ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
रामकली महला ४ ॥
रामकली महला ४ ॥
ਸਤਗੁਰ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਪ੍ਰਾਣ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥
सतगुर दइआ करहु हरि मेलहु मेरे प्रीतम प्राण हरि राइआ ॥
हे सतगुरु ! दया करो और मुझे मेरे प्रियतम प्राण हरि से मिला दो।
ਹਮ ਚੇਰੀ ਹੋਇ ਲਗਹ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਮਾਰਗੁ ਪੰਥੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥੧॥
हम चेरी होइ लगह गुर चरणी जिनि हरि प्रभ मारगु पंथु दिखाइआ ॥१॥
मैं दासी बनकर गुरु-चरणों में लग गई हूँ, जिसने मुझे प्रभु मिलन का मार्ग दिखाया है॥ १॥
ਰਾਮ ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥
राम मै हरि हरि नामु मनि भाइआ ॥
हे राम ! हरि का नाम ही मेरे मन को भा गया है।
ਮੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਬੇਲੀ ਮੇਰਾ ਪਿਤਾ ਮਾਤਾ ਹਰਿ ਸਖਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मै हरि बिनु अवरु न कोई बेली मेरा पिता माता हरि सखाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
हरि के बिना मेरा अन्य कोई साथी नहीं है और वही मेरा पिता, मेरी माता एवं सच्चा साथी है॥ १॥ रहाउ ॥
ਮੇਰੇ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਪ੍ਰਾਨ ਨ ਰਹਹਿ ਬਿਨੁ ਪ੍ਰੀਤਮ ਬਿਨੁ ਦੇਖੇ ਮਰਹਿ ਮੇਰੀ ਮਾਇਆ ॥
मेरे इकु खिनु प्रान न रहहि बिनु प्रीतम बिनु देखे मरहि मेरी माइआ ॥
हे मेरी माता ! अपने प्रियतम के दर्शनों के बिना मैं एक क्षण भर भी जीवित नहीं रह सकती और उसके बिना मेरे प्राण ही निकल जाते हैं।
ਧਨੁ ਧਨੁ ਵਡ ਭਾਗ ਗੁਰ ਸਰਣੀ ਆਏ ਹਰਿ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥
धनु धनु वड भाग गुर सरणी आए हरि गुर मिलि दरसनु पाइआ ॥२॥
वे मनुष्य भाग्यशाली एवं धन्य हैं, जो गुरु की शरण में आए हैं और गुरु से मिलकर प्रभु दर्शन प्राप्त कर लिए हैं।॥ २॥
ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਸੂਝੈ ਬੂਝੈ ਮਨਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਜਪਉ ਜਪਾਇਆ ॥
मै अवरु न कोई सूझै बूझै मनि हरि जपु जपउ जपाइआ ॥
मुझे अन्य कुछ भी नहीं सूझता और मन तो गुरु का जपाया हरि नाम का जाप ही जपता रहता है।
ਨਾਮਹੀਣ ਫਿਰਹਿ ਸੇ ਨਕਟੇ ਤਿਨ ਘਸਿ ਘਸਿ ਨਕ ਵਢਾਇਆ ॥੩॥
नामहीण फिरहि से नकटे तिन घसि घसि नक वढाइआ ॥३॥
नामहीन द्वार-द्वार फिरने वाले नकटे अर्थात् बेशर्म हैं और उन्होंने रगड़-रगड़ कर अपना नाक कटवा लिया है॥ ३॥
ਮੋ ਕਉ ਜਗਜੀਵਨ ਜੀਵਾਲਿ ਲੈ ਸੁਆਮੀ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਵਸਾਇਆ ॥
मो कउ जगजीवन जीवालि लै सुआमी रिद अंतरि नामु वसाइआ ॥
हे जगत्पालक स्वामी ! मेरे हृदय में नाम बसाकर जीवित कर लो।
