ਸਚੁ ਪੁਰਾਣਾ ਹੋਵੈ ਨਾਹੀ ਸੀਤਾ ਕਦੇ ਨ ਪਾਟੈ ॥
सचु पुराणा होवै नाही सीता कदे न पाटै ॥
सत्य कभी पुराना होता ही नहीं और यह एक बार सिलाई किया हुआ कभी फटता ही नहीं।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੋ ਸਚਾ ਤਿਚਰੁ ਜਾਪੀ ਜਾਪੈ ॥੧॥
नानक साहिबु सचो सचा तिचरु जापी जापै ॥१॥
हे नानक ! सच्चा परमेश्वर सदैव शाश्वत है, पर जीव को यह बात तब तक ही सत्य लगती है, जब तक वह नाम जपता रहता है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਸਚ ਕੀ ਕਾਤੀ ਸਚੁ ਸਭੁ ਸਾਰੁ ॥
सच की काती सचु सभु सारु ॥
यदि सत्य की छुरी हो और सत्य ही उसका समूचा लोहा हो,
ਘਾੜਤ ਤਿਸ ਕੀ ਅਪਰ ਅਪਾਰ ॥
घाड़त तिस की अपर अपार ॥
तब इसकी बनावट बहुत ही सुन्दर होती है
ਸਬਦੇ ਸਾਣ ਰਖਾਈ ਲਾਇ ॥
सबदे साण रखाई लाइ ॥
जब यह छुरी शब्द की सान पर रखकर तीक्ष्ण की गई हो और
ਗੁਣ ਕੀ ਥੇਕੈ ਵਿਚਿ ਸਮਾਇ ॥
गुण की थेकै विचि समाइ ॥
इसे गुणों की म्यान में डालकर रख दिया जाए ।
ਤਿਸ ਦਾ ਕੁਠਾ ਹੋਵੈ ਸੇਖੁ ॥ ਲੋਹੂ ਲਬੁ ਨਿਕਥਾ ਵੇਖੁ ॥
तिस दा कुठा होवै सेखु ॥ लोहू लबु निकथा वेखु ॥
हे शेख ! यदि कोई जीव उस छुरी से मारा गया हो तो तू देख लेगा कि उस में लोभ रूपी लहू निकल गया है।
ਹੋਇ ਹਲਾਲੁ ਲਗੈ ਹਕਿ ਜਾਇ ॥ ਨਾਨਕ ਦਰਿ ਦੀਦਾਰਿ ਸਮਾਇ ॥੨॥
होइ हलालु लगै हकि जाइ ॥ नानक दरि दीदारि समाइ ॥२॥
जो जीव इस प्रकार हलाल हो जाता है, वह खुदा से जाकर जुड़ जाता है। हे नानक ! वह खुदा के द्वार पर उसके दर्शन में लीन हो जाता है॥ २॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਕਮਰਿ ਕਟਾਰਾ ਬੰਕੁੜਾ ਬੰਕੇ ਕਾ ਅਸਵਾਰੁ ॥
कमरि कटारा बंकुड़ा बंके का असवारु ॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति ने अपनी कमर में सुन्दर कटार धारण की हुई है और कुशल घोड़े पर सवार है,
ਗਰਬੁ ਨ ਕੀਜੈ ਨਾਨਕਾ ਮਤੁ ਸਿਰਿ ਆਵੈ ਭਾਰੁ ॥੩॥
गरबु न कीजै नानका मतु सिरि आवै भारु ॥३॥
उसे इस बात का अभिमान नहीं करना चाहिए, कहीं उसके सिर पर अभिमान करने से पापों का भार न आ पड़े॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸੋ ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਬਦਿ ਮਿਲੈ ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਚਲੈ ॥
सो सतसंगति सबदि मिलै जो गुरमुखि चलै ॥
जो व्यक्ति गुरु के निर्देशानुसार चलते हैं, वही सत्संगति में शब्द-ब्रह्म में विलीन हो जाते हैं।
ਸਚੁ ਧਿਆਇਨਿ ਸੇ ਸਚੇ ਜਿਨ ਹਰਿ ਖਰਚੁ ਧਨੁ ਪਲੈ ॥
सचु धिआइनि से सचे जिन हरि खरचु धनु पलै ॥
वही सत्यवादी हैं, जो सत्य का ध्यान-मनन करते हैं और जिनके पास अन्तिम क्षणों में यात्रा व्यय के लिए हरि-नाम रूपी धन है।
ਭਗਤ ਸੋਹਨਿ ਗੁਣ ਗਾਵਦੇ ਗੁਰਮਤਿ ਅਚਲੈ ॥
भगत सोहनि गुण गावदे गुरमति अचलै ॥
भक्तजन भगवान का गुणगान करते हुए बहुत सुन्दर लगते हैं और गुरु-मतानुसार अडिग रहते हैं।
ਰਤਨ ਬੀਚਾਰੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਭਲੈ ॥
