Hindi Page 108

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਰੋਗੁ ਗਵਾਇਆ ॥
जनम जनम का रोगु गवाइआ ॥
उन्होंने अपना जन्म-जन्मांतरों का पुराना रोग दूर कर लिया है।

ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਵਹੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਸਫਲ ਏਹਾ ਹੈ ਕਾਰੀ ਜੀਉ ॥੩॥
हरि कीरतनु गावहु दिनु राती सफल एहा है कारी जीउ ॥३॥
हे मानव ! दिन-रात भगवान का भजन करते रहो, क्योंकि यही कार्य फलदायक है॥३॥

ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਧਾਰਿ ਅਪਨਾ ਦਾਸੁ ਸਵਾਰਿਆ ॥
द्रिसटि धारि अपना दासु सवारिआ ॥
अपनी कृपा-दृष्टि करके प्रभु अपने जिस भक्त को गुणवान बना देता है,

ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਮਸਕਾਰਿਆ ॥
घट घट अंतरि पारब्रहमु नमसकारिआ ॥
वह भक्त प्रत्येक हृदय में विद्यमान प्रभु को नमस्कार करता रहता है।

ਇਕਸੁ ਵਿਣੁ ਹੋਰੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਬਾਬਾ ਨਾਨਕ ਇਹ ਮਤਿ ਸਾਰੀ ਜੀਉ ॥੪॥੩੯॥੪੬॥
इकसु विणु होरु दूजा नाही बाबा नानक इह मति सारी जीउ ॥४॥३९॥४६॥
एक ईश्वर के अलावा अन्य कोई नहीं है। हे नानक ! यही मति सर्वश्रेष्ठ है॥ ४ ॥ ३९ ॥ ४६ ॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥

ਮਨੁ ਤਨੁ ਰਤਾ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ॥
मनु तनु रता राम पिआरे ॥
यह मन एवं तन तो प्रिय राम के प्रेम में ही मग्न रहना चाहिए।

ਸਰਬਸੁ ਦੀਜੈ ਅਪਨਾ ਵਾਰੇ ॥
सरबसु दीजै अपना वारे ॥
हमें अपना सर्वस्व ही प्रभु को न्योछावर कर देना चाहिए।

ਆਠ ਪਹਰ ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਣ ਗਾਈਐ ਬਿਸਰੁ ਨ ਕੋਈ ਸਾਸਾ ਜੀਉ ॥੧॥
आठ पहर गोविंद गुण गाईऐ बिसरु न कोई सासा जीउ ॥१॥
हमें दिन के आठ प्रहर भगवान की महिमा-स्तुति करनी चाहिए और कोई एक सांस लेते भी उस प्रभु को भूलना नहीं चाहिए॥१॥

ਸੋਈ ਸਾਜਨ ਮੀਤੁ ਪਿਆਰਾ ॥
सोई साजन मीतु पिआरा ॥
वही मेरा प्रिय मित्र एवं सज्जन है,

ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਬੀਚਾਰਾ ॥
राम नामु साधसंगि बीचारा ॥
जो सत्संग में राम के नाम का चिन्तन करता है।

ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਤਰੀਜੈ ਸਾਗਰੁ ਕਟੀਐ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸਾ ਜੀਉ ॥੨॥
साधू संगि तरीजै सागरु कटीऐ जम की फासा जीउ ॥२॥
संतों की संगति करने से ही भवसागर पार किया जाता है और मृत्यु की फाँसी कट जाती है।॥२॥

ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ॥
चारि पदारथ हरि की सेवा ॥
चारों पदार्थ-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रभु की भक्ति से प्राप्त होते हैं।

ਪਾਰਜਾਤੁ ਜਪਿ ਅਲਖ ਅਭੇਵਾ ॥
पारजातु जपि अलख अभेवा ॥
अदृष्य एवं भेद रहित परमात्मा की उपासना ही कल्प वृक्ष है।

ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਕਿਲਬਿਖ ਗੁਰਿ ਕਾਟੇ ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਆਸਾ ਜੀਉ ॥੩॥
कामु क्रोधु किलबिख गुरि काटे पूरन होई आसा जीउ ॥३॥
सतिगुरु जिस व्यक्ति के अन्तर्मन से काम, क्रोध एवं पाप निवृत कर देते हैं, उसकी प्रभु मिलन की आशा पूरी हो जाती है॥३॥

ਪੂਰਨ ਭਾਗ ਭਏ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥
पूरन भाग भए जिसु प्राणी ॥
जिस प्राणी के पूर्ण भाग्य उदय होते हैं,

ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲੇ ਸਾਰੰਗਪਾਣੀ ॥
साधसंगि मिले सारंगपाणी ॥
उसे संतों की संगति करने से सारंगपाणी भगवान मिल जाता है।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਜਿਸੁ ਅੰਤਰਿ ਪਰਵਾਣੁ ਗਿਰਸਤ ਉਦਾਸਾ ਜੀਉ ॥੪॥੪੦॥੪੭॥
नानक नामु वसिआ जिसु अंतरि परवाणु गिरसत उदासा जीउ ॥४॥४०॥४७॥
हे नानक ! जिसके हृदय में प्रभु का नाम निवास कर जाता है, वह गृहस्थ जीवन व्यतीत करता हुआ भी माया से उदासीन रहता है और भगवान के दरबार में स्वीकृत हो जाता है।॥४॥४०॥४७॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥

ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
सिमरत नामु रिदै सुखु पाइआ ॥
हरि का नाम-सिमरन करने से मुझे हृदय में सुख प्राप्त हुआ है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭਗਤੀ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ॥
करि किरपा भगतीं प्रगटाइआ ॥
भगवान के भक्तों ने कृपा करके उसे मेरे मन में प्रगट कर दिया है।

ਸੰਤਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਬਿਨਸੇ ਆਲਸ ਰੋਗਾ ਜੀਉ ॥੧॥                                                               
संतसंगि मिलि हरि हरि जपिआ बिनसे आलस रोगा जीउ ॥१॥
संतों की सभा में मिलकर मैंने हरि-प्रभु के नाम का ही जाप किया है और मेरा आलस्य रोग मिट गया है ॥१॥

ਜਾ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਹਰਿ ਭਾਈ ॥
जा कै ग्रिहि नव निधि हरि भाई ॥
हे भाई ! जिस (भगवान) के गृह में नवनिधियाँ हैं,

ਤਿਸੁ ਮਿਲਿਆ ਜਿਸੁ ਪੁਰਬ ਕਮਾਈ ॥
तिसु मिलिआ जिसु पुरब कमाई ॥
भगवान उस व्यक्ति को ही मिलता है, जिसने पूर्व जन्म में नाम-सिमरन के शुभ कर्म किए हैं।

ਗਿਆਨ ਧਿਆਨ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭਨਾ ਗਲਾ ਜੋਗਾ ਜੀਉ ॥੨॥
गिआन धिआन पूरन परमेसुर प्रभु सभना गला जोगा जीउ ॥२॥
पूर्ण परमेश्वर ज्ञान एवं ध्यान से भरपूर है, प्रभु सब कुछ करने में समर्थ है॥२॥

ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਨਹਾਰਾ ॥
खिन महि थापि उथापनहारा ॥
परमेश्वर क्षण में ही जगत् की उत्पति तथा विनाश करने वाला है।

ਆਪਿ ਇਕੰਤੀ ਆਪਿ ਪਸਾਰਾ ॥
आपि इकंती आपि पसारा ॥
ईश्वर स्वयं ही निराकार स्वरूप है और ब्रह्माण्ड रूप सगुण भी स्वयं ही है।

ਲੇਪੁ ਨਹੀ ਜਗਜੀਵਨ ਦਾਤੇ ਦਰਸਨ ਡਿਠੇ ਲਹਨਿ ਵਿਜੋਗਾ ਜੀਉ ॥੩॥
लेपु नही जगजीवन दाते दरसन डिठे लहनि विजोगा जीउ ॥३॥
प्रभु जगत् का जीवन एवं दाता है और माया उसे प्रभावित नहीं करती, वह निर्लिप्त है। उस प्रभु के दर्शन करने से विरह की पीड़ा निवृत हो जाती है।॥३॥

ਅੰਚਲਿ ਲਾਇ ਸਭ ਸਿਸਟਿ ਤਰਾਈ ॥                                                                                                                     
अंचलि लाइ सभ सिसटि तराई ॥
वह परमात्मा गुरु के आंचल से लगाकर सारी सृष्टि को भवसागर से पार करवाता है।                                                                             

ਆਪਣਾ ਨਾਉ ਆਪਿ ਜਪਾਈ ॥
आपणा नाउ आपि जपाई ॥
भगवान गुरु द्वारा अपने नाम की जीवों से स्वयं ही आराधना करवाता है।

ਗੁਰ ਬੋਹਿਥੁ ਪਾਇਆ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਨਾਨਕ ਧੁਰਿ ਸੰਜੋਗਾ ਜੀਉ ॥੪॥੪੧॥੪੮॥
गुर बोहिथु पाइआ किरपा ते नानक धुरि संजोगा जीउ ॥४॥४१॥४८॥
हे नानक ! जिसकी किस्मत में प्रारब्ध से ही संयोग लिखे होते हैं, उसे भगवान की कृपा से भवसागर पार करने के लिए गुरु रूपी जहाज मिल जाता है॥४॥४१॥४८॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला ५ ॥
माझ महला ५ ॥

