Hindi Page 930

ਓਅੰਕਾਰਿ ਸਬਦਿ ਉਧਰੇ ॥
ओअंकारि सबदि उधरे ॥
ऑकार शब्द से ही सबका उद्धार हुआ है और

ਓਅੰਕਾਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਰੇ ॥
ओअंकारि गुरमुखि तरे ॥
ऑकार से गुरुमुख संसार-सागर से तैर गए हैं।

ਓਨਮ ਅਖਰ ਸੁਣਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
ओनम अखर सुणहु बीचारु ॥
‘ओम्’ अक्षर का विचार सुनो;

ਓਨਮ ਅਖਰੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸਾਰੁ ॥੧॥
ओनम अखरु त्रिभवण सारु ॥१॥
ओम् अक्षर पृथ्वी, आकाश, पाताल तीनों लोकों का सार है॥ १॥

ਸੁਣਿ ਪਾਡੇ ਕਿਆ ਲਿਖਹੁ ਜੰਜਾਲਾ ॥
सुणि पाडे किआ लिखहु जंजाला ॥
हे पांडे ! जरा सुन; क्यों जंजाल में फँसाने वाली बातें लिख रहा है ?

ਲਿਖੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੋਪਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लिखु राम नाम गुरमुखि गोपाला ॥१॥ रहाउ ॥
गुरुमुख बनकर राम नाम लिखो ॥ १॥ रहाउ ॥

ਸਸੈ ਸਭੁ ਜਗੁ ਸਹਜਿ ਉਪਾਇਆ ਤੀਨਿ ਭਵਨ ਇਕ ਜੋਤੀ ॥
ससै सभु जगु सहजि उपाइआ तीनि भवन इक जोती ॥
स-समस्त जगत् परमात्मा ने सहज स्वभाव ही उत्पन्न किया है और तीनों लोकों में उसकी ही ज्योति समाई हुई है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਸਤੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਵੈ ਚੁਣਿ ਲੈ ਮਾਣਕ ਮੋਤੀ ॥
गुरमुखि वसतु परापति होवै चुणि लै माणक मोती ॥
नाम रूपी वस्तु गुरु के माध्यम से ही प्राप्त होती है और इन नाम रूपी माणिक्य एवं मोतियों को चुन लेना चाहिए।

ਸਮਝੈ ਸੂਝੈ ਪੜਿ ਪੜਿ ਬੂਝੈ ਅੰਤਿ ਨਿਰੰਤਰਿ ਸਾਚਾ ॥
समझै सूझै पड़ि पड़ि बूझै अंति निरंतरि साचा ॥
जो व्यक्ति बार-बार वाणी पढ़कर उसे समझने का प्रयास करता है, वह इस तथ्य को बूझ लेता है केि अन्तर्मन में परम-सत्य परमेश्वर ही स्थित है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੇਖੈ ਸਾਚੁ ਸਮਾਲੇ ਬਿਨੁ ਸਾਚੇ ਜਗੁ ਕਾਚਾ ॥੨॥
गुरमुखि देखै साचु समाले बिनु साचे जगु काचा ॥२॥
गुरुमुख सबमें ईश्वर को ही देखता है और सत्य का ही चिंतन करता है, सत्य के बिना समूचा जगत् नाशवान् है॥ २॥

ਧਧੈ ਧਰਮੁ ਧਰੇ ਧਰਮਾ ਪੁਰਿ ਗੁਣਕਾਰੀ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥
धधै धरमु धरे धरमा पुरि गुणकारी मनु धीरा ॥
ध-धर्म की नगरी सत्संग में ही जीव धर्म को धारण करता है, यही उसके लिए गुणकारी है और मन धैर्यवान बना रहता है।

ਧਧੈ ਧੂਲਿ ਪੜੈ ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਕੰਚਨ ਭਏ ਮਨੂਰਾ ॥
धधै धूलि पड़ै मुखि मसतकि कंचन भए मनूरा ॥
जिनके मुख मस्तक पर संतों-महापुरुषों की चरण-धूलि पड़ती है, उनका पत्थर जैसा मन भी स्वर्ण बन जाता है।

ਧਨੁ ਧਰਣੀਧਰੁ ਆਪਿ ਅਜੋਨੀ ਤੋਲਿ ਬੋਲਿ ਸਚੁ ਪੂਰਾ ॥
धनु धरणीधरु आपि अजोनी तोलि बोलि सचु पूरा ॥
वह परमेश्वर धन्य है, जन्म-मरण से रहित है एवं हर प्रकार से पूर्ण सत्य है।

ਕਰਤੇ ਕੀ ਮਿਤਿ ਕਰਤਾ ਜਾਣੈ ਕੈ ਜਾਣੈ ਗੁਰੁ ਸੂਰਾ ॥੩॥
करते की मिति करता जाणै कै जाणै गुरु सूरा ॥३॥
उस कर्ता-प्रभु की गति वह प्रभु स्वयं ही जानता है या शूरवीर गुरु जानता है॥ ३ ॥

