ਮਨ ਕੀ ਬਿਰਥਾ ਮਨ ਹੀ ਜਾਣੈ ਅਵਰੁ ਕਿ ਜਾਣੈ ਕੋ ਪੀਰ ਪਰਈਆ ॥੧॥
मन की बिरथा मन ही जाणै अवरु कि जाणै को पीर परईआ ॥१॥
मन की व्यथा मन ही जानता है, अन्य कोई पराई पीड़ा को क्या जान सकता है॥ १॥
ਰਾਮ ਗੁਰਿ ਮੋਹਨਿ ਮੋਹਿ ਮਨੁ ਲਈਆ ॥
राम गुरि मोहनि मोहि मनु लईआ ॥
प्यारे गुरु ने मेरा मन मोह लिया है।
ਹਉ ਆਕਲ ਬਿਕਲ ਭਈ ਗੁਰ ਦੇਖੇ ਹਉ ਲੋਟ ਪੋਟ ਹੋਇ ਪਈਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ आकल बिकल भई गुर देखे हउ लोट पोट होइ पईआ ॥१॥ रहाउ ॥
मैं बहुत व्याकुल थी, पर गुरु को देखकर प्रसन्न हो गई हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਉ ਨਿਰਖਤ ਫਿਰਉ ਸਭਿ ਦੇਸ ਦਿਸੰਤਰ ਮੈ ਪ੍ਰਭ ਦੇਖਨ ਕੋ ਬਹੁਤੁ ਮਨਿ ਚਈਆ ॥
हउ निरखत फिरउ सभि देस दिसंतर मै प्रभ देखन को बहुतु मनि चईआ ॥
में देश-विदेश सब जगह देखती रहती हूँ और मेरे मन में प्रभु-दर्शन का बड़ा चाव है।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਕਾਟਿ ਦੇਉ ਗੁਰ ਆਗੈ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਮਾਰਗੁ ਪੰਥੁ ਦਿਖਈਆ ॥੨॥
मनु तनु काटि देउ गुर आगै जिनि हरि प्रभ मारगु पंथु दिखईआ ॥२॥
मैं अपना तन-मन काट कर गुरु के समक्ष भेंट कर दूँगी, जिसने मुझे प्रभु का मार्ग दिखाया है॥ २ ॥
ਕੋਈ ਆਣਿ ਸਦੇਸਾ ਦੇਇ ਪ੍ਰਭ ਕੇਰਾ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਮੀਠ ਲਗਈਆ ॥
कोई आणि सदेसा देइ प्रभ केरा रिद अंतरि मनि तनि मीठ लगईआ ॥
जो कोई प्रभु का संदेश आकर मुझे देता है, वह मेरे हृदय, अन्तर, मन-तन को बड़ा मीठा लगता है।
ਮਸਤਕੁ ਕਾਟਿ ਦੇਉ ਚਰਣਾ ਤਲਿ ਜੋ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਲੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਈਆ ॥੩॥
मसतकु काटि देउ चरणा तलि जो हरि प्रभु मेले मेलि मिलईआ ॥३॥
मैं अपना सिर काटकर उसके चरणों में रख दूँगी, जो मुझे हरि-प्रभु से मिला दे॥ ३॥
ਚਲੁ ਚਲੁ ਸਖੀ ਹਮ ਪ੍ਰਭੁ ਪਰਬੋਧਹ ਗੁਣ ਕਾਮਣ ਕਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਲਹੀਆ ॥
चलु चलु सखी हम प्रभु परबोधह गुण कामण करि हरि प्रभु लहीआ ॥
हे सखी ! चलो, हम प्रभु को समझ लें और अपने शुभ-गुणों के टोने करके प्रभु को पा लें।
ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਉਆ ਕੋ ਨਾਮੁ ਕਹੀਅਤੁ ਹੈ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭੂ ਤਿਸੁ ਪਾਛੈ ਪਈਆ ॥੪॥
भगति वछलु उआ को नामु कहीअतु है सरणि प्रभू तिसु पाछै पईआ ॥४॥
उसका नाम भक्तवत्सल कहा जाता है, इसलिए प्रभु की शरण में बने रहें ॥ ४॥
ਖਿਮਾ ਸੀਗਾਰ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭ ਖੁਸੀਆ ਮਨਿ ਦੀਪਕ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਬਲਈਆ ॥
खिमा सीगार करे प्रभ खुसीआ मनि दीपक गुर गिआनु बलईआ ॥
