Hindi Page 958

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਵਿਣੁ ਤੁਧੁ ਹੋਰੁ ਜਿ ਮੰਗਣਾ ਸਿਰਿ ਦੁਖਾ ਕੈ ਦੁਖ ॥
विणु तुधु होरु जि मंगणा सिरि दुखा कै दुख ॥
हे परमेश्वर ! तेरे बिना और कुछ मांगना सिर पर दुखों का भार ही सहन करना है।

ਦੇਹਿ ਨਾਮੁ ਸੰਤੋਖੀਆ ਉਤਰੈ ਮਨ ਕੀ ਭੁਖ ॥
देहि नामु संतोखीआ उतरै मन की भुख ॥
मुझे अपना नाम दान दे दीजिए ताकि मुझे संतोष आ जाए और मन की भूख मिट जाए।

ਗੁਰਿ ਵਣੁ ਤਿਣੁ ਹਰਿਆ ਕੀਤਿਆ ਨਾਨਕ ਕਿਆ ਮਨੁਖ ॥੨॥
गुरि वणु तिणु हरिआ कीतिआ नानक किआ मनुख ॥२॥
हे नानक ! गुरु ने वन एवं घास को भी हरा-भरा कर दिया है, फिर मनुष्य को समृद्ध करना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है॥ २॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਸੋ ਐਸਾ ਦਾਤਾਰੁ ਮਨਹੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ॥
सो ऐसा दातारु मनहु न वीसरै ॥
सो ऐसे दातार को मन से कदापि भुलाना नहीं चाहिए,”

ਘੜੀ ਨ ਮੁਹਤੁ ਚਸਾ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਨਾ ਸਰੈ ॥
घड़ी न मुहतु चसा तिसु बिनु ना सरै ॥
जिसके बिना एक घड़ी, मुहूर्त एवं पल भर भी गुजारा नहीं होता।

ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸੰਗਿ ਕਿਆ ਕੋ ਲੁਕਿ ਕਰੈ ॥
अंतरि बाहरि संगि किआ को लुकि करै ॥
वह तो घर के अन्दर एवं बाहर हर जगह साथ रहता है, फिर उससे छिपा कर कोई क्या काम कर सकता है ?”

ਜਿਸੁ ਪਤਿ ਰਖੈ ਆਪਿ ਸੋ ਭਵਜਲੁ ਤਰੈ ॥
जिसु पति रखै आपि सो भवजलु तरै ॥
जिसकी वह लाज रखता है, वह स्वयं ही उसे भवसागर से पार करवा देता है।

ਭਗਤੁ ਗਿਆਨੀ ਤਪਾ ਜਿਸੁ ਕਿਰਪਾ ਕਰੈ ॥
भगतु गिआनी तपा जिसु किरपा करै ॥
जिस पर वह कृपा करता है, वही भक्त , ज्ञानी एवं तपस्वी है और

ਸੋ ਪੂਰਾ ਪਰਧਾਨੁ ਜਿਸ ਨੋ ਬਲੁ ਧਰੈ ॥
सो पूरा परधानु जिस नो बलु धरै ॥
वही पूर्ण प्रधान है, जिसमें वह अपना बल प्रदान करता है।

ਜਿਸਹਿ ਜਰਾਏ ਆਪਿ ਸੋਈ ਅਜਰੁ ਜਰੈ ॥
जिसहि जराए आपि सोई अजरु जरै ॥
जिस जीव को वह सहन-शक्ति प्रदान करता है, वह असह्य को भी सहन कर जाता है।

ਤਿਸ ਹੀ ਮਿਲਿਆ ਸਚੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਗੁਰ ਮਨਿ ਧਰੈ ॥੩॥
तिस ही मिलिआ सचु मंत्रु गुर मनि धरै ॥३॥
जो अपने मन में गुरु-मंत्र को धारण कर लेता है, उसे ही सत्य (परमेश्वर) मिल जाता है॥ ३॥

ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੫ ॥
सलोकु मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥

ਧੰਨੁ ਸੁ ਰਾਗ ਸੁਰੰਗੜੇ ਆਲਾਪਤ ਸਭ ਤਿਖ ਜਾਇ ॥
धंनु सु राग सुरंगड़े आलापत सभ तिख जाइ ॥
वही सुन्दर राग धन्य है, जिसका गान करने से मन की सारी तृष्णा बुझ जाती है।

ਧੰਨੁ ਸੁ ਜੰਤ ਸੁਹਾਵੜੇ ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਪਦੇ ਨਾਉ ॥
धंनु सु जंत सुहावड़े जो गुरमुखि जपदे नाउ ॥
वही सुन्दर जीव धन्य है, जो गुरु के माध्यम से परमात्मा का नाम जपते रहते हैं।

