Hindi Page 843

ਮਨਮੁਖ ਮੁਏ ਅਪਣਾ ਜਨਮੁ ਖੋਇ ॥
मनमुख मुए अपणा जनमु खोइ ॥
मनमुखी जीव अपना अमूल्य जीवन गंवा कर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
सतिगुरु सेवे भरमु चुकाए ॥
यदि वे सतगुरु की सेवा करें तो उनका भ्रम दूर हो जाता है और

ਘਰ ਹੀ ਅੰਦਰਿ ਸਚੁ ਮਹਲੁ ਪਾਏ ॥੯॥
घर ही अंदरि सचु महलु पाए ॥९॥
अपने शरीर रूपी घर में ही सत्य को पा लेते हैं।॥ ९ ॥

ਆਪੇ ਪੂਰਾ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥
आपे पूरा करे सु होइ ॥
पूर्ण परमेश्वर जो करता है, वही होता है।

ਏਹਿ ਥਿਤੀ ਵਾਰ ਦੂਜਾ ਦੋਇ ॥
एहि थिती वार दूजा दोइ ॥
यह तिथियाँ एवं वार द्वैतभाव पैदा करते हैं।

ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਝਹੁ ਅੰਧੁ ਗੁਬਾਰੁ ॥
सतिगुर बाझहु अंधु गुबारु ॥
सतगुरु के बिना जगत् में घोर अन्धेरा बना रहता है।

ਥਿਤੀ ਵਾਰ ਸੇਵਹਿ ਮੁਗਧ ਗਵਾਰ ॥
थिती वार सेवहि मुगध गवार ॥
मूर्ख गंवार व्यक्ति ही तिथियों एवं वारों को मानते हैं।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥
नानक गुरमुखि बूझै सोझी पाइ ॥
हे नानक ! जो गुरुमुख बनकर ज्ञान प्राप्त करता है, उसे सूझ हो जाती है और

ਇਕਤੁ ਨਾਮਿ ਸਦਾ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੧੦॥੨॥
इकतु नामि सदा रहिआ समाइ ॥१०॥२॥
वह सदा परमात्मा के नाम में लीन रहता है ॥१०॥२॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੧ ਛੰਤ ਦਖਣੀ
बिलावलु महला १ छंत दखणी
बिलावलु महला १ छंत दखणी

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਮੁੰਧ ਨਵੇਲੜੀਆ ਗੋਇਲਿ ਆਈ ਰਾਮ ॥
मुंध नवेलड़ीआ गोइलि आई राम ॥
जीव रूपी नववधू मुग्धा इस जगत् रूपी चरागाह में थोड़े दिनों के लिए आई है।

ਮਟੁਕੀ ਡਾਰਿ ਧਰੀ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ਰਾਮ ॥
मटुकी डारि धरी हरि लिव लाई राम ॥
उसने दूध से भरी हुई मटकी को सिर से उतार कर परमात्मा में लगन लगा ली है।

ਲਿਵ ਲਾਇ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹੀ ਗੋਇਲਿ ਸਹਜਿ ਸਬਦਿ ਸੀਗਾਰੀਆ ॥
लिव लाइ हरि सिउ रही गोइलि सहजि सबदि सीगारीआ ॥
उसने परमात्मा में लगन लगाकर सहज ही शब्द का श्रृंगार कर लिया है।

ਕਰ ਜੋੜਿ ਗੁਰ ਪਹਿ ਕਰਿ ਬਿਨੰਤੀ ਮਿਲਹੁ ਸਾਚਿ ਪਿਆਰੀਆ ॥
कर जोड़ि गुर पहि करि बिनंती मिलहु साचि पिआरीआ ॥
वह हाथ जोड़ कर गुरु से विनती करती है कि मुझे सच्चे प्रियतम से मिला दो।

ਧਨ ਭਾਇ ਭਗਤੀ ਦੇਖਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧੁ ਨਿਵਾਰਿਆ ॥
धन भाइ भगती देखि प्रीतम काम क्रोधु निवारिआ ॥
उसने भक्ति भावना द्वारा प्रियतम को देखकर काम-क्रोध को दूर कर दिया है।