ਙਿਆਨੁ ਗਵਾਇਆ ਦੂਜਾ ਭਾਇਆ ਗਰਬਿ ਗਲੇ ਬਿਖੁ ਖਾਇਆ ॥
ङिआनु गवाइआ दूजा भाइआ गरबि गले बिखु खाइआ ॥
द्वैतभाव में फंसकर जीव ने अपना ज्ञान गंवा दिया है और माया रूपी विष को खाकर घमण्ड में ही नष्ट हो गया है।

ਗੁਰ ਰਸੁ ਗੀਤ ਬਾਦ ਨਹੀ ਭਾਵੈ ਸੁਣੀਐ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੁ ਗਵਾਇਆ ॥
गुर रसु गीत बाद नही भावै सुणीऐ गहिर ग्मभीरु गवाइआ ॥
उसे गुरु की वाणी के कीर्तन का आनंद नहीं आता और न ही उसे गुरु के वचन सुनने अच्छे लगते हैं, इस प्रकार उसने गहन-गंभीर सत्य को गंवा दिया है।

ਗੁਰਿ ਸਚੁ ਕਹਿਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਲਹਿਆ ਮਨਿ ਤਨਿ ਸਾਚੁ ਸੁਖਾਇਆ ॥
गुरि सचु कहिआ अम्रितु लहिआ मनि तनि साचु सुखाइआ ॥
जिसे गुरु ने सत्य का उपदेश सुनाया है, उसने नामामृत पा लिया है और उसके मन-तन को सत्य ही सुखद लगता है।

ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੇ ਦੇਵੈ ਆਪੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆਇਆ ॥੪॥
आपे गुरमुखि आपे देवै आपे अम्रितु पीआइआ ॥४॥
परमात्मा ही गुरु है, वह स्वयं ही नाम की देन देता है और उसने स्वयं ही नामामृत का पान करवाया है॥ ४ ॥

ਏਕੋ ਏਕੁ ਕਹੈ ਸਭੁ ਕੋਈ ਹਉਮੈ ਗਰਬੁ ਵਿਆਪੈ ॥
एको एकु कहै सभु कोई हउमै गरबु विआपै ॥
हर कोई कहता है कि परमात्मा एक है, किन्तु जीव अभिमान एवं घमण्ड में लीन रहता है।

ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਏਕੁ ਪਛਾਣੈ ਇਉ ਘਰੁ ਮਹਲੁ ਸਿਞਾਪੈ ॥
अंतरि बाहरि एकु पछाणै इउ घरु महलु सिञापै ॥
जो व्यक्ति अंतर्मन व बाहर एक ईश्वर को पहचान लेता है, इस तरह वह सच्चे घर को जान लेता है।

ਪ੍ਰਭੁ ਨੇੜੈ ਹਰਿ ਦੂਰਿ ਨ ਜਾਣਹੁ ਏਕੋ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਬਾਈ ॥
प्रभु नेड़ै हरि दूरि न जाणहु एको स्रिसटि सबाई ॥
परमात्मा हमारे निकट ही है, उसे कहीं दूर मत समझो, सारी सृष्टि में एक ईश्वर का ही निवास है।

ਏਕੰਕਾਰੁ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਦੂਜਾ ਨਾਨਕ ਏਕੁ ਸਮਾਈ ॥੫॥
एकंकारु अवरु नही दूजा नानक एकु समाई ॥५॥
समूचे विश्व में ओंकार का ही प्रसार है, अन्य कोई नहीं है। हे नानक ! एक ईश्वर ही सब में समाया हुआ है॥ ५ ॥

ਇਸੁ ਕਰਤੇ ਕਉ ਕਿਉ ਗਹਿ ਰਾਖਉ ਅਫਰਿਓ ਤੁਲਿਓ ਨ ਜਾਈ ॥
इसु करते कउ किउ गहि राखउ अफरिओ तुलिओ न जाई ॥
ईश्वर को किस प्रकार मन में बसाकर रखूं, क्योंकि यह मन तो अभिमानी बना हुआ है और उसकी महिमा को तौला नहीं जा सकता।

ਮਾਇਆ ਕੇ ਦੇਵਾਨੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਝੂਠਿ ਠਗਉਰੀ ਪਾਈ ॥
माइआ के देवाने प्राणी झूठि ठगउरी पाई ॥
हे माया के मतवाले प्राणी ! माया ने तेरे मुँह में झूठ रूपी ठगौरी डाली हुई है।

ਲਬਿ ਲੋਭਿ ਮੁਹਤਾਜਿ ਵਿਗੂਤੇ ਇਬ ਤਬ ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਈ ॥
लबि लोभि मुहताजि विगूते इब तब फिरि पछुताई ॥
लालच एवं लोभ में फँसकर जीव आवश्यकताओं पर मोहताज होकर ख्वार होता है और फिर पछताता रहता है।

ਏਕੁ ਸਰੇਵੈ ਤਾ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਪਾਵੈ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ਰਹਾਈ ॥੬॥
एकु सरेवै ता गति मिति पावै आवणु जाणु रहाई ॥६॥
यदि एक परमेश्वर की स्तुति-वंदना की जाए तो उसकी गति का अनुमान लगाया जा सकता है और आवागमन से मुक्ति हो जाती है॥ ६॥

