ਹਉ ਤਿਨ ਕੈ ਬਲਿਹਾਰਣੈ ਮਨਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਸਦਾ ਰਵੰਨਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ तिन कै बलिहारणै मनि हरि गुण सदा रवंनि ॥१॥ रहाउ ॥
मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ, जो सदैव अपने मन में प्रभु का गुणगान करते रहते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰੁ ਸਰਵਰੁ ਮਾਨ ਸਰੋਵਰੁ ਹੈ ਵਡਭਾਗੀ ਪੁਰਖ ਲਹੰਨੑਿ ॥
गुरु सरवरु मान सरोवरु है वडभागी पुरख लहंन्हि ॥
गुरु मानसरोवर रूपी पावन सरोवर है और खुशनसीब पुरुष उसे प्राप्त कर लेते हैं।
ਸੇਵਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੋਜਿਆ ਸੇ ਹੰਸੁਲੇ ਨਾਮੁ ਲਹੰਨਿ ॥੨॥
सेवक गुरमुखि खोजिआ से हंसुले नामु लहंनि ॥२॥
जिन सेवकों ने गुरुमुख बनकर नाम को खोजा है, उन परमहंस संतों ने नाम हासिल कर लिया है॥ २॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਨੑਿ ਰੰਗ ਸਿਉ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਲਗੰਨੑਿ ॥
नामु धिआइन्हि रंग सिउ गुरमुखि नामि लगंन्हि ॥
गुरुमुख परमात्मा के नाम-ध्यान में ही लीन रहते हैं और प्रेम से नाम-सिमरन करते रहते हैं।
ਧੁਰਿ ਪੂਰਬਿ ਹੋਵੈ ਲਿਖਿਆ ਗੁਰ ਭਾਣਾ ਮੰਨਿ ਲਏਨੑਿ ॥੩॥
धुरि पूरबि होवै लिखिआ गुर भाणा मंनि लएन्हि ॥३॥
यदि प्रारम्भ से ही ऐसा भाग्य लिखा हो तो गुरु की रजा को मान लेते हैं।॥ ३॥
ਵਡਭਾਗੀ ਘਰੁ ਖੋਜਿਆ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥
वडभागी घरु खोजिआ पाइआ नामु निधानु ॥
उन भाग्यवान पुरुषों ने अपना हृदय-घर खोजा है और नाम रूपी खजाना ही पाया है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਵੇਖਾਲਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਛਾਨੁ ॥੪॥
गुरि पूरै वेखालिआ प्रभु आतम रामु पछानु ॥४॥
पूर्ण गुरु ने उन्हें परमात्मा दिखा दिया है और उन्होंने आत्मा में ईश्वर को पहचान लिया है॥ ४॥
ਸਭਨਾ ਕਾ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੁ ਹੈ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
सभना का प्रभु एकु है दूजा अवरु न कोइ ॥
सब जीवों का प्रभु एक ही है और दूसरा अन्य कोई नहीं है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਨਿ ਵਸੈ ਤਿਤੁ ਘਟਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥੫॥
गुर परसादी मनि वसै तितु घटि परगटु होइ ॥५॥
वह उस व्यक्ति के हृदय में प्रगट होता है, जिसके मन में गुरु की कृपा द्वारा आ बसता है॥ ५ ॥
ਸਭੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਬ੍ਰਹਮੁ ਹੈ ਬ੍ਰਹਮੁ ਵਸੈ ਸਭ ਥਾਇ ॥
सभु अंतरजामी ब्रहमु है ब्रहमु वसै सभ थाइ ॥
समूचा विश्व अन्तर्यामी ब्रह्म का रूप है और हर जगह ब्रह्म का निवास है।
ਮੰਦਾ ਕਿਸ ਨੋ ਆਖੀਐ ਸਬਦਿ ਵੇਖਹੁ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੬॥
मंदा किस नो आखीऐ सबदि वेखहु लिव लाइ ॥६॥
