ਅਖੰਡ ਮੰਡਲ ਨਿਰੰਕਾਰ ਮਹਿ ਅਨਹਦ ਬੇਨੁ ਬਜਾਵਉਗੋ ॥੧॥
अखंड मंडल निरंकार महि अनहद बेनु बजावउगो ॥१॥
अपितु अखण्ड मण्डल निराकार में प्रवृत होकर अनाहत वीणा बजाता रहूँगा॥ १॥
ਬੈਰਾਗੀ ਰਾਮਹਿ ਗਾਵਉਗੋ ॥
बैरागी रामहि गावउगो ॥
मैं वैरागी बनकर राम का गुणगान करूँगा और
ਸਬਦਿ ਅਤੀਤ ਅਨਾਹਦਿ ਰਾਤਾ ਆਕੁਲ ਕੈ ਘਰਿ ਜਾਉਗੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सबदि अतीत अनाहदि राता आकुल कै घरि जाउगो ॥१॥ रहाउ ॥
शब्द की अतीत अनाहद ध्वनि में रत होकर परमात्मा के घर जाऊँगा॥ १॥ रहाउ॥
ਇੜਾ ਪਿੰਗੁਲਾ ਅਉਰੁ ਸੁਖਮਨਾ ਪਉਨੈ ਬੰਧਿ ਰਹਾਉਗੋ ॥
इड़ा पिंगुला अउरु सुखमना पउनै बंधि रहाउगो ॥
मैं इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना में प्राणवायु को बांधे रखूंगा और
ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਦੁਇ ਸਮ ਕਰਿ ਰਾਖਉ ਬ੍ਰਹਮ ਜੋਤਿ ਮਿਲਿ ਜਾਉਗੋ ॥੨॥
चंदु सूरजु दुइ सम करि राखउ ब्रहम जोति मिलि जाउगो ॥२॥
चाँद-सूर्य दोनों को एक समान समझकर ब्रह्म-ज्योति में विलीन हो जाऊँगा॥ २॥
ਤੀਰਥ ਦੇਖਿ ਨ ਜਲ ਮਹਿ ਪੈਸਉ ਜੀਅ ਜੰਤ ਨ ਸਤਾਵਉਗੋ ॥
तीरथ देखि न जल महि पैसउ जीअ जंत न सतावउगो ॥
तीर्थों के दर्शन करके स्नान करने के लिए जल में प्रवेश नहीं करूँगा और इस प्रकार जलचरों को नहीं सताऊँगा।
ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਗੁਰੂ ਦਿਖਾਏ ਘਟ ਹੀ ਭੀਤਰਿ ਨੑਾਉਗੋ ॥੩॥
अठसठि तीरथ गुरू दिखाए घट ही भीतरि न्हाउगो ॥३॥
गुरु ने अड़सठ तीर्थ मुझे अन्तर्मन में ही दिखा दिए हैं और अब मैं हृदय में ही स्नान करूँगा॥ ३॥
ਪੰਚ ਸਹਾਈ ਜਨ ਕੀ ਸੋਭਾ ਭਲੋ ਭਲੋ ਨ ਕਹਾਵਉਗੋ ॥
पंच सहाई जन की सोभा भलो भलो न कहावउगो ॥
मैं दुनिया में शोभा सुनकर भी भला पुरुष नहीं कहलाऊँगा।
ਨਾਮਾ ਕਹੈ ਚਿਤੁ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਾਤਾ ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਸਮਾਉਗੋ ॥੪॥੨॥
नामा कहै चितु हरि सिउ राता सुंन समाधि समाउगो ॥४॥२॥
नामदेव कहते हैं कि मेरा मन परमात्मा में लीन रहकर शून्य समाधि में समा जाएगा॥ ४॥ २॥
ਮਾਇ ਨ ਹੋਤੀ ਬਾਪੁ ਨ ਹੋਤਾ ਕਰਮੁ ਨ ਹੋਤੀ ਕਾਇਆ ॥
माइ न होती बापु न होता करमु न होती काइआ ॥
जब न कोई माता थी, न पिता था, न कोई कर्म एवं शरीर था,
ਹਮ ਨਹੀ ਹੋਤੇ ਤੁਮ ਨਹੀ ਹੋਤੇ ਕਵਨੁ ਕਹਾਂ ਤੇ ਆਇਆ ॥੧॥
हम नही होते तुम नही होते कवनु कहां ते आइआ ॥१॥
हम भी नहीं थे, तुम भी नहीं थे, तब कौन कहाँ से आया था?॥ १!!