ਨਾਨਕ ਮੁੰਧ ਨਵੇਲ ਸੁੰਦਰਿ ਦੇਖਿ ਪਿਰੁ ਸਾਧਾਰਿਆ ॥੧॥
नानक मुंध नवेल सुंदरि देखि पिरु साधारिआ ॥१॥
हे नानक ! उस सुन्दर नववधू मुग्धा ने प्रियतम को देखकर श्रद्धा धारण कर ली है॥ १॥

ਸਚਿ ਨਵੇਲੜੀਏ ਜੋਬਨਿ ਬਾਲੀ ਰਾਮ ॥
सचि नवेलड़ीए जोबनि बाली राम ॥
हे नववधू जीव-स्त्री ! सत्य द्वारा यौवन में भी भोलीभाली बनी रहो।

ਆਉ ਨ ਜਾਉ ਕਹੀ ਅਪਨੇ ਸਹ ਨਾਲੀ ਰਾਮ ॥
आउ न जाउ कही अपने सह नाली राम ॥
अपने पति के संग बनी रहो और कहीं और न आओ और न जाओं।

ਨਾਹ ਅਪਨੇ ਸੰਗਿ ਦਾਸੀ ਮੈ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਕੀ ਭਾਵਏ ॥
नाह अपने संगि दासी मै भगति हरि की भावए ॥
अपने प्रभु की दासी बनकर उसके साथ ही रहो। मुझे तो हरि की भक्ति अच्छी लगती है।

ਅਗਾਧਿ ਬੋਧਿ ਅਕਥੁ ਕਥੀਐ ਸਹਜਿ ਪ੍ਰਭ ਗੁਣ ਗਾਵਏ ॥
अगाधि बोधि अकथु कथीऐ सहजि प्रभ गुण गावए ॥
मैं उसका कथन करती हूँ, जिसका ज्ञान अथाह एवं अकथनीय है, मैं सहज ही प्रभु का गुणगान करती रहती हूँ।

ਰਾਮ ਨਾਮ ਰਸਾਲ ਰਸੀਆ ਰਵੈ ਸਾਚਿ ਪਿਆਰੀਆ ॥
राम नाम रसाल रसीआ रवै साचि पिआरीआ ॥
राम का नाम रसों का सागर है। वह रसिया उससे ही रमण करता है, जो सत्य से प्रेम करती है।

ਗੁਰਿ ਸਬਦੁ ਦੀਆ ਦਾਨੁ ਕੀਆ ਨਾਨਕਾ ਵੀਚਾਰੀਆ ॥੨॥
गुरि सबदु दीआ दानु कीआ नानका वीचारीआ ॥२॥
हे नानक ! जिसे गुरु ने शब्द दान किया है, वही विचारवान् बना है॥ २॥

ਸ੍ਰੀਧਰ ਮੋਹਿਅੜੀ ਪਿਰ ਸੰਗਿ ਸੂਤੀ ਰਾਮ ॥
स्रीधर मोहिअड़ी पिर संगि सूती राम ॥
प्रभु के मोह में मुग्ध हुई जीव-स्त्री उसका ही संग प्राप्त करती है।

ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਇ ਚਲੋ ਸਾਚਿ ਸੰਗੂਤੀ ਰਾਮ ॥
गुर कै भाइ चलो साचि संगूती राम ॥
गुरु की रज़ानुसार चलने वाली जीव-स्त्री सत्य के संग ही मिल जाती है।

ਧਨ ਸਾਚਿ ਸੰਗੂਤੀ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਸੂਤੀ ਸੰਗਿ ਸਖੀ ਸਹੇਲੀਆ ॥
धन साचि संगूती हरि संगि सूती संगि सखी सहेलीआ ॥
अपनी सखी-सहेलियों के साथ वह सत्य में ही लीन रहती है और परमात्मा का ही संयोग प्राप्त करती है।

ਇਕ ਭਾਇ ਇਕ ਮਨਿ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਸਤਿਗੁਰੂ ਹਮ ਮੇਲੀਆ ॥
इक भाइ इक मनि नामु वसिआ सतिगुरू हम मेलीआ ॥
एक मन होने से प्रेम द्वारा प्रभु का नाम मन में बस गया है और सतगुरु ने परमात्मा से मिला दिया है।

ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਘੜੀ ਨ ਚਸਾ ਵਿਸਰੈ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਨਿਰੰਜਨੋ ॥
दिनु रैणि घड़ी न चसा विसरै सासि सासि निरंजनो ॥
उस निरंजन को हर धड़कन से स्मरण करती हूँ और वह दिन-रात एक घड़ी और एक पल के लिए भी नहीं भूलता।