रतन बीचारु मनि वसिआ गुर कै सबदि भलै ॥
गुरु के शब्द द्वारा रत्न जैसे अमूल्य नाम का विचार उनके मन में निवास कर गया है।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ਆਪੇ ਦੇਇ ਵਡਿਆਈ ॥੧੯॥
आपे मेलि मिलाइदा आपे देइ वडिआई ॥१९॥
ईश्वर स्वयं ही गुरु से साक्षात्कार करवा कर अपने साथ मिला लेता है और स्वयं ही भक्तों को सम्मान देता है। १६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਆਸਾ ਅੰਦਰਿ ਸਭੁ ਕੋ ਕੋਇ ਨਿਰਾਸਾ ਹੋਇ ॥
आसा अंदरि सभु को कोइ निरासा होइ ॥
सारी दुनिया आशा में ही फँसी हुई है परन्तु कोई विरला ही आशाहीन होकर जीता है।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਮਰਿ ਜੀਵਿਆ ਸਹਿਲਾ ਆਇਆ ਸੋਇ ॥੧॥
नानक जो मरि जीविआ सहिला आइआ सोइ ॥१॥
हे नानक ! जो मरजीवा होता है, उसका ही जीवन सफल होता है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਨਾ ਕਿਛੁ ਆਸਾ ਹਥਿ ਹੈ ਕੇਉ ਨਿਰਾਸਾ ਹੋਇ ॥
ना किछु आसा हथि है केउ निरासा होइ ॥
आशा के हाथ में कुछ भी नहीं है, फिर मनुष्य कैसे आशाहीन हो सकता है?”
ਕਿਆ ਕਰੇ ਏਹ ਬਪੁੜੀ ਜਾਂ ਭੋੁਲਾਏ ਸੋਇ ॥੨॥
किआ करे एह बपुड़ी जां भोलाए सोइ ॥२॥
जब परमेश्वर स्वयं ही जीव को भुला देता है तो यह बेचारी आशा क्या कर सकती है?॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਣੁ ਸੰਸਾਰ ਸਚੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ॥
ध्रिगु जीवणु संसार सचे नाम बिनु ॥
सच्चे नाम के बिना संसार में जीना धिक्कार योग्य है।
ਪ੍ਰਭੁ ਦਾਤਾ ਦਾਤਾਰ ਨਿਹਚਲੁ ਏਹੁ ਧਨੁ ॥
प्रभु दाता दातार निहचलु एहु धनु ॥
प्रभु ही देने वाला दातार है और यह धन ही निश्चल रहता है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਆਰਾਧੇ ਨਿਰਮਲੁ ਸੋਇ ਜਨੁ ॥
सासि सासि आराधे निरमलु सोइ जनु ॥
वही व्यक्ति निर्मल है, जो श्वास-श्वास से आराधना करता रहता है।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਅਗਮੁ ਰਸਨਾ ਏਕੁ ਭਨੁ ॥
अंतरजामी अगमु रसना एकु भनु ॥
अपनी रसना से अन्तर्यामी, अगम्य ईश्वर का भजन करते रहो।
ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਰਬਤਿ ਨਾਨਕੁ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥੨੦॥
रवि रहिआ सरबति नानकु बलि जाई ॥२०॥
नानक तो उस सर्वव्यापकं परमेश्वर पर ही बलिहारी जाता है॥ २०॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਸਰਵਰ ਹੰਸ ਧੁਰੇ ਹੀ ਮੇਲਾ ਖਸਮੈ ਏਵੈ ਭਾਣਾ ॥
सरवर हंस धुरे ही मेला खसमै एवै भाणा ॥
गुरु रूपी सरोवर एवं गुरुमुख रूपी हंसो का मिलाप प्रारम्भ से ही लिखा हुआ है और परमेश्वर को यही मंजूर होता है।
ਸਰਵਰ ਅੰਦਰਿ ਹੀਰਾ ਮੋਤੀ ਸੋ ਹੰਸਾ ਕਾ ਖਾਣਾ ॥
सरवर अंदरि हीरा मोती सो हंसा का खाणा ॥
गुरु रूपी सरोवर में शुभ गुण रूपी हीरे-मोती गुरुमुख रूपी हंसों का भोजन है।
ਬਗੁਲਾ ਕਾਗੁ ਨ ਰਹਈ ਸਰਵਰਿ ਜੇ ਹੋਵੈ ਅਤਿ ਸਿਆਣਾ ॥
