ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਈਐ ਚੀਤਾ ॥੧॥
चरन कमल सिउ लाईऐ चीता ॥१॥
जब भगवान के चरणों में चित्त लगाया जाता है ॥१॥
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜੋ ਪ੍ਰਭੂ ਧਿਆਵਤ ॥
हउ बलिहारी जो प्रभू धिआवत ॥
जो प्रभु का ध्यान करता है, मैं उस पर बलिहारी जाता हूँ।
ਜਲਨਿ ਬੁਝੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जलनि बुझै हरि हरि गुन गावत ॥१॥ रहाउ ॥
भगवान् का गुणगान करने से सारी जलन बुझ जाती है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਹੋਵਤ ਵਡਭਾਗੀ ॥
सफल जनमु होवत वडभागी ॥
उस भाग्यशाली का जन्म सफल हो जाता है
ਸਾਧਸੰਗਿ ਰਾਮਹਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥੨॥
साधसंगि रामहि लिव लागी ॥२॥
संतों की संगति में जिसकी राम में लगन लग जाती है ॥ २॥
ਮਤਿ ਪਤਿ ਧਨੁ ਸੁਖ ਸਹਜ ਅਨੰਦਾ ॥
मति पति धनु सुख सहज अनंदा ॥
उसे सुमति, मान-सम्मान, धन-दौलत, परम सुख एवं आनंद प्राप्त हो जाता है।
ਇਕ ਨਿਮਖ ਨ ਵਿਸਰਹੁ ਪਰਮਾਨੰਦਾ ॥੩॥
इक निमख न विसरहु परमानंदा ॥३॥
हे परमानंद ! मुझे एक क्षण के लिए भी न भूलो ॥ ३॥
ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਕੀ ਮਨਿ ਪਿਆਸ ਘਨੇਰੀ ॥
हरि दरसन की मनि पिआस घनेरी ॥
मेरे मन में हरि-दर्शन की तीव्र लालसा लगी हुई है।
ਭਨਤਿ ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ॥੪॥੮॥੧੩॥
भनति नानक सरणि प्रभ तेरी ॥४॥८॥१३॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! मैं तेरी शरण में आया हूँ ॥४॥८॥१३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨ ਸਭ ਗੁਣਹ ਬਿਹੂਨਾ ॥
मोहि निरगुन सभ गुणह बिहूना ॥
मैं निर्गुण तो सभी गुणों से विहीन हूँ।
ਦਇਆ ਧਾਰਿ ਅਪੁਨਾ ਕਰਿ ਲੀਨਾ ॥੧॥
दइआ धारि अपुना करि लीना ॥१॥
प्रभु ने कृपा करके मुझे अपना बना लिया है ॥१॥
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰਿ ਗੋਪਾਲਿ ਸੁਹਾਇਆ ॥
मेरा मनु तनु हरि गोपालि सुहाइआ ॥
ईश्वर ने मेरा मन-तन सुन्दर बना दिया है और
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭੁ ਘਰ ਮਹਿ ਆਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा प्रभु घर महि आइआ ॥१॥ रहाउ ॥
अपनी कृपा करके प्रभु मेरे हृदय-घर में आ गया है ॥१॥ रहाउ ॥
ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਭੈ ਕਾਟਨਹਾਰੇ ॥
भगति वछल भै काटनहारे ॥
हे ईश्वर, तू भक्तवत्सल एवं भय काटने वाला है।
ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰ ਅਬ ਉਤਰੇ ਪਾਰੇ ॥੨॥
संसार सागर अब उतरे पारे ॥२॥
अब तेरी करुणा से मैं संसार-सागर से पार हो गया हूँ ॥२॥
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਪ੍ਰਭ ਬਿਰਦੁ ਬੇਦਿ ਲੇਖਿਆ ॥
पतित पावन प्रभ बिरदु बेदि लेखिआ ॥
