ਬਿਲਾਵਲ ਕੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੪
बिलावल की वार महला ४
बिलावल की वार महला ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਹਰਿ ਉਤਮੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਗਾਵਿਆ ਕਰਿ ਨਾਦੁ ਬਿਲਾਵਲੁ ਰਾਗੁ ॥
हरि उतमु हरि प्रभु गाविआ करि नादु बिलावलु रागु ॥
बिलावल राग गा कर हमने तो उत्तम परमात्मा का ही यशोगान किया है।
ਉਪਦੇਸੁ ਗੁਰੂ ਸੁਣਿ ਮੰਨਿਆ ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਪੂਰਾ ਭਾਗੁ ॥
उपदेसु गुरू सुणि मंनिआ धुरि मसतकि पूरा भागु ॥
गुरु के उपदेश को सुनकर मन में धारण कर लिया है, पूर्ण भाग्य उदय हो गया है।
ਸਭ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਗੁਣ ਉਚਰੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਉਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੁ ॥
सभ दिनसु रैणि गुण उचरै हरि हरि हरि उरि लिव लागु ॥
मैं दिन-रात उसका गुणानुवाद करता हूँ और हृदय में हरि-नाम की ही लगन लगी रहती है।
ਸਭੁ ਤਨੁ ਮਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਇਆ ਮਨੁ ਖਿੜਿਆ ਹਰਿਆ ਬਾਗੁ ॥
सभु तनु मनु हरिआ होइआ मनु खिड़िआ हरिआ बागु ॥
मेरा तन-मन खिल गया है, हृदय रूपी वाटिका भी खिलकर खुशहाल हो गई है।
ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰਾ ਮਿਟਿ ਗਇਆ ਗੁਰ ਚਾਨਣੁ ਗਿਆਨੁ ਚਰਾਗੁ ॥
अगिआनु अंधेरा मिटि गइआ गुर चानणु गिआनु चरागु ॥
गुरु के ज्ञान रूपी चिराग का प्रकाश होने से अज्ञान रूपी अंधेरा मिट गया है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਜੀਵੈ ਦੇਖਿ ਹਰਿ ਇਕ ਨਿਮਖ ਘੜੀ ਮੁਖਿ ਲਾਗੁ ॥੧॥
जनु नानकु जीवै देखि हरि इक निमख घड़ी मुखि लागु ॥१॥
नानक तो हरि को देखकर ही जीवन पा रहा है, हे हरि ! एक निमिष एवं एक घड़ी के लिए दर्शन दे दो ॥१॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਤਬ ਹੀ ਕੀਜੀਐ ਜਬ ਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਨਾਮੁ ॥
बिलावलु तब ही कीजीऐ जब मुखि होवै नामु ॥
बिलावल राग तब ही गाना चाहिए, जब मुख में परमात्मा का नाम हो ।
ਰਾਗ ਨਾਦ ਸਬਦਿ ਸੋਹਣੇ ਜਾ ਲਾਗੈ ਸਹਜਿ ਧਿਆਨੁ ॥
राग नाद सबदि सोहणे जा लागै सहजि धिआनु ॥
शब्द द्वारा राग एवं नाद तभी सुन्दर लगते हैं, जब सहज परमात्मा में ध्यान लगता है।
ਰਾਗ ਨਾਦ ਛੋਡਿ ਹਰਿ ਸੇਵੀਐ ਤਾ ਦਰਗਹ ਪਾਈਐ ਮਾਨੁ ॥
राग नाद छोडि हरि सेवीऐ ता दरगह पाईऐ मानु ॥
यदि राग एवं नाद को छोड़कर भगवान की सेवा की जाए तो ही दरबार में आदर प्राप्त होता है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰੀਐ ਚੂਕੈ ਮਨਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥੨॥
नानक गुरमुखि ब्रहमु बीचारीऐ चूकै मनि अभिमानु ॥२॥
हे नानक ! गुरुमुख बनकर ब्रह्म का चिन्तन करने से मन का अभिमान दूर हो जाता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਤੂ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ਅਗੰਮੁ ਹੈ ਸਭਿ ਤੁਧੁ ਉਪਾਇਆ ॥
तू हरि प्रभु आपि अगमु है सभि तुधु उपाइआ ॥
हे प्रभु! तू अगम्य है और तूने ही सब उत्पन्न किया है।
ਤੂ ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਸਬਾਇਆ ॥
तू आपे आपि वरतदा सभु जगतु सबाइआ ॥
यह जितना भी जगत् नजर आ रहा है, तू स्वयं ही इसमें व्याप्त हो रहा है।
ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਤਾੜੀ ਲਾਈਐ ਆਪੇ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
तुधु आपे ताड़ी लाईऐ आपे गुण गाइआ ॥
तूने स्वयं ही समाधि लगाई है और स्वयं ही गुणगान कर रहा है।
ਹਰਿ ਧਿਆਵਹੁ ਭਗਤਹੁ ਦਿਨਸੁ ਰਾਤਿ ਅੰਤਿ ਲਏ ਛਡਾਇਆ ॥
हरि धिआवहु भगतहु दिनसु राति अंति लए छडाइआ ॥
हे भक्तजनों ! दिन-रात परमात्मा का ध्यान करते रहो, अंत में वही मुक्त करवाता है।
ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧॥
जिनि सेविआ तिनि सुखु पाइआ हरि नामि समाइआ ॥१॥
