ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਮਾਨ ਮੋਹ ਅਰੁ ਲੋਭ ਵਿਕਾਰਾ ਬੀਓ ਚੀਤਿ ਨ ਘਾਲਿਓ ॥
मान मोह अरु लोभ विकारा बीओ चीति न घालिओ ॥
मान-मोह और लोभ-विकार को अपने चित में आने नहीं दिया।
ਨਾਮ ਰਤਨੁ ਗੁਣਾ ਹਰਿ ਬਣਜੇ ਲਾਦਿ ਵਖਰੁ ਲੈ ਚਾਲਿਓ ॥੧॥
नाम रतनु गुणा हरि बणजे लादि वखरु लै चालिओ ॥१॥
नाम-रत्न एवं हरि-गुणों का व्यापार कर उसकी सामग्री लादकर जगत् से चल पड़ा हूँ। १॥
ਸੇਵਕ ਕੀ ਓੜਕਿ ਨਿਬਹੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
सेवक की ओड़कि निबही प्रीति ॥
सेवक की प्रभु से प्रीति अंत तक निभ गई है।
ਜੀਵਤ ਸਾਹਿਬੁ ਸੇਵਿਓ ਅਪਨਾ ਚਲਤੇ ਰਾਖਿਓ ਚੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जीवत साहिबु सेविओ अपना चलते राखिओ चीति ॥१॥ रहाउ ॥
जीवित रहते मालिक की उपासना करता रहा और अब जग से चलते समय भी मन में उसे ही याद किया है। १॥ रहाउ ।
ਜੈਸੀ ਆਗਿਆ ਕੀਨੀ ਠਾਕੁਰਿ ਤਿਸ ਤੇ ਮੁਖੁ ਨਹੀ ਮੋਰਿਓ ॥
जैसी आगिआ कीनी ठाकुरि तिस ते मुखु नही मोरिओ ॥
मेरे ठाकुर जी ने जैसी आज्ञा की, उससे कभी विमुख नहीं हुआ।
ਸਹਜੁ ਅਨੰਦੁ ਰਖਿਓ ਗ੍ਰਿਹ ਭੀਤਰਿ ਉਠਿ ਉਆਹੂ ਕਉ ਦਉਰਿਓ ॥੨॥
सहजु अनंदु रखिओ ग्रिह भीतरि उठि उआहू कउ दउरिओ ॥२॥
अगर उसने घर में रखा तो सहज ही आनंद प्राप्त करता रहा। अगर उसने उठने का आदेश किया तो मैं उधर ही दौड़ पड़ा। २॥
ਆਗਿਆ ਮਹਿ ਭੂਖ ਸੋਈ ਕਰਿ ਸੂਖਾ ਸੋਗ ਹਰਖ ਨਹੀ ਜਾਨਿਓ ॥
आगिआ महि भूख सोई करि सूखा सोग हरख नही जानिओ ॥
अगर भूख ने तंग किया तो उसकी आज्ञा में उसे ही सुख माना और खुशी-गम को कभी समझा ही नहीं।
ਜੋ ਜੋ ਹੁਕਮੁ ਭਇਓ ਸਾਹਿਬ ਕਾ ਸੋ ਮਾਥੈ ਲੇ ਮਾਨਿਓ ॥੩॥
जो जो हुकमु भइओ साहिब का सो माथै ले मानिओ ॥३॥
मालिक का जो जो हुक्म हुआ, उसे सहर्ष स्वीकार किया। ३ ।
ਭਇਓ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਠਾਕੁਰੁ ਸੇਵਕ ਕਉ ਸਵਰੇ ਹਲਤ ਪਲਾਤਾ ॥
भइओ क्रिपालु ठाकुरु सेवक कउ सवरे हलत पलाता ॥
जब ठाकुर जी अपने सेवक पर कृपालु हो गए तो उसका लोक-परलोक दोनों ही संवर गए।
ਧੰਨੁ ਸੇਵਕੁ ਸਫਲੁ ਓਹੁ ਆਇਆ ਜਿਨਿ ਨਾਨਕ ਖਸਮੁ ਪਛਾਤਾ ॥੪॥੫॥
धंनु सेवकु सफलु ओहु आइआ जिनि नानक खसमु पछाता ॥४॥५॥
हे नानक ! जिसने अपने मालिक को पहचान लिया है, वह सेवक धन्य है, उसका जन्म सफल हो गया है॥ ४॥ ५॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਖੁਲਿਆ ਕਰਮੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਭਈ ਠਾਕੁਰ ਕੀਰਤਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਾਈ ॥
खुलिआ करमु क्रिपा भई ठाकुर कीरतनु हरि हरि गाई ॥
मेरा भाग्य खुल गया, ठाकुर जी की कृपा हो गई, इसके फलस्वरूप प्रभु का ही कीर्तिगान किया है।
ਸ੍ਰਮੁ ਥਾਕਾ ਪਾਏ ਬਿਸ੍ਰਾਮਾ ਮਿਟਿ ਗਈ ਸਗਲੀ ਧਾਈ ॥੧॥
स्रमु थाका पाए बिस्रामा मिटि गई सगली धाई ॥१॥
श्रम की थकावट दूर होकर आराम मिल गया है और सारी भटकन मिट गई है॥ १॥
ਅਬ ਮੋਹਿ ਜੀਵਨ ਪਦਵੀ ਪਾਈ ॥
अब मोहि जीवन पदवी पाई ॥
अब मुझे जीवन-पद प्राप्त हो गया है।
