ਜੀਇ ਸਮਾਲੀ ਤਾ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਲਥਾ ॥
जीइ समाली ता सभु दुखु लथा ॥
यदि मैं अपने मन में उसका चिंतन करूँ, तब मेरे समस्त दुख निवृत हो जाते हैं।
ਚਿੰਤਾ ਰੋਗੁ ਗਈ ਹਉ ਪੀੜਾ ਆਪਿ ਕਰੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੨॥
चिंता रोगु गई हउ पीड़ा आपि करे प्रतिपाला जीउ ॥२॥
मेरी चिंता का रोग व अहंकार का दर्द दूर हो गए हैं और प्रभु स्वयं ही मेरा पालन-पोषण करता है ॥२॥
ਦੇਦੇ ਤੋਟਿ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭ ਰੰਗਾ ॥
देदे तोटि नाही प्रभ रंगा ॥
वह मुझे बड़े प्यार से सबकुछ देता रहता है और उसकी दी हुई वस्तुओं में मुझे कोई कमी नहीं आती।
ਬਾਰਿਕ ਵਾਂਗੀ ਹਉ ਸਭ ਕਿਛੁ ਮੰਗਾ ॥
बारिक वांगी हउ सभ किछु मंगा ॥
बालक की भाँति मैं भगवान से सबकुछ माँगता रहता हूँ।
ਪੈਰੀ ਪੈ ਪੈ ਬਹੁਤੁ ਮਨਾਈ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਗੋਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੩॥
पैरी पै पै बहुतु मनाई दीन दइआल गोपाला जीउ ॥३॥
मैं अपने दीनदयालु गोपाल के चरणों में बारंबार पड़-पड़कर मनाता रहता हूँ॥३॥
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਰੇ ॥
हउ बलिहारी सतिगुर पूरे ॥
मैं अपने पूर्ण सतिगुरु पर बलिहारी जाता हूँ,
ਜਿਨਿ ਬੰਧਨ ਕਾਟੇ ਸਗਲੇ ਮੇਰੇ ॥
जिनि बंधन काटे सगले मेरे ॥
जिसने मेरे समस्त बन्धन काट दिए हैं।
ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਦੇ ਨਿਰਮਲ ਕੀਏ ਨਾਨਕ ਰੰਗਿ ਰਸਾਲਾ ਜੀਉ ॥੪॥੮॥੧੫॥
हिरदै नामु दे निरमल कीए नानक रंगि रसाला जीउ ॥४॥८॥१५॥
सतिगुरु ने मेरे हृदय में नाम देकर मुझे निर्मल कर दिया है। हे नानक ! परमेश्वर के प्रेम से मैं अमृत का घर बन गया हूँ ॥४॥८॥१५॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਲਾਲ ਗੋਪਾਲ ਦਇਆਲ ਰੰਗੀਲੇ ॥
लाल गोपाल दइआल रंगीले ॥
हे मेरे प्रियतम प्रभु! तुम सृष्टि के पालनहार, दयालु एवं परम सुखी हो।
ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰ ਬੇਅੰਤ ਗੋਵਿੰਦੇ ॥
गहिर ग्मभीर बेअंत गोविंदे ॥
हे मेरे गोविन्द ! तू गहरे सागर की तरह है। तू बड़ा गंभीर स्वभाव वाला एवं अनंत है।
ਊਚ ਅਥਾਹ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਹਉ ਜੀਵਾਂ ਜੀਉ ॥੧॥
ऊच अथाह बेअंत सुआमी सिमरि सिमरि हउ जीवां जीउ ॥१॥
तुम सर्वोच्च, असीम एवं बेअंत हो। हे प्रभु ! मैं तुझे मन-तन से स्मरण करके ही जीवित रहता हूँ ॥१॥
ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਨਿਧਾਨ ਅਮੋਲੇ ॥
दुख भंजन निधान अमोले ॥
हे दुखों के नाशक ! तू अमूल्य गुणों का भण्डार है।
ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰ ਅਥਾਹ ਅਤੋਲੇ ॥
निरभउ निरवैर अथाह अतोले ॥
तू निर्भय, निर्वेर, असीम एवं अतुलनीय है।
ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੰਭੌ ਮਨ ਸਿਮਰਤ ਠੰਢਾ ਥੀਵਾਂ ਜੀਉ ॥੨॥
