Hindi Page 109

ਮਾਂਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मांझ महला ५ ॥
मांझ महला ५ ॥

ਝੂਠਾ ਮੰਗਣੁ ਜੇ ਕੋਈ ਮਾਗੈ ॥
झूठा मंगणु जे कोई मागै ॥
यदि कोई व्यक्ति झूठी माया की याचना करे तो

ਤਿਸ ਕਉ ਮਰਤੇ ਘੜੀ ਨ ਲਾਗੈ ॥
तिस कउ मरते घड़ी न लागै ॥
उसे मृत्युकाल में एक क्षण भी नहीं लगता।

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜੋ ਸਦ ਹੀ ਸੇਵੈ ਸੋ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਨਿਹਚਲੁ ਕਹਣਾ ॥੧॥
पारब्रहमु जो सद ही सेवै सो गुर मिलि निहचलु कहणा ॥१॥
जो व्यक्ति पारब्रह्म प्रभु की सदैव भक्ति करता रहता है, वह गुरु से मिलकर सदैव जीवन प्राप्त कर लेता है॥१॥

ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਜਿਸ ਕੈ ਮਨਿ ਲਾਗੀ ॥
प्रेम भगति जिस कै मनि लागी ॥
जिसका मन प्रभु की भक्ति में मग्न है,

ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਅਨਦਿਨੁ ਨਿਤਿ ਜਾਗੀ ॥
गुण गावै अनदिनु निति जागी ॥
वह दिन-रात प्रभु की कीर्ति गायन करता है और सदैव मग्न रहता है।

ਬਾਹ ਪਕੜਿ ਤਿਸੁ ਸੁਆਮੀ ਮੇਲੈ ਜਿਸ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਲਹਣਾ ॥੨॥
बाह पकड़ि तिसु सुआमी मेलै जिस कै मसतकि लहणा ॥२॥
जिसकी किस्मत में नाम की देन लेने का लेख विद्यमान है, उसे ही भुजा से पकड़ कर प्रभु अपने साथ मिला लेता है॥२॥

ਚਰਨ ਕਮਲ ਭਗਤਾਂ ਮਨਿ ਵੁਠੇ ॥
चरन कमल भगतां मनि वुठे ॥
हरि के चरण कमल उसके भक्तों के हृदय में बसते हैं।

ਵਿਣੁ ਪਰਮੇਸਰ ਸਗਲੇ ਮੁਠੇ ॥
विणु परमेसर सगले मुठे ॥
महान परमेश्वर की दया के अलावा सारे ठगे जाते हैं।

ਸੰਤ ਜਨਾਂ ਕੀ ਧੂੜਿ ਨਿਤ ਬਾਂਛਹਿ ਨਾਮੁ ਸਚੇ ਕਾ ਗਹਣਾ ॥੩॥
संत जनां की धूड़ि नित बांछहि नामु सचे का गहणा ॥३॥
जो व्यक्ति संतों की चरण-धूलि की नित्य कामना करते रहते हैं, उन्हें संतों द्वारा सत्य प्रभु का नाम रूपी आभूषण मिल जाता है।॥३॥

ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਾਈਐ ॥
ऊठत बैठत हरि हरि गाईऐ ॥
उठते-बैठते हर वक्त हमें भगवान की महिमा-स्तुति करते रहना चाहिए,

ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਵਰੁ ਨਿਹਚਲੁ ਪਾਈਐ ॥
जिसु सिमरत वरु निहचलु पाईऐ ॥
भगवान का सिमरन करने से अटल प्रभु मिल जाता है।

ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਹੋਇ ਦਇਆਲਾ ਤੇਰਾ ਕੀਤਾ ਸਹਣਾ ॥੪॥੪੩॥੫੦॥
नानक कउ प्रभ होइ दइआला तेरा कीता सहणा ॥४॥४३॥५०॥
हे नानक ! परमात्मा उस पर दयालु हुआ है। हे प्रभु ! तुम जो कुछ करते हो, मैं सहर्ष स्वीकार करता हूँ॥४॥ ४३॥ ५०॥

ਰਾਗੁ ਮਾਝ ਅਸਟਪਦੀਆ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧
रागु माझ असटपदीआ महला १ घरु १
रागु माझ असटपदीआ महला १ घरु १