वेदों में लिखा है कि प्रभु का यही विरद् है कि वह पतितों को पावन करने वाला है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸੋ ਨੈਨਹੁ ਪੇਖਿਆ ॥੩॥
पारब्रहमु सो नैनहु पेखिआ ॥३॥
मैंने उस परब्रह्म को अपनी आँखों से देख लिया है॥ ३॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਪ੍ਰਗਟੇ ਨਾਰਾਇਣ ॥ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਭਿ ਦੂਖ ਪਲਾਇਣ ॥੪॥੯॥੧੪॥
साधसंगि प्रगटे नाराइण ॥ नानक दास सभि दूख पलाइण ॥४॥९॥१४॥
साधुओं की संगति करने से नारायण मेरे हृदय में प्रगट हो गया है। हे दास नानक ! मेरे सभी दुख नाश हो गए हैं॥ ४ ॥६॥ १४ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਕਵਨੁ ਜਾਨੈ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਸੇਵਾ ॥
कवनु जानै प्रभ तुम्हरी सेवा ॥
हे प्रभु ! तेरी सेवा-भक्ति कौन जानता है,
ਪ੍ਰਭ ਅਵਿਨਾਸੀ ਅਲਖ ਅਭੇਵਾ ॥੧॥
प्रभ अविनासी अलख अभेवा ॥१॥
तू तो अविनाशी अदृष्ट एवं रहस्यमय है॥ १॥
ਗੁਣ ਬੇਅੰਤ ਪ੍ਰਭ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੇ ॥
गुण बेअंत प्रभ गहिर ग्मभीरे ॥
प्रभु के गुण बेअंत हैं, वह गहन-गंभीर है।
ਊਚ ਮਹਲ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ॥
ऊच महल सुआमी प्रभ मेरे ॥
हे मेरे स्वामी प्रभु ! तेरे महल सर्वोच्च हैं।
ਤੂ ਅਪਰੰਪਰ ਠਾਕੁਰ ਮੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तू अपर्मपर ठाकुर मेरे ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे ठाकुर ! तू अपरंपार है ॥१॥ रहाउ ॥
ਏਕਸ ਬਿਨੁ ਨਾਹੀ ਕੋ ਦੂਜਾ ॥
एकस बिनु नाही को दूजा ॥
एक ईश्वर के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਹੀ ਜਾਨਹੁ ਅਪਨੀ ਪੂਜਾ ॥੨॥
तुम्ह ही जानहु अपनी पूजा ॥२॥
अपनी पूजा तुम स्वयं ही जानते हो ॥२॥
ਆਪਹੁ ਕਛੂ ਨ ਹੋਵਤ ਭਾਈ ॥
आपहु कछू न होवत भाई ॥
हे भाई ! जीव से अपने आप कुछ भी नहीं होता।
ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਭੁ ਦੇਵੈ ਸੋ ਨਾਮੁ ਪਾਈ ॥੩॥
जिसु प्रभु देवै सो नामु पाई ॥३॥
जिसे प्रभु देता है, उसे ही नाम प्राप्त होता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜੋ ਜਨੁ ਪ੍ਰਭ ਭਾਇਆ ॥
कहु नानक जो जनु प्रभ भाइआ ॥
हे नानक ! जो व्यक्ति प्रभु को भा गया है,
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਪ੍ਰਭੁ ਤਿਨ ਹੀ ਪਾਇਆ ॥੪॥੧੦॥੧੫॥
गुण निधान प्रभु तिन ही पाइआ ॥४॥१०॥१५॥
उसने ही गुणनिधान प्रभु को पा लिया है ॥४॥१०॥१५॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਮਾਤ ਗਰਭ ਮਹਿ ਹਾਥ ਦੇ ਰਾਖਿਆ ॥
मात गरभ महि हाथ दे राखिआ ॥
हे जीव ! परमेश्वर ने अपना हाथ देकर तुझे माता के गर्भ में बचाया है,
ਹਰਿ ਰਸੁ ਛੋਡਿ ਬਿਖਿਆ ਫਲੁ ਚਾਖਿਆ ॥੧॥
हरि रसु छोडि बिखिआ फलु चाखिआ ॥१॥
लेकिन हरि-रस को छोड़कर तू विष रूपी माया का फल चख रहा है ॥१॥
ਭਜੁ ਗੋਬਿਦ ਸਭ ਛੋਡਿ ਜੰਜਾਲ ॥
भजु गोबिद सभ छोडि जंजाल ॥
जगत् के सारे जंजाल छोड़कर गोविंद का भजन करो।