ਸੋਈ ਕਰਣਾ ਜਿ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥
सोई करणा जि आपि कराए ॥
हे भगवान ! मैं वही कुछ करता हूँ जो तुम स्वयं ही मुझ से करवाते हो।

ਜਿਥੈ ਰਖੈ ਸਾ ਭਲੀ ਜਾਏ ॥
जिथै रखै सा भली जाए ॥
मेरे लिए वहीं स्थान उत्तम है, जिस स्थान पर तुम रखते हो।

ਸੋਈ ਸਿਆਣਾ ਸੋ ਪਤਿਵੰਤਾ ਹੁਕਮੁ ਲਗੈ ਜਿਸੁ ਮੀਠਾ ਜੀਉ ॥੧॥
सोई सिआणा सो पतिवंता हुकमु लगै जिसु मीठा जीउ ॥१॥
वहीं व्यक्ति बुद्धिमान और प्रतिष्ठित है जिसको ईश्वर का हुक्म मीठा लगता है॥१॥

ਸਭ ਪਰੋਈ ਇਕਤੁ ਧਾਗੈ ॥
सभ परोई इकतु धागै ॥
सारी सृष्टि भगवान ने माया रूपी एक धागे में पिरोई हुई है।

ਜਿਸੁ ਲਾਇ ਲਏ ਸੋ ਚਰਣੀ ਲਾਗੈ ॥
जिसु लाइ लए सो चरणी लागै ॥
वही व्यक्ति भगवान के चरणों में लगता है, जिसे वह स्वयं अपने चरणों में लगाता है।

ਊਂਧ ਕਵਲੁ ਜਿਸੁ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ਤਿਨਿ ਸਰਬ ਨਿਰੰਜਨੁ ਡੀਠਾ ਜੀਉ ॥੨॥
ऊंध कवलु जिसु होइ प्रगासा तिनि सरब निरंजनु डीठा जीउ ॥२॥
भगवान का निवास मनुष्य के हृदय-कमल में है। यह कमल पहले उलटा पड़ा होता है परन्तु भगवान के सिमरन द्वारा सीधा हो जाता है। फिर इस सीधे हुए कमल में भगवान की ज्योति का प्रकाश हो जाता है। जो व्यक्ति उस प्रकाश को देखता है, वह उस सर्वव्यापक निरंजन के दर्शन करता है॥२॥

ਤੇਰੀ ਮਹਿਮਾ ਤੂੰਹੈ ਜਾਣਹਿ ॥
तेरी महिमा तूंहै जाणहि ॥
हे भगवान ! अपनी महिमा को तुम स्वयं ही जानते हो

ਅਪਣਾ ਆਪੁ ਤੂੰ ਆਪਿ ਪਛਾਣਹਿ ॥
अपणा आपु तूं आपि पछाणहि ॥
और तुम अपने स्वरूप को स्वयं ही पहचान सकते हो।

ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸੰਤਨ ਤੇਰੇ ਜਿਨਿ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਪੀਠਾ ਜੀਉ ॥੩॥
हउ बलिहारी संतन तेरे जिनि कामु क्रोधु लोभु पीठा जीउ ॥३॥
मैं तेरे संतों पर कुर्बान जाता हूँ, जिन्होंने अपने काम, क्रोध एवं लालच को पीस दिया है॥३॥

ਤੂੰ ਨਿਰਵੈਰੁ ਸੰਤ ਤੇਰੇ ਨਿਰਮਲ ॥
तूं निरवैरु संत तेरे निरमल ॥
हे ईश्वर ! तुम निर्वैर हो और तेरे सन्त पवित्र हैं,

ਜਿਨ ਦੇਖੇ ਸਭ ਉਤਰਹਿ ਕਲਮਲ ॥
जिन देखे सभ उतरहि कलमल ॥
जिनके दर्शनों से समस्त पाप दूर हो जाते हैं।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਧਿਆਇ ਜੀਵੈ ਬਿਨਸਿਆ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਧੀਠਾ ਜੀਉ ॥੪॥੪੨॥੪੯॥                           
नानक नामु धिआइ धिआइ जीवै बिनसिआ भ्रमु भउ धीठा जीउ ॥४॥४२॥४९॥
हे नानक ! मैं प्रभु के नाम की वंदना एवं सिमरन करके ही जीवित हूँ और मेरा कठोर स्वभाव, भ्रम एवं भय नाश हो गए हैं॥४॥४२॥४९॥

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