ਨਾਨਕ ਗੁਰੂ ਗੁਰੂ ਹੈ ਪੂਰਾ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੪॥੫॥
नानक गुरू गुरू है पूरा मिलि सतिगुर नामु धिआइआ ॥४॥५॥
हे नानक ! मेरा गुरु पूर्ण है, सतगुरु से मिलकर ही नाम का ध्यान किया है॥ ४॥ ५॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
रामकली महला ४ ॥
रामकली महला ४ ॥
ਸਤਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਵਡਾ ਵਡ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਜਿਤੁ ਮਿਲਿਐ ਹਰਿ ਉਰ ਧਾਰੇ ॥
सतगुरु दाता वडा वड पुरखु है जितु मिलिऐ हरि उर धारे ॥
सतगुरु बड़ा दाता एवं महापुरुष है, जिसे मिलकर हरि को हृदय में बसाया जा सकता है।
ਜੀਅ ਦਾਨੁ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਦੀਆ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸਮਾਰੇ ॥੧॥
जीअ दानु गुरि पूरै दीआ हरि अम्रित नामु समारे ॥१॥
पूर्ण गुरु ने मुझे जीवनदान दिया है और हरि के नामामृत का चिंतन करता रहता हूँ॥ १॥
ਰਾਮ ਗੁਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕੰਠਿ ਧਾਰੇ ॥
राम गुरि हरि हरि नामु कंठि धारे ॥
हे राम ! गुरु ने हरि-नाम मेरे कंठ में बसा दिया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਥਾ ਸੁਣੀ ਮਨਿ ਭਾਈ ਧਨੁ ਧਨੁ ਵਡ ਭਾਗ ਹਮਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि कथा सुणी मनि भाई धनु धनु वड भाग हमारे ॥१॥ रहाउ ॥
मैं बड़ा भाग्यशाली एवं धन्य-धन्य हूँ जो गुरु के मुख से हरि-कथा सुनी है और वही मेरे मन को भा गई है॥ १॥ रहाउ॥
ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਤੇਤੀਸ ਧਿਆਵਹਿ ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਵਹਿ ਪਾਰੇ ॥
कोटि कोटि तेतीस धिआवहि ता का अंतु न पावहि पारे ॥
तैतीस करोड़ देवता भी परमात्मा का ध्यान करते हैं लेकिन उन्होंने भी उसका अन्त प्राप्त नहीं किया।
ਹਿਰਦੈ ਕਾਮ ਕਾਮਨੀ ਮਾਗਹਿ ਰਿਧਿ ਮਾਗਹਿ ਹਾਥੁ ਪਸਾਰੇ ॥੨॥
हिरदै काम कामनी मागहि रिधि मागहि हाथु पसारे ॥२॥
वे अपने हृदय में काम के वशीभूत होकर नारी की कामना करते हैं और हाथ फैलाकर ऋद्धियाँ मांगते हैं।॥ २॥
ਹਰਿ ਜਸੁ ਜਪਿ ਜਪੁ ਵਡਾ ਵਡੇਰਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਖਉ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
हरि जसु जपि जपु वडा वडेरा गुरमुखि रखउ उरि धारे ॥
हरि-यश का जाप करो, सब धर्म कर्मों से यही सर्वश्रेष्ठ है तथा गुरुमुख बनकर इसे हृदय में धारण करके रखो।
ਜੇ ਵਡ ਭਾਗ ਹੋਵਹਿ ਤਾ ਜਪੀਐ ਹਰਿ ਭਉਜਲੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੇ ॥੩॥
जे वड भाग होवहि ता जपीऐ हरि भउजलु पारि उतारे ॥३॥
यदि उत्तम भाग्य हों तो हरि का जाप किया जा सकता है, जो भवसागर से पार उतार देता है॥ ३॥
ਹਰਿ ਜਨ ਨਿਕਟਿ ਨਿਕਟਿ ਹਰਿ ਜਨ ਹੈ ਹਰਿ ਰਾਖੈ ਕੰਠਿ ਜਨ ਧਾਰੇ ॥