ਸਬਦਿ ਜੋਤਿ ਜਗਾਇ ਦੀਪਕੁ ਨਾਨਕਾ ਭਉ ਭੰਜਨੋ ॥੩॥
सबदि जोति जगाइ दीपकु नानका भउ भंजनो ॥३॥
हे नानक ! मन रूपी दीपक में शब्द की ज्योति प्रज्वलित की है, जो सारे भय नाश करने वाली है॥ ३॥

ਜੋਤਿ ਸਬਾਇੜੀਏ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸਾਰੇ ਰਾਮ ॥
जोति सबाइड़ीए त्रिभवण सारे राम ॥
हे सखी! जिसकी ज्योति तीनों लोकों में फैली हुई है।

ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਅਲਖ ਅਪਾਰੇ ਰਾਮ ॥
घटि घटि रवि रहिआ अलख अपारे राम ॥
वह अदृष्ट, अपार परमात्मा हरेक शरीर में बसा हुआ है।

ਅਲਖ ਅਪਾਰ ਅਪਾਰੁ ਸਾਚਾ ਆਪੁ ਮਾਰਿ ਮਿਲਾਈਐ ॥
अलख अपार अपारु साचा आपु मारि मिलाईऐ ॥
उस अदृष्ट, अपरंपार, सच्चे परमेश्वर से अहंत्व का नाश करके ही मिला जाता है।

ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਲੋਭੁ ਜਾਲਹੁ ਸਬਦਿ ਮੈਲੁ ਚੁਕਾਈਐ ॥
हउमै ममता लोभु जालहु सबदि मैलु चुकाईऐ ॥
अपने अहम्, ममता एवं लोभ को जला दो और शब्द द्वारा मन की मैल दूर कर दी।

ਦਰਿ ਜਾਇ ਦਰਸਨੁ ਕਰੀ ਭਾਣੈ ਤਾਰਿ ਤਾਰਣਹਾਰਿਆ ॥
दरि जाइ दरसनु करी भाणै तारि तारणहारिआ ॥
श्रद्धा से उसके द्वार जाकर उसके दर्शन करो। हे तारणहार ! इस संसार-सागर से तार दो।

ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਚਾਖਿ ਤ੍ਰਿਪਤੀ ਨਾਨਕਾ ਉਰ ਧਾਰਿਆ ॥੪॥੧॥
हरि नामु अम्रितु चाखि त्रिपती नानका उर धारिआ ॥४॥१॥
हे नानक ! जिसने हरि को हृदय में बसा लिया है, वह हरि का नामामृत चखकर तृप्त हो गया है॥ ४॥ १ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥
बिलावलु महला १ ॥
बिलावलु महला १ ॥

ਮੈ ਮਨਿ ਚਾਉ ਘਣਾ ਸਾਚਿ ਵਿਗਾਸੀ ਰਾਮ ॥
मै मनि चाउ घणा साचि विगासी राम ॥
हे सखी ! मेरे मन में बड़ा चाव उत्पन्न हो गया है, मैं सत्य द्वारा खिली रहती हूँ।

ਮੋਹੀ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਰੇ ਪ੍ਰਭਿ ਅਬਿਨਾਸੀ ਰਾਮ ॥
मोही प्रेम पिरे प्रभि अबिनासी राम ॥
अविनाशी प्रभु के प्रेम ने मुझे मोह लिया है।

ਅਵਿਗਤੋ ਹਰਿ ਨਾਥੁ ਨਾਥਹ ਤਿਸੈ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥੀਐ ॥
अविगतो हरि नाथु नाथह तिसै भावै सो थीऐ ॥
अटल परमात्मा नाथों का नाथ है, जो उसे भाता है, वही होता है।

ਕਿਰਪਾਲੁ ਸਦਾ ਦਇਆਲੁ ਦਾਤਾ ਜੀਆ ਅੰਦਰਿ ਤੂੰ ਜੀਐ ॥
किरपालु सदा दइआलु दाता जीआ अंदरि तूं जीऐ ॥
हे दाता ! तू सदैव कृपालु एवं दयालु है और सब जीवों के अन्दर तू ही जीवन रूप में है।

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