ਤ੍ਰਿਤੀਅ ਬਿਵਸਥਾ ਸਿੰਚੇ ਮਾਇ ॥
त्रितीअ बिवसथा सिंचे माइ ॥
अपनी उम्र की तीसरी अवस्था में वह धन-दौलत संचित करता रहता है और
ਬਿਰਧਿ ਭਇਆ ਛੋਡਿ ਚਲਿਓ ਪਛੁਤਾਇ ॥੨॥
बिरधि भइआ छोडि चलिओ पछुताइ ॥२॥
जब वह बूढ़ा हो जाता है तो धन इत्यादि सबकुछ छोड़कर पछताता हुआ यहाँ से चला जाता है।॥ २॥
ਚਿਰੰਕਾਲ ਪਾਈ ਦ੍ਰੁਲਭ ਦੇਹ ॥
चिरंकाल पाई द्रुलभ देह ॥
चिरकाल से ही जीव ने दुर्लभ मानव-देह प्राप्त की है,
ਨਾਮ ਬਿਹੂਣੀ ਹੋਈ ਖੇਹ ॥
नाम बिहूणी होई खेह ॥
लेकिन नामविहीन देह मिट्टी हो जाती है।
ਪਸੂ ਪਰੇਤ ਮੁਗਧ ਤੇ ਬੁਰੀ ॥
पसू परेत मुगध ते बुरी ॥
यह मूर्ख पशुओं एवं प्रेत से भी बुरी है
ਤਿਸਹਿ ਨ ਬੂਝੈ ਜਿਨਿ ਏਹ ਸਿਰੀ ॥੩॥
तिसहि न बूझै जिनि एह सिरी ॥३॥
जिसने रचना की है, अगर उसे ही नहीं बूझती है।॥ ३॥
ਸੁਣਿ ਕਰਤਾਰ ਗੋਵਿੰਦ ਗੋਪਾਲ ॥
सुणि करतार गोविंद गोपाल ॥
हे स्रष्टा, हे गोविंद गोपाल ! हमारी विनती सुनो,
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸਦਾ ਕਿਰਪਾਲ ॥
दीन दइआल सदा किरपाल ॥
तू दीनदयाल एवं सदा कृपा का घर है,
ਤੁਮਹਿ ਛਡਾਵਹੁ ਛੁਟਕਹਿ ਬੰਧ ॥
तुमहि छडावहु छुटकहि बंध ॥
जब तू छुड़ाता है तो ही हमारे बंधन छूटते हैं।
ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਵਹੁ ਨਾਨਕ ਜਗ ਅੰਧ ॥੪॥੧੨॥੨੩॥
बखसि मिलावहु नानक जग अंध ॥४॥१२॥२३॥
नानक कहते हैं कि हे परमेश्वर ! यह जगत् अन्धा है, क्षमा करके अपने साथ मिला लो॥४॥१२॥२३॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਕਰਿ ਸੰਜੋਗੁ ਬਨਾਈ ਕਾਛਿ ॥
करि संजोगु बनाई काछि ॥
ईश्वर ने पंच तत्वों के संयोग से यह शरीर बनाया है,
ਤਿਸੁ ਸੰਗਿ ਰਹਿਓ ਇਆਨਾ ਰਾਚਿ ॥
तिसु संगि रहिओ इआना राचि ॥
लेकिन नादान जीव इसके साथ ही लीन रहता है।
ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੈ ਨਿਤ ਸਾਰਿ ਸਮਾਰੈ ॥
प्रतिपारै नित सारि समारै ॥
वह नित्य इसका पोषण एवं देखभाल करता है,
ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਊਠਿ ਸਿਧਾਰੈ ॥੧॥
अंत की बार ऊठि सिधारै ॥१॥
लेकिन अन्तिम समय यह शरीर छोड़कर चला जाता है॥ १॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸਭੁ ਝੂਠੁ ਪਰਾਨੀ ॥
नाम बिना सभु झूठु परानी ॥
हे प्राणी, नाम के बिना सब झूठ ही है।
ਗੋਵਿਦ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਅਵਰ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਤੇ ਸਭਿ ਮਾਇਆ ਮੂਠੁ ਪਰਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गोविद भजन बिनु अवर संगि राते ते सभि माइआ मूठु परानी ॥१॥ रहाउ ॥
गोविन्द के भजन के बिना जो प्राणी सांसारिक पदार्थों में ही लीन हैं, उन सब को माया ने ठग लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਤੀਰਥ ਨਾਇ ਨ ਉਤਰਸਿ ਮੈਲੁ ॥
तीरथ नाइ न उतरसि मैलु ॥
