ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਪੂਰੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एकु नामु वसिआ घट अंतरि पूरे की वडिआई ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु का नाम हृदय में वास कर गया है, यह पूर्ण गुरु का बड़प्पन है॥ १॥ रहाउ ॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਭੁਗਤਾ ਦੇਦਾ ਰਿਜਕੁ ਸਬਾਈ ॥੨॥
आपे करता आपे भुगता देदा रिजकु सबाई ॥२॥
परमेश्वर स्वयं ही कर्ता, स्वयं ही भोगने वाला है और वह सब जीवों को भोजन देता है। २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਣਾ ਸੋ ਕਰਿ ਰਹਿਆ ਅਵਰੁ ਨ ਕਰਣਾ ਜਾਈ ॥੩॥
जो किछु करणा सो करि रहिआ अवरु न करणा जाई ॥३॥
जो कुछ वह करना चाहता है, वही कर रहा है, उसके अतिरिक्त अन्य कोई भी करने वाला नहीं।॥ ३॥
ਆਪੇ ਸਾਜੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਏ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਧੰਧੈ ਲਾਈ ॥੪॥
आपे साजे स्रिसटि उपाए सिरि सिरि धंधै लाई ॥४॥
वह स्वयं ही सृष्टि की उत्पत्ति करता है और स्वयं ही जीवों को जगत् के कार्यों में लगाता है॥ ४॥
ਤਿਸਹਿ ਸਰੇਵਹੁ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ॥੫॥
तिसहि सरेवहु ता सुखु पावहु सतिगुरि मेलि मिलाई ॥५॥
उसकी उपासना करने से सुख हासिल होता है। सतगुरु जीव को ईश्वर से मिला देता है॥ ५॥
ਆਪਣਾ ਆਪੁ ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖਣਾ ਜਾਈ ॥੬॥
आपणा आपु आपि उपाए अलखु न लखणा जाई ॥६॥
ईश्वर स्वयंभू है और उस अदृष्ट को देखा नहीं जा सकता ॥ ६॥
ਆਪੇ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਲੇ ਆਪੇ ਤਿਸ ਨੋ ਤਿਲੁ ਨ ਤਮਾਈ ॥੭॥
आपे मारि जीवाले आपे तिस नो तिलु न तमाई ॥७॥
वह स्वयं ही मृत्युदाता, स्वयं ही जीवनदाता है और उसे तिल मात्र भी कोई लोभ नहीं ॥ ७ ॥
ਇਕਿ ਦਾਤੇ ਇਕਿ ਮੰਗਤੇ ਕੀਤੇ ਆਪੇ ਭਗਤਿ ਕਰਾਈ ॥੮॥
इकि दाते इकि मंगते कीते आपे भगति कराई ॥८॥
यह सब उसकी ही लीला है कि कोई दानी बना हुआ है, कोई भिखारी है और वह स्वयं ही भक्ति करवाता है॥ ८ ॥
ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨੀ ਏਕੋ ਜਾਤਾ ਸਚੇ ਰਹੇ ਸਮਾਈ ॥੯॥
से वडभागी जिनी एको जाता सचे रहे समाई ॥९॥
जिन्होंने एक परमात्मा को जान लिया है, वे भाग्यशाली हैं और वे सत्य में ही विलीन रहते हैं। ६॥
ਆਪਿ ਸਰੂਪੁ ਸਿਆਣਾ ਆਪੇ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧੦॥
आपि सरूपु सिआणा आपे कीमति कहणु न जाई ॥१०॥
वह स्वयं ही सुन्दर रूप वाला एवं बड़ा बुद्धिमान है और उसकी महिमा की सही कीमत को आंका नहीं जा सकता ॥ १०॥
ਆਪੇ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਅੰਤਰਿ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਈ ॥੧੧॥
