥ रहाउ ॥
हे संतो ! गुरु की बड़ाई में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है॥ रहाउ॥

ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਭਏ ਦਇਆਲਾ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨੇ ਕਰਿ ਦੀਨੇ ॥
जीअ जंत सभि भए दइआला प्रभि अपने करि दीने ॥
सभी जीव मुझ पर दयालु हो गए हैं, मेरे प्रभु ने स्वयं ही उन्हें ऐसा किया है।

ਸਹਜ ਸੁਭਾਇ ਮਿਲੇ ਗੋਪਾਲਾ ਨਾਨਕ ਸਾਚਿ ਪਤੀਨੇ ॥੨॥੩॥੬੭॥
सहज सुभाइ मिले गोपाला नानक साचि पतीने ॥२॥३॥६७॥
हे नानक ! परमात्मा सहज स्वभाव ही मिल गया है और मेरा मन सत्य से प्रसन्न हो गया है ॥२॥३॥६७॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਰਖਵਾਰੇ ॥
गुर का सबदु रखवारे ॥
गुरु का शब्द मेरा रखवाला है और

ਚਉਕੀ ਚਉਗਿਰਦ ਹਮਾਰੇ ॥
चउकी चउगिरद हमारे ॥
यह हमारे चारों तरफ की हिफाजत कर रहा है।

ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥
राम नामि मनु लागा ॥
मेरा मन राम-नाम में लीन हो गया है,

ਜਮੁ ਲਜਾਇ ਕਰਿ ਭਾਗਾ ॥੧॥
जमु लजाइ करि भागा ॥१॥
जिसके फलस्वरूप मृत्यु का देवता भी लज्जित होकर भाग गया है॥ १॥

ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਤੂ ਮੇਰੋ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
प्रभ जी तू मेरो सुखदाता ॥
हे प्रभु जी ! तू मेरा सुखों का दाता है।

ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਕਰੇ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
बंधन काटि करे मनु निरमलु पूरन पुरखु बिधाता ॥ रहाउ ॥
पूर्ण पुरुष विधाता बन्धन काटकर मन निर्मल कर देता है॥ रहाउ॥

ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥
नानक प्रभु अबिनासी ॥
हे नानक ! अविनाशी प्रभु की

ਤਾ ਕੀ ਸੇਵ ਨ ਬਿਰਥੀ ਜਾਸੀ ॥
ता की सेव न बिरथी जासी ॥
सेवा-भक्ति निष्फल नहीं जाती।

ਅਨਦ ਕਰਹਿ ਤੇਰੇ ਦਾਸਾ ॥
अनद करहि तेरे दासा ॥
हे प्रभु ! तेरेभक्त आनंद करते हैं।

ਜਪਿ ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਆਸਾ ॥੨॥੪॥੬੮॥
जपि पूरन होई आसा ॥२॥४॥६८॥
चूंकि तेरा जाप करके उनकी आशा पूर्ण हो गई है॥ २॥ ४॥ ६८ ॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥
गुर अपुने बलिहारी ॥
मैं अपने गुरु पर कुर्बान जाता हूँ,

ਜਿਨਿ ਪੂਰਨ ਪੈਜ ਸਵਾਰੀ ॥
जिनि पूरन पैज सवारी ॥
जिसने पूर्णतया मेरी लाज-प्रतिष्ठा बरकरार रखी है।

ਮਨ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
मन चिंदिआ फलु पाइआ ॥
मुझे मनोवांछित फल की प्राप्ति हो गई है और

ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਸਦਾ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥
प्रभु अपुना सदा धिआइआ ॥१॥
मैंने हमेशा ही अपने प्रभु का ध्यान किया है॥ १॥

ਸੰਤਹੁ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
संतहु तिसु बिनु अवरु न कोई ॥
हे संतो ! ईश्वर के अलावा दूसरा कोई साथी नहीं,

ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
करण कारण प्रभु सोई ॥ रहाउ ॥
चूंकि वह ही करने कराने में समर्थ है॥ रहाउ॥

ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨੈ ਵਰ ਦੀਨੇ ॥
प्रभि अपनै वर दीने ॥
मेरे प्रभु ने मुझे ऐसा वरदान दिया है कि

ਸਗਲ ਜੀਅ ਵਸਿ ਕੀਨੇ ॥
सगल जीअ वसि कीने ॥
सभी जीव मेरे वश में कर दिए हैं।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
जन नानक नामु धिआइआ ॥
दास नानक ने जब प्रभु का नाम-स्मरण किया तो

