ਬਾਬਾ ਜਿਸੁ ਤੂ ਦੇਹਿ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਵੈ ॥
बाबा जिसु तू देहि सोई जनु पावै ॥
हे बाबा ! जिसे तू देता है, वही व्यक्ति प्राप्त करता है।
ਪਾਵੈ ਤ ਸੋ ਜਨੁ ਦੇਹਿ ਜਿਸ ਨੋ ਹੋਰਿ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਵੇਚਾਰਿਆ ॥
पावै त सो जनु देहि जिस नो होरि किआ करहि वेचारिआ ॥
वही व्यक्ति प्राप्त करता है, जिसे तू स्वयं देता है, कोई अन्य बेचारा भला क्या कर सकता है।
ਇਕਿ ਭਰਮਿ ਭੂਲੇ ਫਿਰਹਿ ਦਹ ਦਿਸਿ ਇਕਿ ਨਾਮਿ ਲਾਗਿ ਸਵਾਰਿਆ ॥
इकि भरमि भूले फिरहि दह दिसि इकि नामि लागि सवारिआ ॥
कोई भ्रम में भूला हुआ है और दसों दिशाओं में भटक रहा है लेकिन किसी ने नाम के संग लगकर अपना जीवन सफल कर लिया है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਨੁ ਭਇਆ ਨਿਰਮਲੁ ਜਿਨਾ ਭਾਣਾ ਭਾਵਏ ॥
गुर परसादी मनु भइआ निरमलु जिना भाणा भावए ॥
जिन्हें परमात्मा की रज़ा अच्छी लगी है, गुरु की कृपा से उनका मन निर्मल हो गया है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਿਸੁ ਦੇਹਿ ਪਿਆਰੇ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਵਏ ॥੮॥
कहै नानकु जिसु देहि पिआरे सोई जनु पावए ॥८॥
नानक कहते हैं कि जिसे प्यारा प्रभु देता है, वही व्यक्ति प्राप्त करता है॥ ८॥
ਆਵਹੁ ਸੰਤ ਪਿਆਰਿਹੋ ਅਕਥ ਕੀ ਕਰਹ ਕਹਾਣੀ ॥
आवहु संत पिआरिहो अकथ की करह कहाणी ॥
हे प्यारे संतजनो ! आओ, हम मिलकर अकथनीय प्रभु की कथा कहानी करें।
ਕਰਹ ਕਹਾਣੀ ਅਕਥ ਕੇਰੀ ਕਿਤੁ ਦੁਆਰੈ ਪਾਈਐ ॥
करह कहाणी अकथ केरी कितु दुआरै पाईऐ ॥
हम अकथनीय परमात्मा की कथा करें और सोचे कि उसे किस विधि द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਸਭੁ ਸਉਪਿ ਗੁਰ ਕਉ ਹੁਕਮਿ ਮੰਨਿਐ ਪਾਈਐ ॥
तनु मनु धनु सभु सउपि गुर कउ हुकमि मंनिऐ पाईऐ ॥
अपना तन, मन, धन सब कुछ गुरु को सौंपकर उसके हुक्म का पालन करके ही ईश्वर को पाया जा सकता है।
ਹੁਕਮੁ ਮੰਨਿਹੁ ਗੁਰੂ ਕੇਰਾ ਗਾਵਹੁ ਸਚੀ ਬਾਣੀ ॥
हुकमु मंनिहु गुरू केरा गावहु सची बाणी ॥
गुरु के हुक्म का पालन करो और उसकी सच्ची वाणी गाओ।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੁਣਹੁ ਸੰਤਹੁ ਕਥਿਹੁ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥੯॥
कहै नानकु सुणहु संतहु कथिहु अकथ कहाणी ॥९॥
नानक कहते हैं कि हे संतजनो ! सुनो, परमेश्वर की अकथनीय कथा कथन करें ॥ ६॥
ਏ ਮਨ ਚੰਚਲਾ ਚਤੁਰਾਈ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ॥
ए मन चंचला चतुराई किनै न पाइआ ॥
हे चंचल मन ! चतुराई से किसी ने भी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया।
ਚਤੁਰਾਈ ਨ ਪਾਇਆ ਕਿਨੈ ਤੂ ਸੁਣਿ ਮੰਨ ਮੇਰਿਆ ॥
चतुराई न पाइआ किनै तू सुणि मंन मेरिआ ॥
हे मेरे मन ! तू ध्यान से मेरी बात सुन, चतुराई से किसी ने भी ईश्वर को नहीं पाया।
