ਜਬ ਨਖ ਸਿਖ ਇਹੁ ਮਨੁ ਚੀਨੑਾ ॥
जब नख सिख इहु मनु चीन्हा ॥
जब नखशिख तक मन को पहचान लिया तो
ਤਬ ਅੰਤਰਿ ਮਜਨੁ ਕੀਨਾ੍ ॥੧॥
तब अंतरि मजनु कीन्हा ॥१॥
अन्तर्मन में तीर्थ-स्नान कर लिया॥ १॥
ਪਵਨਪਤਿ ਉਨਮਨਿ ਰਹਨੁ ਖਰਾ ॥
पवनपति उनमनि रहनु खरा ॥
प्राणों के पति मन का तुरीयावस्था में रहना ही बेहतर है,
ਨਹੀ ਮਿਰਤੁ ਨ ਜਨਮੁ ਜਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नही मिरतु न जनमु जरा ॥१॥ रहाउ ॥
चूंकि इस अवस्था में न मृत्यु होती है, न जन्म होता है और न ही बुढ़ापे का रोग लगता है॥ १॥ रहाउ॥
ਉਲਟੀ ਲੇ ਸਕਤਿ ਸਹਾਰੰ ॥
उलटी ले सकति सहारं ॥
मैंने प्राणायाम द्वारा प्राण-वायु के बल से कुण्डलिनी शक्ति को सुषुम्ना नाड़ी में ऊपर की ओर चला लिया है और
ਪੈਸੀਲੇ ਗਗਨ ਮਝਾਰੰ ॥
पैसीले गगन मझारं ॥
दसम द्वार में मार्ग पर चल पड़ा हूँ।
ਬੇਧੀਅਲੇ ਚਕ੍ਰ ਭੁਅੰਗਾ ॥
बेधीअले चक्र भुअंगा ॥
मैंने अपनी ऑखों की भौहों के मध्य नासिका की जड़ में स्थित आज्ञा चक्र को भेद दिया है और
ਭੇਟੀਅਲੇ ਰਾਇ ਨਿਸੰਗਾ ॥੨॥
भेटीअले राइ निसंगा ॥२॥
दसम द्वार में पहुँच कर निर्भय प्रभु से भेंट हो गई है॥२॥
ਚੂਕੀਅਲੇ ਮੋਹ ਮਇਆਸਾ ॥
चूकीअले मोह मइआसा ॥
अब माया का मोह चूक गया है।
ਸਸਿ ਕੀਨੋ ਸੂਰ ਗਿਰਾਸਾ ॥
ससि कीनो सूर गिरासा ॥
शशि रूपी शीतल ज्ञान ने सूर्य रूपी परिताप को निगल लिया है।
ਜਬ ਕੁੰਭਕੁ ਭਰਿਪੁਰਿ ਲੀਣਾ ॥
जब कु्मभकु भरिपुरि लीणा ॥
जब कुंभक क्रिया द्वार प्राण-वायु को सुषुम्ना नाड़ी में भर लिया तो
ਤਹ ਬਾਜੇ ਅਨਹਦ ਬੀਣਾ ॥੩॥
तह बाजे अनहद बीणा ॥३॥
मन में अनाहत ध्वनि की वीणा बजने लगी॥३॥
ਬਕਤੈ ਬਕਿ ਸਬਦੁ ਸੁਨਾਇਆ ॥
बकतै बकि सबदु सुनाइआ ॥
जब वक्ता गुरु ने मुखारविंद से ब्रह्म-शब्द सुनाया तो
ਸੁਨਤੈ ਸੁਨਿ ਮੰਨਿ ਬਸਾਇਆ ॥
सुनतै सुनि मंनि बसाइआ ॥
श्रोता शिष्य ने सुनकर उसे अपने मन में बसा लिया।
ਕਰਿ ਕਰਤਾ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰੰ ॥
करि करता उतरसि पारं ॥
वह श्रोता परमात्मा का नाम-स्मरण करके भवसागर से पार हो जाता है।
ਕਹੈ ਕਬੀਰਾ ਸਾਰੰ ॥੪॥੧॥੧੦॥
कहै कबीरा सारं ॥४॥१॥१०॥
कबीर जी कहते हैं कि नाम-स्मरण के अभ्यास का यही सार है॥ ४॥ १॥ १०॥
ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਦੁਇ ਜੋਤਿ ਸਰੂਪੁ ॥
चंदु सूरजु दुइ जोति सरूपु ॥
चाँद एवं सूर्य दोनों ही ज्योति-रूप हैं,
ਜੋਤੀ ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਅਨੂਪੁ ॥੧॥
