ਕਾਇਆ ਨਗਰੀ ਸਬਦੇ ਖੋਜੇ ਨਾਮੁ ਨਵੰ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੨੨॥
काइआ नगरी सबदे खोजे नामु नवं निधि पाई ॥२२॥
जो काया रूपी नगरी में शब्द की खोज करता है, उसे नाम रूपी हो जाती है। २२ ॥
ਮਨਸਾ ਮਾਰਿ ਮਨੁ ਸਹਜਿ ਸਮਾਣਾ ਬਿਨੁ ਰਸਨਾ ਉਸਤਤਿ ਕਰਾਈ ॥੨੩॥
मनसा मारि मनु सहजि समाणा बिनु रसना उसतति कराई ॥२३॥
जब मन अभिलाषा को त्यागकर सहजावस्था में लीन होता है तो बिना रसना के ही परमात्मा की स्तुति करने लगता है॥ २३॥
ਲੋਇਣ ਦੇਖਿ ਰਹੇ ਬਿਸਮਾਦੀ ਚਿਤੁ ਅਦਿਸਟਿ ਲਗਾਈ ॥੨੪॥
लोइण देखि रहे बिसमादी चितु अदिसटि लगाई ॥२४॥
नेत्र हैरान होकर उसकी लीला देख रहे हैं और चित अदृष्य प्रभु के ध्यान में लगा हुआ है॥ २४॥
ਅਦਿਸਟੁ ਸਦਾ ਰਹੈ ਨਿਰਾਲਮੁ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਈ ॥੨੫॥
अदिसटु सदा रहै निरालमु जोती जोति मिलाई ॥२५॥
परमात्मा सदैव अदृष्ट एवं रहता है और ज्योति परमज्योति में मिला ली है॥ २५ ॥
ਹਉ ਗੁਰੁ ਸਾਲਾਹੀ ਸਦਾ ਆਪਣਾ ਜਿਨਿ ਸਾਚੀ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੨੬॥
हउ गुरु सालाही सदा आपणा जिनि साची बूझ बुझाई ॥२६॥
मैं तदैव अपने गुरु की स्तुति हूँ, जिसने सत्य का ज्ञान प्रदान किया है। २६ ॥
ਨਾਨਕੁ ਏਕ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਨਾਵਹੁ ਗਤਿ ਪਤਿ ਪਾਈ ॥੨੭॥੨॥੧੧॥
नानकु एक कहै बेनंती नावहु गति पति पाई ॥२७॥२॥११॥
नानक एक विनती करता है केि नाम से एवं शोभा प्राप्त होती है ॥२७॥२॥११॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
रामकली महला ३ ॥
रामकली महला ३ ॥
ਹਰਿ ਕੀ ਪੂਜਾ ਦੁਲੰਭ ਹੈ ਸੰਤਹੁ ਕਹਣਾ ਕਛੂ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥
हरि की पूजा दुल्मभ है संतहु कहणा कछू न जाई ॥१॥
हे संत पुरुषो ! ईश्वर की पूजा दुर्लभ है और इसकी महिमा के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता॥ १॥
ਸੰਤਹੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪੂਰਾ ਪਾਈ ॥
संतहु गुरमुखि पूरा पाई ॥
हे सज्जनो ! गुरु द्वारा ही पूर्ण प्रभु पाया जा सकता है और
ਨਾਮੋ ਪੂਜ ਕਰਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नामो पूज कराई ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु ने सदा परमेश्वर की पूजा करवाई है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਮੈਲਾ ਸੰਤਹੁ ਕਿਆ ਹਉ ਪੂਜ ਚੜਾਈ ॥੨॥
हरि बिनु सभु किछु मैला संतहु किआ हउ पूज चड़ाई ॥२॥
परमेश्वर के बिना सब कुछ अपवित्र है, फिर उसकी पूजा के लिए क्या अर्पित किया जाए ? ॥ २ ॥
ਹਰਿ ਸਾਚੇ ਭਾਵੈ ਸਾ ਪੂਜਾ ਹੋਵੈ ਭਾਣਾ ਮਨਿ ਵਸਾਈ ॥੩॥
हरि साचे भावै सा पूजा होवै भाणा मनि वसाई ॥३॥
जो सच्चे परमेश्वर को मंजूर है, उसकी रज़ा को मन में बसाना ही वास्तव में उसकी पूजा-अर्चना करना है॥ ३॥
ਪੂਜਾ ਕਰੈ ਸਭੁ ਲੋਕੁ ਸੰਤਹੁ ਮਨਮੁਖਿ ਥਾਇ ਨ ਪਾਈ ॥੪॥
पूजा करै सभु लोकु संतहु मनमुखि थाइ न पाई ॥४॥