ਤਾ ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਮਿਟਾਇਆ ॥੨॥੫॥੬੯॥
ता सगले दूख मिटाइआ ॥२॥५॥६९॥
उसके सभी दुःख मिट गए ॥२॥५॥६९॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਤਾਪੁ ਗਵਾਇਆ ਗੁਰਿ ਪੂਰੇ ॥
तापु गवाइआ गुरि पूरे ॥
पूर्ण गुरु ने हरिगोविन्द का ज्वर दूर कर दिया है और

ਵਾਜੇ ਅਨਹਦ ਤੂਰੇ ॥
वाजे अनहद तूरे ॥
अब घर में अनहद बाजे बज रहे हैं।

ਸਰਬ ਕਲਿਆਣ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨੇ ॥
सरब कलिआण प्रभि कीने ॥
प्रभु ने सर्व कल्याण किया है और

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਆਪਿ ਦੀਨੇ ॥੧॥
करि किरपा आपि दीने ॥१॥
अपनी कृपा करके उसने स्वयं ही सुख घर में दिया है ॥१॥

ਬੇਦਨ ਸਤਿਗੁਰਿ ਆਪਿ ਗਵਾਈ ॥
बेदन सतिगुरि आपि गवाई ॥
सतगुरु ने स्वयं ही हमारी विपत्ति दूर की है।

ਸਿਖ ਸੰਤ ਸਭਿ ਸਰਸੇ ਹੋਏ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥
सिख संत सभि सरसे होए हरि हरि नामु धिआई ॥ रहाउ ॥
हरि-नाम का ध्यान करने से सभी शिष्य एवं संत प्रसन्न हो गए हैं।॥ रहाउ॥

ਜੋ ਮੰਗਹਿ ਸੋ ਲੇਵਹਿ ॥
जो मंगहि सो लेवहि ॥
जो कुछ संत मांगते हैं, वही वे पा लेते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਅਪਣਿਆ ਸੰਤਾ ਦੇਵਹਿ ॥
प्रभ अपणिआ संता देवहि ॥
प्रभु अपने संतों को सब कुछ देता है।

ਹਰਿ ਗੋਵਿਦੁ ਪ੍ਰਭਿ ਰਾਖਿਆ ॥
हरि गोविदु प्रभि राखिआ ॥
प्रभु ने श्री हरिगोविन्द की रक्षा की है

ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਾਚੁ ਸੁਭਾਖਿਆ ॥੨॥੬॥੭੦॥
जन नानक साचु सुभाखिआ ॥२॥६॥७०॥
यह दास नानक सहज स्वभाव सत्य कह रहा है ॥२॥७॥७१॥

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सोरठि महला ५ ॥
सोरठि महला ५ ॥

ਸੋਈ ਕਰਾਇ ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ॥
सोई कराइ जो तुधु भावै ॥
हे प्रभु ! जो तुझे भला लगता है, मुझ से वही करवा।

ਮੋਹਿ ਸਿਆਣਪ ਕਛੂ ਨ ਆਵੈ ॥
मोहि सिआणप कछू न आवै ॥
चूंकि मुझे तो अन्य कोई भी चतुराई नहीं आती।

ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਤਉ ਸਰਣਾਈ ॥
हम बारिक तउ सरणाई ॥
मैं बालक तेरी शरण में आया हूँ।

ਪ੍ਰਭਿ ਆਪੇ ਪੈਜ ਰਖਾਈ ॥੧॥
प्रभि आपे पैज रखाई ॥१॥
प्रभु ने आप ही मेरी लाज-प्रतिष्ठा बचाई है॥ १॥

ਮੇਰਾ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥
मेरा मात पिता हरि राइआ ॥
हे हरि-परमेश्वर ! तुम ही मेरे माता-पिता हो और

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਣ ਲਾਗਾ ਕਰੀਂ ਤੇਰਾ ਕਰਾਇਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा प्रतिपालण लागा करीं तेरा कराइआ ॥ रहाउ ॥
तुम ही कृपा करके हमारा पालन-पोषण करते हो, मैं वही कुछ करता हूँ जो तुम मुझ से करवाते हो॥ १॥ रहाउ ॥

ਜੀਅ ਜੰਤ ਤੇਰੇ ਧਾਰੇ ॥
जीअ जंत तेरे धारे ॥
हे प्रभु ! समस्त जीव-जन्तु तेरी ही रचना है और

ਪ੍ਰਭ ਡੋਰੀ ਹਾਥਿ ਤੁਮਾਰੇ ॥
प्रभ डोरी हाथि तुमारे ॥
उनकी जीवन-डोर तुम्हारे हाथ में ही है।

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