जो जीव-स्त्री क्षमा का श्रृंगार करती है तथा मन रूपी दीपक में गुरु का ज्ञान प्रज्वलित करती है, प्रभु उस पर बड़ा खुश होता है।
ਰਸਿ ਰਸਿ ਭੋਗ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਹਮ ਤਿਸੁ ਆਗੈ ਜੀਉ ਕਟਿ ਕਟਿ ਪਈਆ ॥੫॥
रसि रसि भोग करे प्रभु मेरा हम तिसु आगै जीउ कटि कटि पईआ ॥५॥
मेरा प्रभु बड़े आनंद से उस जीव-स्त्री से भोग करता है, हम उसके आगे अपना जीवन काट-काट कर रख देंगे।॥ ५॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਾਰੁ ਕੰਠਿ ਹੈ ਬਨਿਆ ਮਨੁ ਮੋਤੀਚੂਰੁ ਵਡ ਗਹਨ ਗਹਨਈਆ ॥
हरि हरि हारु कंठि है बनिआ मनु मोतीचूरु वड गहन गहनईआ ॥
हरि नाम मेरे गले का हार बन गया है और मेरा मन सिर का बड़ा आभूषण मोतीचूर बन चुका है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਰਧਾ ਸੇਜ ਵਿਛਾਈ ਪ੍ਰਭੁ ਛੋਡਿ ਨ ਸਕੈ ਬਹੁਤੁ ਮਨਿ ਭਈਆ ॥੬॥
हरि हरि सरधा सेज विछाई प्रभु छोडि न सकै बहुतु मनि भईआ ॥६॥
मैंने हरि के लिए अपने हृदय में श्रद्धा की सेज बिछा दी है और मन में प्रभु बड़ा प्यारा लगता है, जो मुझे छोड़ नहीं सकेगा ॥ ६॥
ਕਹੈ ਪ੍ਰਭੁ ਅਵਰੁ ਅਵਰੁ ਕਿਛੁ ਕੀਜੈ ਸਭੁ ਬਾਦਿ ਸੀਗਾਰੁ ਫੋਕਟ ਫੋਕਟਈਆ ॥
कहै प्रभु अवरु अवरु किछु कीजै सभु बादि सीगारु फोकट फोकटईआ ॥
यदि प्रभु कुछ अन्य कहता रहे और जीव-स्त्री कुछ अन्य ही करती रहे तो उसका किया सारा श्रृंगार व्यर्थ हो जाता है।
ਕੀਓ ਸੀਗਾਰੁ ਮਿਲਣ ਕੈ ਤਾਈ ਪ੍ਰਭੁ ਲੀਓ ਸੁਹਾਗਨਿ ਥੂਕ ਮੁਖਿ ਪਈਆ ॥੭॥
कीओ सीगारु मिलण कै ताई प्रभु लीओ सुहागनि थूक मुखि पईआ ॥७॥
जिसने प्रभु-मिलन के लिए शुभ-गुणों का श्रृंगार किया है, उसने उसे सुहागिन बना लिया है। लेकिन जिस जीव-स्त्री ने परमात्मा का हुक्म नहीं माना, उसका तिरस्कार ही हुआ है॥ ७॥
ਹਮ ਚੇਰੀ ਤੂ ਅਗਮ ਗੁਸਾਈ ਕਿਆ ਹਮ ਕਰਹ ਤੇਰੈ ਵਸਿ ਪਈਆ ॥
हम चेरी तू अगम गुसाई किआ हम करह तेरै वसि पईआ ॥
हे ईश्वर ! तू अगम्य स्वामी है, में तेरी सेविका हूँ, मैं क्या कर सकती हूँ? मैं तो तेरे ही वश में पड़ी हूँ।
ਦਇਆ ਦੀਨ ਕਰਹੁ ਰਖਿ ਲੇਵਹੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਰ ਸਰਣਿ ਸਮਈਆ ॥੮॥੫॥੮॥
दइआ दीन करहु रखि लेवहु नानक हरि गुर सरणि समईआ ॥८॥५॥८॥
नानक प्रार्थना करता है कि हे हरि ! मुझ दीन पर दया करो, मेरी लाज रख लो, क्योंकि मै तेरी ही शरण में हूँ॥ ८॥ ५ ॥ ८॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
बिलावलु महला ४ ॥
ਮੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਅਗਮ ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਸਰਧਾ ਮਨਿ ਬਹੁਤੁ ਉਠਈਆ ॥
मै मनि तनि प्रेमु अगम ठाकुर का खिनु खिनु सरधा मनि बहुतु उठईआ ॥
मेरे मन-तन में अगम्य प्रभु का प्रेम उत्पन्न हो गया है और क्षण-क्षण उसे पाने की श्रद्धा मन में बहुत उठती रहती है।