जिसने भी उसकी सेवा की है, उसने ही सुख पाया है और वह हरि-नाम में ही विलीन हो गया है।l १॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਬਿਲਾਵਲੁ ਨ ਹੋਵਈ ਮਨਮੁਖਿ ਥਾਇ ਨ ਪਾਇ ॥
दूजै भाइ बिलावलु न होवई मनमुखि थाइ न पाइ ॥
द्वैतभाव में पड़कर बिलावल राग गाना असंभव है तथा मनमुखी जीव को कहीं भी ठिकाना नहीं मिलता।
ਪਾਖੰਡਿ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਵਈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
पाखंडि भगति न होवई पारब्रहमु न पाइआ जाइ ॥
पाखण्ड करने से भक्ति नहीं हो सकती और न ही परब्रह्म को पाया जा सकता है।
ਮਨਹਠਿ ਕਰਮ ਕਮਾਵਣੇ ਥਾਇ ਨ ਕੋਈ ਪਾਇ ॥
मनहठि करम कमावणे थाइ न कोई पाइ ॥
मन के हठ से कर्म करने से सफलता नहीं मिलती।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਬੀਚਾਰੀਐ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥
नानक गुरमुखि आपु बीचारीऐ विचहु आपु गवाइ ॥
हे नानक ! जो व्यक्ति गुरु के सान्निध्य में आत्म-चिंतन करता है, वह अपने अहंत्व को मिटा देता है।
ਆਪੇ ਆਪਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਹੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਆਇ ॥
आपे आपि पारब्रहमु है पारब्रहमु वसिआ मनि आइ ॥
वह परब्रह्म स्वयं ही सबकुछ है और वही मन में आकर बस गया है।
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣਾ ਕਟਿਆ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਇ ॥੧॥
जमणु मरणा कटिआ जोती जोति मिलाइ ॥१॥
उसका जन्म-मरण मिट गया है और आत्म-ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो गई है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਕਰਿਹੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਪਿਆਰਿਹੋ ਏਕਸੁ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
बिलावलु करिहु तुम्ह पिआरिहो एकसु सिउ लिव लाइ ॥
हे प्रियजनों ! तुम बिलावल राग गायन करो, एक परमात्मा के साथ लगन लगाओ।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਕਟੀਐ ਸਚੇ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥
जनम मरण दुखु कटीऐ सचे रहै समाइ ॥
इस तरह जन्म-मरण का दुख समाप्त हो जाएगा और तुम सत्य में विलीन रहोगे।
ਸਦਾ ਬਿਲਾਵਲੁ ਅਨੰਦੁ ਹੈ ਜੇ ਚਲਹਿ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਇ ॥
सदा बिलावलु अनंदु है जे चलहि सतिगुर भाइ ॥
यदि सतगुरु की रज़ानुसार चला जाए तो बिलावल राग द्वारा सदैव आनंद बना रहता है।
ਸਤਸੰਗਤੀ ਬਹਿ ਭਾਉ ਕਰਿ ਸਦਾ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥
सतसंगती बहि भाउ करि सदा हरि के गुण गाइ ॥
सत्संग में मिलकर निष्ठापूर्वक सदैव परमात्मा का गुणगान करो।
ਨਾਨਕ ਸੇ ਜਨ ਸੋਹਣੇ ਜਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇ ॥੨॥
नानक से जन सोहणे जि गुरमुखि मेलि मिलाइ ॥२॥
हे नानक ! वही जीव सुन्दर हैं, जो गुरुमुख बनकर प्रभु से मिले रहते हैं।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਸਭਨਾ ਜੀਆ ਵਿਚਿ ਹਰਿ ਆਪਿ ਸੋ ਭਗਤਾ ਕਾ ਮਿਤੁ ਹਰਿ ॥
सभना जीआ विचि हरि आपि सो भगता का मितु हरि ॥
सभी जीवों में बसने वाला हरि ही भक्तजनों का घनिष्ठ मित्र है।
ਸਭੁ ਕੋਈ ਹਰਿ ਕੈ ਵਸਿ ਭਗਤਾ ਕੈ ਅਨੰਦੁ ਘਰਿ ॥
सभु कोई हरि कै वसि भगता कै अनंदु घरि ॥
सबकुछ ईश्वर के वश में है और भक्तों के घर में सदैव आनंद बना रहता है।
ਹਰਿ ਭਗਤਾ ਕਾ ਮੇਲੀ ਸਰਬਤ ਸਉ ਨਿਸੁਲ ਜਨ ਟੰਗ ਧਰਿ ॥
हरि भगता का मेली सरबत सउ निसुल जन टंग धरि ॥
हरि अपने भक्तों का शुभचिंतक है और उसके भक्तजन टांग पर टांग रखकर अर्थात् बेफिक्र होकर रहते हैं।
ਹਰਿ ਸਭਨਾ ਕਾ ਹੈ ਖਸਮੁ ਸੋ ਭਗਤ ਜਨ ਚਿਤਿ ਕਰਿ ॥
हरि सभना का है खसमु सो भगत जन चिति करि ॥
यह सबका मालिक है, इसलिए भक्तजन उसे ही स्मरण करते रहते हैं।
ਤੁਧੁ ਅਪੜਿ ਕੋਇ ਨ ਸਕੈ ਸਭ ਝਖਿ ਝਖਿ ਪਵੈ ਝੜਿ ॥੨॥
तुधु अपड़ि कोइ न सकै सभ झखि झखि पवै झड़ि ॥२॥
कोई सामान्य जीव भी उसके पास पहुँच नहीं सकता अपितु ख्वार होकर नाश हो जाता है॥ २॥