Hindi Page 863

ਲਾਲ ਨਾਮ ਜਾ ਕੈ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥
लाल नाम जा कै भरे भंडार ॥
उसके नाम रूपी रत्नों के भण्डार भरे हुए हैं।

ਸਗਲ ਘਟਾ ਦੇਵੈ ਆਧਾਰ ॥੩॥
सगल घटा देवै आधार ॥३॥
वह सब जीवों को आधार देता है॥ ३॥

ਸਤਿ ਪੁਰਖੁ ਜਾ ਕੋ ਹੈ ਨਾਉ ॥
सति पुरखु जा को है नाउ ॥
जिसका नाम सत्यपुरुष है,

ਮਿਟਹਿ ਕੋਟਿ ਅਘ ਨਿਮਖ ਜਸੁ ਗਾਉ ॥
मिटहि कोटि अघ निमख जसु गाउ ॥
पल भर उसका यशगान करने से करोड़ों ही पाप मिट जाते हैं।

ਬਾਲ ਸਖਾਈ ਭਗਤਨ ਕੋ ਮੀਤ ॥
बाल सखाई भगतन को मीत ॥
वह बालसखा एवं भक्तजनों का घनिष्ठ मित्र है।

ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ਨਾਨਕ ਹਿਤ ਚੀਤ ॥੪॥੧॥੩॥
प्रान अधार नानक हित चीत ॥४॥१॥३॥
एकमात्र वही नानक का प्राणाधार एवं शुभचिन्तक है॥ ४॥ १॥ ३॥

ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५ ॥

ਨਾਮ ਸੰਗਿ ਕੀਨੋ ਬਿਉਹਾਰੁ ॥
नाम संगि कीनो बिउहारु ॥
नाम से व्यापार किया है और

ਨਾਮੋੁ ਹੀ ਇਸੁ ਮਨ ਕਾ ਅਧਾਰੁ ॥
नामो ही इसु मन का अधारु ॥
नाम ही इस मन का आधार है।

ਨਾਮੋ ਹੀ ਚਿਤਿ ਕੀਨੀ ਓਟ ॥
नामो ही चिति कीनी ओट ॥
नाम को अपने चित्त का सहारा बना लिया है।

ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਿਟਹਿ ਪਾਪ ਕੋਟਿ ॥੧॥
नामु जपत मिटहि पाप कोटि ॥१॥
नाम जपने से करोड़ों ही पाप मिट जाते हैं।॥ १॥

ਰਾਸਿ ਦੀਈ ਹਰਿ ਏਕੋ ਨਾਮੁ ॥
रासि दीई हरि एको नामु ॥
ईश्वर ने मुझे केवल नाम की ही राशि दी है।

ਮਨ ਕਾ ਇਸਟੁ ਗੁਰ ਸੰਗਿ ਧਿਆਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मन का इसटु गुर संगि धिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
मन का इष्ट यही है कि गुरु के साथ मिलकर नाम का ध्यान किया जाए॥ १॥ रहाउ ॥

ਨਾਮੁ ਹਮਾਰੇ ਜੀਅ ਕੀ ਰਾਸਿ ॥
नामु हमारे जीअ की रासि ॥
परमात्मा का नाम ही हमारे जीवन की राशि है।

ਨਾਮੋ ਸੰਗੀ ਜਤ ਕਤ ਜਾਤ ॥
नामो संगी जत कत जात ॥
नाम मेरा साथी है और जहाँ कहीं भी जाता हूँ, मेरे साथ जाता है।

ਨਾਮੋ ਹੀ ਮਨਿ ਲਾਗਾ ਮੀਠਾ ॥
नामो ही मनि लागा मीठा ॥
परमात्मा का नाम मेरे मन में मीठा लग गया है और

ਜਲਿ ਥਲਿ ਸਭ ਮਹਿ ਨਾਮੋ ਡੀਠਾ ॥੨॥
जलि थलि सभ महि नामो डीठा ॥२॥
जल एवं धरती सबमें मैंने नाम ही देखा है॥ २॥

ਨਾਮੇ ਦਰਗਹ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ॥
नामे दरगह मुख उजले ॥
नाम द्वारा ही प्रभु-दरबार में शोभा प्राप्त होती है और

ਨਾਮੇ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਉਧਰੇ ॥
नामे सगले कुल उधरे ॥
नाम द्वारा सारी कुल का ही उद्धार हो जाता है।

ਨਾਮਿ ਹਮਾਰੇ ਕਾਰਜ ਸੀਧ ॥
नामि हमारे कारज सीध ॥
नाम ने हमारे सभी कार्य संवार दिए हैं और

