ਨਾਨਕ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸੁ ਕਹਤੁ ਹੈ ਹਮ ਦਾਸਨ ਕੇ ਪਨਿਹਾਰੇ ॥੮॥੧॥
नानक दासनि दासु कहतु है हम दासन के पनिहारे ॥८॥१॥
हे नानक ! मैं प्रभु के दासों का दास यह सत्य कहता हूँ कि मैं दासों का पानी भरने वाला हूँ॥ ८॥ १॥
ਨਟ ਮਹਲਾ ੪ ॥
नट महला ४ ॥
नट महला ४॥
ਰਾਮ ਹਮ ਪਾਥਰ ਨਿਰਗੁਨੀਆਰੇ ॥
राम हम पाथर निरगुनीआरे ॥
हे राम ! हम गुणविहीन मात्र पत्थर ही हैं,
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਏ ਹਮ ਪਾਹਨ ਸਬਦਿ ਗੁਰ ਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
क्रिपा क्रिपा करि गुरू मिलाए हम पाहन सबदि गुर तारे ॥१॥ रहाउ ॥
लेकिन कृपा करके जब तूने गुरु से मिला दिया तो शब्द-गुरु द्वारा हम पत्थर भी संसार-सागर से पार हो गए॥५॥ रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਅਤਿ ਮੀਠਾ ਮੈਲਾਗਰੁ ਮਲਗਾਰੇ ॥
सतिगुर नामु द्रिड़ाए अति मीठा मैलागरु मलगारे ॥
सतगुरु ने अत्यंत मीठा हरि-नाम दृढ़ करवाया है, जो चंदन से भी शीतल एवं महकदार है।
ਨਾਮੈ ਸੁਰਤਿ ਵਜੀ ਹੈ ਦਹ ਦਿਸਿ ਹਰਿ ਮੁਸਕੀ ਮੁਸਕ ਗੰਧਾਰੇ ॥੧॥
नामै सुरति वजी है दह दिसि हरि मुसकी मुसक गंधारे ॥१॥
प्रभु नाम के ध्यान से दस दिशाओं की जानकारी हुई है और हरि के गुणों की सुगन्धि सारे जगत् में फैली हुई है॥ १॥
ਤੇਰੀ ਨਿਰਗੁਣ ਕਥਾ ਕਥਾ ਹੈ ਮੀਠੀ ਗੁਰਿ ਨੀਕੇ ਬਚਨ ਸਮਾਰੇ ॥
तेरी निरगुण कथा कथा है मीठी गुरि नीके बचन समारे ॥
हे प्रभु ! तेरी गुणातीत कथा बड़ी मीठी है, गुरु के सुन्दर वचनों से ही इसका जाप किया है।
ਗਾਵਤ ਗਾਵਤ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਏ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ਗੁਰਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੨॥
गावत गावत हरि गुन गाए गुन गावत गुरि निसतारे ॥२॥
गाते-गाते तेरे ही गुण गाए हैं और गुणगान करते हुए गुरु ने मेरा उद्धार कर दिया है॥ २॥
ਬਿਬੇਕੁ ਗੁਰੂ ਗੁਰੂ ਸਮਦਰਸੀ ਤਿਸੁ ਮਿਲੀਐ ਸੰਕ ਉਤਾਰੇ ॥
बिबेकु गुरू गुरू समदरसी तिसु मिलीऐ संक उतारे ॥
गुरु विवेकवान् है, गुरु ही समदर्शी है, उससे साक्षात्कार करने से शंका की निवृति हो जाती है।
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਹਉ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਬਲਿਹਾਰੇ ॥੩॥
सतिगुर मिलिऐ परम पदु पाइआ हउ सतिगुर कै बलिहारे ॥३॥
सच्चे गुरु से मिलकर मोक्ष प्राप्त हो गया है और मैं सतगुरु पर ही बलिहारी जाता हूँ॥ ३॥
ਪਾਖੰਡ ਪਾਖੰਡ ਕਰਿ ਕਰਿ ਭਰਮੇ ਲੋਭੁ ਪਾਖੰਡੁ ਜਗਿ ਬੁਰਿਆਰੇ ॥
पाखंड पाखंड करि करि भरमे लोभु पाखंडु जगि बुरिआरे ॥
कितने ही जीव अनेक पाखण्ड करते हुए भटकते रहते हैं, जग में लोभ एवं पाखण्ड करना बहुत बुरा है।
ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਦੁਖਦਾਈ ਹੋਵਹਿ ਜਮਕਾਲੁ ਖੜਾ ਸਿਰਿ ਮਾਰੇ ॥੪॥
हलति पलति दुखदाई होवहि जमकालु खड़ा सिरि मारे ॥४॥
