ਇਉ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਨਿਵਾਰੀਐ ਸਭੁ ਰਾਜੁ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਾ ਲੇਇ ॥
इउ गुरमुखि आपु निवारीऐ सभु राजु स्रिसटि का लेइ ॥
इस प्रकार अपने आत्माभिमान को मिटा कर गुरुमुख सारे विश्व का शासन प्राप्त कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੁਝੀਐ ਜਾ ਆਪੇ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥੧॥
नानक गुरमुखि बुझीऐ जा आपे नदरि करेइ ॥१॥
हे नानक ! जब भगवान अपनी कृपा-दृष्टि करता है, तो ही मनुष्य गुरुमुख बनकर इस तथ्य को समझता है॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਜਿਨ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਆਏ ਤੇ ਪਰਵਾਣੁ ॥
जिन गुरमुखि नामु धिआइआ आए ते परवाणु ॥
जिन्होंने गुरु के सान्निध्य में रहकर नाम का ध्यान किया है, जगत में जन्म लेकर आए वे मनुष्य ही परवान हैं।
ਨਾਨਕ ਕੁਲ ਉਧਾਰਹਿ ਆਪਣਾ ਦਰਗਹ ਪਾਵਹਿ ਮਾਣੁ ॥੨॥
नानक कुल उधारहि आपणा दरगह पावहि माणु ॥२॥
हे नानक ! वे अपनी वंशावली का भी उद्धार कर लेते हैं और उन्हें भगवान के दरबार में बड़ी शोभा मिलती है।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਖੀਆ ਸਿਖ ਗੁਰੂ ਮੇਲਾਈਆ ॥
गुरमुखि सखीआ सिख गुरू मेलाईआ ॥
गुरुमुख सिक्ख-सहेलियों को गुरु ने अपने साथ मिला लिया है।
ਇਕਿ ਸੇਵਕ ਗੁਰ ਪਾਸਿ ਇਕਿ ਗੁਰਿ ਕਾਰੈ ਲਾਈਆ ॥
इकि सेवक गुर पासि इकि गुरि कारै लाईआ ॥
इनमें से कुछ सेवक बनकर गुरु के पास रहती हैं और कुछ को गुरु ने अन्य कार्यों में लगाया है।
ਜਿਨਾ ਗੁਰੁ ਪਿਆਰਾ ਮਨਿ ਚਿਤਿ ਤਿਨਾ ਭਾਉ ਗੁਰੂ ਦੇਵਾਈਆ ॥
जिना गुरु पिआरा मनि चिति तिना भाउ गुरू देवाईआ ॥
जिन्हें गुरु अपने मन एवं चित में प्यारा लगता है, उन्हें गुरु अपना प्रेम देता है।
ਗੁਰ ਸਿਖਾ ਇਕੋ ਪਿਆਰੁ ਗੁਰ ਮਿਤਾ ਪੁਤਾ ਭਾਈਆ ॥
गुर सिखा इको पिआरु गुर मिता पुता भाईआ ॥
गुरसिक्खों, मित्रों, पुत्रों एवं भाईयों से गुरु को एक-सा प्रेम होता है।
ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਬੋਲਹੁ ਸਭਿ ਗੁਰੁ ਆਖਿ ਗੁਰੂ ਜੀਵਾਈਆ ॥੧੪॥
गुरु सतिगुरु बोलहु सभि गुरु आखि गुरू जीवाईआ ॥१४॥
सभी गुरु-गुरु बोलो, गुरु-गुरु कहने से गुरु ने उन्हें पुनः जीवित कर दिया है ॥१४॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
सलोकु मः ३ ॥
श्लोक महला ३ ।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਨੀ ਅਗਿਆਨੀ ਅੰਧੁਲੇ ਅਵਰੇ ਕਰਮ ਕਮਾਹਿ ॥
नानक नामु न चेतनी अगिआनी अंधुले अवरे करम कमाहि ॥
हे नानक ! अज्ञानी एवं अन्धे व्यक्ति परमात्मा के नाम को याद नहीं करते अपितु अन्य ही कर्म करते रहते हैं।
ਜਮ ਦਰਿ ਬਧੇ ਮਾਰੀਅਹਿ ਫਿਰਿ ਵਿਸਟਾ ਮਾਹਿ ਪਚਾਹਿ ॥੧॥
जम दरि बधे मारीअहि फिरि विसटा माहि पचाहि ॥१॥
ऐसे व्यक्ति यम के द्वार पर बंधे हुए बहुत दण्ड भोगते हैं और अन्त में वे विष्ठा में ही नष्ट हो जाते हैं ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਆਪਣਾ ਸੇ ਜਨ ਸਚੇ ਪਰਵਾਣੁ ॥
