Hindi Page 758

ਜਿਉ ਧਰਤੀ ਸੋਭ ਕਰੇ ਜਲੁ ਬਰਸੈ ਤਿਉ ਸਿਖੁ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਬਿਗਸਾਈ ॥੧੬॥
जिउ धरती सोभ करे जलु बरसै तिउ सिखु गुर मिलि बिगसाई ॥१६॥
जैसे वर्षा होने से धरती सुन्दर लगती है, वैसे ही गुरु को मिलकर शिष्य प्रसन्न होता है॥ १६॥

ਸੇਵਕ ਕਾ ਹੋਇ ਸੇਵਕੁ ਵਰਤਾ ਕਰਿ ਕਰਿ ਬਿਨਉ ਬੁਲਾਈ ॥੧੭॥
सेवक का होइ सेवकु वरता करि करि बिनउ बुलाई ॥१७॥
मैं अपने गुरु के सेवकों का सेवक बनकर उनकी सेवा करता हूँ और विनती कर-करके उन्हें बुलाता हूँ॥ १७॥

ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਹਰਿ ਪਹਿ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਗੁਰ ਸੁਖੁ ਪਾਈ ॥੧੮॥
नानक की बेनंती हरि पहि गुर मिलि गुर सुखु पाई ॥१८॥
नानक की प्रभु के पास विनती है कि मैं गुरु को मिलकर सुख प्राप्त करूँ॥ १८ ॥

ਤੂ ਆਪੇ ਗੁਰੁ ਚੇਲਾ ਹੈ ਆਪੇ ਗੁਰ ਵਿਚੁ ਦੇ ਤੁਝਹਿ ਧਿਆਈ ॥੧੯॥
तू आपे गुरु चेला है आपे गुर विचु दे तुझहि धिआई ॥१९॥
हे ईश्वर ! तू आप ही गुरु है और आप ही शिष्य है। मैं गुरु के माध्यम से तेरा ही चिंतन करता रहता हूँ॥ १९॥

ਜੋ ਤੁਧੁ ਸੇਵਹਿ ਸੋ ਤੂਹੈ ਹੋਵਹਿ ਤੁਧੁ ਸੇਵਕ ਪੈਜ ਰਖਾਈ ॥੨੦॥
जो तुधु सेवहि सो तूहै होवहि तुधु सेवक पैज रखाई ॥२०॥
जो तेरी उपासना करते हैं, वे तेरा ही रूप बन जाते हैं। तुम अपने सेवकों की लाज बचाते आए हो ॥ २०॥

ਭੰਡਾਰ ਭਰੇ ਭਗਤੀ ਹਰਿ ਤੇਰੇ ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਦੇਵਾਈ ॥੨੧॥
भंडार भरे भगती हरि तेरे जिसु भावै तिसु देवाई ॥२१॥
हे हरि ! तेरी भक्ति के भण्डार भरे पड़े हैं लेकिन जो तुझे भाता हैं, तू उसे गुरु से दिलवा देता है।॥ २१॥

ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ਹੋਰ ਨਿਹਫਲ ਸਭ ਚਤੁਰਾਈ ॥੨੨॥
जिसु तूं देहि सोई जनु पाए होर निहफल सभ चतुराई ॥२२॥
जिसे तू देता है, तेरा वही सेवक इसे प्राप्त करता है और सब चतुराई निष्फल है॥ २२॥

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਗੁਰੁ ਅਪੁਨਾ ਸੋਇਆ ਮਨੁ ਜਾਗਾਈ ॥੨੩॥
सिमरि सिमरि सिमरि गुरु अपुना सोइआ मनु जागाई ॥२३॥
मैंने गुरु को स्मरण कर-करके अपना अज्ञानता की नींद में मन जगा लिया है॥ २३॥

ਇਕੁ ਦਾਨੁ ਮੰਗੈ ਨਾਨਕੁ ਵੇਚਾਰਾ ਹਰਿ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸੁ ਕਰਾਈ ॥੨੪॥
इकु दानु मंगै नानकु वेचारा हरि दासनि दासु कराई ॥२४॥
हे प्रभु ! नानक बेचारा तो तुझ से एक यही दान माँगता है कि मुझे अपने दासों का दास बना लो॥ २४॥