इस तरह लोभी एवं पाखण्डी जीव इहलोक एवं परलोक में बहुत दुखी होते हैं और उन्हें यमराज का दण्ड भोगना पड़ता है।॥ ४॥
ਉਗਵੈ ਦਿਨਸੁ ਆਲੁ ਜਾਲੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੈ ਬਿਖੁ ਮਾਇਆ ਕੇ ਬਿਸਥਾਰੇ ॥
उगवै दिनसु आलु जालु सम्हालै बिखु माइआ के बिसथारे ॥
जब सूर्योदय होता है तो जीव दुनिया के कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं परन्तु ये मिथ्या धंधे विष रूपी माया का विस्तार है।
ਆਈ ਰੈਨਿ ਭਇਆ ਸੁਪਨੰਤਰੁ ਬਿਖੁ ਸੁਪਨੈ ਭੀ ਦੁਖ ਸਾਰੇ ॥੫॥
आई रैनि भइआ सुपनंतरु बिखु सुपनै भी दुख सारे ॥५॥
जब रात्रि होती है तो जीव सपनों में फंस जाते हैं और सपनों में भी माया रूपी विष का दुख भोगते हैं।॥ ५॥
ਕਲਰੁ ਖੇਤੁ ਲੈ ਕੂੜੁ ਜਮਾਇਆ ਸਭ ਕੂੜੈ ਕੇ ਖਲਵਾਰੇ ॥
कलरु खेतु लै कूड़ु जमाइआ सभ कूड़ै के खलवारे ॥
जिस व्यक्ति ने बंजर खेत लेकर उसमें झूठ बोया है, उसके सभी खलिहान झूठ से भरे होते हैं।
ਸਾਕਤ ਨਰ ਸਭਿ ਭੂਖ ਭੁਖਾਨੇ ਦਰਿ ਠਾਢੇ ਜਮ ਜੰਦਾਰੇ ॥੬॥
साकत नर सभि भूख भुखाने दरि ठाढे जम जंदारे ॥६॥
पदार्थवादी पुरुष सदा ही भूखे रहते हैं और दण्ड भोगने के लिए निर्दयी यम के द्वार पर खड़े होते हैं।॥ ६॥
ਮਨਮੁਖ ਕਰਜੁ ਚੜਿਆ ਬਿਖੁ ਭਾਰੀ ਉਤਰੈ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੇ ॥
मनमुख करजु चड़िआ बिखु भारी उतरै सबदु वीचारे ॥
स्वेच्छाचारी जीव पर माया रूपी विष का भारी ऋण चढ़ा रहता है, पर यह ऋण शब्द के चिंतन ही उतरता है।
ਜਿਤਨੇ ਕਰਜ ਕਰਜ ਕੇ ਮੰਗੀਏ ਕਰਿ ਸੇਵਕ ਪਗਿ ਲਗਿ ਵਾਰੇ ॥੭॥
जितने करज करज के मंगीए करि सेवक पगि लगि वारे ॥७॥
जितने भी कर्ज माँगने वाले हैं, परमात्मा ने उन्हें सेवक बनाकर यमदूतों को उनसे कर्ज लेने से रोक दिया है।॥ ७॥
ਜਗੰਨਾਥ ਸਭਿ ਜੰਤ੍ਰ ਉਪਾਏ ਨਕਿ ਖੀਨੀ ਸਭ ਨਥਹਾਰੇ ॥
जगंनाथ सभि जंत्र उपाए नकि खीनी सभ नथहारे ॥
सभी जीवों को जगत् के मालिक ने पैदा किया है किन्तु उसने उनके नाक में नकेल डाली हुई है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਖਿੰਚੈ ਤਿਵ ਚਲੀਐ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ॥੮॥੨॥
नानक प्रभु खिंचै तिव चलीऐ जिउ भावै राम पिआरे ॥८॥२॥
हे नानक ! जैसे प्रिय प्रभु को मंजूर होता है, वह जीवों की नकेल को खींचता है और वैसे ही वे चलते हैं अर्थात् परमात्मा की इच्छानुसार ही जीवों का जीवन चलता है॥८॥२॥
ਨਟ ਮਹਲਾ ੪ ॥
नट महला ४ ॥
नट महला ४॥
ਰਾਮ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰਿ ਨਾਵਾਰੇ ॥
राम हरि अम्रित सरि नावारे ॥
हरि-नामामृत के सरोवर में ही स्नान करो।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਗਿਆਨੁ ਮਜਨੁ ਹੈ ਨੀਕੋ ਮਿਲਿ ਕਲਮਲ ਪਾਪ ਉਤਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुरि गिआनु मजनु है नीको मिलि कलमल पाप उतारे ॥१॥ रहाउ ॥
सतगुरु का ज्ञान ऐसा पावन स्नान है, जिससे सब पापों की मैल उतर जाती है। १॥ रहाउ॥