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਸਬਦਿ ਰੰਗਾਏ ਹੁਕਮਿ ਸਬਾਏ ॥
सबदि रंगाए हुकमि सबाए ॥
ईश्वर के हुक्म द्वारा सभी गुरु के शब्द में मग्न हैं

ਸਚੀ ਦਰਗਹ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਏ ॥
सची दरगह महलि बुलाए ॥
और परमात्मा के सत्य दरबार में उसकी उपस्थिति में आमंत्रित किए जाते हैं।

ਸਚੇ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਸਚੇ ਮਨੁ ਪਤੀਆਵਣਿਆ ॥੧॥
सचे दीन दइआल मेरे साहिबा सचे मनु पतीआवणिआ ॥१॥
हे मेरे मालिक ! तू दीनदयाल एवं सदैव सत्य है और तेरे सत्य से मेरा मन प्रसन्न हो गया है॥ १॥

ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी सबदि सुहावणिआ ॥
मैं उन पर तन-मन से न्यौछावर हूँ, जिन्होंने शब्द द्वारा अपना जीवन सुन्दर बना लिया है।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਗੁਰਮਤੀ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अम्रित नामु सदा सुखदाता गुरमती मंनि वसावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु का अमृत नाम सदा ही सुख देने वाला है। गुरु के उपदेश द्वारा मैंने प्रभु के नाम को अपने मन में बसा लिया है॥ १॥ रहाउ॥

ਨਾ ਕੋ ਮੇਰਾ ਹਉ ਕਿਸੁ ਕੇਰਾ ॥
ना को मेरा हउ किसु केरा ॥
न ही कोई मेरा है, न ही मैं किसी का हूँ।

ਸਾਚਾ ਠਾਕੁਰੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਮੇਰਾ ॥
साचा ठाकुरु त्रिभवणि मेरा ॥
तीनों लोकों का स्वामी सत्य परमात्मा ही मेरा है।

ਹਉਮੈ ਕਰਿ ਕਰਿ ਜਾਇ ਘਣੇਰੀ ਕਰਿ ਅਵਗਣ ਪਛੋਤਾਵਣਿਆ ॥੨॥
हउमै करि करि जाइ घणेरी करि अवगण पछोतावणिआ ॥२॥
अनेक जीव अहंकार करके प्राण त्याग गए हैं। दुष्कर्म करके प्राणी को बड़ा पश्चाताप होता है॥ २॥

ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਸੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਵਖਾਣੈ ॥
हुकमु पछाणै सु हरि गुण वखाणै ॥
जो परमात्मा के हुक्म को पहचानता है, वही उसका यशोगान करता है।

ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਨਾਮਿ ਨੀਸਾਣੈ ॥
गुर कै सबदि नामि नीसाणै ॥
वह गुरु के शब्द द्वारा नाम रूपी परवाना अपने साथ लेकर दरबार में जाता है।

ਸਭਨਾ ਕਾ ਦਰਿ ਲੇਖਾ ਸਚੈ ਛੂਟਸਿ ਨਾਮਿ ਸੁਹਾਵਣਿਆ ॥੩॥
सभना का दरि लेखा सचै छूटसि नामि सुहावणिआ ॥३॥
सत्य प्रभु के दरबार में समस्त जीवों के कर्मों का लेखा होता है। वहाँ वहीं व्यक्ति मुक्त होते हैं, जो नाम द्वारा अपना जीवन सुन्दर बना लेते हैं।॥ ३॥     

ਮਨਮੁਖੁ ਭੂਲਾ ਠਉਰੁ ਨ ਪਾਏ ॥
मनमुखु भूला ठउरु न पाए ॥
मनमुख व्यक्ति को कहीं भी सुख नहीं मिलता।

ਜਮ ਦਰਿ ਬਧਾ ਚੋਟਾ ਖਾਏ ॥
जम दरि बधा चोटा खाए ॥
मृत्यु के द्वार पर बंधा हुआ वह चोटें खाता है।

ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕੋ ਸੰਗਿ ਨ ਸਾਥੀ ਮੁਕਤੇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਣਿਆ ॥੪॥
बिनु नावै को संगि न साथी मुकते नामु धिआवणिआ ॥४॥
वहाँ नाम के अलावा मनुष्य का कोई मित्र अथवा सज्जन नहीं होता। नाम सिमरन करने वाला व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है॥ ४॥

