Hindi Page 96

ਧਨੁ ਧਨੁ ਹਰਿ ਜਨ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਤਾ ॥
धनु धनु हरि जन जिनि हरि प्रभु जाता ॥
वह हरि के सेवक धन्य हैं, जिन्होंने हरि-प्रभु को समझ लिया है।

ਜਾਇ ਪੁਛਾ ਜਨ ਹਰਿ ਕੀ ਬਾਤਾ ॥
जाइ पुछा जन हरि की बाता ॥
मैं जाकर ऐसे सेवकों से हरि की बातें पूछता हूँ।

ਪਾਵ ਮਲੋਵਾ ਮਲਿ ਮਲਿ ਧੋਵਾ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਚੈ ਜੀਉ ॥੨॥
पाव मलोवा मलि मलि धोवा मिलि हरि जन हरि रसु पीचै जीउ ॥२॥
मैं उनके चरण दबाता हूँ और उन्हें स्वच्छ करता एवं धोता हूँ; हरि के सेवकों से भेंट करके मैं हरि-रस का पान करता हूँ ॥२॥

ਸਤਿਗੁਰ ਦਾਤੈ ਨਾਮੁ ਦਿੜਾਇਆ ॥
सतिगुर दातै नामु दिड़ाइआ ॥
दाता सतिगुरु ने मेरे हृदय में ईश्वर का नाम बसा दिया है।

ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥
वडभागी गुर दरसनु पाइआ ॥
परम सौभाग्य से मुझे गुरु के दर्शन प्राप्त हुए हैं।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਸਚੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਬੋਲੀ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਲੀਚੈ ਜੀਉ ॥੩॥
अम्रित रसु सचु अम्रितु बोली गुरि पूरै अम्रितु लीचै जीउ ॥३॥
सतिगुरु सत्य अमृत रस का पान करते हैं और सत्य अमृतवाणी ही बोलते हैं; अतः पूर्ण गुरु से अमृत नाम प्राप्त करो॥३॥

ਹਰਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਤ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਾਈਐ ॥
हरि सतसंगति सत पुरखु मिलाईऐ ॥
हे प्रभु ! मुझे सद्पुरुषों की संगति में मिलाओ।

ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥
मिलि सतसंगति हरि नामु धिआईऐ ॥
पवित्र पुरुषों की सभा में मिलकर मैं हरि के नाम की आराधना करता रहूँ।

ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਣੀ ਮੁਖਿ ਬੋਲੀ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਪਰੀਚੈ ਜੀਉ ॥੪॥੬॥
नानक हरि कथा सुणी मुखि बोली गुरमति हरि नामि परीचै जीउ ॥४॥६॥
हे नानक ! मैं हरि कथा ही सुनता हूँ और अपने मुँह से वाणी ही बोलता हूँ; गुरु के उपदेश द्वारा हरि के नाम से मैं तृप्त हो जाता हूँ॥४॥६॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥
माझ महला ४ ॥
माझ महला ४ ॥

ਆਵਹੁ ਭੈਣੇ ਤੁਸੀ ਮਿਲਹੁ ਪਿਆਰੀਆ ॥
आवहु भैणे तुसी मिलहु पिआरीआ ॥
हे मेरी प्यारी सत्संगी बहनो ! तुम मुझे आकर मिलो।

ਜੋ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਦਸੇ ਤਿਸ ਕੈ ਹਉ ਵਾਰੀਆ ॥
जो मेरा प्रीतमु दसे तिस कै हउ वारीआ ॥
जो मुझे मेरे प्रियतम प्रभु का पता बताएगी, मैं उस पर कुर्बान हो जाऊँगी।

ਮਿਲਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਲਧਾ ਹਰਿ ਸਜਣੁ ਹਉ ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਘੁਮਾਈਆ ਜੀਉ ॥੧॥
मिलि सतसंगति लधा हरि सजणु हउ सतिगुर विटहु घुमाईआ जीउ ॥१॥
सत्संग में मिलकर मैंने अपने साजन हरि को ढूंढ लिया है, अपने सतिगुरु पर में बलिहारी जाती हूँ॥१॥

ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਤਹ ਸੁਆਮੀ ॥
जह जह देखा तह तह सुआमी ॥
जँहा कहीं भी मैं देखती हूँ, उधर ही मैं अपने स्वामी को देखती हूँ।

ਤੂ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਵਿਆ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
तू घटि घटि रविआ अंतरजामी ॥
हे अन्तर्यामी प्रभु ! तू सर्वत्र व्यापक है।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਨਾਲਿ ਦਿਖਾਲਿਆ ਹਉ ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਸਦ ਵਾਰਿਆ ਜੀਉ ॥੨॥
गुरि पूरै हरि नालि दिखालिआ हउ सतिगुर विटहु सद वारिआ जीउ ॥२॥
पूर्ण गुरु ने मेरे परमेश्वर को मेरे साथ हृदय में बसता दिखा दिया है; मैं सतिगुरु पर हमेशा कुर्बान जाती हूँ ॥२॥

ਏਕੋ ਪਵਣੁ ਮਾਟੀ ਸਭ ਏਕਾ ਸਭ ਏਕਾ ਜੋਤਿ ਸਬਾਈਆ ॥
एको पवणु माटी सभ एका सभ एका जोति सबाईआ ॥
समस्त शरीरों में एक ही पवन है, एक ही मिट्टी है और सबमें एक ही ज्योति विद्यमान है।

ਸਭ ਇਕਾ ਜੋਤਿ ਵਰਤੈ ਭਿਨਿ ਭਿਨਿ ਨ ਰਲਈ ਕਿਸੈ ਦੀ ਰਲਾਈਆ ॥
सभ इका जोति वरतै भिनि भिनि न रलई किसै दी रलाईआ ॥
भिन्न-भिन्न शरीरों में एक ही ज्योति कार्य कर रही है; परन्तु एक शरीर की ज्योति दूसरे शरीर की ज्योति में नहीं मिलाई जा सकती।

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਇਕੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ਹਉ ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਵਤਾਇਆ ਜੀਉ ॥੩॥
गुर परसादी इकु नदरी आइआ हउ सतिगुर विटहु वताइआ जीउ ॥३॥
गुरु की कृपा से मुझे एक परमात्मा ही सबमें मौजूद दिखाई देता है। मैं अपने सतिगुरु पर न्योछावर हूँ ॥३॥

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ॥
जनु नानकु बोलै अम्रित बाणी ॥
सेवक नानक अमृत वाणी उच्चारण करता है।

ਗੁਰਸਿਖਾਂ ਕੈ ਮਨਿ ਪਿਆਰੀ ਭਾਣੀ ॥
गुरसिखां कै मनि पिआरी भाणी ॥
गुरु के सिक्खों के हृदय को यह वाणी बड़ी प्यारी एवं अच्छी लगती है।

ਉਪਦੇਸੁ ਕਰੇ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਰਉਪਕਾਰੀਆ ਜੀਉ ॥੪॥੭॥
उपदेसु करे गुरु सतिगुरु पूरा गुरु सतिगुरु परउपकारीआ जीउ ॥४॥७॥
पूर्ण सतिगुरु वाणी द्वारा उपदेश देते हैं और वह सतिगुरु बड़े परोपकारी हैं।॥४॥७॥

ਸਤ ਚਉਪਦੇ ਮਹਲੇ ਚਉਥੇ ਕੇ ॥
सत चउपदे महले चउथे के ॥
सात चउपदे सतिगुरु रामदास जी के हैं।

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੧ ॥
माझ महला ५ चउपदे घरु १ ॥
माझ महला ५ चउपदे घरु १ ॥

ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਲੋਚੈ ਗੁਰ ਦਰਸਨ ਤਾਈ ॥
मेरा मनु लोचै गुर दरसन ताई ॥
मेरे मन को गुरु के दर्शनों की तीव्र अभिलाषा हो रही है।

ਬਿਲਪ ਕਰੇ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਕੀ ਨਿਆਈ ॥
बिलप करे चात्रिक की निआई ॥
यह चातक की भाँति विलाप करता है।

ਤ੍ਰਿਖਾ ਨ ਉਤਰੈ ਸਾਂਤਿ ਨ ਆਵੈ ਬਿਨੁ ਦਰਸਨ ਸੰਤ ਪਿਆਰੇ ਜੀਉ ॥੧॥
त्रिखा न उतरै सांति न आवै बिनु दरसन संत पिआरे जीउ ॥१॥
हे सन्तजनों के प्रिय ! आपके दर्शनों के बिना मेरी प्यास नहीं बुझती और न ही मुझे शांति प्राप्त होती है।॥१॥

ਹਉ ਘੋਲੀ ਜੀਉ ਘੋਲਿ ਘੁਮਾਈ ਗੁਰ ਦਰਸਨ ਸੰਤ ਪਿਆਰੇ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई गुर दरसन संत पिआरे जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
हे संत जनों के प्रिय ! गुरु के दर्शनों पर मैं तन, मन से न्योछावर हूँ और सदैव ही कुर्बान जाता हूँ॥१॥ रहाउ॥

ਤੇਰਾ ਮੁਖੁ ਸੁਹਾਵਾ ਜੀਉ ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਬਾਣੀ ॥
तेरा मुखु सुहावा जीउ सहज धुनि बाणी ॥
हे मेरे गुरु ! तेरा मुख अति सुन्दर है और तेरी वाणी की ध्वनि मन को आनंद प्रदान करती है।                                                          

ਚਿਰੁ ਹੋਆ ਦੇਖੇ ਸਾਰਿੰਗਪਾਣੀ ॥
चिरु होआ देखे सारिंगपाणी ॥
हे सारंगपाणि ! तेरे दर्शन किए मुझे चिरकाल हो चुका है।

ਧੰਨੁ ਸੁ ਦੇਸੁ ਜਹਾ ਤੂੰ ਵਸਿਆ ਮੇਰੇ ਸਜਣ ਮੀਤ ਮੁਰਾਰੇ ਜੀਉ ॥੨॥
धंनु सु देसु जहा तूं वसिआ मेरे सजण मीत मुरारे जीउ ॥२॥
हे मेरे सज्जन एवं मित्र प्रभु ! वह धरती धन्य है जहाँ तुम वास करते हो॥२॥

ਹਉ ਘੋਲੀ ਹਉ ਘੋਲਿ ਘੁਮਾਈ ਗੁਰ ਸਜਣ ਮੀਤ ਮੁਰਾਰੇ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ घोली हउ घोलि घुमाई गुर सजण मीत मुरारे जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे सज्जन एवं मित्र प्रभु रूप गुरु जी ! मैं आप पर तन-मन से न्यौछावर हूँ और आप पर कुर्बान जाता हूँ॥ १॥ रहाउ ॥

ਇਕ ਘੜੀ ਨ ਮਿਲਤੇ ਤਾ ਕਲਿਜੁਗੁ ਹੋਤਾ ॥
इक घड़ी न मिलते ता कलिजुगु होता ॥
यदि मैं तुझे एक क्षण भर नहीं मिलता तो मेरे लिए कलियुग उदय हो जाता है। 

ਹੁਣਿ ਕਦਿ ਮਿਲੀਐ ਪ੍ਰਿਅ ਤੁਧੁ ਭਗਵੰਤਾ ॥
हुणि कदि मिलीऐ प्रिअ तुधु भगवंता ॥
हे मेरे प्रिय भगवान ! मैं तुझे अब कब मिलूंगा ?

error: Content is protected !!