ਨਾਮ ਸੰਗਿ ਇਹੁ ਮਨੂਆ ਗੀਧ ॥੩॥
नाम संगि इहु मनूआ गीध ॥३॥
अब मेरा ये मन परमात्मा के नाम से गिझ गया है ॥३॥

ਨਾਮੇ ਹੀ ਹਮ ਨਿਰਭਉ ਭਏ ॥
नामे ही हम निरभउ भए ॥
नाम से हम निडर हो गए हैं और

ਨਾਮੇ ਆਵਨ ਜਾਵਨ ਰਹੇ ॥
नामे आवन जावन रहे ॥
नाम द्वारा हमारा आवागमन मिट गया है।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਮੇਲੇ ਗੁਣਤਾਸ ॥
गुरि पूरै मेले गुणतास ॥
पूर्ण गुरु ने गुणों के भण्डार से मिला दिया है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਖਿ ਸਹਜਿ ਨਿਵਾਸੁ ॥੪॥੨॥੪॥
कहु नानक सुखि सहजि निवासु ॥४॥२॥४॥
हे नानक ! अब सहज सुख में निवास हो गया ॥४॥२॥४॥

ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५ ॥

ਨਿਮਾਨੇ ਕਉ ਜੋ ਦੇਤੋ ਮਾਨੁ ॥
निमाने कउ जो देतो मानु ॥
जो दीन को भी सम्मान देता है,

ਸਗਲ ਭੂਖੇ ਕਉ ਕਰਤਾ ਦਾਨੁ ॥
सगल भूखे कउ करता दानु ॥
सब भूखों को भी भोजन-दान देता है,

ਗਰਭ ਘੋਰ ਮਹਿ ਰਾਖਨਹਾਰੁ ॥
गरभ घोर महि राखनहारु ॥
भयानक गर्भ में भी जीव की रक्षा करने वाला है,

ਤਿਸੁ ਠਾਕੁਰ ਕਉ ਸਦਾ ਨਮਸਕਾਰੁ ॥੧॥
तिसु ठाकुर कउ सदा नमसकारु ॥१॥
उस ईश्वर को हमारा सदा शत् – शत् नमन है॥ १॥

ਐਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਮਨ ਮਾਹਿ ਧਿਆਇ ॥
ऐसो प्रभु मन माहि धिआइ ॥
सो ऐसे प्रभु का मन में ध्यान करते रहो,

ਘਟਿ ਅਵਘਟਿ ਜਤ ਕਤਹਿ ਸਹਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
घटि अवघटि जत कतहि सहाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जो सुख-दुख हर जगह सहायता करता है॥ ५॥ रहाउ ॥

ਰੰਕੁ ਰਾਉ ਜਾ ਕੈ ਏਕ ਸਮਾਨਿ ॥
रंकु राउ जा कै एक समानि ॥
जिसकी दृष्टि में भिखारी एवं राजा एक समान हैं,

ਕੀਟ ਹਸਤਿ ਸਗਲ ਪੂਰਾਨ ॥
कीट हसति सगल पूरान ॥
वह चींटी एवं हाथी सबमें भरपूर है।

ਬੀਓ ਪੂਛਿ ਨ ਮਸਲਤਿ ਧਰੈ ॥
बीओ पूछि न मसलति धरै ॥
वह किसी से पूछकर कोई सलाह नहीं करता।

ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸੁ ਆਪਹਿ ਕਰੈ ॥੨॥
जो किछु करै सु आपहि करै ॥२॥
वह जो कुछ करता है, अपनी मर्जी से ही करता है॥ २॥

ਜਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਨਸਿ ਕੋਇ ॥
जा का अंतु न जानसि कोइ ॥
जिस भगवान का रहस्य कोई नहीं जानता,

ਆਪੇ ਆਪਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸੋਇ ॥
आपे आपि निरंजनु सोइ ॥
वह निरंजन स्वयं ही सबकुछ है।

ਆਪਿ ਅਕਾਰੁ ਆਪਿ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥
आपि अकारु आपि निरंकारु ॥
वह स्वयं ही साकार और स्वयं ही निराकार है।

ਘਟ ਘਟ ਘਟਿ ਸਭ ਘਟ ਆਧਾਰੁ ॥੩॥
घट घट घटि सभ घट आधारु ॥३॥
यह सर्वव्यापक है और सब के जीवन का आधार है। ३ ॥

ਨਾਮ ਰੰਗਿ ਭਗਤ ਭਏ ਲਾਲ ॥
नाम रंगि भगत भए लाल ॥
नाम को रंग में रंगकर भक्त लाल हो गए हैं और