ਰਾਮ ਕੋਇ ਨ ਕਿਸ ਹੀ ਕੇਰਾ ॥
राम कोइ न किस ही केरा ॥
हे राम ! कोई किसी का साथी नहीं है,
ਜੈਸੇ ਤਰਵਰਿ ਪੰਖਿ ਬਸੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जैसे तरवरि पंखि बसेरा ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे पेड़ों पर पक्षियों का बसेरा है, वैसे ही यह जगत्-प्रसार है॥ १॥ रहाउ॥
ਚੰਦੁ ਨ ਹੋਤਾ ਸੂਰੁ ਨ ਹੋਤਾ ਪਾਨੀ ਪਵਨੁ ਮਿਲਾਇਆ ॥
चंदु न होता सूरु न होता पानी पवनु मिलाइआ ॥
जब चांद एवं सूर्य भी नहीं था, तब पवन एवं पानी को परमेश्वर ने स्वयं में मिलाया हुआ था।
ਸਾਸਤੁ ਨ ਹੋਤਾ ਬੇਦੁ ਨ ਹੋਤਾ ਕਰਮੁ ਕਹਾਂ ਤੇ ਆਇਆ ॥੨॥
सासतु न होता बेदु न होता करमु कहां ते आइआ ॥२॥
जब कोई शास्त्र एवं वेदों का भी जन्म नहीं हुआ था, तब कर्म कहाँ से आ गया॥ २॥
ਖੇਚਰ ਭੂਚਰ ਤੁਲਸੀ ਮਾਲਾ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਾਇਆ ॥
खेचर भूचर तुलसी माला गुर परसादी पाइआ ॥
गुरु की कृपा से खेचरी-भूचरी मुद्राएँ एवं तुलसी माला प्राप्त हो गई है।
ਨਾਮਾ ਪ੍ਰਣਵੈ ਪਰਮ ਤਤੁ ਹੈ ਸਤਿਗੁਰ ਹੋਇ ਲਖਾਇਆ ॥੩॥੩॥
नामा प्रणवै परम ततु है सतिगुर होइ लखाइआ ॥३॥३॥
नामदेव विनती करते हैं कि परमतत्व परमेश्वर ही जगत् की उत्पति का कारण है और उसने स्वयं ही सतगुरु के रूप में भेद समझाया है॥ ३॥ ३॥
ਰਾਮਕਲੀ ਘਰੁ ੨ ॥
रामकली घरु २ ॥
रामकली घरु २॥
ਬਾਨਾਰਸੀ ਤਪੁ ਕਰੈ ਉਲਟਿ ਤੀਰਥ ਮਰੈ ਅਗਨਿ ਦਹੈ ਕਾਇਆ ਕਲਪੁ ਕੀਜੈ ॥
बानारसी तपु करै उलटि तीरथ मरै अगनि दहै काइआ कलपु कीजै ॥
यदि कोई व्यक्ति बनारस में उलटा लटक कर तपस्या करे, किसी तीर्थ पर मृत्यु की अभिलाषा करे, अपने शरीर को अग्नि में दहन करे, काया-कल्प करे,
ਅਸੁਮੇਧ ਜਗੁ ਕੀਜੈ ਸੋਨਾ ਗਰਭ ਦਾਨੁ ਦੀਜੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਸਰਿ ਤਊ ਨ ਪੂਜੈ ॥੧॥
असुमेध जगु कीजै सोना गरभ दानु दीजै राम नाम सरि तऊ न पूजै ॥१॥
अश्वमेध यज्ञ करे, स्वर्ण का गुप्त दान करे, तो भी ये सभी कर्म राम-नाम के बराबर नहीं पहुँचते॥ १॥
ਛੋਡਿ ਛੋਡਿ ਰੇ ਪਾਖੰਡੀ ਮਨ ਕਪਟੁ ਨ ਕੀਜੈ ॥
छोडि छोडि रे पाखंडी मन कपटु न कीजै ॥
हे पाखण्डी ! इन सभी पाखण्डों को छोड़ दे और कपट मत कर।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਨਿਤਹਿ ਲੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि का नामु नित नितहि लीजै ॥१॥ रहाउ ॥
तुझे तो नित्य हरि का नाम स्मरण करना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਗੰਗਾ ਜਉ ਗੋਦਾਵਰਿ ਜਾਈਐ ਕੁੰਭਿ ਜਉ ਕੇਦਾਰ ਨੑਾਈਐ ਗੋਮਤੀ ਸਹਸ ਗਊ ਦਾਨੁ ਕੀਜੈ ॥
गंगा जउ गोदावरि जाईऐ कु्मभि जउ केदार न्हाईऐ गोमती सहस गऊ दानु कीजै ॥