अकाल मूरति अजूनी स्मभौ मन सिमरत ठंढा थीवां जीउ ॥२॥
हे अकाल मूर्ति ! तू अयोनि एवं स्वयंभू है, और मन में तेरा सिमरन करने से बड़ी शांति प्राप्त होती है।॥२॥
ਸਦਾ ਸੰਗੀ ਹਰਿ ਰੰਗ ਗੋਪਾਲਾ ॥
सदा संगी हरि रंग गोपाला ॥
भगवान सदैव जीवों के साथ रहता है। वह जगत् का पालनहार एवं आनंद का स्रोत है।
ਊਚ ਨੀਚ ਕਰੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥
ऊच नीच करे प्रतिपाला ॥
हमेशा ऊँच-नीच की वह रक्षा करता है।
ਨਾਮੁ ਰਸਾਇਣੁ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਾਇਣੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵਾਂ ਜੀਉ ॥੩॥
नामु रसाइणु मनु त्रिपताइणु गुरमुखि अम्रितु पीवां जीउ ॥३॥
अमृत के घर परमेश्वर के नाम से मेरा मन तृप्त हो जाता है। गुरु की दया से मैं नाम रूपी अमृत का पान करता हूँ ॥३॥
ਦੁਖਿ ਸੁਖਿ ਪਿਆਰੇ ਤੁਧੁ ਧਿਆਈ ॥
दुखि सुखि पिआरे तुधु धिआई ॥
हे प्रियतम प्रभु ! मैं दुख और सुख में तुझे ही स्मरण करता हूँ।
ਏਹ ਸੁਮਤਿ ਗੁਰੂ ਤੇ ਪਾਈ ॥
एह सुमति गुरू ते पाई ॥
यह सुमति मैंने गुरु से प्राप्त की है।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਧਰ ਤੂੰਹੈ ਠਾਕੁਰ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਪਾਰਿ ਪਰੀਵਾਂ ਜੀਉ ॥੪॥੯॥੧੬॥
नानक की धर तूंहै ठाकुर हरि रंगि पारि परीवां जीउ ॥४॥९॥१६॥
हे ठाकुर जी ! तुम ही नानक का सहारा हो। मैं हरि के प्रेम में मग्न होकर भवसागर से पार हो जाऊँगा ॥४॥९॥१६॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਧੰਨੁ ਸੁ ਵੇਲਾ ਜਿਤੁ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ॥
धंनु सु वेला जितु मै सतिगुरु मिलिआ ॥
वह समय बड़ा शुभ है, जब मुझे मेरे सतिगुरु मिले।
ਸਫਲੁ ਦਰਸਨੁ ਨੇਤ੍ਰ ਪੇਖਤ ਤਰਿਆ ॥
सफलु दरसनु नेत्र पेखत तरिआ ॥
गुरु के दर्शन सफल हो गए हैं, क्योंकि नेत्रों से उनके दर्शन करके मैं भवसागर से पार हो गया हूँ।
ਧੰਨੁ ਮੂਰਤ ਚਸੇ ਪਲ ਘੜੀਆ ਧੰਨਿ ਸੁ ਓਇ ਸੰਜੋਗਾ ਜੀਉ ॥੧॥
धंनु मूरत चसे पल घड़ीआ धंनि सु ओइ संजोगा जीउ ॥१॥
वह मुहूर्त, पल और घड़ी एवं संयोग भी शुभ है, जिससे मेरा सतिगुरु से मिलन हुआ है॥ १॥||1||
ਉਦਮੁ ਕਰਤ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਆ ॥
उदमु करत मनु निरमलु होआ ॥
पुरुषार्थ करने से मेरा मन पवित्र हो गया है।
ਹਰਿ ਮਾਰਗਿ ਚਲਤ ਭ੍ਰਮੁ ਸਗਲਾ ਖੋਇਆ ॥
हरि मारगि चलत भ्रमु सगला खोइआ ॥
हरिप्रभु के मार्ग पर चलने से मेरा भृम दूर हो गया है।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸੁਣਾਇਆ ਮਿਟਿ ਗਏ ਸਗਲੇ ਰੋਗਾ ਜੀਉ ॥੨॥
नामु निधानु सतिगुरू सुणाइआ मिटि गए सगले रोगा जीउ ॥२॥
सतिगुरु ने मुझे गुणों का भण्डार नाम सुनाया है और नाम सुनकर मेरे तमाम रोग नाश हो गए हैं।॥२॥
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਤੇਰੀ ਬਾਣੀ ॥
अंतरि बाहरि तेरी बाणी ॥
हे प्रभु ! घर के अन्दर और बाहर मैं तेरी वाणी गाता रहता हूँ।
