ਅਪਣੇ ਜੀਅ ਤੈ ਆਪਿ ਸਮ੍ਹਾਲੇ ਆਪਿ ਲੀਏ ਲੜਿ ਲਾਈ ॥੧੫॥
अपणे जीअ तै आपि सम्हाले आपि लीए लड़ि लाई ॥१५॥
परमात्मा अपने जीवों की स्वयं ही देखभाल करता है और स्वयं ही अपने संग लगा लेता है॥ १५॥
ਸਾਚ ਧਰਮ ਕਾ ਬੇੜਾ ਬਾਂਧਿਆ ਭਵਜਲੁ ਪਾਰਿ ਪਵਾਈ ॥੧੬॥
साच धरम का बेड़ा बांधिआ भवजलु पारि पवाई ॥१६॥
गुरु ने सत्य धर्म का बेड़ा बाँधकर अपनी संगत को भवसागर से पार करवा दिया है॥ १६॥
ਬੇਸੁਮਾਰ ਬੇਅੰਤ ਸੁਆਮੀ ਨਾਨਕ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥੧੭॥
बेसुमार बेअंत सुआमी नानक बलि बलि जाई ॥१७॥
जगत् का स्वामी बेशुमार एवं बेअंत है और नानक उस पर बार-बार बलिहारी जाता है॥ १७॥
ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੰਭਉ ਕਲਿ ਅੰਧਕਾਰ ਦੀਪਾਈ ॥੧੮॥
अकाल मूरति अजूनी स्मभउ कलि अंधकार दीपाई ॥१८॥
अकालमूर्ति, अयोनि एवं स्वयंभू ईश्वर ने कलियुग के अज्ञान रूपी अन्धेरे में ज्ञान रूपी दीपक प्रज्वलित कर दिया है।१८ ।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜੀਅਨ ਕਾ ਦਾਤਾ ਦੇਖਤ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਈ ॥੧੯॥
अंतरजामी जीअन का दाता देखत त्रिपति अघाई ॥१९॥
वह अन्तर्यामी सब जीवों का दाता है, जिसके दर्शन करने से पूर्ण तृप्ति प्राप्त होती है॥ १६॥
ਏਕੰਕਾਰੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਨਿਰਭਉ ਸਭ ਜਲਿ ਥਲਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥੨੦॥
एकंकारु निरंजनु निरभउ सभ जलि थलि रहिआ समाई ॥२०॥
वह ओंकार, मायातीत, निर्भय प्रभु जल एवं पृथ्वी में समा रहा है॥ २०॥
ਭਗਤਿ ਦਾਨੁ ਭਗਤਾ ਕਉ ਦੀਨਾ ਹਰਿ ਨਾਨਕੁ ਜਾਚੈ ਮਾਈ ॥੨੧॥੧॥੬॥
भगति दानु भगता कउ दीना हरि नानकु जाचै माई ॥२१॥१॥६॥
हे नानक ! भक्ति का दान ईश्वर ने भक्तों को ही दिया है और वह भी उससे यही याचना करता है॥ २१॥ १॥ ६ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਸਿਖਹੁ ਸਬਦੁ ਪਿਆਰਿਹੋ ਜਨਮ ਮਰਨ ਕੀ ਟੇਕ ॥
सिखहु सबदु पिआरिहो जनम मरन की टेक ॥
हे प्यारे शिष्यो ! शब्द का चिंतन करो; यही जन्म एवं मरण का आसरा है।
ਮੁਖੁ ਊਜਲੁ ਸਦਾ ਸੁਖੀ ਨਾਨਕ ਸਿਮਰਤ ਏਕ ॥੧॥
मुखु ऊजलु सदा सुखी नानक सिमरत एक ॥१॥
हे नानक ! प्रभु का सिमरन करने से मुख उज्ज्वल हो जाता है और जीव सदा सुखी रहता है॥१॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਰਾਤਾ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਬਣਿ ਆਈ ਸੰਤਹੁ ॥੧॥
मनु तनु राता राम पिआरे हरि प्रेम भगति बणि आई संतहु ॥१॥
हे संतजनो ! यह तन-मन राम के प्रेम में ही लीन रहता है और उसकी प्रेम-भक्ति ही अच्छी लगती है।॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਖੇਪ ਨਿਬਾਹੀ ਸੰਤਹੁ ॥
सतिगुरि खेप निबाही संतहु ॥