ਸਾਕਤ ਕੂੜੇ ਸਚੁ ਨ ਭਾਵੈ ॥
साकत कूड़े सचु न भावै ॥
झूठे शाक्त को सत्य उत्तम नहीं लगता।

ਦੁਬਿਧਾ ਬਾਧਾ ਆਵੈ ਜਾਵੈ ॥
दुबिधा बाधा आवै जावै ॥
वह दुविधा में फँसा होने के कारण जन्म-मरण के चक्र में पड़ा रहता है।

ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ਨ ਮੇਟੈ ਕੋਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੁਕਤਿ ਕਰਾਵਣਿਆ ॥੫॥
लिखिआ लेखु न मेटै कोई गुरमुखि मुकति करावणिआ ॥५॥
जीव की किस्मत को कोई मिटा नहीं सकता। गुरु की दया से ही मनुष्य मोक्ष पाता है॥ ५॥

ਪੇਈਅੜੈ ਪਿਰੁ ਜਾਤੋ ਨਾਹੀ ॥
पेईअड़ै पिरु जातो नाही ॥
जिस जीव-स्त्री ने अपने पीहर (इहलोक) में अपने मालिक-प्रभु को नहीं समझा,

ਝੂਠਿ ਵਿਛੁੰਨੀ ਰੋਵੈ ਧਾਹੀ ॥
झूठि विछुंनी रोवै धाही ॥
वह झूठी प्रभु से जुदा हुई ऊँची ऊँची विलाप करती है।

ਅਵਗਣਿ ਮੁਠੀ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਏ ਅਵਗਣ ਗੁਣਿ ਬਖਸਾਵਣਿਆ ॥੬॥
अवगणि मुठी महलु न पाए अवगण गुणि बखसावणिआ ॥६॥
उस अवगुणों की ठगी हुई जीव-स्त्री को प्रभु के महल में स्थान नहीं मिलता। गुणों का स्वामी प्रभु स्वयं ही जीव के अवगुणों को क्षमा कर देता है॥ ६॥

ਪੇਈਅੜੈ ਜਿਨਿ ਜਾਤਾ ਪਿਆਰਾ ॥
पेईअड़ै जिनि जाता पिआरा ॥
जिस जीव-स्त्री ने अपने पीहर (मृत्युलोक) में अपने पति-प्रभु को समझ लिया है,

ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥
गुरमुखि बूझै ततु बीचारा ॥
वह गुरु के माध्यम से परम तत्त्व अर्थात् प्रभु के गुणों को समझ लेती है।

ਆਵਣੁ ਜਾਣਾ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ਸਚੈ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੭॥
आवणु जाणा ठाकि रहाए सचै नामि समावणिआ ॥७॥
प्रभु उसके जन्म-मरण के चक्र को मिटा देता है। तदुपरांत वह सत्य प्रभु के नाम में लीन रहती है॥ ७॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਅਕਥੁ ਕਹਾਵੈ ॥
गुरमुखि बूझै अकथु कहावै ॥
गुरमुख प्रभु के गुणों को स्वयं समझता है और दूसरों से अकथनीय प्रभु की लीला एवं उसके गुणों की कथा करवाता है।

ਸਚੇ ਠਾਕੁਰ ਸਾਚੋ ਭਾਵੈ ॥
सचे ठाकुर साचो भावै ॥
सच्चे ठाकुर प्रभु को सत्य नाम ही अच्छा लगता है।

ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਸਚੁ ਮਿਲੈ ਗੁਣ ਗਾਵਣਿਆ ॥੮॥੧॥
नानक सचु कहै बेनंती सचु मिलै गुण गावणिआ ॥८॥१॥
हे नानक ! वह सत्य प्रभु के समक्ष सच्ची प्रार्थना करता है कि उसे सत्य नाम मिले ताकि वह उसकी महिमा करता रहे ॥ ८॥ १॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧ ॥
माझ महला ३ घरु १ ॥
माझ महला ३ घरु १ ॥

ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮਿਲਾਏ ॥
करमु होवै सतिगुरू मिलाए ॥
उनकी दया से, हम सच्चे गुरु से मिलते हैं।

error: Content is protected !!