ਜਿਨੀ ਇਕ ਮਨਿ ਇਕੁ ਅਰਾਧਿਆ ਤਿਨ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥
जिनी इक मनि इकु अराधिआ तिन सद बलिहारै जाउ ॥
जिन्होंने एकाग्रचित होकर भगवान की आराधना की है, उन पर मैं सदैव बलिहारी जाता हूँ।

ਤਿਨ ਕੀ ਧੂੜਿ ਹਮ ਬਾਛਦੇ ਕਰਮੀ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥
तिन की धूड़ि हम बाछदे करमी पलै पाइ ॥
हम तो उनकी चरण-धूलि की ही कामना करते हैं, परन्तु यह भाग्य से ही मिलती है।

ਜੋ ਰਤੇ ਰੰਗਿ ਗੋਵਿਦ ਕੈ ਹਉ ਤਿਨ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥
जो रते रंगि गोविद कै हउ तिन बलिहारै जाउ ॥
मैं उन भक्तजनों पर कुर्बान जाता हूँ, जो गोविन्द की स्मृति में लीन रहते हैं।

ਆਖਾ ਬਿਰਥਾ ਜੀਅ ਕੀ ਹਰਿ ਸਜਣੁ ਮੇਲਹੁ ਰਾਇ ॥
आखा बिरथा जीअ की हरि सजणु मेलहु राइ ॥
मैं अपने मन की व्यथा उन्हें बताता हूँ और विनती करता हूँ कि मुझे मेरे सज्जन प्रभु से मिला दो।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਮੇਲਾਇਆ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥
गुरि पूरै मेलाइआ जनम मरण दुखु जाइ ॥
पूर्ण गुरु ने मुझे भगवान से मिला दिया है, जिससे मेरा जन्म-मरण का दुख दूर हो गया है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਪਾਇਆ ਅਗਮ ਰੂਪੁ ਅਨਤ ਨ ਕਾਹੂ ਜਾਇ ॥੧॥
जन नानक पाइआ अगम रूपु अनत न काहू जाइ ॥१॥
हे नानक ! उस अगम्य रूप एवं अनंत प्रभु को पा लिया है और अब मैं इधर-उधर नहीं जाता॥ १॥

ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥

ਧੰਨੁ ਸੁ ਵੇਲਾ ਘੜੀ ਧੰਨੁ ਧਨੁ ਮੂਰਤੁ ਪਲੁ ਸਾਰੁ ॥
धंनु सु वेला घड़ी धंनु धनु मूरतु पलु सारु ॥
वह समय, वह घड़ी धन्य है, वह मुहूर्त एवं श्रेष्ठ पल भी धन्य है।

ਧੰਨੁ ਸੁ ਦਿਨਸੁ ਸੰਜੋਗੜਾ ਜਿਤੁ ਡਿਠਾ ਗੁਰ ਦਰਸਾਰੁ ॥
धंनु सु दिनसु संजोगड़ा जितु डिठा गुर दरसारु ॥
वह दिन एवं संयोग धन्य है, जब मैंने गुरु का दर्शन किया।

ਮਨ ਕੀਆ ਇਛਾ ਪੂਰੀਆ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਅਗਮ ਅਪਾਰੁ ॥
मन कीआ इछा पूरीआ हरि पाइआ अगम अपारु ॥
अगम्य, अपार परमेश्वर को पा कर मेरी मनोकामना पूरी हो गई है।

ਹਉਮੈ ਤੁਟਾ ਮੋਹੜਾ ਇਕੁ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ॥
हउमै तुटा मोहड़ा इकु सचु नामु आधारु ॥
मेरा आत्माभिमान समाप्त हो गया है, माया का मोह भी टूट गया और परमात्मा का सच्चा-नाम ही मेरा जीवनाधार बन गया है।

ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਲਗਾ ਸੇਵ ਹਰਿ ਉਧਰਿਆ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰੁ ॥੨॥
जनु नानकु लगा सेव हरि उधरिआ सगल संसारु ॥२॥
हे नानक ! भगवान की उपासना में लीन होने से सारे संसार का उद्धार हो गया है॥ २॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਸਿਫਤਿ ਸਲਾਹਣੁ ਭਗਤਿ ਵਿਰਲੇ ਦਿਤੀਅਨੁ ॥
सिफति सलाहणु भगति विरले दितीअनु ॥
किसी विरले को ही भगवान ने ही अपना स्तुतिगान एवं भक्ति प्रदान की है।

ਸਉਪੇ ਜਿਸੁ ਭੰਡਾਰ ਫਿਰਿ ਪੁਛ ਨ ਲੀਤੀਅਨੁ ॥
सउपे जिसु भंडार फिरि पुछ न लीतीअनु ॥
वह जिसे भक्ति का भण्डार सौंप देता है, उससे कर्मो का हिसाब -किताब नहीं लेता।

ਜਿਸ ਨੋ ਲਗਾ ਰੰਗੁ ਸੇ ਰੰਗਿ ਰਤਿਆ ॥
जिस नो लगा रंगु से रंगि रतिआ ॥
जिसे परमात्मा का रंग लग जाता है, वह उसके रंग में ही लीन रहता है।