तीर्थों पर स्नान करने से भी मन की मैल नहीं उतरती और
ਕਰਮ ਧਰਮ ਸਭਿ ਹਉਮੈ ਫੈਲੁ ॥
करम धरम सभि हउमै फैलु ॥
सभी धर्म-कर्म अहंत्व का प्रसार है।
ਲੋਕ ਪਚਾਰੈ ਗਤਿ ਨਹੀ ਹੋਇ ॥
लोक पचारै गति नही होइ ॥
लोक-दिखावा करने से गति नहीं होती और
ਨਾਮ ਬਿਹੂਣੇ ਚਲਸਹਿ ਰੋਇ ॥੨॥
नाम बिहूणे चलसहि रोइ ॥२॥
नामविहीन जीव रोता हुआ यहाँ से चल देता है॥ २॥
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨ ਟੂਟਸਿ ਪਟਲ ॥
बिनु हरि नाम न टूटसि पटल ॥
हरि-नाम के बिना अहं के कपाट नहीं टूटते,”
ਸੋਧੇ ਸਾਸਤ੍ਰ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਗਲ ॥
सोधे सासत्र सिम्रिति सगल ॥
सभी शास्त्रों एवं स्मृतियों का भलीभांति विश्लेषण करके देख लिया है
ਸੋ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਜਪਾਏ ॥
सो नामु जपै जिसु आपि जपाए ॥
वही मनुष्य नाम जपता है, जिससे ईश्वर स्वयं जाप करवाता है।
ਸਗਲ ਫਲਾ ਸੇ ਸੂਖਿ ਸਮਾਏ ॥੩॥
सगल फला से सूखि समाए ॥३॥
इस प्रकार जीव सभी फल पाकर सुखी रहता है॥ ३॥
ਰਾਖਨਹਾਰੇ ਰਾਖਹੁ ਆਪਿ ॥
राखनहारे राखहु आपि ॥
हे दुनिया के रखवाले, हमारी रक्षा करो;
ਸਗਲ ਸੁਖਾ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰੈ ਹਾਥਿ ॥
सगल सुखा प्रभ तुमरै हाथि ॥
हे प्रभु! जीवन के तमाम सुख तेरे ही हाथ में हैं।
ਜਿਤੁ ਲਾਵਹਿ ਤਿਤੁ ਲਾਗਹ ਸੁਆਮੀ ॥
जितु लावहि तितु लागह सुआमी ॥
हे स्वामी ! तू जिधर लगाता है, हम उधर ही लग जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੪॥੧੩॥੨੪॥
नानक साहिबु अंतरजामी ॥४॥१३॥२४॥
हे नानक ! मेरा मालिक अन्तर्यामी है॥ ४॥ १३॥ २४॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸੋਈ ਸੁਖੁ ਜਾਨਾ ॥
जो किछु करै सोई सुखु जाना ॥
परमेश्वर जो कुछ भी करता है, उसे ही सुख मान लिया है।
ਮਨੁ ਅਸਮਝੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਪਤੀਆਨਾ ॥
मनु असमझु साधसंगि पतीआना ॥
नासमझ मन सत्संगति में प्रसन्न हो गया है।
ਡੋਲਨ ਤੇ ਚੂਕਾ ਠਹਰਾਇਆ ॥
डोलन ते चूका ठहराइआ ॥
अब यह डोलता नहीं, अपितु स्थिर हो गया है।
ਸਤਿ ਮਾਹਿ ਲੇ ਸਤਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧॥
सति माहि ले सति समाइआ ॥१॥
यह मन सत्य का चिंतन करके सत्य में ही विलीन हो गया है॥ १॥
ਦੂਖੁ ਗਇਆ ਸਭੁ ਰੋਗੁ ਗਇਆ ॥
दूखु गइआ सभु रोगु गइआ ॥
मेरा दुख एवं सारा रोग दूर हो गया है,
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਆਗਿਆ ਮਨ ਮਹਿ ਮਾਨੀ ਮਹਾ ਪੁਰਖ ਕਾ ਸੰਗੁ ਭਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रभ की आगिआ मन महि मानी महा पुरख का संगु भइआ ॥१॥ रहाउ ॥
जब से प्रभु की आज्ञा मन में मानी है, महापुरुषों का साथ भी मिल गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਗਲ ਪਵਿਤ੍ਰ ਸਰਬ ਨਿਰਮਲਾ ॥
सगल पवित्र सरब निरमला ॥