यदि कोई गंगा एवं गोदावरी में जाकर कुम्भ के समय तीर्थ स्नान करें, चाहे केदारनाथ के दर्शन करे, यदि वह गोमती में स्नान करे और हजारों गाय दान कर दे,
ਕੋਟਿ ਜਉ ਤੀਰਥ ਕਰੈ ਤਨੁ ਜਉ ਹਿਵਾਲੇ ਗਾਰੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਸਰਿ ਤਊ ਨ ਪੂਜੈ ॥੨॥
कोटि जउ तीरथ करै तनु जउ हिवाले गारै राम नाम सरि तऊ न पूजै ॥२॥
यदि वह करोड़ों बार तीर्थ-स्नान कर ले, चाहे अपना शरीर हिमालय पर्वत की बर्फ में गाल दे तो भी यह सब कर्म राम-नाम की उपमा में नहीं पहुँचते॥ २॥
ਅਸੁ ਦਾਨ ਗਜ ਦਾਨ ਸਿਹਜਾ ਨਾਰੀ ਭੂਮਿ ਦਾਨ ਐਸੋ ਦਾਨੁ ਨਿਤ ਨਿਤਹਿ ਕੀਜੈ ॥
असु दान गज दान सिहजा नारी भूमि दान ऐसो दानु नित नितहि कीजै ॥
चाहे कोई अश्व-दान, गज-दान, श्रृंगारयुक्त सुन्दर नारी-दान, भूमि दान भी कर ले, ऐसा दान नित्य ही करता रहे।
ਆਤਮ ਜਉ ਨਿਰਮਾਇਲੁ ਕੀਜੈ ਆਪ ਬਰਾਬਰਿ ਕੰਚਨੁ ਦੀਜੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਸਰਿ ਤਊ ਨ ਪੂਜੈ ॥੩॥
आतम जउ निरमाइलु कीजै आप बराबरि कंचनु दीजै राम नाम सरि तऊ न पूजै ॥३॥
चाहे वह अपने मन को निर्मल कर ले और अपने बराबर तोलकर स्वर्ण-दान करे, तो भी सभी कर्म राम-नाम की तुलना में नहीं आते॥ ३॥
ਮਨਹਿ ਨ ਕੀਜੈ ਰੋਸੁ ਜਮਹਿ ਨ ਦੀਜੈ ਦੋਸੁ ਨਿਰਮਲ ਨਿਰਬਾਣ ਪਦੁ ਚੀਨੑਿ ਲੀਜੈ ॥
मनहि न कीजै रोसु जमहि न दीजै दोसु निरमल निरबाण पदु चीन्हि लीजै ॥
मन में रोष नहीं करना चाहिए, यम को भी दोष नहीं देना चाहिए अपितु निर्मल निर्वाण पद की पहचान कर लेनी चाहिए।
ਜਸਰਥ ਰਾਇ ਨੰਦੁ ਰਾਜਾ ਮੇਰਾ ਰਾਮ ਚੰਦੁ ਪ੍ਰਣਵੈ ਨਾਮਾ ਤਤੁ ਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਜੈ ॥੪॥੪॥
जसरथ राइ नंदु राजा मेरा राम चंदु प्रणवै नामा ततु रसु अम्रितु पीजै ॥४॥४॥
नामदेव विनती करते हैं कि दशरथ पुत्र श्री राम ही मेरा राजा है, परमतत्व नामामृत का पान करना चाहिए॥ ४॥ ४॥
ਰਾਮਕਲੀ ਬਾਣੀ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀ ਕੀ
रामकली बाणी रविदास जी की
रामकली बाणी रविदास जी की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਪੜੀਐ ਗੁਨੀਐ ਨਾਮੁ ਸਭੁ ਸੁਨੀਐ ਅਨਭਉ ਭਾਉ ਨ ਦਰਸੈ ॥
पड़ीऐ गुनीऐ नामु सभु सुनीऐ अनभउ भाउ न दरसै ॥
चाहे हम सब हरि-नाम का पठन अथवा चिंतन कर लें या उसे कानों से सुन लें तो भी श्रद्धा एवं पूर्ण निष्ठा के बिना ईश्वर के दर्शन नहीं होते।
ਲੋਹਾ ਕੰਚਨੁ ਹਿਰਨ ਹੋਇ ਕੈਸੇ ਜਉ ਪਾਰਸਹਿ ਨ ਪਰਸੈ ॥੧॥
लोहा कंचनु हिरन होइ कैसे जउ पारसहि न परसै ॥१॥
लोहा शुद्ध स्वर्ण कैसे बन सकता है, जब तक वह पारस को स्पर्श न करे॥ १॥