हे सज्जनो ! सब लोग पूजा करते हैं, परन्तु मनमुखी जीव की पूजा स्वीकार नहीं होती॥ ४॥
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸੰਤਹੁ ਏਹ ਪੂਜਾ ਥਾਇ ਪਾਈ ॥੫॥
सबदि मरै मनु निरमलु संतहु एह पूजा थाइ पाई ॥५॥
हे संतो ! यदि शब्द द्वारा अहम् को मिटा दिया जाए तो मन निर्मल हो जाता है और यही पूजा ईश्वर को मंजूर होती है॥ ५ ॥
ਪਵਿਤ ਪਾਵਨ ਸੇ ਜਨ ਸਾਚੇ ਏਕ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੬॥
पवित पावन से जन साचे एक सबदि लिव लाई ॥६॥
जो भक्तजन एक शब्द में ध्यान लगाते हैं, वही पवित्र-पावन एवं सत्यशील हैं।॥ ६ ॥
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਹੋਰ ਪੂਜ ਨ ਹੋਵੀ ਭਰਮਿ ਭੁਲੀ ਲੋਕਾਈ ॥੭॥
बिनु नावै होर पूज न होवी भरमि भुली लोकाई ॥७॥
नाम-सिमरन के बिना कोई अन्य पूजा स्वीकार नहीं होती और सारी दुनिया यों ही भ्रम में भूली हुई है॥ ७॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਸੰਤਹੁ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੮॥
गुरमुखि आपु पछाणै संतहु राम नामि लिव लाई ॥८॥
हे संतजनो ! गुरुमुख आत्म-ज्ञान को पहचान लेता है और उसकी राम-नाम में लगन लग जाती है।॥ ८ ॥
ਆਪੇ ਨਿਰਮਲੁ ਪੂਜ ਕਰਾਏ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਥਾਇ ਪਾਈ ॥੯॥
आपे निरमलु पूज कराए गुर सबदी थाइ पाई ॥९॥
ईश्वर स्वयं ही गुरुमुख से पूजा करवाता है और गुरु-शब्द द्वारा उसका जीवन सफल हो जाता है॥ ९ ॥
ਪੂਜਾ ਕਰਹਿ ਪਰੁ ਬਿਧਿ ਨਹੀ ਜਾਣਹਿ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਮਲੁ ਲਾਈ ॥੧੦॥
पूजा करहि परु बिधि नही जाणहि दूजै भाइ मलु लाई ॥१०॥
कुछ लोग पूजा तो करते हैं मगर पूजा की विधि को नहीं जानते, उन्होंने द्वैतभाव में फँसकर मन को अहम् रूपी मैल लगा ली है॥ १० ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੁ ਪੂਜਾ ਜਾਣੈ ਭਾਣਾ ਮਨਿ ਵਸਾਈ ॥੧੧॥
गुरमुखि होवै सु पूजा जाणै भाणा मनि वसाई ॥११॥
जो व्यक्ति गुरुमुख बन जाता है, वह पूजा के तथ्य को जान लेता है और ईश्वरेच्छा को मन में बसा लेता है॥ ११॥
ਭਾਣੇ ਤੇ ਸਭਿ ਸੁਖ ਪਾਵੈ ਸੰਤਹੁ ਅੰਤੇ ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ॥੧੨॥
भाणे ते सभि सुख पावै संतहु अंते नामु सखाई ॥१२॥
हे संतजनो ! ईश्वरेच्छा को मानने से ही सर्वसुख प्राप्त होते हैं और अंत में नाम ही सहायक बन जाता है॥ १२॥
ਅਪਣਾ ਆਪੁ ਨ ਪਛਾਣਹਿ ਸੰਤਹੁ ਕੂੜਿ ਕਰਹਿ ਵਡਿਆਈ ॥੧੩॥
अपणा आपु न पछाणहि संतहु कूड़ि करहि वडिआई ॥१३॥
हे संतो ! जो आत्मज्ञान को नहीं पहचानता, वह झूठी ही प्रशंसा करता है॥ १३॥
ਪਾਖੰਡਿ ਕੀਨੈ ਜਮੁ ਨਹੀ ਛੋਡੈ ਲੈ ਜਾਸੀ ਪਤਿ ਗਵਾਈ ॥੧੪॥
पाखंडि कीनै जमु नही छोडै लै जासी पति गवाई ॥१४॥
पाखण्ड करने से यम उन्हें नहीं छोड़ता और उनका मान-सम्मान छीन कर पकड़ कर ले जाता है।॥ १४॥
ਜਿਨ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਆਪੁ ਪਛਾਣਹਿ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਤਿਨ ਹੀ ਪਾਈ ॥੧੫॥