ਜੇ ਗੁਰੁ ਝਿੜਕੇ ਤ ਮੀਠਾ ਲਾਗੈ ਜੇ ਬਖਸੇ ਤ ਗੁਰ ਵਡਿਆਈ ॥੨੫॥
जे गुरु झिड़के त मीठा लागै जे बखसे त गुर वडिआई ॥२५॥
यदि मेरा गुरु मुझे किसी बात पर डांटता है तो वह डांट मुझे बड़ी मीठी लगती है। यदि मुझे क्षमा कर देता है तो यह गुरु का बड़प्पन है॥ २५ ॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੋਲਹਿ ਸੋ ਥਾਇ ਪਾਏ ਮਨਮੁਖਿ ਕਿਛੁ ਥਾਇ ਨ ਪਾਈ ॥੨੬॥
गुरमुखि बोलहि सो थाइ पाए मनमुखि किछु थाइ न पाई ॥२६॥
गुरुमुख जो बोलता है, वह प्रभु को स्वीकार हो जाता है लेकिन स्वेच्छाचारी इन्सान का वचन स्वीकार नहीं होता।॥ २६॥

ਪਾਲਾ ਕਕਰੁ ਵਰਫ ਵਰਸੈ ਗੁਰਸਿਖੁ ਗੁਰ ਦੇਖਣ ਜਾਈ ॥੨੭॥
पाला ककरु वरफ वरसै गुरसिखु गुर देखण जाई ॥२७॥
यदि भयंकर शीत, कोहरा एवं बर्फ ही पड़ती हो तो भी गुरु का शिष्य गुरु के दर्शन करने जाता है॥ २७ ॥

ਸਭੁ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਦੇਖਉ ਗੁਰੁ ਅਪੁਨਾ ਵਿਚਿ ਅਖੀ ਗੁਰ ਪੈਰ ਧਰਾਈ ॥੨੮॥
सभु दिनसु रैणि देखउ गुरु अपुना विचि अखी गुर पैर धराई ॥२८॥
मैं रात-दिन गुरु को देखता रहता हूँ, अपनी आँखों में गुरु के चरण बसाकर रखता हूँ॥ २८ ॥

ਅਨੇਕ ਉਪਾਵ ਕਰੀ ਗੁਰ ਕਾਰਣਿ ਗੁਰ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥਾਇ ਪਾਈ ॥੨੯॥
अनेक उपाव करी गुर कारणि गुर भावै सो थाइ पाई ॥२९॥
मैं अपने गुरु को खुश करने के लिए अनेक उपाय करता रहता हूँ। लेकिन जो गुरु को अच्छा लगता है, उसे वही मंजूर होता है॥ २९ ॥

ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਗੁਰ ਚਰਣ ਅਰਾਧੀ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਮੇਰੇ ਸਾਈ ॥੩੦॥
रैणि दिनसु गुर चरण अराधी दइआ करहु मेरे साई ॥३०॥
हे मेरे मालिक ! मुझ पर ऐसी दया करो किं मैं दिन-रात गुरु के चरणों की आराधना करता रहूँ॥ ३०॥

ਨਾਨਕ ਕਾ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਗੁਰੂ ਹੈ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਈ ॥੩੧॥
नानक का जीउ पिंडु गुरू है गुर मिलि त्रिपति अघाई ॥३१॥
गुरु ही नानक का जीवन एवं शरीर है और गुरु को मिलकर ही वह तृप्त एवं संतुष्ट होता है॥ ३१॥

ਨਾਨਕ ਕਾ ਪ੍ਰਭੁ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਹੈ ਜਤ ਕਤ ਤਤ ਗੋਸਾਈ ॥੩੨॥੧॥
नानक का प्रभु पूरि रहिओ है जत कत तत गोसाई ॥३२॥१॥
नानक का प्रभु हर जगह मौजूद है, वह सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है॥ ३२॥ १॥

ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੪ ਅਸਟਪਦੀਆ ਘਰੁ ੧੦
रागु सूही महला ४ असटपदीआ घरु १०
रागु सूही महला ४ असटपदीआ घरु १०