नानक सतिगुरु सेवहि आपणा से जन सचे परवाणु ॥
हे नानक ! जो अपने सतगुरु की सेवा करते हैं, वही सत्यशील एवं प्रामाणिक हैं।
ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ਸਮਾਇ ਰਹੇ ਚੂਕਾ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ॥੨॥
हरि कै नाइ समाइ रहे चूका आवणु जाणु ॥२॥
ऐसे सत्यवादी पुरुष हरि-नाम में ही समाए रहते हैं और उनका जीवन एवं मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਧਨੁ ਸੰਪੈ ਮਾਇਆ ਸੰਚੀਐ ਅੰਤੇ ਦੁਖਦਾਈ ॥
धनु स्मपै माइआ संचीऐ अंते दुखदाई ॥
धन, सम्पति एवं माया के पदार्थों को संचित करना अंत में बड़ा दुखदायक बन जाता है।
ਘਰ ਮੰਦਰ ਮਹਲ ਸਵਾਰੀਅਹਿ ਕਿਛੁ ਸਾਥਿ ਨ ਜਾਈ ॥
घर मंदर महल सवारीअहि किछु साथि न जाई ॥
घर, मन्दिर एवं महलों को संवारा जाता है, लेकिन उनमें से कोई भी इन्सान के साथ नहीं जाता।
ਹਰ ਰੰਗੀ ਤੁਰੇ ਨਿਤ ਪਾਲੀਅਹਿ ਕਿਤੈ ਕਾਮਿ ਨ ਆਈ ॥
हर रंगी तुरे नित पालीअहि कितै कामि न आई ॥
मनुष्य अनेक रंगों के कुशल घोड़ों को नित्य पालता है परन्तु वे भी अंत में किसी काम नहीं आते
ਜਨ ਲਾਵਹੁ ਚਿਤੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਸਿਉ ਅੰਤਿ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥
जन लावहु चितु हरि नाम सिउ अंति होइ सखाई ॥
हे भक्तजनों ! अपना चित हरि-नाम में लगाओ, वही अंत में सहायक होगा।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੁਖੁ ਪਾਈ ॥੧੫॥
जन नानक नामु धिआइआ गुरमुखि सुखु पाई ॥१५॥
नानक ने गुरु के सान्निध्य में नाम का ही ध्यान किया है, जिसके फलस्वरूप उसे सुख प्राप्त हो गया है॥१५॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
सलोकु मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਬਿਨੁ ਕਰਮੈ ਨਾਉ ਨ ਪਾਈਐ ਪੂਰੈ ਕਰਮਿ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
बिनु करमै नाउ न पाईऐ पूरै करमि पाइआ जाइ ॥
भाग्य के बिना नाम की प्राप्ति नहीं होती और पूर्ण भाग्य के द्वारा ही नाम प्राप्त हो सकता है।
ਨਾਨਕ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜੇ ਆਪਣੀ ਤਾ ਗੁਰਮਤਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇ ॥੧॥
नानक नदरि करे जे आपणी ता गुरमति मेलि मिलाइ ॥१॥
हे नानक ! यदि ईश्वर अपनी कृपा-दृष्टि करे तो ही मनुष्य गुरु की मति द्वारा सत्य में मिल जाता है॥१॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਇਕ ਦਝਹਿ ਇਕ ਦਬੀਅਹਿ ਇਕਨਾ ਕੁਤੇ ਖਾਹਿ ॥
इक दझहि इक दबीअहि इकना कुते खाहि ॥
मरणोपरांत कुछ व्यक्तियों का दाह-संस्कार कर दिया जाता है, किसी को दफना दिया जाता है और कुछ लोगों को कुते इत्यादि ही खा जाते हैं।
ਇਕਿ ਪਾਣੀ ਵਿਚਿ ਉਸਟੀਅਹਿ ਇਕਿ ਭੀ ਫਿਰਿ ਹਸਣਿ ਪਾਹਿ ॥
इकि पाणी विचि उसटीअहि इकि भी फिरि हसणि पाहि ॥