ਏਹ ਮਾਇਆ ਮੋਹਣੀ ਜਿਨਿ ਏਤੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥
एह माइआ मोहणी जिनि एतु भरमि भुलाइआ ॥
यह माया ऐसी मोहिनी है, जिसने जीवों को भ्रम में डालकर सत्य से भुलाया हुआ है।
ਮਾਇਆ ਤ ਮੋਹਣੀ ਤਿਨੈ ਕੀਤੀ ਜਿਨਿ ਠਗਉਲੀ ਪਾਈਆ ॥
माइआ त मोहणी तिनै कीती जिनि ठगउली पाईआ ॥
यह मोहिनी माया भी उस परमात्मा की ही पैदा की हुई है, जिसने मोह रूपी ठग-बूटी जीवों के मुंह में डाली हुई है।
ਕੁਰਬਾਣੁ ਕੀਤਾ ਤਿਸੈ ਵਿਟਹੁ ਜਿਨਿ ਮੋਹੁ ਮੀਠਾ ਲਾਇਆ ॥
कुरबाणु कीता तिसै विटहु जिनि मोहु मीठा लाइआ ॥
मैं उस परमात्मा पर कुर्बान जाता हूँ, जिसने (नाम का) मीठा मोह लगाया हुआ है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਮਨ ਚੰਚਲ ਚਤੁਰਾਈ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ॥੧੦॥
कहै नानकु मन चंचल चतुराई किनै न पाइआ ॥१०॥
नानक कहते हैं कि हे चंचल मन ! चतुराई से किसी ने भी परमात्मा को प्राप्त नहीं किया ॥ १० ॥
ਏ ਮਨ ਪਿਆਰਿਆ ਤੂ ਸਦਾ ਸਚੁ ਸਮਾਲੇ ॥
ए मन पिआरिआ तू सदा सचु समाले ॥
हे प्यारे मन ! तू सदा सत्य का ध्यान कर।
ਏਹੁ ਕੁਟੰਬੁ ਤੂ ਜਿ ਦੇਖਦਾ ਚਲੈ ਨਾਹੀ ਤੇਰੈ ਨਾਲੇ ॥
एहु कुट्मबु तू जि देखदा चलै नाही तेरै नाले ॥
यह परिवार जिसे तू देखता है, इसने तेरे साथ नहीं जाना।
ਸਾਥਿ ਤੇਰੈ ਚਲੈ ਨਾਹੀ ਤਿਸੁ ਨਾਲਿ ਕਿਉ ਚਿਤੁ ਲਾਈਐ ॥
साथि तेरै चलै नाही तिसु नालि किउ चितु लाईऐ ॥
जिस परिवार ने तेरे साथ नहीं जाना, उसके साथ तू क्यों चित्त लगा रहा है।
ਐਸਾ ਕੰਮੁ ਮੂਲੇ ਨ ਕੀਚੈ ਜਿਤੁ ਅੰਤਿ ਪਛੋਤਾਈਐ ॥
ऐसा कमु मूले न कीचै जितु अंति पछोताईऐ ॥
ऐसा काम बिल्कुल नहीं करना चाहिए, जिससे अन्त में पछताना पड़े।
ਸਤਿਗੁਰੂ ਕਾ ਉਪਦੇਸੁ ਸੁਣਿ ਤੂ ਹੋਵੈ ਤੇਰੈ ਨਾਲੇ ॥
सतिगुरू का उपदेसु सुणि तू होवै तेरै नाले ॥
तू सतगुरु का उपदेश सुन, यही तेरे साथ रहेगा।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਮਨ ਪਿਆਰੇ ਤੂ ਸਦਾ ਸਚੁ ਸਮਾਲੇ ॥੧੧॥
कहै नानकु मन पिआरे तू सदा सचु समाले ॥११॥
नानक कहते हैं कि हे प्यारे मन ! तू सदा सत्य का ध्यान किया कर ॥ ११ ॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰਾ ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
अगम अगोचरा तेरा अंतु न पाइआ ॥
हे अगम्य, अगोचर परमेश्वर ! तेरा अन्त किसी ने भी प्राप्त नहीं किया।
ਅੰਤੋ ਨ ਪਾਇਆ ਕਿਨੈ ਤੇਰਾ ਆਪਣਾ ਆਪੁ ਤੂ ਜਾਣਹੇ ॥
अंतो न पाइआ किनै तेरा आपणा आपु तू जाणहे ॥
किसी ने भी तेरा अन्त नहीं पाया, तू स्वयं ही अपने आप को जानता है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਖੇਲੁ ਤੇਰਾ ਕਿਆ ਕੋ ਆਖਿ ਵਖਾਣਏ ॥
जीअ जंत सभि खेलु तेरा किआ को आखि वखाणए ॥
यह सभी जीव-जन्तु तेरा खेल (लीला) है, इस संदर्भ में कोई क्या कहकर बयान करे।
ਆਖਹਿ ਤ ਵੇਖਹਿ ਸਭੁ ਤੂਹੈ ਜਿਨਿ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