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਅੰਦਰਿ ਸਚਾ ਨੇਹੁ ਲਾਇਆ ਪ੍ਰੀਤਮ ਆਪਣੈ ॥
अंदरि सचा नेहु लाइआ प्रीतम आपणै ॥
हे भाई ! गुरु ने प्रभु के संग सच्चा प्रेम अन्तर्मन में लगा दिया है।

ਤਨੁ ਮਨੁ ਹੋਇ ਨਿਹਾਲੁ ਜਾ ਗੁਰੁ ਦੇਖਾ ਸਾਮ੍ਹ੍ਹਣੇ ॥੧॥
तनु मनु होइ निहालु जा गुरु देखा साम्हणे ॥१॥
जब मैं गुरु को अपने सामने देखता हूँ तो मेरा तन-मन आनंदित हो जाता है॥ १॥

ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਹੁ ॥
मै हरि हरि नामु विसाहु ॥
मेरे पास प्रभु-नाम का अमूल्य धन है

ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਾਇਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਅਗਮ ਅਥਾਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर पूरे ते पाइआ अम्रितु अगम अथाहु ॥१॥ रहाउ ॥
जो मैंने गुरु से पाया है। यह अमृत-नाम अगम्य एवं अथाह है॥ १॥ रहाउ॥

ਹਉ ਸਤਿਗੁਰੁ ਵੇਖਿ ਵਿਗਸੀਆ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਲਗਾ ਪਿਆਰੁ ॥
हउ सतिगुरु वेखि विगसीआ हरि नामे लगा पिआरु ॥
मैं सतगुरु को देखकर प्रसन्न हो गया हूँ और प्रभु नाम से मेरा प्रेम लग गया है।

ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਕੈ ਮੇਲਿਅਨੁ ਪਾਇਆ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥੨॥
किरपा करि कै मेलिअनु पाइआ मोख दुआरु ॥२॥
प्रभु ने कृपा करके अपने साथ मिला लिया है और मैंने मोक्षद्वार पा लिया है॥ २॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਬਿਰਹੀ ਨਾਮ ਕਾ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤ ਤਨੁ ਮਨੁ ਦੇਉ ॥
सतिगुरु बिरही नाम का जे मिलै त तनु मनु देउ ॥
मेरा सतगुरु ईश्वर के नाम का प्रेमी है। यदि वह मिल जाए तो मैं अपना तन-मन उसे सौंप दूँ।

ਜੇ ਪੂਰਬਿ ਹੋਵੈ ਲਿਖਿਆ ਤਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਹਜਿ ਪੀਏਉ ॥੩॥
जे पूरबि होवै लिखिआ ता अम्रितु सहजि पीएउ ॥३॥
यदि पूर्व ही मेरी तक़दीर में लिखा हो तो अमृत-नाम को पी लूं॥ ३॥

ਸੁਤਿਆ ਗੁਰੁ ਸਾਲਾਹੀਐ ਉਠਦਿਆ ਭੀ ਗੁਰੁ ਆਲਾਉ ॥
सुतिआ गुरु सालाहीऐ उठदिआ भी गुरु आलाउ ॥
सोते वक्त गुरु की स्तुति करनी चाहिए और जागते वक्त भी गुरु गुरु जपना चाहिए।

ਕੋਈ ਐਸਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੇ ਮਿਲੈ ਹਉ ਤਾ ਕੇ ਧੋਵਾ ਪਾਉ ॥੪॥
कोई ऐसा गुरमुखि जे मिलै हउ ता के धोवा पाउ ॥४॥
यदि कोई ऐसा गुरुमुख मिल जाए तो मैं उसके चरण धोऊँ ॥ ४॥

ਕੋਈ ਐਸਾ ਸਜਣੁ ਲੋੜਿ ਲਹੁ ਮੈ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਦੇਇ ਮਿਲਾਇ ॥
कोई ऐसा सजणु लोड़ि लहु मै प्रीतमु देइ मिलाइ ॥
मुझे कोई ऐसा सज्जन ढूंढ दीजिए, जो मुझे मेरे प्रियतम-प्रभु से मिला दे।

ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਮਿਲਿਆ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥੫॥
सतिगुरि मिलिऐ हरि पाइआ मिलिआ सहजि सुभाइ ॥५॥
मैंने सतिगुरु से मिलकर हरि को पा लिया है और वह मुझे सहज-स्वभाव ही मिला है॥ ५ ॥

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