ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਬਿਵਰਜਿ ਸਮਾਏ ॥
माइआ मोहु बिवरजि समाए ॥
मोह माया को रोक कर ही मन नाम में लीन होता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੈ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥
सतिगुरु भेटै मेलि मिलाए ॥
यदि सच्चा गुरु मिल जाए तो वह जीव को अपनी संगति में रखकर परमात्मा से मिला देता है।
ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਨਿਰਮੋਲਕੁ ਹੀਰਾ ॥
नामु रतनु निरमोलकु हीरा ॥
नाम रूपी रत्न अमूल्य हीरा है और
ਤਿਤੁ ਰਾਤਾ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥੨॥
तितु राता मेरा मनु धीरा ॥२॥
मेरा मन धैर्यवान होकर उसमें ही लीन हो गया है॥ २॥
ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਰੋਗੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥
हउमै ममता रोगु न लागै ॥
राम की भक्ति करने से अहम् एवं ममता का रोग नहीं लगता और
ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਜਮ ਕਾ ਭਉ ਭਾਗੈ ॥
राम भगति जम का भउ भागै ॥
यम का भय दूर हो जाता है।
ਜਮੁ ਜੰਦਾਰੁ ਨ ਲਾਗੈ ਮੋਹਿ ॥
जमु जंदारु न लागै मोहि ॥
निर्दयी यमदूत निकट नहीं आते
ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਹਰਿ ਸੋਹਿ ॥੩॥
निरमल नामु रिदै हरि सोहि ॥३॥
मेरे ह्रदय में परमात्मा का निर्मल नाम शोभा दे रहा है ॥३॥
ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰਿ ਭਏ ਨਿਰੰਕਾਰੀ ॥
सबदु बीचारि भए निरंकारी ॥
शब्द का चिन्तन करके निरंकारी हो गए हैं।
ਗੁਰਮਤਿ ਜਾਗੇ ਦੁਰਮਤਿ ਪਰਹਾਰੀ ॥
गुरमति जागे दुरमति परहारी ॥
अज्ञान की निद्रा में सोया हुआ मन गुरुमत द्वारा जाग गया है और दुर्मति दूर हो गई है।
ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗਿ ਰਹੇ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
अनदिनु जागि रहे लिव लाई ॥
अब दिन-रात सचेत होकर परमात्मा में ध्यान लगा रहता है।
ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਗਤਿ ਅੰਤਰਿ ਪਾਈ ॥੪॥
जीवन मुकति गति अंतरि पाई ॥४॥
अब जीवन से मुक्ति प्राप्त हो गई है ॥४॥
ਅਲਿਪਤ ਗੁਫਾ ਮਹਿ ਰਹਹਿ ਨਿਰਾਰੇ ॥
अलिपत गुफा महि रहहि निरारे ॥
जो जीवात्मा देहि रूपी गुफा में मोह-माया से अलिप्त एवं निराला रहती है और
ਤਸਕਰ ਪੰਚ ਸਬਦਿ ਸੰਘਾਰੇ ॥
तसकर पंच सबदि संघारे ॥
शब्द द्वारा काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार रूपी पाँच तस्करों को समाप्त कर देती है।
ਪਰ ਘਰ ਜਾਇ ਨ ਮਨੁ ਡੋਲਾਏ ॥
पर घर जाइ न मनु डोलाए ॥
उसका मन इधर-उधर नहीं भटकता और माया एवं विकारों के घर में नहीं जाता।
ਸਹਜ ਨਿਰੰਤਰਿ ਰਹਉ ਸਮਾਏ ॥੫॥
सहज निरंतरि रहउ समाए ॥५॥
वह सहज ही सत्य में समाया रहता है।॥ ५ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਗਿ ਰਹੇ ਅਉਧੂਤਾ ॥
गुरमुखि जागि रहे अउधूता ॥
जो गुरु से उपदेश लेकर जाग्रत रहता है,वही अवधूत है।
ਸਦ ਬੈਰਾਗੀ ਤਤੁ ਪਰੋਤਾ ॥
सद बैरागी ततु परोता ॥
वह सदैव वैरागी है, जिसने परमतत्व प्रभु को मन में बसा लिया है।
ਜਗੁ ਸੂਤਾ ਮਰਿ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥
जगु सूता मरि आवै जाइ ॥