हरि जन निकटि निकटि हरि जन है हरि राखै कंठि जन धारे ॥
भगवान अपने भक्तों के निकट बसता है और भक्त उसके निकट बसते हैं, वह अपने भक्तों को गले से लगाकर रखता है।
ਨਾਨਕ ਪਿਤਾ ਮਾਤਾ ਹੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਹਮ ਬਾਰਿਕ ਹਰਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੇ ॥੪॥੬॥੧੮॥
नानक पिता माता है हरि प्रभु हम बारिक हरि प्रतिपारे ॥४॥६॥१८॥
हे नानक ! प्रभु ही हमारी माता एवं पिता है, हम उसकी संतान हैं और वही हमारा पोषण करता है॥ ४॥ ६॥ १८ ॥
ਰਾਗੁ ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧
रागु रामकली महला ५ घरु १
रागु रामकली महला ५ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕਿਰਪਾ ਕਰਹੁ ਦੀਨ ਕੇ ਦਾਤੇ ਮੇਰਾ ਗੁਣੁ ਅਵਗਣੁ ਨ ਬੀਚਾਰਹੁ ਕੋਈ ॥
किरपा करहु दीन के दाते मेरा गुणु अवगणु न बीचारहु कोई ॥
हे दीनों के दाता ! कृपा करो, मेरे गुण अवगुण पर कोई विचार मत करो।
ਮਾਟੀ ਕਾ ਕਿਆ ਧੋਪੈ ਸੁਆਮੀ ਮਾਣਸ ਕੀ ਗਤਿ ਏਹੀ ॥੧॥
माटी का किआ धोपै सुआमी माणस की गति एही ॥१॥
हे स्वामी ! मिट्टी को धोने से कोई लाभ नहीं, मनुष्य की हालत भी यही है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
मेरे मन सतिगुरु सेवि सुखु होई ॥
हे मेरे मन ! सतगुरु की सेवा करने से ही सुख हासिल होता है,
ਜੋ ਇਛਹੁ ਸੋਈ ਫਲੁ ਪਾਵਹੁ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਵਿਆਪੈ ਕੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो इछहु सोई फलु पावहु फिरि दूखु न विआपै कोई ॥१॥ रहाउ ॥
जैसी कामना होगी, वही फल मिलेगा और फिर से कोई दुख नहीं लगेगा ॥१॥ रहाउ ॥
ਕਾਚੇ ਭਾਡੇ ਸਾਜਿ ਨਿਵਾਜੇ ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਸਮਾਈ ॥
काचे भाडे साजि निवाजे अंतरि जोति समाई ॥
परमात्मा ने मानव-शरीर रूपी कच्चे बर्तन बनाकर उपकार किया है और उनके अन्तर्मन में उसकी ही ज्योति समाई हुई है।
ਜੈਸਾ ਲਿਖਤੁ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਕਰਤੈ ਹਮ ਤੈਸੀ ਕਿਰਤਿ ਕਮਾਈ ॥੨॥
जैसा लिखतु लिखिआ धुरि करतै हम तैसी किरति कमाई ॥२॥
विधाता ने जैसा हमारा भाग्य लिख दिया है हम वैसा ही कर्म करते हैं।॥ २॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਥਾਪਿ ਕੀਆ ਸਭੁ ਅਪਨਾ ਏਹੋ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ॥
मनु तनु थापि कीआ सभु अपना एहो आवण जाणा ॥
किन्तु जीव ने तन-मन को अपना समझ लिया है, यही जन्म-मरण का कारण है।
ਜਿਨਿ ਦੀਆ ਸੋ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵੈ ਮੋਹਿ ਅੰਧੁ ਲਪਟਾਣਾ ॥੩॥
जिनि दीआ सो चिति न आवै मोहि अंधु लपटाणा ॥३॥
जिसने इतना सुन्दर जीवन दिया है, यह परमेश्वर याद ही नहीं आता, अन्धा इन्सान मोह में ही फंसा हुआ है।॥ ३॥