ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੩
मारू महला ४ घरु ३
मारू महला ४ घरु ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਲੈ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਪਤਿ ਪਾਇ ॥
हरि हरि नामु निधानु लै गुरमति हरि पति पाइ ॥
गुरु के उपदेशानुसार जिसने हरि-नाम रूपी निधि प्राप्त की है, उसने ही यश हासिल किया है।
ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਨਾਲਿ ਚਲਦਾ ਹਰਿ ਅੰਤੇ ਲਏ ਛਡਾਇ ॥
हलति पलति नालि चलदा हरि अंते लए छडाइ ॥
लोक-परलोक में वही जीव का मददगार बनता है और अन्त में छुटकारा दिलवाता है।
ਜਿਥੈ ਅਵਘਟ ਗਲੀਆ ਭੀੜੀਆ ਤਿਥੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੁਕਤਿ ਕਰਾਇ ॥੧॥
जिथै अवघट गलीआ भीड़ीआ तिथै हरि हरि मुकति कराइ ॥१॥
जहाँ संकीर्ण एवं कठिन गली-मार्ग है, वहाँ परमात्मा मुक्त करवाता है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰਾ ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇ ॥
मेरे सतिगुरा मै हरि हरि नामु द्रिड़ाइ ॥
हे मेरे सतगुरु ! मुझे हरि-नाम दृढ़ करवा दो।
ਮੇਰਾ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਬੰਧਪੋ ਮੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरा मात पिता सुत बंधपो मै हरि बिनु अवरु न माइ ॥१॥ रहाउ ॥
हे माँ! हरि के बिना अन्य कोई भी मेरा माता-पिता, पुत्र एवं बंधु नहीं है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੈ ਹਰਿ ਬਿਰਹੀ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਕੋਈ ਆਣਿ ਮਿਲਾਵੈ ਮਾਇ ॥
मै हरि बिरही हरि नामु है कोई आणि मिलावै माइ ॥
हे माँ ! मैं ईश्वर का प्रेमी हूँ, कोई आकर मुझे उससे मिला दे।
ਤਿਸੁ ਆਗੈ ਮੈ ਜੋਦੜੀ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਦੇਇ ਮਿਲਾਇ ॥
तिसु आगै मै जोदड़ी मेरा प्रीतमु देइ मिलाइ ॥
मैं उसके समक्ष प्रार्थना करता हूँ कि मुझे मेरे प्रियतम से मिला दे।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਦਇਆਲ ਪ੍ਰਭੁ ਹਰਿ ਮੇਲੇ ਢਿਲ ਨ ਪਾਇ ॥੨॥
सतिगुरु पुरखु दइआल प्रभु हरि मेले ढिल न पाइ ॥२॥
महापुरुष सतगुरु बड़ा दयालु है, जो ईश्वर से मिलाप करवाने में कोई देरी नहीं करता॥ २॥
ਜਿਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਿਓ ਸੇ ਭਾਗਹੀਣ ਮਰਿ ਜਾਇ ॥
जिन हरि हरि नामु न चेतिओ से भागहीण मरि जाइ ॥
जिन्होंने ईश्वर को याद नहीं किया, ऐसे भाग्यहीन मृत्यु का शिकार हो जाते हैं।
ਓਇ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੋਨਿ ਭਵਾਈਅਹਿ ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥
ओइ फिरि फिरि जोनि भवाईअहि मरि जमहि आवै जाइ ॥
वे बार-बार अनेक योनियों में भटकते हैं और आवागमन में पड़े रहते हैं।
ਓਇ ਜਮ ਦਰਿ ਬਧੇ ਮਾਰੀਅਹਿ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥੩॥
ओइ जम दरि बधे मारीअहि हरि दरगह मिलै सजाइ ॥३॥
वे यम के द्वार पर कष्ट सहते हैं और प्रभु-दरबार में कठोर दण्ड भोगते हैं।॥ ३॥
ਤੂ ਪ੍ਰਭੁ ਹਮ ਸਰਣਾਗਤੀ ਮੋ ਕਉ ਮੇਲਿ ਲੈਹੁ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
तू प्रभु हम सरणागती मो कउ मेलि लैहु हरि राइ ॥
हे ईश्वर ! तू मेरा प्रभु है, मैं तेरी शरण में आया हूँ, मुझे अपने साथ मिला लो।
ਹਰਿ ਧਾਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਜਗਜੀਵਨਾ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣਾਇ ॥
हरि धारि क्रिपा जगजीवना गुर सतिगुर की सरणाइ ॥
हे जग के जीवन ! कृपा करके गुरु की शरण में रखो ।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਹੋਇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਮੇਲਾਇ ॥੪॥੧॥੩॥
हरि जीउ आपि दइआलु होइ जन नानक हरि मेलाइ ॥४॥१॥३॥
हे नानक ! परमात्मा ने स्वयं ही दयालु होकर उसे अपने साथ मिला लिया है॥ ४॥ १॥ ३॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੪ ॥
मारू महला ४ ॥
मारू महला ४॥
ਹਉ ਪੂੰਜੀ ਨਾਮੁ ਦਸਾਇਦਾ ਕੋ ਦਸੇ ਹਰਿ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ॥
हउ पूंजी नामु दसाइदा को दसे हरि धनु रासि ॥
मैं हरि-नाम रूपी पूंजी के बारे में पूछता रहता हूँ, कोई मुझे बता दे कि यह धन राशि कहाँ से मिलती है।
ਹਉ ਤਿਸੁ ਵਿਟਹੁ ਖਨ ਖੰਨੀਐ ਮੈ ਮੇਲੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਪਾਸਿ ॥