बगुला कागु न रहई सरवरि जे होवै अति सिआणा ॥
मनमुख रूपी कोई बगुला एवं कौआ चाहे बहुत चतुर हो, कभी गुरु रूपी सरोवर में नहीं रहता।
ਓਨਾ ਰਿਜਕੁ ਨ ਪਇਓ ਓਥੈ ਓਨੑਾ ਹੋਰੋ ਖਾਣਾ ॥
ओना रिजकु न पइओ ओथै ओन्हा होरो खाणा ॥
उनका भोजन वहाँ सरोवर में नहीं होता अपितु कहीं और ही उनका भोजन बना होता है।
ਸਚਿ ਕਮਾਣੈ ਸਚੋ ਪਾਈਐ ਕੂੜੈ ਕੂੜਾ ਮਾਣਾ ॥
सचि कमाणै सचो पाईऐ कूड़ै कूड़ा माणा ॥
सत्य की साधना करने से सत्य ही प्राप्त होता है परन्तु झुठ कमाई करने से केवल झूठा मान ही मिलता है।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕੌ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਜਿਨਾ ਧੁਰੇ ਪੈਯਾ ਪਰਵਾਣਾ ॥੧॥
नानक तिन कौ सतिगुरु मिलिआ जिना धुरे पैया परवाणा ॥१॥
हे नानक ! सच्चा गुरु उन्हें ही मिला है, जिनकी तकदीर में आरम्भ से ही ऐसा लिखा है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ਉਜਲਾ ਜੇ ਕੋ ਚਿਤਿ ਕਰੇਇ ॥
साहिबु मेरा उजला जे को चिति करेइ ॥
मेरा मालिक पवित्र है, यदि कोई श्रद्धा से उसे याद करता है तो वह भी पावन हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਸੋਈ ਸੇਵੀਐ ਸਦਾ ਸਦਾ ਜੋ ਦੇਇ ॥
नानक सोई सेवीऐ सदा सदा जो देइ ॥
हे नानक ! उस मालिक की ही भक्ति करनी चाहिए, जो हमें सदा ही देता रहता है।
ਨਾਨਕ ਸੋਈ ਸੇਵੀਐ ਜਿਤੁ ਸੇਵਿਐ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥
नानक सोई सेवीऐ जितु सेविऐ दुखु जाइ ॥
हे नानक ! उसकी ही उपासना करनी चाहिए, जिसकी उपासना करने से दुखों से छुटकारा हो जाता है।
ਅਵਗੁਣ ਵੰਞਨਿ ਗੁਣ ਰਵਹਿ ਮਨਿ ਸੁਖੁ ਵਸੈ ਆਇ ॥੨॥
अवगुण वंञनि गुण रवहि मनि सुखु वसै आइ ॥२॥
अवगुण दूर हो जाते हैं, गुण हृदय में बस जाते हैं और मन में सुखों का निवास हो जाता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਆਪਿ ਤਾੜੀ ਲਾਈਅਨੁ ॥
आपे आपि वरतदा आपि ताड़ी लाईअनु ॥
परमेश्वर स्वयं ही समूचे जगत् में विद्यमान है और स्वयं ही उसने समाधि लगाई हुई है।
ਆਪੇ ਹੀ ਉਪਦੇਸਦਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਤੀਆਈਅਨੁ ॥
आपे ही उपदेसदा गुरमुखि पतीआईअनु ॥
वह स्वयं ही उपदेश देता है और गुरु के माध्यम से सत्य में विश्वस्त करता है।
ਇਕਿ ਆਪੇ ਉਝੜਿ ਪਾਇਅਨੁ ਇਕਿ ਭਗਤੀ ਲਾਇਅਨੁ ॥
इकि आपे उझड़ि पाइअनु इकि भगती लाइअनु ॥
किसी को उसने स्वयं ही भूलभुलैया में डाला हुआ है और किसी को भक्ति में लगाया हुआ है।
ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਸੋ ਬੁਝਸੀ ਆਪੇ ਨਾਇ ਲਾਈਅਨੁ ॥
जिसु आपि बुझाए सो बुझसी आपे नाइ लाईअनु ॥
जिसे वह स्वयं ज्ञान देता है वही समझता है और स्वयं ही नाम-सिमरन में लगाया हुआ है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਸਚੀ ਵਡਿਆਈ ॥੨੧॥੧॥ ਸੁਧੁ ॥
नानक नामु धिआईऐ सची वडिआई ॥२१॥१॥ सुधु ॥
हे नानक ! प्रभु-नाम का ध्यान करने से ही सच्ची बड़ाई प्राप्त होती है॥ २१॥ १॥ शुद्ध॥