Hindi Page 720

ਹਰਿ ਆਪੇ ਪੰਚ ਤਤੁ ਬਿਸਥਾਰਾ ਵਿਚਿ ਧਾਤੂ ਪੰਚ ਆਪਿ ਪਾਵੈ ॥
हरि आपे पंच ततु बिसथारा विचि धातू पंच आपि पावै ॥
उस परमात्मा ने स्वयं आकाश, वायु अग्नि, जल एवं पृथ्वी इन पाँच तत्वों का जगत प्रसार किया है और वह स्वयं ही इसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार रूपी पाँच विकार डालता है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਆਪੇ ਹਰਿ ਆਪੇ ਝਗਰੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥੨॥੩॥
जन नानक सतिगुरु मेले आपे हरि आपे झगरु चुकावै ॥२॥३॥
हे नानक ! परमात्मा स्वयं ही अपने भक्तों को सतगुरु से मिलाता है और वह स्वयं ही विषय-विकारों का झगड़ा मिटा देता है। २॥ ३॥

ਬੈਰਾੜੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बैराड़ी महला ४ ॥
बैराड़ी महला ४ ॥

ਜਪਿ ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥
जपि मन राम नामु निसतारा ॥
हे मेरे मन ! राम का नाम जप, चूंकि इससे ही मोक्ष की उपलब्धि होती है।

ਕੋਟ ਕੋਟੰਤਰ ਕੇ ਪਾਪ ਸਭਿ ਖੋਵੈ ਹਰਿ ਭਵਜਲੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कोट कोटंतर के पाप सभि खोवै हरि भवजलु पारि उतारा ॥१॥ रहाउ ॥
राम का नाम करोड़ों ही जन्मों के समस्त पाप नष्ट कर देता है और मनुष्य को भवसागर से पार कर देता है ॥१॥ रहाउ ॥

ਕਾਇਆ ਨਗਰਿ ਬਸਤ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥
काइआ नगरि बसत हरि सुआमी हरि निरभउ निरवैरु निरंकारा ॥
जगत का स्वामी प्रभु मनुष्य के शरीर रूपी नगर में ही रहता है और वह निर्भय, निर्वैर एवं निराकार है।

ਹਰਿ ਨਿਕਟਿ ਬਸਤ ਕਛੁ ਨਦਰਿ ਨ ਆਵੈ ਹਰਿ ਲਾਧਾ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰਾ ॥੧॥
हरि निकटि बसत कछु नदरि न आवै हरि लाधा गुर वीचारा ॥१॥
परमात्मा हमारे समीप ही रहता है, परन्तु हमें कुछ भी दिखाई नहीं देता। गुरु के उपदेश द्वारा ही परमात्मा प्राप्त होता है॥१॥

ਹਰਿ ਆਪੇ ਸਾਹੁ ਸਰਾਫੁ ਰਤਨੁ ਹੀਰਾ ਹਰਿ ਆਪਿ ਕੀਆ ਪਾਸਾਰਾ ॥
हरि आपे साहु सराफु रतनु हीरा हरि आपि कीआ पासारा ॥
परमात्मा स्वयं ही साहूकार, स्वयं ही सर्राफ, स्वयं ही रत्न एवं स्वयं ही अनमोल हीरा है और उसने स्वयं ही सृष्टि का प्रसार किया हुआ है।

ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਸੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਿਹਾਝੇ ਸੋ ਸਾਹੁ ਸਚਾ ਵਣਜਾਰਾ ॥੨॥੪॥
नानक जिसु क्रिपा करे सु हरि नामु विहाझे सो साहु सचा वणजारा ॥२॥४॥
हे नानक ! जिस पर वह अपनी कृपा करता है, वही हरि-नाम को खरीदता है और वही सच्चा साहूकार एवं सच्चा व्यापारी है। २ । ४ ॥

ਬੈਰਾੜੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बैराड़ी महला ४ ॥
बैराड़ी महला ४ ॥

ਜਪਿ ਮਨ ਹਰਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥
जपि मन हरि निरंजनु निरंकारा ॥
हे मन ! निरंजन एवं निराकार परमात्मा का जाप करो।

ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਸੁਖਦਾਤਾ ਜਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सदा सदा हरि धिआईऐ सुखदाता जा का अंतु न पारावारा ॥१॥ रहाउ ॥
सदा-सर्वदा सुख देने वाले परमेश्वर का ही ध्यान-मनन करना चाहिए, जिसका कोई अन्त एवं आरपार नहीं है ॥१॥ रहाउ ॥

ਅਗਨਿ ਕੁੰਟ ਮਹਿ ਉਰਧ ਲਿਵ ਲਾਗਾ ਹਰਿ ਰਾਖੈ ਉਦਰ ਮੰਝਾਰਾ ॥
अगनि कुंट महि उरध लिव लागा हरि राखै उदर मंझारा ॥
माँ के उदर में ईश्वर ही जीव की रक्षा करता है, जहाँ वह जठराग्नि के कुण्ड में उल्टे मुँह पड़ा हुआ उसमे अपनी सुरति लगाकर रखता है।