ਓਨਾ ਇਕੋ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਇਕਾ ਉਨ ਭਤਿਆ ॥
ओना इको नामु अधारु इका उन भतिआ ॥
परमात्मा का एक नाम ही उनका जीवनाधार है और वही उनका भोजन है।

ਓਨਾ ਪਿਛੈ ਜਗੁ ਭੁੰਚੈ ਭੋਗਈ ॥
ओना पिछै जगु भुंचै भोगई ॥
उनका अनुसरण करके समूचा जगत् ही सुख भोगता रहता है।

ਓਨਾ ਪਿਆਰਾ ਰਬੁ ਓਨਾਹਾ ਜੋਗਈ ॥
ओना पिआरा रबु ओनाहा जोगई ॥
उन्हें रब्ब इतना प्यारा है कि वह उनके योग्य ही हो गया है।

ਜਿਸੁ ਮਿਲਿਆ ਗੁਰੁ ਆਇ ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣਿਆ ॥
जिसु मिलिआ गुरु आइ तिनि प्रभु जाणिआ ॥
जिसे गुरु मिल जाता है, उसे प्रभु का ज्ञान हो जाता है।

ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨ ਜਿ ਖਸਮੈ ਭਾਣਿਆ ॥੪॥
हउ बलिहारी तिन जि खसमै भाणिआ ॥४॥
जो अपने मालिक-प्रभु को अच्छे लगते हैं, मैं तो उन पर ही न्यौछावर होता हूँ॥ ४॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥

ਹਰਿ ਇਕਸੈ ਨਾਲਿ ਮੈ ਦੋਸਤੀ ਹਰਿ ਇਕਸੈ ਨਾਲਿ ਮੈ ਰੰਗੁ ॥
हरि इकसै नालि मै दोसती हरि इकसै नालि मै रंगु ॥
एक परमात्मा से ही मेरी दोस्ती है और एक उससे ही मेरा स्नेह है।

ਹਰਿ ਇਕੋ ਮੇਰਾ ਸਜਣੋ ਹਰਿ ਇਕਸੈ ਨਾਲਿ ਮੈ ਸੰਗੁ ॥
हरि इको मेरा सजणो हरि इकसै नालि मै संगु ॥
एक प्रभु ही मेरा सज्जन है और एक उससे ही मेरा साथ है।

ਹਰਿ ਇਕਸੈ ਨਾਲਿ ਮੈ ਗੋਸਟੇ ਮੁਹੁ ਮੈਲਾ ਕਰੈ ਨ ਭੰਗੁ ॥
हरि इकसै नालि मै गोसटे मुहु मैला करै न भंगु ॥
एक ईश्वर से ही मेरी बातचीत है, वह कभी मुझसे विमुख नहीं होता और न ही मित्रता को भंग करता है।

ਜਾਣੈ ਬਿਰਥਾ ਜੀਅ ਕੀ ਕਦੇ ਨ ਮੋੜੈ ਰੰਗੁ ॥
जाणै बिरथा जीअ की कदे न मोड़ै रंगु ॥
वह मेरे दिल का दुख-दर्द जानता है और कभी भी मुझसे अपना स्नेह नहीं तोड़ता।

ਹਰਿ ਇਕੋ ਮੇਰਾ ਮਸਲਤੀ ਭੰਨਣ ਘੜਨ ਸਮਰਥੁ ॥
हरि इको मेरा मसलती भंनण घड़न समरथु ॥
एक परमेश्वर ही मेरा सलाहकार है, जो तोड़ने एवं बनाने में समर्थ है।

ਹਰਿ ਇਕੋ ਮੇਰਾ ਦਾਤਾਰੁ ਹੈ ਸਿਰਿ ਦਾਤਿਆ ਜਗ ਹਥੁ ॥
हरि इको मेरा दातारु है सिरि दातिआ जग हथु ॥
एक ईश्वर ही मेरा दाता है और दुनिया के सभी दानवीरों पर उसका ही आशीर्वाद है।

ਹਰਿ ਇਕਸੈ ਦੀ ਮੈ ਟੇਕ ਹੈ ਜੋ ਸਿਰਿ ਸਭਨਾ ਸਮਰਥੁ ॥
हरि इकसै दी मै टेक है जो सिरि सभना समरथु ॥
एक हरि का मुझे सहारा है, जो सर्वशक्तिमान है।

ਸਤਿਗੁਰਿ ਸੰਤੁ ਮਿਲਾਇਆ ਮਸਤਕਿ ਧਰਿ ਕੈ ਹਥੁ ॥
सतिगुरि संतु मिलाइआ मसतकि धरि कै हथु ॥
सतगुरु संत ने मस्तक पर हाथ रखकर मुझे सत्य से मिला दिया है।

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