ਜਸੁ ਕਰਤੇ ਸੰਤ ਸਦਾ ਨਿਹਾਲ ॥
जसु करते संत सदा निहाल ॥
संतजन उसका यश करते हुए सदा निहाल रहते हैं।

ਨਾਮ ਰੰਗਿ ਜਨ ਰਹੇ ਅਘਾਇ ॥
नाम रंगि जन रहे अघाइ ॥
नाम के रंग में संतजन तृप्त रहते हैं और

ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਜਨ ਲਾਗੈ ਪਾਇ ॥੪॥੩॥੫॥
नानक तिन जन लागै पाइ ॥४॥३॥५॥
नानक तो उन संतजनों के चरणों में ही लगता है॥ ४॥ ३॥ ५॥

ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गोंड महला ५ ॥
गोंड महला ५ ॥

ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ॥
जा कै संगि इहु मनु निरमलु ॥
जिनके संग रहने से यह मन निर्मल हो जाता है,

ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਨੁ ॥
जा कै संगि हरि हरि सिमरनु ॥
जिनकी संगत में प्रभु का सिमरन होता है,

ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਕਿਲਬਿਖ ਹੋਹਿ ਨਾਸ ॥
जा कै संगि किलबिख होहि नास ॥
जिनकी सुसंगति में सब पाप नाश हो जाते हैं,

ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਰਿਦੈ ਪਰਗਾਸ ॥੧॥
जा कै संगि रिदै परगास ॥१॥
जिनकी संगत में हृदय में प्रकाश हो जाता है॥ १॥

ਸੇ ਸੰਤਨ ਹਰਿ ਕੇ ਮੇਰੇ ਮੀਤ ॥
से संतन हरि के मेरे मीत ॥
वे हरि के संतजन ही मेरे परम मित्र हैं,

ਕੇਵਲ ਨਾਮੁ ਗਾਈਐ ਜਾ ਕੈ ਨੀਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
केवल नामु गाईऐ जा कै नीत ॥१॥ रहाउ ॥
जिनके साथ केवल नाम का ही गुणगान किया जाता है॥ १॥ रहाउ ॥

ਜਾ ਕੈ ਮੰਤ੍ਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ॥
जा कै मंत्रि हरि हरि मनि वसै ॥
जिनके मंत्र द्वारा परमेश्वर मन में आ बसता है,

ਜਾ ਕੈ ਉਪਦੇਸਿ ਭਰਮੁ ਭਉ ਨਸੈ ॥
जा कै उपदेसि भरमु भउ नसै ॥
जिनके उपदेश द्वारा सारे भ्रम एवं भय नाश हो जाते हैं,

ਜਾ ਕੈ ਕੀਰਤਿ ਨਿਰਮਲ ਸਾਰ ॥
जा कै कीरति निरमल सार ॥
जिनके हृदय में प्रभु की निर्मल कीर्ति है,

ਜਾ ਕੀ ਰੇਨੁ ਬਾਂਛੈ ਸੰਸਾਰ ॥੨॥
जा की रेनु बांछै संसार ॥२॥
उनकी चरण-धूलि का सारा संसार ही अभिलाषी है॥ २॥

ਕੋਟਿ ਪਤਿਤ ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਉਧਾਰ ॥
कोटि पतित जा कै संगि उधार ॥
जिनकी सुसंगति द्वारा करोड़ों ही पापियों का उद्धार हो जाता है,

ਏਕੁ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਜਾ ਕੈ ਨਾਮ ਅਧਾਰ ॥
एकु निरंकारु जा कै नाम अधार ॥
एक परमात्मा ही उनके हृदय में बसता है, जिसके नाम का उन्हें आसरा है।

ਸਰਬ ਜੀਆਂ ਕਾ ਜਾਨੈ ਭੇਉ ॥
सरब जीआं का जानै भेउ ॥
वह सब जीवों का भेद जानता है और

ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਨਿਰੰਜਨ ਦੇਉ ॥੩॥
क्रिपा निधान निरंजन देउ ॥३॥
निरंजन परमात्मा कृपा का भण्डार है ॥ ३॥

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਜਬ ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ॥
पारब्रहम जब भए क्रिपाल ॥
जब परब्रह्म कृपालु हुआ

ਤਬ ਭੇਟੇ ਗੁਰ ਸਾਧ ਦਇਆਲ ॥
तब भेटे गुर साध दइआल ॥
तो ही दयालु गुरु-साधु से भेंट हुई।

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