आपे दुखु सुखु पाए अंतरि आपे भरमि भुलाई ॥११॥
उसने स्वयं ही जीवों को दुख-सुख प्रदान किया है और स्वयं ही उन्हें भ्रम में भुलाया हुआ है॥ ११॥
ਵਡਾ ਦਾਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਨਿਗੁਰੀ ਅੰਧ ਫਿਰੈ ਲੋਕਾਈ ॥੧੨॥
वडा दाता गुरमुखि जाता निगुरी अंध फिरै लोकाई ॥१२॥
वह बहुत बड़ा दाता है, जिसे गुरुमुख ने पहचान लिया है, किन्तु ज्ञानहीन निगुरी दुनिया इधर-उधर भटक रही है॥ १२॥
ਜਿਨੀ ਚਾਖਿਆ ਤਿਨਾ ਸਾਦੁ ਆਇਆ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੧੩॥
जिनी चाखिआ तिना सादु आइआ सतिगुरि बूझ बुझाई ॥१३॥
जिन्होंने नामामृत को चखा है, उन्हें ही स्वाद आया है और सतिगुरु ने यही ज्ञान दिया है॥ १३॥
ਇਕਨਾ ਨਾਵਹੁ ਆਪਿ ਭੁਲਾਏ ਇਕਨਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੇਇ ਬੁਝਾਈ ॥੧੪॥
इकना नावहु आपि भुलाए इकना गुरमुखि देइ बुझाई ॥१४॥
किसी को परमात्मा ने स्वयं ही नाम से विमुख किया हुआ है और किसी को गुरु के माध्यम से नाम ज्ञान प्रदान किया है॥ १४॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਾਲਾਹਿਹੁ ਸੰਤਹੁ ਤਿਸ ਦੀ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ॥੧੫॥
सदा सदा सालाहिहु संतहु तिस दी वडी वडिआई ॥१५॥
हे सज्जनो ! सदैव परमात्मा का स्तुतिगान करो; उसकी कीर्ति बहुत बड़ी है॥ १५॥
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਰਾਜਾ ਕਰਿ ਤਪਾਵਸੁ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥੧੬॥
तिसु बिनु अवरु न कोई राजा करि तपावसु बणत बणाई ॥१६॥
उसके अतिरिक्त अन्य कोई संसार का राजा नहीं है, उसने स्वयं सबके साथ न्याय का नियम बनाया है॥ १६ ॥
ਨਿਆਉ ਤਿਸੈ ਕਾ ਹੈ ਸਦ ਸਾਚਾ ਵਿਰਲੇ ਹੁਕਮੁ ਮਨਾਈ ॥੧੭॥
निआउ तिसै का है सद साचा विरले हुकमु मनाई ॥१७॥
उसका न्याय सदैव सच्चा है, वह किसी विरले जीव से ही अपना हुक्म मनवाता है॥ १७॥
ਤਿਸ ਨੋ ਪ੍ਰਾਣੀ ਸਦਾ ਧਿਆਵਹੁ ਜਿਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥੧੮॥
तिस नो प्राणी सदा धिआवहु जिनि गुरमुखि बणत बणाई ॥१८॥
हे प्राणी ! सदैव उसका ध्यान करो; जिसने गुरु द्वारा हुक्म पालन का नियम बनाया है॥ १८॥
ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੈ ਸੋ ਜਨੁ ਸੀਝੈ ਜਿਸੁ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਸਾਈ ॥੧੯॥
सतिगुर भेटै सो जनु सीझै जिसु हिरदै नामु वसाई ॥१९॥
वही जीव सफल होता है, जो सतगुरु से साक्षात्कार करता है और जिसके हृदय में नाम स्थित हो जाता है ॥१९॥
ਸਚਾ ਆਪਿ ਸਦਾ ਹੈ ਸਾਚਾ ਬਾਣੀ ਸਬਦਿ ਸੁਣਾਈ ॥੨੦॥
सचा आपि सदा है साचा बाणी सबदि सुणाई ॥२०॥
वह सदैव सत्य एवं शाश्वत है, उसकी वाणी सत्य है और उसका ही शब्द सुनाई देता है॥ २०॥