सतगुरु ने नाम रूपी सौदे का व्यापार करने के लिए अपनी प्रीति निभा दी है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਲਾਹਾ ਦਾਸ ਕਉ ਦੀਆ ਸਗਲੀ ਤ੍ਰਿਸਨ ਉਲਾਹੀ ਸੰਤਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि नामु लाहा दास कउ दीआ सगली त्रिसन उलाही संतहु ॥१॥ रहाउ ॥
हे संतजनो ! उसने हरि-नाम रूपी लाभ अपने दास को दिया है और मन की सारी तृष्णा मिटा दी है॥ १॥ रहाउ॥
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਲਾਲੁ ਇਕੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ਸੰਤਹੁ ॥੨॥
खोजत खोजत लालु इकु पाइआ हरि कीमति कहणु न जाई संतहु ॥२॥
खोजते-खोजते एक बहुमूल्य रत्न प्राप्त हुआ है। हे संतजनो ! उस हरि-नाम रूपी रत्न की सही कीमत आंकी नहीं जा सकती॥ २॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੋ ਧਿਆਨਾ ਸਾਚੈ ਦਰਸਿ ਸਮਾਈ ਸੰਤਹੁ ॥੩॥
चरन कमल सिउ लागो धिआना साचै दरसि समाई संतहु ॥३॥
हे संत पुरुषो ! परमात्मा के चरण-कमल से ध्यान लग गया है और उस सच्चे के दर्शनों में ही विलीन हो गया हूँ॥ ३ ॥
ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਗਾਵਤ ਭਏ ਨਿਹਾਲਾ ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਈ ਸੰਤਹੁ ॥੪॥
गुण गावत गावत भए निहाला हरि सिमरत त्रिपति अघाई संतहु ॥४॥
भगवान का गुणगान कर करके निहाल हो गया हूँ। हे सज्जनो, उसका सिमरन करने से मन तृप्त एवं संतुष्ट हो गया है॥ ४॥
ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਰਵਿਆ ਸਭ ਅੰਤਰਿ ਕਤ ਆਵੈ ਕਤ ਜਾਈ ਸੰਤਹੁ ॥੫॥
आतम रामु रविआ सभ अंतरि कत आवै कत जाई संतहु ॥५॥
हे संत पुरुषो ! सब में ईश्वर ही व्याप्त है, इधर-उधर जाने की आवश्यकता नहीं है॥ ५ ॥
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਹੈ ਭੀ ਹੋਸੀ ਸਭ ਜੀਆ ਕਾ ਸੁਖਦਾਈ ਸੰਤਹੁ ॥੬॥
आदि जुगादी है भी होसी सभ जीआ का सुखदाई संतहु ॥६॥
सब को सुख देने वाला परमात्मा युगों-युगान्तरों से मौजूद है, वह वर्तमान में भी है और भविष्य में भी उसका ही अस्तित्व रहेगा।॥ ६॥
ਆਪਿ ਬੇਅੰਤੁ ਅੰਤੁ ਨਹੀ ਪਾਈਐ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਸਭ ਠਾਈ ਸੰਤਹੁ ॥੭॥
आपि बेअंतु अंतु नही पाईऐ पूरि रहिआ सभ ठाई संतहु ॥७॥
वह बेअंत है, उसका अन्त नहीं पाया जा सकता और वह हर स्थान पर पूर्णतया व्याप्त है ॥७॥
ਮੀਤ ਸਾਜਨ ਮਾਲੁ ਜੋਬਨੁ ਸੁਤ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਬਾਪੁ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ਸੰਤਹੁ ॥੮॥੨॥੭॥
मीत साजन मालु जोबनु सुत हरि नानक बापु मेरी माई संतहु ॥८॥२॥७॥
नानक कहते हैं कि हे संतजनो ! परमेश्वर ही मेरा मित्र, साजन, धन-दौलत, यौवन एवं पुत्र है और वही मेरा माता-पिता है॥ ८ ॥ २॥ ७ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰੀ ॥
मन बच क्रमि राम नामु चितारी ॥
मैं मन, वचन एवं कर्म से राम नाम ही याद करता रहता हूँ।