ਸੋ ਐਸਾ ਹਰਿ ਸੇਵਹੁ ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਅੰਤਿ ਛਡਾਵਣਹਾਰਾ ॥੧॥
सो ऐसा हरि सेवहु मेरे मन हरि अंति छडावणहारा ॥१॥
है मन ! सो ऐसे ईश्वर की उपासना करो, क्योकि जीवन के अन्तिम क्षणों में एक वही जीव को यम से स्वतंत्र कराने वाला है। १॥

ਜਾ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਬਸਿਆ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕਉ ਕਰਹੁ ਨਮਸਕਾਰਾ ॥
जा कै हिरदै बसिआ मेरा हरि हरि तिसु जन कउ करहु नमसकारा ॥
जिस महापुरुष के हृदय में मेरा परमेश्वर निवास कर गया है, उसे सदैव ही नमन करो।

ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਜਪੁ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰਾ ॥੨॥੫॥
हरि किरपा ते पाईऐ हरि जपु नानक नामु अधारा ॥२॥५॥
हे नानक ! परमात्मा का नाम ही हमारे जीवन का आधार है परन्तु परमात्मा का सिमरन उसकी कृपा से ही प्राप्त होता ॥२॥५॥

ਬੈਰਾੜੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बैराड़ी महला ४ ॥
बैराड़ी महला ४ ॥

ਜਪਿ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਧਿਆਇ ॥
जपि मन हरि हरि नामु नित धिआइ ॥
हे मेरे मन ! ईश्वर का जाप करो और नित्य ही उसके नाम का ध्यान करते रहो।

ਜੋ ਇਛਹਿ ਸੋਈ ਫਲੁ ਪਾਵਹਿ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਲਾਗੈ ਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो इछहि सोई फलु पावहि फिरि दूखु न लागै आइ ॥१॥ रहाउ ॥
उसका ध्यान करने से जो भी कामना होती है, वही फल प्राप्त हो जाता है और फिर से कोई भी दु:ख आकर नहीं लगता ॥ १ ॥ रहाउ ॥

ਸੋ ਜਪੁ ਸੋ ਤਪੁ ਸਾ ਬ੍ਰਤ ਪੂਜਾ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਇ ॥
सो जपु सो तपु सा ब्रत पूजा जितु हरि सिउ प्रीति लगाइ ॥
जिससे ईश्वर की प्रीति लग जाती है, वही जप, तप, तपस्या, व्रत एवं पूजा है।

ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹੋਰ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਭ ਝੂਠੀ ਇਕ ਖਿਨ ਮਹਿ ਬਿਸਰਿ ਸਭ ਜਾਇ ॥੧॥
बिनु हरि प्रीति होर प्रीति सभ झूठी इक खिन महि बिसरि सभ जाइ ॥१॥
ईश्वर से प्रीति के सिवाय शेष सारी प्रीति झूठी है जो एक क्षण में ही सब भूल जाती है। १॥

ਤੂ ਬੇਅੰਤੁ ਸਰਬ ਕਲ ਪੂਰਾ ਕਿਛੁ ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥
तू बेअंतु सरब कल पूरा किछु कीमति कही न जाइ ॥
हे ईश्वर ! तू बेअंत एवं सर्वकला सम्पूर्ण है और तेरा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।

ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ਹਰਿ ਜੀਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਛਡਾਇ ॥੨॥੬॥
नानक सरणि तुम्हारी हरि जीउ भावै तिवै छडाइ ॥२॥६॥
नानक वंदना करता है कि हे परमेश्वर ! मैं तेरी शरण में आया हूँ, जैसे तुझे उपयुक्त लगता है, वैसे ही मुझे बन्धनों से छुड़ा लो ॥ २॥ ६॥

ਰਾਗੁ ਬੈਰਾੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧
रागु बैराड़ी महला ५ घरु १
रागु बैराड़ी महला ५ घरु १

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਇਓ ॥
संत जना मिलि हरि जसु गाइओ ॥
संतजनों के संग मिलकर मैंने भगवान का ही यशगान किया है और

ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਦੂਖ ਗਵਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कोटि जनम के दूख गवाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
अपने करोड़ों जन्मों के दु:ख दूर कर लिए हैं। १॥ रहाउ॥

ਜੋ ਚਾਹਤ ਸੋਈ ਮਨਿ ਪਾਇਓ ॥
जो चाहत सोई मनि पाइओ ॥
मन में जो भी अभिलाषा थी, वही कुछ प्राप्त कर लिया है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦਿਵਾਇਓ ॥੧॥
करि किरपा हरि नामु दिवाइओ ॥१॥
भगवान ने कृपा करके (संतों से) मुझे अपना नाम दिलवा दिया है॥१॥

ਸਰਬ ਸੂਖ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਵਡਾਈ ॥
सरब सूख हरि नामि वडाई ॥
हरि-नाम की बड़ाई करने से लोक एवं परलोक में बड़ी शोभा एवं सर्व सुख प्राप्त होते हैं।

ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਮਤਿ ਪਾਈ ॥੨॥੧॥੭॥
गुर प्रसादि नानक मति पाई ॥२॥१॥७॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से ही मुझे सुमति प्राप्त हुई है॥ २॥ १॥ ७॥

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