जगत् अज्ञान की निद्रा में सोया रहता है, इसलिए आवागमन में पड़ा रहता हैं।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦ ਨ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥੬॥
बिनु गुर सबद न सोझी पाइ ॥६॥
शब्द-गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता ॥ ६॥
ਅਨਹਦ ਸਬਦੁ ਵਜੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ॥
अनहद सबदु वजै दिनु राती ॥
दिन-रात अनहद शब्द बजता रहता है,
ਅਵਿਗਤ ਕੀ ਗਤਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤੀ ॥
अविगत की गति गुरमुखि जाती ॥
गुरुमुख ही परमात्मा की गति को जानता है।
ਤਉ ਜਾਨੀ ਜਾ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨੀ ॥
तउ जानी जा सबदि पछानी ॥
जिसने शब्द को पहचान लिया है, उसे ही इस रहस्य का ज्ञान हुआ है कि
ਏਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਨਿਰਬਾਨੀ ॥੭॥
एको रवि रहिआ निरबानी ॥७॥
एक निर्लिप्त परमात्मा कण-कण में विद्यमान है॥ ७ ॥
ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਸਹਜਿ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ॥
सुंन समाधि सहजि मनु राता ॥
मन सहज ही शून्य-समाधि में लीन रहता है।
ਤਜਿ ਹਉ ਲੋਭਾ ਏਕੋ ਜਾਤਾ ॥
तजि हउ लोभा एको जाता ॥
अपने आत्माभिमान एवं लोभ को त्यागकर एक ईश्वर को जान लिया है।
ਗੁਰ ਚੇਲੇ ਅਪਨਾ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥
गुर चेले अपना मनु मानिआ ॥
हे नानक ! जब गुरु के चेले का मन संतुष्ट हो गया तो
ਨਾਨਕ ਦੂਜਾ ਮੇਟਿ ਸਮਾਨਿਆ ॥੮॥੩॥
नानक दूजा मेटि समानिआ ॥८॥३॥
वह द्वैतभाव को मिटाकर सत्य में विलीन हो गया॥ ८॥ ३॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रामकली महला १ ॥
रामकली महला १ ॥
ਸਾਹਾ ਗਣਹਿ ਨ ਕਰਹਿ ਬੀਚਾਰੁ ॥
साहा गणहि न करहि बीचारु ॥
पण्डित शुभ मुहूर्त की गणना करता है, परन्तु यह विचार नहीं करता कि
ਸਾਹੇ ਊਪਰਿ ਏਕੰਕਾਰੁ ॥
साहे ऊपरि एकंकारु ॥
ओंकार मुहूर्त से ऊपर है।
ਜਿਸੁ ਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਸੋਈ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥
जिसु गुरु मिलै सोई बिधि जाणै ॥
जिसे गुरु मिल जाता है, वही मुहूर्त की विधि को जानता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਹੋਇ ਤ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ॥੧॥
गुरमति होइ त हुकमु पछाणै ॥१॥
जब मनुष्य को गुरु उपदेश प्राप्त हो जाता है, तो वह परमात्मा के हुक्म को पहचान लेता है। १॥
ਝੂਠੁ ਨ ਬੋਲਿ ਪਾਡੇ ਸਚੁ ਕਹੀਐ ॥
झूठु न बोलि पाडे सचु कहीऐ ॥
हे पण्डित ! कभी झूठ न बोल, सत्य ही कहना चाहिए।
ਹਉਮੈ ਜਾਇ ਸਬਦਿ ਘਰੁ ਲਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउमै जाइ सबदि घरु लहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
जब अहंकार दूर हो जाता है तो शब्द द्वारा सच्चा घर मेिल जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਗਣਿ ਗਣਿ ਜੋਤਕੁ ਕਾਂਡੀ ਕੀਨੀ ॥
गणि गणि जोतकु कांडी कीनी ॥
ज्योतिषी ग्रह-नक्षत्रों की गणना करके कुण्डली बनाता है।
ਪੜੈ ਸੁਣਾਵੈ ਤਤੁ ਨ ਚੀਨੀ ॥
पड़ै सुणावै ततु न चीनी ॥
वह कुण्डली को पढ़-पढ़कर दूसरों को सुनाता है परन्तु परमतत्व को नहीं जानता।