ਤੁਧੁ ਆਪਿ ਕਥੀ ਤੈ ਆਪਿ ਵਖਾਣੀ ॥
तुधु आपि कथी तै आपि वखाणी ॥
यह वाणी तूने स्वयं ही उच्चारण की है और स्वयं ही इसका वर्णन किया है।
ਗੁਰਿ ਕਹਿਆ ਸਭੁ ਏਕੋ ਏਕੋ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਹੋਇਗਾ ਜੀਉ ॥੩॥
गुरि कहिआ सभु एको एको अवरु न कोई होइगा जीउ ॥३॥
गुरु ने कहा है कि समस्त स्थानों पर एक प्रभु ही है और एक प्रभु ही होगा और प्रभु जैसा जगत् में अन्य कोई नहीं होगा।॥ ३॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਹਰਿ ਗੁਰ ਤੇ ਪੀਆ ॥
अम्रित रसु हरि गुर ते पीआ ॥
मैंने हरि-रस रूपी अमृत गुरु से पान किया है।
ਹਰਿ ਪੈਨਣੁ ਨਾਮੁ ਭੋਜਨੁ ਥੀਆ ॥
हरि पैनणु नामु भोजनु थीआ ॥
अब हरि का नाम ही मेरा पहरावा एवं भोजन बन गया है।
ਨਾਮਿ ਰੰਗ ਨਾਮਿ ਚੋਜ ਤਮਾਸੇ ਨਾਉ ਨਾਨਕ ਕੀਨੇ ਭੋਗਾ ਜੀਉ ॥੪॥੧੦॥੧੭॥
नामि रंग नामि चोज तमासे नाउ नानक कीने भोगा जीउ ॥४॥१०॥१७॥
हे नानक ! नाम में मग्न रहना ही मेरे लिए आनंद, खेल एवं मनोरंजन है और नाम हो पदार्थों का भोग है ॥४॥१०॥१७॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥
ਸਗਲ ਸੰਤਨ ਪਹਿ ਵਸਤੁ ਇਕ ਮਾਂਗਉ ॥
सगल संतन पहि वसतु इक मांगउ ॥
मैं समस्त संतजनों से एक वस्तु ही माँगता हूँ।
ਕਰਉ ਬਿਨੰਤੀ ਮਾਨੁ ਤਿਆਗਉ ॥
करउ बिनंती मानु तिआगउ ॥
मैं एक प्रार्थना करता हूँ कि मैं अपना अहंकार त्याग दूँ।
ਵਾਰਿ ਵਾਰਿ ਜਾਈ ਲਖ ਵਰੀਆ ਦੇਹੁ ਸੰਤਨ ਕੀ ਧੂਰਾ ਜੀਉ ॥੧॥
वारि वारि जाई लख वरीआ देहु संतन की धूरा जीउ ॥१॥
मैं संतजनों पर लाख-लाख बार कुर्बान जाता हूँ। हे प्रभु ! मुझे संतों की चरण-धूलि प्रदान कीजिए॥१॥
ਤੁਮ ਦਾਤੇ ਤੁਮ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ॥
तुम दाते तुम पुरख बिधाते ॥
हे प्रभु ! तुम ही जीवों के दाता हो और तुम ही विधाता हो।
ਤੁਮ ਸਮਰਥ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤੇ ॥
तुम समरथ सदा सुखदाते ॥
तुम सर्वशक्तिमान हो और तुम ही सदैव सुख देने वाले हो।
ਸਭ ਕੋ ਤੁਮ ਹੀ ਤੇ ਵਰਸਾਵੈ ਅਉਸਰੁ ਕਰਹੁ ਹਮਾਰਾ ਪੂਰਾ ਜੀਉ ॥੨॥
सभ को तुम ही ते वरसावै अउसरु करहु हमारा पूरा जीउ ॥२॥
हे प्रभु ! सभी जीव तुझसे ही मनोकामनाएँ प्राप्त करते हैं। मेरा यह अमूल्य जीवन मेरे लिए तुझ से मिलने का एक सुनहरी अवसर है, अतः मेरा जीवन समय सफल कर दीजिए ॥२॥
ਦਰਸਨਿ ਤੇਰੈ ਭਵਨ ਪੁਨੀਤਾ ॥
दरसनि तेरै भवन पुनीता ॥
हे प्रभु ! जिन लोगों ने तेरे दर्शन करके अपने शरीर रूपी भवन को पवित्र कर लिया है।
ਆਤਮ ਗੜੁ ਬਿਖਮੁ ਤਿਨਾ ਹੀ ਜੀਤਾ ॥
आतम गड़ु बिखमु तिना ही जीता ॥
उन्होंने मन रूपी विषम किले पर विजय प्राप्त की है।
ਤੁਮ ਦਾਤੇ ਤੁਮ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ਤੁਧੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਸੂਰਾ ਜੀਉ ॥੩॥
तुम दाते तुम पुरख बिधाते तुधु जेवडु अवरु न सूरा जीउ ॥३॥
तुम ही जीवों के दाता और तुम ही विधाता हो तथा जगत् में तेरे जैसा अन्य कोई शूरवीर नहीं ॥३॥