हउ तिसु विटहु खन खंनीऐ मै मेले हरि प्रभ पासि ॥
जो मुझे परमेश्वर से मिला दे, मैं उस पर कुर्बान जाता हूँ।
ਮੈ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਪਿਰੰਮ ਕਾ ਕਿਉ ਸਜਣੁ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਸਿ ॥੧॥
मै अंतरि प्रेमु पिरम का किउ सजणु मिलै मिलासि ॥१॥
मेरे अन्तर्मन में प्रियतम का बड़ा प्रेम है, मेरा सज्जन मुझे कैसे मिलेगा, जिससे मैं उसमें विलीन हो जाऊँ॥ १॥
ਮਨ ਪਿਆਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ॥
मन पिआरिआ मित्रा मै हरि हरि नामु धनु रासि ॥
हे प्यारे मित्र मन ! हरि नाम ही मेरी धन-राशि है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਹਰਿ ਧੀਰਕ ਹਰਿ ਸਾਬਾਸਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरि पूरै नामु द्रिड़ाइआ हरि धीरक हरि साबासि ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु ने मन में हरि-नाम दृढ़ करवाया है, उससे ही धीरज प्राप्त हुआ है और उसे ही हमारा नमन है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇ ਗੁਰੁ ਮੈ ਦਸੇ ਹਰਿ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ॥
हरि हरि आपि मिलाइ गुरु मै दसे हरि धनु रासि ॥
हरि स्वयं ही गुरु से मिलाप करवाता है और वही घन-राशि का मार्गदर्शन करता है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪ੍ਰੇਮੁ ਨ ਲਭਈ ਜਨ ਵੇਖਹੁ ਮਨਿ ਨਿਰਜਾਸਿ ॥
बिनु गुर प्रेमु न लभई जन वेखहु मनि निरजासि ॥
हे भक्तजनो ! अपने मन में निर्णय करके देख लो, गुरु के बिना प्रभु प्रेम नहीं मिलता।
ਹਰਿ ਗੁਰ ਵਿਚਿ ਆਪੁ ਰਖਿਆ ਹਰਿ ਮੇਲੇ ਗੁਰ ਸਾਬਾਸਿ ॥੨॥
हरि गुर विचि आपु रखिआ हरि मेले गुर साबासि ॥२॥
हरि गुरु के मन में स्वयं निवास करता है, परमात्मा से मिलाप करवाने वाले उस गुरु को शाबाश है॥ २॥
ਸਾਗਰ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ਹਰਿ ਪੂਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥
सागर भगति भंडार हरि पूरे सतिगुर पासि ॥
पूर्ण सतगुरु के पास भगवान् की भक्ति का गहन सागर सरीखा भण्डार है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ਖੋਲਿ ਦੇਇ ਮੁਖਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਪਰਗਾਸਿ ॥
सतिगुरु तुठा खोलि देइ मुखि गुरमुखि हरि परगासि ॥
सतगुरु प्रसन्न होकर भण्डार को खोलकर अपने शिष्यों को देता है और गुरुमुखों के हृदय में आलोक हो जाता है।
ਮਨਮੁਖਿ ਭਾਗ ਵਿਹੂਣਿਆ ਤਿਖ ਮੁਈਆ ਕੰਧੀ ਪਾਸਿ ॥੩॥
मनमुखि भाग विहूणिआ तिख मुईआ कंधी पासि ॥३॥
स्वेच्छाचारी जीव कितने दुर्भाग्यशाली हैं जो नामामृत के सरोवर के पास रहकर प्यासे ही रह जाते हैं।॥ ३॥
ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਦਾਤਾਰੁ ਹੈ ਹਉ ਮਾਗਉ ਦਾਨੁ ਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥
गुरु दाता दातारु है हउ मागउ दानु गुर पासि ॥
गुरु ही सबसे बड़ा दाता है, मैं उससे यही दान माँगता हूँ
ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨਾ ਮੇਲਿ ਪ੍ਰਭ ਮੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਵਡੜੀ ਆਸ ॥
चिरी विछुंना मेलि प्रभ मै मनि तनि वडड़ी आस ॥
मुझ जैसे चिरकाल से बिछुड़े हुए को परमात्मा से मिला दो, मेरे मन-तन में एक यही अभिलाषा है।
ਗੁਰ ਭਾਵੈ ਸੁਣਿ ਬੇਨਤੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥੪॥੨॥੪॥
गुर भावै सुणि बेनती जन नानक की अरदासि ॥४॥२॥४॥
नानक विनती करते हैं कि यदि गुरु को मंजूर हो तो वह मेरी प्रार्थना सुन लेगा॥ ४॥ २॥ ४॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੪ ॥
मारू महला ४ ॥
मारू महला ४॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਣਾਇ ਪ੍ਰਭ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਰਿਦੈ ਸਮਾਣੀ ॥
हरि हरि कथा सुणाइ प्रभ गुरमति हरि रिदै समाणी ॥
गुरु ने हरि की कथा सुनाई है, गुरु के उपदेशानुसार हृदय में समा गई है।
ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਵਡਭਾਗੀਆ ਹਰਿ ਉਤਮ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੀ ॥
जपि हरि हरि कथा वडभागीआ हरि उतम पदु निरबाणी ॥
जिस खुशकिस्मत ने हरि-कथा का जाप किया है, उसे ही उत्तम निर्वाण-पद प्राप्त हुआ है।