ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਜਗਤ ਮਹਿ ਸਫਲ ਜਾ ਕੀ ਸੇਵ ॥੧॥
जै जै कारु जगत महि सफल जा की सेव ॥१॥
जिसकी सेवा सफल हो जाती है, उसकी जगत् में जय-जयकार होती है॥ १॥
ਊਚ ਅਪਾਰ ਅਗਨਤ ਹਰਿ ਸਭਿ ਜੀਅ ਜਿਸੁ ਹਾਥਿ ॥
ऊच अपार अगनत हरि सभि जीअ जिसु हाथि ॥
जिसके वश में सारे जीव हैं, वह परमात्मा सर्वोच्च, अपार एवं अगम्य है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤੀ ਜਤ ਕਤ ਮੇਰੈ ਸਾਥਿ ॥੨॥੧੦॥੭੪॥
नानक प्रभ सरणागती जत कत मेरै साथि ॥२॥१०॥७४॥
हे नानक ! मैं उस प्रभु की शरण में हूँ, जो सदैव मेरे साथ है॥ २ ॥ १० ॥ ७४ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਆਰਾਧਿਆ ਹੋਏ ਕਿਰਪਾਲ ॥
गुरु पूरा आराधिआ होए किरपाल ॥
पूर्ण गुरु की आराधना की है, इसलिए वह मुझ पर कृपालु हो गया है।
ਮਾਰਗੁ ਸੰਤਿ ਬਤਾਇਆ ਤੂਟੇ ਜਮ ਜਾਲ ॥੧॥
मारगु संति बताइआ तूटे जम जाल ॥१॥
उसने मुझे सन्मार्ग बता दिया है, जिससे मेरे यम के जाल टूट गए हैं।॥ १॥
ਦੂਖ ਭੂਖ ਸੰਸਾ ਮਿਟਿਆ ਗਾਵਤ ਪ੍ਰਭ ਨਾਮ ॥
दूख भूख संसा मिटिआ गावत प्रभ नाम ॥
प्रभु का नाम गाने से मेरे दुख, भूख एवं संशय मिट गए हैं।
ਸਹਜ ਸੂਖ ਆਨੰਦ ਰਸ ਪੂਰਨ ਸਭਿ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सहज सूख आनंद रस पूरन सभि काम ॥१॥ रहाउ ॥
मुझे सहज सुख, आनंद एवं उल्लास उत्पन्न हो गया है तथा सभी कार्य सिद्ध हो गए हैं। १॥ रहाउ॥
ਜਲਨਿ ਬੁਝੀ ਸੀਤਲ ਭਏ ਰਾਖੇ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪ ॥
जलनि बुझी सीतल भए राखे प्रभि आप ॥
प्रभु ने स्वयं मेरी रक्षा की है, जिससे सारी जलन बुझ गई है और मन शांत हो गया है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤੀ ਜਾ ਕਾ ਵਡ ਪਰਤਾਪ ॥੨॥੧੧॥੭੫॥
नानक प्रभ सरणागती जा का वड परताप ॥२॥११॥७५॥
नानक तो उस प्रभु की शरण में ही है, जिसका जगत् में बड़ा प्रताप है ॥२॥ ११॥ ७५॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਧਰਤਿ ਸੁਹਾਵੀ ਸਫਲ ਥਾਨੁ ਪੂਰਨ ਭਏ ਕਾਮ ॥
धरति सुहावी सफल थानु पूरन भए काम ॥
सारी धरती सुहावनी हो गई है, वह स्थान सफल हो गया है और सब काम पूरे हो गए हैं।
ਭਉ ਨਾਠਾ ਭ੍ਰਮੁ ਮਿਟਿ ਗਇਆ ਰਵਿਆ ਨਿਤ ਰਾਮ ॥੧॥
भउ नाठा भ्रमु मिटि गइआ रविआ नित राम ॥१॥
नित्य राम का भजन करने से सारा भय दूर हो गया है और भ्रम भी मिट गया है॥ १॥
ਸਾਧ ਜਨਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਬਸਤ ਸੁਖ ਸਹਜ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥
साध जना कै संगि बसत सुख सहज बिस्राम ॥
साधुजनों के संग रहने से सहज सुख एवं शान्ति प्राप्त हो गई है।
ਸਾਈ ਘੜੀ ਸੁਲਖਣੀ ਸਿਮਰਤ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साई घड़ी सुलखणी सिमरत हरि नाम ॥१॥ रहाउ ॥