ਏਕੁ ਅਚਾਰੁ ਰੰਗੁ ਇਕੁ ਰੂਪੁ ॥
एकु अचारु रंगु इकु रूपु ॥
एक परमेश्वर ही आचार, रंग रूप में कार्यशील है और

ਪਉਣ ਪਾਣੀ ਅਗਨੀ ਅਸਰੂਪੁ ॥
पउण पाणी अगनी असरूपु ॥
पवन, पानी एवं अग्नि में भी वही स्थित है।

ਏਕੋ ਭਵਰੁ ਭਵੈ ਤਿਹੁ ਲੋਇ ॥
एको भवरु भवै तिहु लोइ ॥
तीनों लोकों में भी एक प्रभु जीव रूपी भंवरा बनकर भटकता रहता है और

ਏਕੋ ਬੂਝੈ ਸੂਝੈ ਪਤਿ ਹੋਇ ॥
एको बूझै सूझै पति होइ ॥
उसे समझने-बूझने वाला ही शोभा का पात्र बनता है।

ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਲੇ ਸਮਸਰਿ ਰਹੈ ॥
गिआनु धिआनु ले समसरि रहै ॥
ज्ञान-ध्यान को हासिल करने वाला दुख-सुख में एक समान रहता है,

ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕੁ ਵਿਰਲਾ ਕੋ ਲਹੈ ॥
गुरमुखि एकु विरला को लहै ॥
कोई विरला ही गुरुमुख बनकर नाम प्राप्त करता है।

ਜਿਸ ਨੋ ਦੇਇ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥
जिस नो देइ किरपा ते सुखु पाए ॥
जिस पर वह कृपा करता है, उसे ही नाम देता है और वह सुख प्राप्त करता है।

ਗੁਰੂ ਦੁਆਰੈ ਆਖਿ ਸੁਣਾਏ ॥੭॥
गुरू दुआरै आखि सुणाए ॥७॥
वह गुरु के द्वारा उसे अपना नाम कहकर सुनाता है॥ ७॥

ਊਰਮ ਧੂਰਮ ਜੋਤਿ ਉਜਾਲਾ ॥
ऊरम धूरम जोति उजाला ॥
धरती एवं आकाश में उसकी ही ज्योतेि का उजाला है और

ਤੀਨਿ ਭਵਣ ਮਹਿ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥
तीनि भवण महि गुर गोपाला ॥
तीनों लोकों में जगद्गुरु परमेश्वर ही मौजूद है।

ਊਗਵਿਆ ਅਸਰੂਪੁ ਦਿਖਾਵੈ ॥ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨੈ ਘਰਿ ਆਵੈ ॥
ऊगविआ असरूपु दिखावै ॥ करि किरपा अपुनै घरि आवै ॥
वह स्वयं ही प्रगट होकर भक्तों को अपने स्वरूप के दर्शन करवाता है और कृपा करके वह स्वयं ही हृदय घर में आता है।

ਊਨਵਿ ਬਰਸੈ ਨੀਝਰ ਧਾਰਾ ॥ ਊਤਮ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥
ऊनवि बरसै नीझर धारा ॥ ऊतम सबदि सवारणहारा ॥
उसकी अनुकंपा से अमृत रस की धारा जीभ पर पड़ती रहती है। उसका उत्तम शब्द मानव-जीवन को सुन्दर बनाने वाला है।

ਇਸੁ ਏਕੇ ਕਾ ਜਾਣੈ ਭੇਉ ॥
इसु एके का जाणै भेउ ॥
जो व्यक्ति परमात्मा के भेद को जान लेता है,

ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਦੇਉ ॥੮॥
आपे करता आपे देउ ॥८॥
उसे ज्ञान हो जाता है कि ईश्वर स्वयं ही कर्ता है और स्वयं ही देव है॥ ८॥

ਉਗਵੈ ਸੂਰੁ ਅਸੁਰ ਸੰਘਾਰੈ ॥
उगवै सूरु असुर संघारै ॥
जब नाम रूपी सूर्योदय होता है तो विकार रूपी असुरों का संहार हो जाता है।

ਊਚਉ ਦੇਖਿ ਸਬਦਿ ਬੀਚਾਰੈ ॥
ऊचउ देखि सबदि बीचारै ॥
जो ऊँची दृष्टि करके शब्द का चिंतन करता है,

ਊਪਰਿ ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਤਿਹੁ ਲੋਇ ॥
ऊपरि आदि अंति तिहु लोइ ॥
उसे तीनों लोकों एवं सृष्टि के आदि-अंत तक परमात्मा ही रक्षक नजर आता है।

ਆਪੇ ਕਰੈ ਕਥੈ ਸੁਣੈ ਸੋਇ ॥
आपे करै कथै सुणै सोइ ॥
वह स्वयं ही सबकुछ करता है, स्वयं ही अपनी लीला की कथा करता है और स्वयं ही सुनता है।

error: Content is protected !!