आखहि त वेखहि सभु तूहै जिनि जगतु उपाइआ ॥
जिसने यह जगत् पैदा किया है, तू ही सब में बोल रहा एवं देख रहा है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਤੂ ਸਦਾ ਅਗੰਮੁ ਹੈ ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੧੨॥
कहै नानकु तू सदा अगमु है तेरा अंतु न पाइआ ॥१२॥
नानक कहते हैं कि हे ईश्वर ! तू सदा अगम्य है, तेरा अन्त किसी ने भी नहीं पाया ॥ १२ ॥
ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਖੋਜਦੇ ਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥
सुरि नर मुनि जन अम्रितु खोजदे सु अम्रितु गुर ते पाइआ ॥
जिस अमृत को देवता, मनुष्य एवं मुनिजन भी खोजते हैं, वह अमृत मुझे गुरु से प्राप्त हुआ है।
ਪਾਇਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕੀਨੀ ਸਚਾ ਮਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥
पाइआ अम्रितु गुरि क्रिपा कीनी सचा मनि वसाइआ ॥
गुरु की कृपा से मुझे अमृत प्राप्त हुआ है और परम-सत्य को मेरे मन में बसा दिया है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤੁਧੁ ਉਪਾਏ ਇਕਿ ਵੇਖਿ ਪਰਸਣਿ ਆਇਆ ॥
जीअ जंत सभि तुधु उपाए इकि वेखि परसणि आइआ ॥
हे ईश्वर ! सभी जीव-जन्तु तूने ही उत्पन्न किए हैं, पर कोई विरला ही गुरु के दर्शन एवं चरण-स्पर्श करने आया है।
ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਚੂਕਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਭਲਾ ਭਾਇਆ ॥
लबु लोभु अहंकारु चूका सतिगुरू भला भाइआ ॥
उसका लालच, लोभ एवं अहंकार दूर हो गया है और उसे सतगुरु ही भला लगा है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਿਸ ਨੋ ਆਪਿ ਤੁਠਾ ਤਿਨਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥੧੩॥
कहै नानकु जिस नो आपि तुठा तिनि अम्रितु गुर ते पाइआ ॥१३॥
नानक कहते हैं कि जिस पर परमात्मा स्वयं प्रसन्न हो गया है, उसे गुरु से अमृत मिल गया है॥ १३॥
ਭਗਤਾ ਕੀ ਚਾਲ ਨਿਰਾਲੀ ॥
भगता की चाल निराली ॥
भक्तों का जीवन-आचरण दुनिया के अन्य लोगों से निराला होता है।
ਚਾਲਾ ਨਿਰਾਲੀ ਭਗਤਾਹ ਕੇਰੀ ਬਿਖਮ ਮਾਰਗਿ ਚਲਣਾ ॥
चाला निराली भगताह केरी बिखम मारगि चलणा ॥
भक्तों का जीवन-आचरण इसलिए निराला है, क्योंकि उन्होंने बड़े कठिन मार्ग पर चलना होता है।
ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਤਜਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬਹੁਤੁ ਨਾਹੀ ਬੋਲਣਾ ॥
लबु लोभु अहंकारु तजि त्रिसना बहुतु नाही बोलणा ॥
वे लालच, लोभ, अहंकार एवं तृष्णा को त्याग कर अधिक नहीं बोलना चाहते।
ਖੰਨਿਅਹੁ ਤਿਖੀ ਵਾਲਹੁ ਨਿਕੀ ਏਤੁ ਮਾਰਗਿ ਜਾਣਾ ॥
खंनिअहु तिखी वालहु निकी एतु मारगि जाणा ॥
उन्होंने इस मार्ग पर जाना होता है, जो तलवार की धार से भी तीक्ष्ण एवं बाल से भी छोटा होता है।