जोती अंतरि ब्रहमु अनूपु ॥१॥
इनमें अनुपम ब्रह्म की ही ज्योति विद्यमान है॥ १॥
ਕਰੁ ਰੇ ਗਿਆਨੀ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੁ ॥
करु रे गिआनी ब्रहम बीचारु ॥
हे ज्ञानी ! ब्रह्म का चिंतन करोः
ਜੋਤੀ ਅੰਤਰਿ ਧਰਿਆ ਪਸਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जोती अंतरि धरिआ पसारु ॥१॥ रहाउ ॥
परमात्मा ने यह जगत्-प्रसार अपनी ज्योति में ही स्थित किया हुआ है ॥१॥ रहाउ ॥
ਹੀਰਾ ਦੇਖਿ ਹੀਰੇ ਕਰਉ ਆਦੇਸੁ ॥
हीरा देखि हीरे करउ आदेसु ॥
हीरे के दर्शन करके परमात्मा रूपी हीरे को नमन करता हूँ।
ਕਹੈ ਕਬੀਰੁ ਨਿਰੰਜਨ ਅਲੇਖੁ ॥੨॥੨॥੧੧॥
कहै कबीरु निरंजन अलेखु ॥२॥२॥११॥
कबीर जी कहते हैं कि मायातीत परमेश्वर अलेख है॥ २॥ २॥ ११॥
ਦੁਨੀਆ ਹੁਸੀਆਰ ਬੇਦਾਰ ਜਾਗਤ ਮੁਸੀਅਤ ਹਉ ਰੇ ਭਾਈ ॥
दुनीआ हुसीआर बेदार जागत मुसीअत हउ रे भाई ॥
हे भाई ! दुनिया बेशक कितनी भी होशियार एवं सावधान है, मगर जागते हुए भी ठगी एवं लुटती जा रही है।
ਨਿਗਮ ਹੁਸੀਆਰ ਪਹਰੂਆ ਦੇਖਤ ਜਮੁ ਲੇ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निगम हुसीआर पहरूआ देखत जमु ले जाई ॥१॥ रहाउ ॥
वेद-शास्त्र जैसे होशियार पेहरेदारों के देखते हुए भी यम पकड़कर ले जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਨੀਂਬੁ ਭਇਓ ਆਂਬੁ ਆਂਬੁ ਭਇਓ ਨੀਂਬਾ ਕੇਲਾ ਪਾਕਾ ਝਾਰਿ ॥
नींबु भइओ आंबु आंबु भइओ नींबा केला पाका झारि ॥
मूर्ख, गंवार एवं विमूढ़ व्यक्ति को सिंबल का पेड़ नारियल का पका फल लगता है।
ਨਾਲੀਏਰ ਫਲੁ ਸੇਬਰਿ ਪਾਕਾ ਮੂਰਖ ਮੁਗਧ ਗਵਾਰ ॥੧॥
नालीएर फलु सेबरि पाका मूरख मुगध गवार ॥१॥
वह नीबू को आम समझता है और आम को नीबू समझता है। उसे पका केला झाड़ी लगता है अर्थात् मूर्ख को कोई ज्ञान नहीं होता॥ १॥
ਹਰਿ ਭਇਓ ਖਾਂਡੁ ਰੇਤੁ ਮਹਿ ਬਿਖਰਿਓ ਹਸਤੀਂ ਚੁਨਿਓ ਨ ਜਾਈ ॥
हरि भइओ खांडु रेतु महि बिखरिओ हसतीं चुनिओ न जाई ॥
ईश्वर रेत में बिखरी हुई चीनी के समान है, जो अहंकार रूपी हाथी बनकर चुगी नहीं जा सकती।
ਕਹਿ ਕਮੀਰ ਕੁਲ ਜਾਤਿ ਪਾਂਤਿ ਤਜਿ ਚੀਟੀ ਹੋਇ ਚੁਨਿ ਖਾਈ ॥੨॥੩॥੧੨॥
कहि कमीर कुल जाति पांति तजि चीटी होइ चुनि खाई ॥२॥३॥१२॥
कबीर जी कहते हैं कि यह चीनी कुल, जाति-पांति को त्याग कर नम्रता रूपी चींटी बनकर ही खाई जा सकती है॥ २॥ ३॥ १२॥
ਬਾਣੀ ਨਾਮਦੇਉ ਜੀਉ ਕੀ ਰਾਮਕਲੀ ਘਰੁ ੧
बाणी नामदेउ जीउ की रामकली घरु १
बाणी नामदेउ जीउ की रामकली घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਆਨੀਲੇ ਕਾਗਦੁ ਕਾਟੀਲੇ ਗੂਡੀ ਆਕਾਸ ਮਧੇ ਭਰਮੀਅਲੇ ॥