कुछ लोग जल-प्रवाह कर दिए जाते हैं तथा कुछ लोग सूखे कुएँ में फेंक दिए जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਏਵ ਨ ਜਾਪਈ ਕਿਥੈ ਜਾਇ ਸਮਾਹਿ ॥੨॥
नानक एव न जापई किथै जाइ समाहि ॥२॥
हे नानक ! यह तो कुछ ज्ञात ही नहीं होता कि आत्मा किधर समा जाती है॥२ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਤਿਨ ਕਾ ਖਾਧਾ ਪੈਧਾ ਮਾਇਆ ਸਭੁ ਪਵਿਤੁ ਹੈ ਜੋ ਨਾਮਿ ਹਰਿ ਰਾਤੇ ॥
तिन का खाधा पैधा माइआ सभु पवितु है जो नामि हरि राते ॥
जो लोग परमात्मा के नाम में मग्न रहते हैं, उनका खाना, पहनना, धन-दौलत इत्यादि सभी पावन है।
ਤਿਨ ਕੇ ਘਰ ਮੰਦਰ ਮਹਲ ਸਰਾਈ ਸਭਿ ਪਵਿਤੁ ਹਹਿ ਜਿਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਕ ਸਿਖ ਅਭਿਆਗਤ ਜਾਇ ਵਰਸਾਤੇ ॥
तिन के घर मंदर महल सराई सभि पवितु हहि जिनी गुरमुखि सेवक सिख अभिआगत जाइ वरसाते ॥
जिनके पास गुरुमुख सेवक, गुरु के शिष्य एवं अभ्यागत जाकर विश्राम करते हैं, उनके घर, मन्दिर, महल एवं सराय सब पवित्र हैं।
ਤਿਨ ਕੇ ਤੁਰੇ ਜੀਨ ਖੁਰਗੀਰ ਸਭਿ ਪਵਿਤੁ ਹਹਿ ਜਿਨੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਿਖ ਸਾਧ ਸੰਤ ਚੜਿ ਜਾਤੇ ॥
तिन के तुरे जीन खुरगीर सभि पवितु हहि जिनी गुरमुखि सिख साध संत चड़ि जाते ॥
उनके सभी घोड़े, जीन एवं खुरगीर इत्यादि पवित्र हैं, जिन पर सवार होकर गुरुमुख, गुरु के शिष्य, साधु एवं संत अपने मार्ग चल देते हैं।
ਤਿਨ ਕੇ ਕਰਮ ਧਰਮ ਕਾਰਜ ਸਭਿ ਪਵਿਤੁ ਹਹਿ ਜੋ ਬੋਲਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਸਾਤੇ ॥
तिन के करम धरम कारज सभि पवितु हहि जो बोलहि हरि हरि राम नामु हरि साते ॥
उन लोगों के सभी कर्म, धर्म एवं समस्त कार्य पवित्र हैं, जो ‘हरि-हरि’ बोलते एवं राम नाम का जाप करते रहते हैं।
ਜਿਨ ਕੈ ਪੋਤੈ ਪੁੰਨੁ ਹੈ ਸੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਿਖ ਗੁਰੂ ਪਹਿ ਜਾਤੇ ॥੧੬॥
जिन कै पोतै पुंनु है से गुरमुखि सिख गुरू पहि जाते ॥१६॥
जिनके पास (शुभ कर्मों के फलस्वरूप) पुण्य हैं, वे गुरुमुख शिष्य गुरु के पास जाते हैं ॥१६॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥
सलोकु मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਨਾਨਕ ਨਾਵਹੁ ਘੁਥਿਆ ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਸਭੁ ਜਾਇ ॥
नानक नावहु घुथिआ हलतु पलतु सभु जाइ ॥
हे नानक ! नाम को विस्मृत करने से मनुष्य का लोक एवं परलोक सब व्यर्थ चला जाता है।
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਸਭੁ ਹਿਰਿ ਲਇਆ ਮੁਠੀ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥
जपु तपु संजमु सभु हिरि लइआ मुठी दूजै भाइ ॥
उसकी पूजा, तपस्या एवं संयम सभी छीन लिया गया है और उसे द्वैतभाव ने ठग लिया है।
ਜਮ ਦਰਿ ਬਧੇ ਮਾਰੀਅਹਿ ਬਹੁਤੀ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥੧॥
जम दरि बधे मारीअहि बहुती मिलै सजाइ ॥१॥
फिर यम के द्वार पर उसे बांधकर बहुत पीटा जाता है और उसे बहुत सजा मिलती है ॥१॥