ਜਬ ਜਮੁ ਆਇ ਸੰਘਾਰੈ ਮੂੜੇ ਤਬ ਤਨੁ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਬੇਹਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जब जमु आइ संघारै मूड़े तब तनु बिनसि जाइ बेहाल ॥१॥ रहाउ ॥
हे मूर्ख ! जब यम आकर मारता है तो यह तन नाश हो जाता है और इसका बड़ा बुरा हाल होता है।॥१॥ रहाउ ॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਅਪਨਾ ਕਰਿ ਥਾਪਿਆ ॥
तनु मनु धनु अपना करि थापिआ ॥
यह तन, मन एवं धन तूने अपना समझ लिया है,
ਕਰਨਹਾਰੁ ਇਕ ਨਿਮਖ ਨ ਜਾਪਿਆ ॥੨॥
करनहारु इक निमख न जापिआ ॥२॥
लेकिन उस बनाने वाले परमात्मा को एक क्षण भर के लिए भी याद नहीं किया ॥२॥
ਮਹਾ ਮੋਹ ਅੰਧ ਕੂਪ ਪਰਿਆ ॥
महा मोह अंध कूप परिआ ॥
तू महामोह के अँधे कुएँ में गिर पड़ा है,
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਮਾਇਆ ਪਟਲਿ ਬਿਸਰਿਆ ॥੩॥
पारब्रहमु माइआ पटलि बिसरिआ ॥३॥
इसलिए माया के पर्दे के कारण तूने भगवान को भुला दिया है ॥३॥
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਪ੍ਰਭ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਇਆ ॥
वडै भागि प्रभ कीरतनु गाइआ ॥
हे नानक ! बड़े भाग्य से प्रभु का कीर्तन गाया है और
ਸੰਤਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੧੧॥੧੬॥
संतसंगि नानक प्रभु पाइआ ॥४॥११॥१६॥
संतों की संगति में प्रभु को पा लिया है ॥४॥११॥१६॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਬੰਧਪ ਭਾਈ ॥ ਨਾਨਕ ਹੋਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸਹਾਈ ॥੧॥
मात पिता सुत बंधप भाई ॥ नानक होआ पारब्रहमु सहाई ॥१॥
हे नानक ! माता-पिता, पुत्र, बंधु एवं भाई की तरह परब्रह्म ही हमारा सहायक बना है॥ १॥
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਘਣੇ ॥
सूख सहज आनंद घणे ॥
मुझे सहज सुख एवं बड़ा आनंद प्राप्त हो गया है।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪੂਰੀ ਜਾ ਕੀ ਬਾਣੀ ਅਨਿਕ ਗੁਣਾ ਜਾ ਕੇ ਜਾਹਿ ਨ ਗਣੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु पूरा पूरी जा की बाणी अनिक गुणा जा के जाहि न गणे ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु, जिसकी वाणी पूर्ण है, उसके अनेकों ही गुण हैं, जो मुझ से गिने नहीं जा सकते॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਗਲ ਸਰੰਜਾਮ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੇ ॥
सगल सरंजाम करे प्रभु आपे ॥
प्रभु स्वयं ही सभी कार्य साकार कर देता है।
ਭਏ ਮਨੋਰਥ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਪੇ ॥੨॥
भए मनोरथ सो प्रभु जापे ॥२॥
सो प्रभु को जपने से मेरे सारे मनोरथ पूरे हो गए हैं।॥२॥
ਅਰਥ ਧਰਮ ਕਾਮ ਮੋਖ ਕਾ ਦਾਤਾ ॥
अरथ धरम काम मोख का दाता ॥
परमात्मा धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष का दाता है।