सब कार्य पवित्र हो गए हैं और सबकुछ निर्मल हो गया है।
ਜੋ ਵਰਤਾਏ ਸੋਈ ਭਲਾ ॥
जो वरताए सोई भला ॥
जो कुछ प्रभु करता है, वही मेरे लिए भला है।
ਜਹ ਰਾਖੈ ਸੋਈ ਮੁਕਤਿ ਥਾਨੁ ॥
जह राखै सोई मुकति थानु ॥
वह जहाँ भी मुझे रखता है, वही मुक्ति का स्थान है।
ਜੋ ਜਪਾਏ ਸੋਈ ਨਾਮੁ ॥੨॥
जो जपाए सोई नामु ॥२॥
जो वह जपाता है, वही उसका नाम है॥ २॥
ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਜਹ ਸਾਧ ਪਗ ਧਰਹਿ ॥
अठसठि तीरथ जह साध पग धरहि ॥
जिस स्थान पर साधु अपने चरण रखते हैं, वह अड़सठ तीर्थ बन जाता है।
ਤਹ ਬੈਕੁੰਠੁ ਜਹ ਨਾਮੁ ਉਚਰਹਿ ॥
तह बैकुंठु जह नामु उचरहि ॥
जहाँ भी वे प्रभु-नाम का उच्चारण करते हैं, वही वैकुण्ठ बन जाता है।
ਸਰਬ ਅਨੰਦ ਜਬ ਦਰਸਨੁ ਪਾਈਐ ॥
सरब अनंद जब दरसनु पाईऐ ॥
जब उनके दर्शन प्राप्त होते हैं तो बड़ा आनंद मिलता है।
ਰਾਮ ਗੁਣਾ ਨਿਤ ਨਿਤ ਹਰਿ ਗਾਈਐ ॥੩॥
राम गुणा नित नित हरि गाईऐ ॥३॥
वे तो नित्य ही प्रभु का गुणगान करते रहते हैं।॥ ३॥
ਆਪੇ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਹਿਆ ਬਿਆਪਿ ॥
आपे घटि घटि रहिआ बिआपि ॥
उस दयालु सत्यपुरुष का प्रताप सारे विश्व में फैला हुआ है,”
ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਪਰਗਟ ਪਰਤਾਪ ॥
दइआल पुरख परगट परताप ॥
जो परमात्मा सर्वव्यापक है।
ਕਪਟ ਖੁਲਾਨੇ ਭ੍ਰਮ ਨਾਠੇ ਦੂਰੇ ॥
कपट खुलाने भ्रम नाठे दूरे ॥
मन के सारे कपाट खुल गए और सारे भ्रम दूर हो गए हैं
ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਪੂਰੇ ॥੪॥੧੪॥੨੫॥
नानक कउ गुर भेटे पूरे ॥४॥१४॥२५॥
जब नानक की पूर्ण गुरु से भेंट हुई है ४॥ १४॥ २५॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਕੋਟਿ ਜਾਪ ਤਾਪ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥
कोटि जाप ताप बिस्राम ॥
उसे करोड़ों ही जप-तप का फल मिल जाता है,
ਰਿਧਿ ਬੁਧਿ ਸਿਧਿ ਸੁਰ ਗਿਆਨ ॥
रिधि बुधि सिधि सुर गिआन ॥
ऋद्धियाँ-सिद्धियों, बुद्धि एवं दैवीय ज्ञान की उसे प्राप्ति हो जाती है और
ਅਨਿਕ ਰੂਪ ਰੰਗ ਭੋਗ ਰਸੈ ॥
अनिक रूप रंग भोग रसै ॥
वह अनेक प्रकार के रूप-रंग एवं रसों को भोगता रहता है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਨਿਮਖ ਰਿਦੈ ਵਸੈ ॥੧॥
गुरमुखि नामु निमख रिदै वसै ॥१॥
जिस गुरुमुख के हृदय में पल भर के लिए नाम स्थित हो जाता है ॥ १॥
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
हरि के नाम की वडिआई ॥
हरि के नाम की ऐसी कीर्ति है,
ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कीमति कहणु न जाई ॥१॥ रहाउ ॥
जिसकी कीमत को आंका नहीं जा सकता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੂਰਬੀਰ ਧੀਰਜ ਮਤਿ ਪੂਰਾ ॥
सूरबीर धीरज मति पूरा ॥
वही व्यक्ति शूरवीर, धैर्यवान एवं बुद्धिमान है,