जिन अंतरि सबदु आपु पछाणहि गति मिति तिन ही पाई ॥१५॥
जिनके अन्तर्मन में शब्द का निवास हो जाता है, वह अपने आत्म-ज्ञान को पहचान लेता है और उसकी परमगति हो जाती है।॥ १५ ॥
ਏਹੁ ਮਨੂਆ ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਲਗਾਵੈ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਈ ॥੧੬॥
एहु मनूआ सुंन समाधि लगावै जोती जोति मिलाई ॥१६॥
यह मन शून्य समाधि लगा लेता है और उसकी ज्योति परमज्योति में विलीन हो जाती है॥ १६॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਹਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮੇਲਾਈ ॥੧੭॥
सुणि सुणि गुरमुखि नामु वखाणहि सतसंगति मेलाई ॥१७॥
सत्संगति में मिलकर गुरुमुख नाम की स्तुति सुनकर दूसरों को भी नाम का ही बखान करते हैं।॥ १७॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਵੈ ਆਪੁ ਗਵਾਵੈ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸੋਭਾ ਪਾਈ ॥੧੮॥
गुरमुखि गावै आपु गवावै दरि साचै सोभा पाई ॥१८॥
गुरुमुख परमात्मा का यशगान करता है और सत्य के दरबार में शोभा का पात्र बनता है॥ १८॥
ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ਸਚੁ ਵਖਾਣੈ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੧੯॥
साची बाणी सचु वखाणै सचि नामि लिव लाई ॥१९॥
गुरु की सच्ची वाणी ने सत्य का ही बखान किया है और सत्य नाम में ही लगन लगाई है॥ १९ ॥
ਭੈ ਭੰਜਨੁ ਅਤਿ ਪਾਪ ਨਿਖੰਜਨੁ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅੰਤਿ ਸਖਾਈ ॥੨੦॥
भै भंजनु अति पाप निखंजनु मेरा प्रभु अंति सखाई ॥२०॥
मेरा प्रभु भयभंजन, पापों का खंडन करने वाला है और अंत में वही हमारा सहायक बनता है। २०॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤੈ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ॥੨੧॥੩॥੧੨॥
सभु किछु आपे आपि वरतै नानक नामि वडिआई ॥२१॥३॥१२॥
हे नानक ! सबकुछ अपने आप ही घटित हो रहा है और नाम से ही शोभा मिलती है॥ २१॥ ३॥ १२॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
रामकली महला ३ ॥
रामकली महला ३ ॥
ਹਮ ਕੁਚਲ ਕੁਚੀਲ ਅਤਿ ਅਭਿਮਾਨੀ ਮਿਲਿ ਸਬਦੇ ਮੈਲੁ ਉਤਾਰੀ ॥੧॥
हम कुचल कुचील अति अभिमानी मिलि सबदे मैलु उतारी ॥१॥
हम बड़े मैले, आचरणहीन एवं अभिमानी थे, पर शब्द-गुरु से मिलकर सारी मैल उतार दी ॥१॥
ਸੰਤਹੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰੀ ॥
संतहु गुरमुखि नामि निसतारी ॥
हे संतजनो ! गुरु ने नाम-सिमरन द्वारा उद्धार कर दिया है।
ਸਚਾ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਕਰਤੈ ਆਪਿ ਸਵਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सचा नामु वसिआ घट अंतरि करतै आपि सवारी ॥१॥ रहाउ ॥
सच्चा-नाम हृदय में स्थित है, कर्तार ने स्वयं ही जीवन-संवार दिया है॥ १॥ रहाउ ॥