ਸੰਗਤਿ ਕਾ ਗੁਨੁ ਬਹੁਤੁ ਅਧਿਕਾਈ ਪੜਿ ਸੂਆ ਗਨਕ ਉਧਾਰੇ ॥
संगति का गुनु बहुतु अधिकाई पड़ि सूआ गनक उधारे ॥
अच्छी संगति का गुण बड़ा लाभदायक है, गणिका से राम नाम पढ़कर तोते ने उसका उद्धार कर दिया था। चूंकि तोता हर वक्त राम-राम बोलता रहता था और गणिका सुनती रहती थी।
ਪਰਸ ਨਪਰਸ ਭਏ ਕੁਬਿਜਾ ਕਉ ਲੈ ਬੈਕੁੰਠਿ ਸਿਧਾਰੇ ॥੧॥
परस नपरस भए कुबिजा कउ लै बैकुंठि सिधारे ॥१॥
जब राजा कंस की मालिन कुविजा को श्रीकृष्ण के चरण-स्पर्श प्राप्त हुए तो उसका भी कल्याण हुआ और वह वैकुण्ठ सिधार गई॥ १॥
ਅਜਾਮਲ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪੁਤ੍ਰ ਪ੍ਰਤਿ ਕੀਨੀ ਕਰਿ ਨਾਰਾਇਣ ਬੋਲਾਰੇ ॥
अजामल प्रीति पुत्र प्रति कीनी करि नाराइण बोलारे ॥
अजामल ब्राह्मण ने अपने सबसे छोटे पुत्र नारायण से प्रीति की थी और अन्तिम समय उसने नारायण कहकर बुलाया।
ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੈ ਮਨਿ ਭਾਇ ਭਾਵਨੀ ਜਮਕੰਕਰ ਮਾਰਿ ਬਿਦਾਰੇ ॥੨॥
मेरे ठाकुर कै मनि भाइ भावनी जमकंकर मारि बिदारे ॥२॥
मेरे ठाकुर जी के मन में उसकी श्रद्धा बड़ी प्यारी लगी और यमदूतों को मार भगाया॥ २॥
ਮਾਨੁਖੁ ਕਥੈ ਕਥਿ ਲੋਕ ਸੁਨਾਵੈ ਜੋ ਬੋਲੈ ਸੋ ਨ ਬੀਚਾਰੇ ॥
मानुखु कथै कथि लोक सुनावै जो बोलै सो न बीचारे ॥
मनुष्य बड़ी-बड़ी बातें करता हुआ लोगों को सुनाता है लेकिन जो वह बोलता है, उस पर खुद विचार नहीं करता।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲੈ ਤ ਦਿੜਤਾ ਆਵੈ ਹਰਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੩॥
सतसंगति मिलै त दिड़ता आवै हरि राम नामि निसतारे ॥३॥
जब उसे सत्संगति मिल जाती है तो उसके मन में आस्था पैदा हो जाती है एवं राम-नाम द्वारा उसकी मुक्ति हो जाती है॥ ३॥
ਜਬ ਲਗੁ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਹੈ ਸਾਬਤੁ ਤਬ ਲਗਿ ਕਿਛੁ ਨ ਸਮਾਰੇ ॥
जब लगु जीउ पिंडु है साबतु तब लगि किछु न समारे ॥
जब तक स्वस्थ शरीर में प्राण हैं, तब तक वह बिल्कुल भी भगवान को याद नहीं करता।
ਜਬ ਘਰ ਮੰਦਰਿ ਆਗਿ ਲਗਾਨੀ ਕਢਿ ਕੂਪੁ ਕਢੈ ਪਨਿਹਾਰੇ ॥੪॥
जब घर मंदरि आगि लगानी कढि कूपु कढै पनिहारे ॥४॥
जब उसके घर मन्दिर में आग लगती है तो वह कूप खोदकर आग बुझाने के लिए पानी निकालता है अर्थात् जब कोई भारी मुसीबत आती है तो ही वह भगवान को स्मरण करता है॥ ४॥
ਸਾਕਤ ਸਿਉ ਮਨ ਮੇਲੁ ਨ ਕਰੀਅਹੁ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰੇ ॥
साकत सिउ मन मेलु न करीअहु जिनि हरि हरि नामु बिसारे ॥
हे मन ! शाक्त आदमी से कभी मेल-मिलाप मत करो, जिसने हरि-नाम हो भुला दिया है।
ਸਾਕਤ ਬਚਨ ਬਿਛੂਆ ਜਿਉ ਡਸੀਐ ਤਜਿ ਸਾਕਤ ਪਰੈ ਪਰਾਰੇ ॥੫॥
साकत बचन बिछूआ जिउ डसीऐ तजि साकत परै परारे ॥५॥
शाक्त आदमी के वचन इतने कड़वे होते हैं जैसे बेिच्छु डंक मारता है, इसलिए शाक्त का संग छोड़कर परे हट जाना चाहिए॥ ५॥