ਗੁਰ ਦੇਖੇ ਸਰਧਾ ਮਨ ਪੂਰੀ ਜਿਉ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰਿਉ ਬੂੰਦ ਮੁਖਿ ਪਈਆ ॥੧॥
गुर देखे सरधा मन पूरी जिउ चात्रिक प्रिउ प्रिउ बूंद मुखि पईआ ॥१॥
मेरे मन की यह श्रद्धा गुरु को देखने से ही पूरी होती है जैसे पीय-पीय करते पपीहे के मुँह में स्वाति बूंद पड़ जाती है॥ १॥
ਮਿਲੁ ਮਿਲੁ ਸਖੀ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਨਈਆ ॥
मिलु मिलु सखी हरि कथा सुनईआ ॥
हे सखी ! मुझे मिलो और हरि की कथा सुनाओ।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਇਆ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਲੇ ਮੈ ਤਿਸੁ ਆਗੈ ਸਿਰੁ ਕਟਿ ਕਟਿ ਪਈਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुरु दइआ करे प्रभु मेले मै तिसु आगै सिरु कटि कटि पईआ ॥१॥ रहाउ ॥
यदि सतगुरु दया करके मुझे प्रभु से मिला दे तो मैं उसके आगे अपना सिर काट-काटकर सौंप दूँगी॥ १॥ रहाउ॥
ਰੋਮਿ ਰੋਮਿ ਮਨਿ ਤਨਿ ਇਕ ਬੇਦਨ ਮੈ ਪ੍ਰਭ ਦੇਖੇ ਬਿਨੁ ਨੀਦ ਨ ਪਈਆ ॥
रोमि रोमि मनि तनि इक बेदन मै प्रभ देखे बिनु नीद न पईआ ॥
मेरे रोम-रोम, मन-तन में एक विरह की वेदना है और प्रभु को देखे बिना मुझे नींद नहीं आती।
ਬੈਦਕ ਨਾਟਿਕ ਦੇਖਿ ਭੁਲਾਨੇ ਮੈ ਹਿਰਦੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੇਮ ਪੀਰ ਲਗਈਆ ॥੨॥
बैदक नाटिक देखि भुलाने मै हिरदै मनि तनि प्रेम पीर लगईआ ॥२॥
वैद्य मेरी नब्ज को देखकर भूल गए हैं और मेरे हृदय, मन-तन में प्रेम की पीड़ा लगी हई हैI| २ ॥
ਹਉ ਖਿਨੁ ਪਲੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕਉ ਬਿਨੁ ਪ੍ਰੀਤਮ ਜਿਉ ਬਿਨੁ ਅਮਲੈ ਅਮਲੀ ਮਰਿ ਗਈਆ ॥
हउ खिनु पलु रहि न सकउ बिनु प्रीतम जिउ बिनु अमलै अमली मरि गईआ ॥
में अपने प्रियतम के बिना एक क्षण एवं पल भर भी नहीं रह सकती जैसे नशे के बिना अमली ही मर जाता है।
ਜਿਨ ਕਉ ਪਿਆਸ ਹੋਇ ਪ੍ਰਭ ਕੇਰੀ ਤਿਨੑ ਅਵਰੁ ਨ ਭਾਵੈ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਕੋ ਦੁਈਆ ॥੩॥
जिन कउ पिआस होइ प्रभ केरी तिन्ह अवरु न भावै बिनु हरि को दुईआ ॥३॥
जिन्हें प्रभु-मिलन की प्यास लगी हुई है, उन्हें उसके बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता ॥ ३॥
ਕੋਈ ਆਨਿ ਆਨਿ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲਾਵੈ ਹਉ ਤਿਸੁ ਵਿਟਹੁ ਬਲਿ ਬਲਿ ਘੁਮਿ ਗਈਆ ॥
कोई आनि आनि मेरा प्रभू मिलावै हउ तिसु विटहु बलि बलि घुमि गईआ ॥
यदि कोई आकर मुझे मेरे प्रभु से मिला दे, तो मैं उस पर शत-शत बलिहारी जाती हूँ।
ਅਨੇਕ ਜਨਮ ਕੇ ਵਿਛੁੜੇ ਜਨ ਮੇਲੇ ਜਾ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਿ ਪਵਈਆ ॥੪॥
अनेक जनम के विछुड़े जन मेले जा सति सति सतिगुर सरणि पवईआ ॥४॥
यदि सच्चे सतगुरु की शरण में आया जाए तो वह जन्म-जन्मांतरों के बिछुड़े जीव को भी परमात्मा से मिला देता है॥ ४॥