ਸਭਸੈ ਊਪਰਿ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
सभसै ऊपरि गुर सबदु बीचारु ॥
गुरु के शब्द का विचार सबसे ऊपर है।
ਹੋਰ ਕਥਨੀ ਬਦਉ ਨ ਸਗਲੀ ਛਾਰੁ ॥੨॥
होर कथनी बदउ न सगली छारु ॥२॥
में कोई अन्य बात नहीं करता, चूंकि अन्य सबकुछ राख समान है॥ २॥
ਨਾਵਹਿ ਧੋਵਹਿ ਪੂਜਹਿ ਸੈਲਾ ॥
नावहि धोवहि पूजहि सैला ॥
पण्डित नहा-धोकर पत्थरों की मूर्तियों की पूजा करता है किन्तु
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਰਾਤੇ ਮੈਲੋ ਮੈਲਾ ॥
बिनु हरि राते मैलो मैला ॥
परमात्मा के नाम में लीन हुए बिना मन मैला ही रहता है।
ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰਿ ਮਿਲੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਰਥਿ ॥
गरबु निवारि मिलै प्रभु सारथि ॥
घमण्ड को दूर करने से ही जीव को सारथी प्रभु मिलता है।
ਮੁਕਤਿ ਪ੍ਰਾਨ ਜਪਿ ਹਰਿ ਕਿਰਤਾਰਥਿ ॥੩॥
मुकति प्रान जपि हरि किरतारथि ॥३॥
प्राणों को मुक्ति देने वाले एवं कृतार्थ करने वाले परमात्मा को जप लो॥ ३॥
ਵਾਚੈ ਵਾਦੁ ਨ ਬੇਦੁ ਬੀਚਾਰੈ ॥
वाचै वादु न बेदु बीचारै ॥
तू वेदों का तो विचार नहीं करता और वाद-विवाद बारे ही सोचता रहता है।
ਆਪਿ ਡੁਬੈ ਕਿਉ ਪਿਤਰਾ ਤਾਰੈ ॥
आपि डुबै किउ पितरा तारै ॥
तू स्वयं तो डूब रहा है, फिर अपने पूर्वजों को कैसे पार करवा सकता है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਚੀਨੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥
घटि घटि ब्रहमु चीनै जनु कोइ ॥
कोई विरला ही घट-घट में व्यापक ब्रह्म को जानता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਸੋਝੀ ਹੋਇ ॥੪॥
सतिगुरु मिलै त सोझी होइ ॥४॥
जिसे सतिगुरु मिल जाता है, उसे ज्ञान हो जाता है॥ ४॥
ਗਣਤ ਗਣੀਐ ਸਹਸਾ ਦੁਖੁ ਜੀਐ ॥
गणत गणीऐ सहसा दुखु जीऐ ॥
मुहूर्त की गणना करने से सन्देह बना रहता है और दुख भोगना पड़ता है।
ਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣਿ ਪਵੈ ਸੁਖੁ ਥੀਐ ॥
गुर की सरणि पवै सुखु थीऐ ॥
गुरु की शरण में आने से सुख उपलब्ध हो जाता है।
ਕਰਿ ਅਪਰਾਧ ਸਰਣਿ ਹਮ ਆਇਆ ॥
करि अपराध सरणि हम आइआ ॥
अनेक अपराध करके जब हम गुरु की शरण में आ जाते हैं तो
ਗੁਰ ਹਰਿ ਭੇਟੇ ਪੁਰਬਿ ਕਮਾਇਆ ॥੫॥
गुर हरि भेटे पुरबि कमाइआ ॥५॥
पूर्व जन्म में किए शुभ कर्मों के कारण गुरु ईश्वर से मिला देता है॥ ५॥
ਗੁਰ ਸਰਣਿ ਨ ਆਈਐ ਬ੍ਰਹਮੁ ਨ ਪਾਈਐ ॥
गुर सरणि न आईऐ ब्रहमु न पाईऐ ॥
यदि हम गुरु की शरण में नहीं आते तो ब्रहा की प्राप्ति नहीं हो सकती।
ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਈਐ ਜਨਮਿ ਮਰਿ ਆਈਐ ॥
भरमि भुलाईऐ जनमि मरि आईऐ ॥
भ्रमों में भूलकर हम जन्म-मरण के चक्र में ही पड़े रहते हैं।
ਜਮ ਦਰਿ ਬਾਧਉ ਮਰੈ ਬਿਕਾਰੁ ॥
जम दरि बाधउ मरै बिकारु ॥
विकारों के कारण बंधकर यम के द्वार पर मारे जाते हैं।
ਨਾ ਰਿਦੈ ਨਾਮੁ ਨ ਸਬਦੁ ਅਚਾਰੁ ॥੬॥
ना रिदै नामु न सबदु अचारु ॥६॥
न हमारे ह्रदय में नाम बसता है और न ही नेक आचरण बनता है॥ ६॥
ਇਕਿ ਪਾਧੇ ਪੰਡਿਤ ਮਿਸਰ ਕਹਾਵਹਿ ॥
इकि पाधे पंडित मिसर कहावहि ॥
कोई स्वयं को पुरोहित, पण्डित एवं मिश्र कहलवाता है लेकिन
ਦੁਬਿਧਾ ਰਾਤੇ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵਹਿ ॥
दुबिधा राते महलु न पावहि ॥
दुविधा में लीन होकर सत्य को प्राप्त नहीं करते।