ਨਾਨਕ ਸੁਣਿ ਵੇਖਿ ਰਹਿਆ ਵਿਸਮਾਦੁ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਰਵਿਆ ਸ੍ਰਬ ਥਾਈ ॥੨੧॥੫॥੧੪॥
नानक सुणि वेखि रहिआ विसमादु मेरा प्रभु रविआ स्रब थाई ॥२१॥५॥१४॥
हे नानक ! यह सुन-देखकर बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि मेरा प्रभु सब स्थानों में मौजूद है॥ २१॥ ५ ॥ १४॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀਆ
रामकली महला ५ असटपदीआ
रामकली महला ५ असटपदीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕਿਨਹੀ ਕੀਆ ਪਰਵਿਰਤਿ ਪਸਾਰਾ ॥
किनही कीआ परविरति पसारा ॥
किसी ने गृहस्थ-जीवन का प्रसार किया हुआ है,
ਕਿਨਹੀ ਕੀਆ ਪੂਜਾ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥
किनही कीआ पूजा बिसथारा ॥
किसी ने पूजा-अर्चना का विस्तार किया हुआ है,
ਕਿਨਹੀ ਨਿਵਲ ਭੁਇਅੰਗਮ ਸਾਧੇ ॥
किनही निवल भुइअंगम साधे ॥
किसी ने निउली कर्म का अभ्यास एवं कुण्डलिनी की साधना की हुई है,
ਮੋਹਿ ਦੀਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਰਾਧੇ ॥੧॥
मोहि दीन हरि हरि आराधे ॥१॥
परन्तु मुझ दीन ने परमेश्वर की ही आराधना की है॥ १॥
ਤੇਰਾ ਭਰੋਸਾ ਪਿਆਰੇ ॥
तेरा भरोसा पिआरे ॥
हे प्यारे प्रभु ! मुझे तेरा ही भरोसा है और
ਆਨ ਨ ਜਾਨਾ ਵੇਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आन न जाना वेसा ॥१॥ रहाउ ॥
कोई आडम्बर जानता ही नहीं ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਿਨਹੀ ਗ੍ਰਿਹੁ ਤਜਿ ਵਣ ਖੰਡਿ ਪਾਇਆ ॥
किनही ग्रिहु तजि वण खंडि पाइआ ॥
किसी ने अपना घर-परिवार छोड़कर जंगल में निवास कर लिया है।
ਕਿਨਹੀ ਮੋਨਿ ਅਉਧੂਤੁ ਸਦਾਇਆ ॥
किनही मोनि अउधूतु सदाइआ ॥
कोई मौनी एवं अवधूत कहला रहा है।
ਕੋਈ ਕਹਤਉ ਅਨੰਨਿ ਭਗਉਤੀ ॥
कोई कहतउ अनंनि भगउती ॥
कोई कहता है कि मैं भगवती देवी का अनन्य उपासक हूँ,”
ਮੋਹਿ ਦੀਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਓਟ ਲੀਤੀ ॥੨॥
मोहि दीन हरि हरि ओट लीती ॥२॥
परन्तु मुझ दीन ने तो परमात्मा का ही सहारा लिया है॥ २॥
ਕਿਨਹੀ ਕਹਿਆ ਹਉ ਤੀਰਥ ਵਾਸੀ ॥
किनही कहिआ हउ तीरथ वासी ॥
किसी ने कहा है कि मैं तीर्थ का वासी हूँ।
ਕੋਈ ਅੰਨੁ ਤਜਿ ਭਇਆ ਉਦਾਸੀ ॥
कोई अंनु तजि भइआ उदासी ॥
कोई अन्न त्यागकर उदासी साधु बन गया है।
ਕਿਨਹੀ ਭਵਨੁ ਸਭ ਧਰਤੀ ਕਰਿਆ ॥
किनही भवनु सभ धरती करिआ ॥
किसी ने सारी धरती का भ्रमण कर लिया है,
ਮੋਹਿ ਦੀਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਰਿ ਪਰਿਆ ॥੩॥
मोहि दीन हरि हरि दरि परिआ ॥३॥
परन्तु में गरीब भगवान के द्वार पर ही आ पड़ा हूँ॥ ३॥
ਕਿਨਹੀ ਕਹਿਆ ਮੈ ਕੁਲਹਿ ਵਡਿਆਈ ॥
किनही कहिआ मै कुलहि वडिआई ॥
किसी ने कहा है कि उच्च कुल के कारण मेरी बड़ी शोभा है,