ਘੂਮਨ ਘੇਰਿ ਮਹਾ ਅਤਿ ਬਿਖੜੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਨਕ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
घूमन घेरि महा अति बिखड़ी गुरमुखि नानक पारि उतारी ॥१॥ रहाउ ॥
हे नानक ! यह जगत् भेंवर की तरह बड़ा कठिन है, लेकिन गुरु ने मेरी जीवन-नैया पार उतार दी है॥ १॥ रहाउ॥
ਅੰਤਰਿ ਸੂਖਾ ਬਾਹਰਿ ਸੂਖਾ ਹਰਿ ਜਪਿ ਮਲਨ ਭਏ ਦੁਸਟਾਰੀ ॥੧॥
अंतरि सूखा बाहरि सूखा हरि जपि मलन भए दुसटारी ॥१॥
मेरे अन्दर-बाहर सुख ही सुख हो गया है, ईश्वर का जाप करने से कामादिक दुष्टों का नाश हो गया है॥ १॥
ਜਿਸ ਤੇ ਲਾਗੇ ਤਿਨਹਿ ਨਿਵਾਰੇ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਅਪਣੀ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥੨॥
जिस ते लागे तिनहि निवारे प्रभ जीउ अपणी किरपा धारी ॥२॥
जिसके हुक्म से ये दुष्ट विकार लगे थे, उसने ही उनको दूर कर दिया है। प्रभु जी ने स्वयं ही अपनी कृपा की है॥ २॥
ਉਧਰੇ ਸੰਤ ਪਰੇ ਹਰਿ ਸਰਨੀ ਪਚਿ ਬਿਨਸੇ ਮਹਾ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥੩॥
उधरे संत परे हरि सरनी पचि बिनसे महा अहंकारी ॥३॥
जो संतजन भगवान की शरण में आ गए हैं, उनका उद्धार हो गया है, किन्तु महा अहंकारी जीवों का विकारों में ही नाश हो गया है॥ ३॥
ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਇਹੁ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਇਕੁ ਕੇਵਲ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੀ ॥੪॥
साधू संगति इहु फलु पाइआ इकु केवल नामु अधारी ॥४॥
साधुओं की संगति में यही फल प्राप्त हुआ है कि केवल एक प्रभु का नाम ही मेरा जीवनाधार बन गया है॥ ४॥
ਨ ਕੋਈ ਸੂਰੁ ਨ ਕੋਈ ਹੀਣਾ ਸਭ ਪ੍ਰਗਟੀ ਜੋਤਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥੫॥
न कोई सूरु न कोई हीणा सभ प्रगटी जोति तुम्हारी ॥५॥
हे परमात्मा ! न कोई शूरवीर है और न कोई कमजोर है, क्योंकि सब में तेरी ही ज्योति प्रगट हो रही है॥ ५॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਸਮਰਥ ਅਕਥ ਅਗੋਚਰ ਰਵਿਆ ਏਕੁ ਮੁਰਾਰੀ ॥੬॥
तुम्ह समरथ अकथ अगोचर रविआ एकु मुरारी ॥६॥
हे ईश्वर, तू सर्वकला समर्थ, अकथनीय एवं मन-वाणी से परे है और सबमें तू ही व्यापक है॥ ६ ॥
ਕੀਮਤਿ ਕਉਣੁ ਕਰੇ ਤੇਰੀ ਕਰਤੇ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੀ ॥੭॥
कीमति कउणु करे तेरी करते प्रभ अंतु न पारावारी ॥७॥
हे कर्ता-प्रभु ! तेरी कीमत कौन आंक सकता है ? तू अनन्त एवं अपरम्पार है॥ ७ ॥
ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਨਾਨਕ ਵਡਿਆਈ ਤੇਰਿਆ ਸੰਤ ਜਨਾ ਰੇਣਾਰੀ ॥੮॥੩॥੮॥੨੨॥
नाम दानु नानक वडिआई तेरिआ संत जना रेणारी ॥८॥३॥८॥२२॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर ! तेरा नाम-दान ही बड़ा यश है और तेरे सन्तजनों की चरण-धूलि ही चाहता हूँ ॥८॥३॥८॥२२॥