वह घड़ी बड़ी शुभ है, जब हरि-नाम का सिमरन किया जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਗਟ ਭਏ ਸੰਸਾਰ ਮਹਿ ਫਿਰਤੇ ਪਹਨਾਮ ॥
प्रगट भए संसार महि फिरते पहनाम ॥
हमें पहले कोई भी नहीं जानता था परन्तु अब संसार भर में लोकप्रिय हो गए हैं।
ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਸਰਣਾਗਤੀ ਘਟ ਘਟ ਸਭ ਜਾਨ ॥੨॥੧੨॥੭੬॥
नानक तिसु सरणागती घट घट सभ जान ॥२॥१२॥७६॥
नानक तो उस परमात्मा की शरण में है जो सबके दिल की भावना को जानने वाला है॥ २ ॥ १२ ॥ ७६ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਰੋਗੁ ਮਿਟਾਇਆ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭਿ ਉਪਜਿਆ ਸੁਖੁ ਸਾਂਤਿ ॥
रोगु मिटाइआ आपि प्रभि उपजिआ सुखु सांति ॥
प्रभु ने स्वयं रोग मिटाया है और सुख-शांति उत्पन्न कर दी है।
ਵਡ ਪਰਤਾਪੁ ਅਚਰਜ ਰੂਪੁ ਹਰਿ ਕੀਨੑੀ ਦਾਤਿ ॥੧॥
वड परतापु अचरज रूपु हरि कीन्ही दाति ॥१॥
जिसका प्रताप बहुत बड़ा है और रूप आश्चर्यमय है, उस परमात्मा ने ही देन प्रदान की है॥ १॥
ਗੁਰਿ ਗੋਵਿੰਦਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੀ ਰਾਖਿਆ ਮੇਰਾ ਭਾਈ ॥
गुरि गोविंदि क्रिपा करी राखिआ मेरा भाई ॥
गोविंद गुरु ने कृपा करके मेरे प्रिय की रक्षा की है।
ਹਮ ਤਿਸ ਕੀ ਸਰਣਾਗਤੀ ਜੋ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हम तिस की सरणागती जो सदा सहाई ॥१॥ रहाउ ॥
मैंने उसकी शरण ली है, जो सदैव मेरा सहायक है॥ १॥ रहाउ॥
ਬਿਰਥੀ ਕਦੇ ਨ ਹੋਵਈ ਜਨ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥
बिरथी कदे न होवई जन की अरदासि ॥
सेवक की प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
ਨਾਨਕ ਜੋਰੁ ਗੋਵਿੰਦ ਕਾ ਪੂਰਨ ਗੁਣਤਾਸਿ ॥੨॥੧੩॥੭੭॥
नानक जोरु गोविंद का पूरन गुणतासि ॥२॥१३॥७७॥
हे नानक ! मेरे पास गोविंद का ही आत्मबल है, जो पूर्ण गुणों का भण्डार है॥ २ ॥ १३ ॥ ७७ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਮਰਿ ਮਰਿ ਜਨਮੇ ਜਿਨ ਬਿਸਰਿਆ ਜੀਵਨ ਕਾ ਦਾਤਾ ॥
मरि मरि जनमे जिन बिसरिआ जीवन का दाता ॥
जिसे जीवन-दाता ईश्वर भूल गया है, वह जन्म-मरण के बन्धन में ही पड़ा हुआ है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜਨਿ ਸੇਵਿਆ ਅਨਦਿਨੁ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥੧॥
पारब्रहमु जनि सेविआ अनदिनु रंगि राता ॥१॥
जिस भक्त ने परब्रह्म की उपासना की है, वह दिन-रात उसके रंग में ही लीन रहता है।१॥
ਸਾਂਤਿ ਸਹਜੁ ਆਨਦੁ ਘਨਾ ਪੂਰਨ ਭਈ ਆਸ ॥
सांति सहजु आनदु घना पूरन भई आस ॥
उसकी सब अभिलाषाएँ पूरी हो गई हैं और मन में सहज सुख, शान्ति एवं बड़ा आनंद पैदा हो गया है।
ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਸਿਮਰਤ ਗੁਣਤਾਸ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुखु पाइआ हरि साधसंगि सिमरत गुणतास ॥१॥ रहाउ ॥
उसने साधु-संगति में गुणों के भण्डार परमात्मा का सिमरन कर सुख प्राप्त कर लिया है।१॥ रहाउ॥
ਸੁਣਿ ਸੁਆਮੀ ਅਰਦਾਸਿ ਜਨ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
सुणि सुआमी अरदासि जन तुम्ह अंतरजामी ॥
हे स्वामी ! तू अन्तर्यामी है, अपने सेवक की प्रार्थना सुनो।
ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਰਵਿ ਰਹੇ ਨਾਨਕ ਕੇ ਸੁਆਮੀ ॥੨॥੧੪॥੭੮॥
थान थनंतरि रवि रहे नानक के सुआमी ॥२॥१४॥७८॥
हे नानक के स्वामी ! तू सर्वव्यापक है ॥ २ ॥ १४ ॥ ७८ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਤਾਤੀ ਵਾਉ ਨ ਲਗਈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸਰਣਾਈ ॥
ताती वाउ न लगई पारब्रहम सरणाई ॥
परब्रह्म की शरण में आने से हमें कोई गर्म हवा भी नहीं लगती अर्थात् तनिक मात्र भी संताप नहीं लगता।
ਚਉਗਿਰਦ ਹਮਾਰੈ ਰਾਮ ਕਾਰ ਦੁਖੁ ਲਗੈ ਨ ਭਾਈ ॥੧॥
चउगिरद हमारै राम कार दुखु लगै न भाई ॥१॥
हमारे इर्द-गिर्द राम-नाम की रेखा खींची हुई है, जिससे कोई दुख नहीं लगता ॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਆ ਜਿਨਿ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥
सतिगुरु पूरा भेटिआ जिनि बणत बणाई ॥
मुझे पूर्ण सतगुरु मिल गया है, जिसने ऐसा विधान बनाया है।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਅਉਖਧੁ ਦੀਆ ਏਕਾ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नामु अउखधु दीआ एका लिव लाई ॥१॥ रहाउ ॥
उसने मुझे राम-नाम रूपी औषधि दी है, जिसने एक परमात्मा में वृत्ति लगा दी है॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਤਿਨਿ ਰਖਨਹਾਰਿ ਸਭ ਬਿਆਧਿ ਮਿਟਾਈ ॥
राखि लीए तिनि रखनहारि सभ बिआधि मिटाई ॥
उस रखवाले परमात्मा ने हमारी रक्षा की है और सारी व्याधि मिटा दी है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਸਹਾਈ ॥੨॥੧੫॥੭੯॥
कहु नानक किरपा भई प्रभ भए सहाई ॥२॥१५॥७९॥
हे नानक ! मुझ पर प्रभु-कृपा हो गई है और वही मेरा सहायक बना है ॥ २॥ १५ ॥ ७६ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਅਪਣੇ ਬਾਲਕ ਆਪਿ ਰਖਿਅਨੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਰਦੇਵ ॥
अपणे बालक आपि रखिअनु पारब्रहम गुरदेव ॥
परब्रह्म-गुरुदेव ने स्वयं अपने बालक (हरिगोविंद) की रक्षा की है।
ਸੁਖ ਸਾਂਤਿ ਸਹਜ ਆਨਦ ਭਏ ਪੂਰਨ ਭਈ ਸੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुख सांति सहज आनद भए पूरन भई सेव ॥१॥ रहाउ ॥
मन में सुख-शांति एवं सहज आनंद उत्पन्न हो गया है और हमारी सेवा-भक्ति पूर्ण हो गई है॥ १॥ रहाउ ॥