बुरा किसे कहा जाए? शब्द में ध्यान लगाकर देख लो॥ ६॥
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਤਿਚਰੁ ਆਖਦਾ ਜਿਚਰੁ ਹੈ ਦੁਹੁ ਮਾਹਿ ॥
बुरा भला तिचरु आखदा जिचरु है दुहु माहि ॥
जब तक आदमी ‘तेरा-मेरा’ की दुविधा में पड़ा रहता है, वह तब तक ही किसी को बुरा और किसी को भला कहता रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕੋ ਬੁਝਿਆ ਏਕਸੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥੭॥
गुरमुखि एको बुझिआ एकसु माहि समाइ ॥७॥
गुरुमुखों ने एक परमात्मा को ही समझा है और वह उस एक प्रभु में ही लीन रहते हैं।॥ ७॥
ਸੇਵਾ ਸਾ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵਸੀ ਜੋ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਏ ਥਾਇ ॥
सेवा सा प्रभ भावसी जो प्रभु पाए थाइ ॥
वही सेवा करनी चाहिए जो प्रभु को उपयुक्त लगती हो और जिसे स्वीकार कर लेता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਆਰਾਧਿਆ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥੮॥੨॥੪॥੯॥
जन नानक हरि आराधिआ गुर चरणी चितु लाइ ॥८॥२॥४॥९॥
हे नानक ! गुरु के चरणों में चित्त लगाकर उसने प्रभु की ही आराधना की है। ८ ।॥ २॥ ४॥ ६॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੨
रागु सूही असटपदीआ महला ४ घरु २
रागु सूही असटपदीआ महला ४ घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕੋਈ ਆਣਿ ਮਿਲਾਵੈ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਪਿਆਰਾ ਹਉ ਤਿਸੁ ਪਹਿ ਆਪੁ ਵੇਚਾਈ ॥੧॥
कोई आणि मिलावै मेरा प्रीतमु पिआरा हउ तिसु पहि आपु वेचाई ॥१॥
अगर कोई मुझे प्रियतम प्यारे से मिला दे तो मैं उसके पास अपना आप बेच दूँगा ॥ १॥
ਦਰਸਨੁ ਹਰਿ ਦੇਖਣ ਕੈ ਤਾਈ ॥
दरसनु हरि देखण कै ताई ॥
मैं हरि का दर्शन करने के लिए इस तरह ही करूँगा।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹਿ ਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
क्रिपा करहि ता सतिगुरु मेलहि हरि हरि नामु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥
हे परमेश्वर ! यदि तू कृपा कर दे तो सतगुरु से मिलाप हो जाए और फिर तेरे नाम का ध्यान करता रहूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਜੇ ਸੁਖੁ ਦੇਹਿ ਤ ਤੁਝਹਿ ਅਰਾਧੀ ਦੁਖਿ ਭੀ ਤੁਝੈ ਧਿਆਈ ॥੨॥
जे सुखु देहि त तुझहि अराधी दुखि भी तुझै धिआई ॥२॥
हे ईश्वर ! यदि तू मुझे सुख देता है तो मैं तेरी ही आराधना करता हूँ और दुख तकलीफ में भी तेरा ही चिंतन करता हूँ॥ २ ॥
ਜੇ ਭੁਖ ਦੇਹਿ ਤ ਇਤ ਹੀ ਰਾਜਾ ਦੁਖ ਵਿਚਿ ਸੂਖ ਮਨਾਈ ॥੩॥
जे भुख देहि त इत ही राजा दुख विचि सूख मनाई ॥३॥
तू मुझे भूखा रखता है तो मैं इससे भी तृप्त हो जाता हूँ और दुख में भी सुख की अनुभूति करता हूँ॥ ३॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਕਾਟਿ ਕਾਟਿ ਸਭੁ ਅਰਪੀ ਵਿਚਿ ਅਗਨੀ ਆਪੁ ਜਲਾਈ ॥੪॥