आनीले कागदु काटीले गूडी आकास मधे भरमीअले ॥
कागज को लाकर उसे काटकर लड़का उसकी पतंग बनाता है, फिर वह आकाश में उड़ती रहती है।
ਪੰਚ ਜਨਾ ਸਿਉ ਬਾਤ ਬਤਊਆ ਚੀਤੁ ਸੁ ਡੋਰੀ ਰਾਖੀਅਲੇ ॥੧॥
पंच जना सिउ बात बतऊआ चीतु सु डोरी राखीअले ॥१॥
वह अपने सज्जनों मित्रों से वार्तालाप भी करता रहता है परन्तु अपना चित्त पतंग की डोर में ही लगाकर रखता है॥ १॥
ਮਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮਾ ਬੇਧੀਅਲੇ ॥
मनु राम नामा बेधीअले ॥
मेरा मन राम-नाम में ऐसे बिंध गया है
ਜੈਸੇ ਕਨਿਕ ਕਲਾ ਚਿਤੁ ਮਾਂਡੀਅਲੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जैसे कनिक कला चितु मांडीअले ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे सुनार का मन स्वर्ण-कला में लगा रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਆਨੀਲੇ ਕੁੰਭੁ ਭਰਾਈਲੇ ਊਦਕ ਰਾਜ ਕੁਆਰਿ ਪੁਰੰਦਰੀਏ ॥
आनीले कु्मभु भराईले ऊदक राज कुआरि पुरंदरीए ॥
एक नवयुवती शहर में से गागर लाकर उसे पानी से भर लेती है।
ਹਸਤ ਬਿਨੋਦ ਬੀਚਾਰ ਕਰਤੀ ਹੈ ਚੀਤੁ ਸੁ ਗਾਗਰਿ ਰਾਖੀਅਲੇ ॥੨॥
हसत बिनोद बीचार करती है चीतु सु गागरि राखीअले ॥२॥
वह अपनी सखियों के संग हँसती, विनोद करती एवं विचार-विमर्श भी करती रहती है, पर वह अपना चित्त उस गागर में ही रखती हैं।॥ २॥
ਮੰਦਰੁ ਏਕੁ ਦੁਆਰ ਦਸ ਜਾ ਕੇ ਗਊ ਚਰਾਵਨ ਛਾਡੀਅਲੇ ॥
मंदरु एकु दुआर दस जा के गऊ चरावन छाडीअले ॥
यदि दस द्वारों वाले घर में से गाय को घास चरने के लिए भेज दिया जाए तो
ਪਾਂਚ ਕੋਸ ਪਰ ਗਊ ਚਰਾਵਤ ਚੀਤੁ ਸੁ ਬਛਰਾ ਰਾਖੀਅਲੇ ॥੩॥
पांच कोस पर गऊ चरावत चीतु सु बछरा राखीअले ॥३॥
पाँच कोस पर जाकर चरते हुए भी उसका चित्त अपने बछड़े में ही लगा रहता है॥ ३॥
ਕਹਤ ਨਾਮਦੇਉ ਸੁਨਹੁ ਤਿਲੋਚਨ ਬਾਲਕੁ ਪਾਲਨ ਪਉਢੀਅਲੇ ॥
कहत नामदेउ सुनहु तिलोचन बालकु पालन पउढीअले ॥
नामदेव जी कहते हैं कि हे त्रिलोचन ! जरा सुनो; माँ अपने शिशु को झूले में लिटा देती है किन्तु
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਕਾਜ ਬਿਰੂਧੀ ਚੀਤੁ ਸੁ ਬਾਰਿਕ ਰਾਖੀਅਲੇ ॥੪॥੧॥
अंतरि बाहरि काज बिरूधी चीतु सु बारिक राखीअले ॥४॥१॥
अन्दर-बाहर घर के कार्यों में व्यस्त रहकर भी अपना चित शिशु में ही लगाकर रखती है॥ ४॥ १॥
ਬੇਦ ਪੁਰਾਨ ਸਾਸਤ੍ਰ ਆਨੰਤਾ ਗੀਤ ਕਬਿਤ ਨ ਗਾਵਉਗੋ ॥
बेद पुरान सासत्र आनंता गीत कबित न गावउगो ॥
मैं वेद, पुराण एवं शास्त्रों में लिखे अनंत गीत काव्यों का गुणगान नहीं करूंगा,