तनु मनु काटि काटि सभु अरपी विचि अगनी आपु जलाई ॥४॥
मैं अपना तन-मन काट-काटकर सबकुछ तुझे अर्पण कर दूँगा और अग्नि में खुद को जला दूँगा॥ ४॥
ਪਖਾ ਫੇਰੀ ਪਾਣੀ ਢੋਵਾ ਜੋ ਦੇਵਹਿ ਸੋ ਖਾਈ ॥੫॥
पखा फेरी पाणी ढोवा जो देवहि सो खाई ॥५॥
मैं संतजनों को पंखा करता हूँ, उनके लिए पानी ढोता हूँ और वही खाता हूँ जो मुझे देते हैं।॥ ५॥
ਨਾਨਕੁ ਗਰੀਬੁ ਢਹਿ ਪਇਆ ਦੁਆਰੈ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਲੈਹੁ ਵਡਿਆਈ ॥੬॥
नानकु गरीबु ढहि पइआ दुआरै हरि मेलि लैहु वडिआई ॥६॥
हे हरि ! गरीब नानक तेरे द्वार पर नतमस्तक हो गया है, मुझे अपने साथ मिला लो, मुझे यही बड़ाई दो॥ ६॥
ਅਖੀ ਕਾਢਿ ਧਰੀ ਚਰਣਾ ਤਲਿ ਸਭ ਧਰਤੀ ਫਿਰਿ ਮਤ ਪਾਈ ॥੭॥
अखी काढि धरी चरणा तलि सभ धरती फिरि मत पाई ॥७॥
मैं सारी धरती घूम कर देखँगा, शायद मेरा गुरु मुझे मिल जाए। मैं अपनी आंखें निकालकर उसके चरणों में रख दूँगा ॥ ७॥
ਜੇ ਪਾਸਿ ਬਹਾਲਹਿ ਤਾ ਤੁਝਹਿ ਅਰਾਧੀ ਜੇ ਮਾਰਿ ਕਢਹਿ ਭੀ ਧਿਆਈ ॥੮॥
जे पासि बहालहि ता तुझहि अराधी जे मारि कढहि भी धिआई ॥८॥
यदि गुरु मुझे अपने पास बिठा ले तो तेरी ही आराधना करूँगा। यदि वह मुझे धक्के मार-मार कर निकाल भी देगा तो तेरा ही ध्यान करूँगा। ॥८॥
ਜੇ ਲੋਕੁ ਸਲਾਹੇ ਤਾ ਤੇਰੀ ਉਪਮਾ ਜੇ ਨਿੰਦੈ ਤ ਛੋਡਿ ਨ ਜਾਈ ॥੯॥
जे लोकु सलाहे ता तेरी उपमा जे निंदै त छोडि न जाई ॥९॥
यदि लोग मेरी सराहना करेंगे तो वह तेरी ही उपमा है। यदि निंदा-आलोचना करेंगे तो भी मैं तुझे छोड़कर नहीं जाऊँगा। ९ ॥
ਜੇ ਤੁਧੁ ਵਲਿ ਰਹੈ ਤਾ ਕੋਈ ਕਿਹੁ ਆਖਉ ਤੁਧੁ ਵਿਸਰਿਐ ਮਰਿ ਜਾਈ ॥੧੦॥
जे तुधु वलि रहै ता कोई किहु आखउ तुधु विसरिऐ मरि जाई ॥१०॥
यदि तू मेरे साथ रहे तो मुझे क्या कह सकता है? तुझे भुलाने से तो मैं मर ही जाता हूँ॥ १०॥
ਵਾਰਿ ਵਾਰਿ ਜਾਈ ਗੁਰ ਊਪਰਿ ਪੈ ਪੈਰੀ ਸੰਤ ਮਨਾਈ ॥੧੧॥
वारि वारि जाई गुर ऊपरि पै पैरी संत मनाई ॥११॥
मैं अपने गुरु पर शत कुर्बान जाता हूँ और पैरों पर पड़कर संतों को खुश करता हूँ॥ ११॥
ਨਾਨਕੁ ਵਿਚਾਰਾ ਭਇਆ ਦਿਵਾਨਾ ਹਰਿ ਤਉ ਦਰਸਨ ਕੈ ਤਾਈ ॥੧੨॥
नानकु विचारा भइआ दिवाना हरि तउ दरसन कै ताई ॥१२॥
हे हरि ! तेरे दर्शन करने के लिए बेचारा नानक तो दीवाना हो गया है। १२॥
ਝਖੜੁ ਝਾਗੀ ਮੀਹੁ ਵਰਸੈ ਭੀ ਗੁਰੁ ਦੇਖਣ ਜਾਈ ॥੧੩॥
झखड़ु झागी मीहु वरसै भी गुरु देखण जाई ॥१३॥
चाहे सख्त आंधी-तूफान आ जाए, चाहे मूसलाधार बारिश आ जाए तो भी गुरु के दर्शन करने के लिए जाता हूँ॥ १३॥
ਸਮੁੰਦੁ ਸਾਗਰੁ ਹੋਵੈ ਬਹੁ ਖਾਰਾ ਗੁਰਸਿਖੁ ਲੰਘਿ ਗੁਰ ਪਹਿ ਜਾਈ ॥੧੪॥
समुंदु सागरु होवै बहु खारा गुरसिखु लंघि गुर पहि जाई ॥१४॥
यदि बहुत खारा समुद्र-सागर हो तो भी गुरु का शिष्य उसे पार करके अपने गुरु के पास जाता है॥ १४॥
ਜਿਉ ਪ੍ਰਾਣੀ ਜਲ ਬਿਨੁ ਹੈ ਮਰਤਾ ਤਿਉ ਸਿਖੁ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਮਰਿ ਜਾਈ ॥੧੫॥
जिउ प्राणी जल बिनु है मरता तिउ सिखु गुर बिनु मरि जाई ॥१५॥
जैसे प्राणी जल के बिना मर जाता है, वैसे ही गुरु के बिना शिष्य मृत्यु को प्राप्त हो जाता है॥ १५॥