ਚੀਤਿ ਆਇਓ ਮਨਿ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ਸੰਤਨ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
चीति आइओ मनि पुरखु बिधाता संतन की सरणाई ॥१॥ रहाउ ॥
संतजनों की शरण में आकर मन में विधाता ही याद आया है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਨਿਵਾਰੇ ਨਿਵਰੇ ਸਗਲ ਬੈਰਾਈ ॥
कामु क्रोधु लोभु मोहु निवारे निवरे सगल बैराई ॥
काम, क्रोध, लोभ एवं मोह का निवारण कर दिया है और सब वैरी नष्ट हो गए हैं।
ਸਦ ਹਜੂਰਿ ਹਾਜਰੁ ਹੈ ਨਾਜਰੁ ਕਤਹਿ ਨ ਭਇਓ ਦੂਰਾਈ ॥੨॥
सद हजूरि हाजरु है नाजरु कतहि न भइओ दूराई ॥२॥
मुझे तो ईश्वर साक्षात् प्रत्यक्ष हीं लगता है, वह कहीं दूर नजर नहीं आता॥ २॥
ਸੁਖ ਸੀਤਲ ਸਰਧਾ ਸਭ ਪੂਰੀ ਹੋਏ ਸੰਤ ਸਹਾਈ ॥
सुख सीतल सरधा सभ पूरी होए संत सहाई ॥
संतों की मदद से सारी श्रद्धा पूरी हो गई हैं और मन को सुख-शान्ति उपलब्ध हुई हैं।
ਪਾਵਨ ਪਤਿਤ ਕੀਏ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਮਹਿਮਾ ਕਥਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥੩॥
पावन पतित कीए खिन भीतरि महिमा कथनु न जाई ॥३॥
जिसने क्षण में ही पतित जीवों को पावन कर दिया है, उसकी महिमा कथन नहीं की जा सकती॥ ३॥
ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਸਗਲ ਭੈ ਖੋਏ ਗੋਬਿਦ ਚਰਣ ਓਟਾਈ ॥
निरभउ भए सगल भै खोए गोबिद चरण ओटाई ॥
प्रभु-चरणों की ओट लेने से सारे भय निवृत्त हो गए हैं और में निर्भय हो गया हूँ ।
ਨਾਨਕੁ ਜਸੁ ਗਾਵੈ ਠਾਕੁਰ ਕਾ ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੪॥੬॥
नानकु जसु गावै ठाकुर का रैणि दिनसु लिव लाई ॥४॥६॥
हे नानक ! अब तो लगन लगाकर रात-दिन ठाकुर जी का ही यशगान करता रहता हूँ॥ ४॥ ६॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਜੋ ਸਮਰਥੁ ਸਰਬ ਗੁਣ ਨਾਇਕੁ ਤਿਸ ਕਉ ਕਬਹੁ ਨ ਗਾਵਸਿ ਰੇ ॥
जो समरथु सरब गुण नाइकु तिस कउ कबहु न गावसि रे ॥
हे जीव ! जो सर्वकला समर्थ, सर्व-गुणों का स्वामी है, उस ईश्वर का कभी स्तुतिगान नहीं करते ।
ਛੋਡਿ ਜਾਇ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਤਾ ਕਉ ਉਆ ਕਉ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਧਾਵਸਿ ਰੇ ॥੧॥
छोडि जाइ खिन भीतरि ता कउ उआ कउ फिरि फिरि धावसि रे ॥१॥
परन्तु जिस माया को हर कोई एक क्षण में छोड़ जाता है, उसके लिए बार-बार दौड़ते रहते हो ॥१॥
ਅਪੁਨੇ ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਕਿਉ ਨ ਸਮਾਰਸਿ ਰੇ ॥
अपुने प्रभ कउ किउ न समारसि रे ॥
अरे नादान ! अपने प्रभु को क्यों न स्मरण करते।
ਬੈਰੀ ਸੰਗਿ ਰੰਗ ਰਸਿ ਰਚਿਆ ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਜੀਅਰਾ ਜਾਰਸਿ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बैरी संगि रंग रसि रचिआ तिसु सिउ जीअरा जारसि रे ॥१॥ रहाउ ॥
काम, क्रोध, मोह रूपी वैरियों के संग रंगरलियों में लीन रहते हो, उनके संग अपना दिल क्यों जला रहे हो ॥१॥ रहाउ ॥
ਜਾ ਕੈ ਨਾਮਿ ਸੁਨਿਐ ਜਮੁ ਛੋਡੈ ਤਾ ਕੀ ਸਰਣਿ ਨ ਪਾਵਸਿ ਰੇ ॥
जा कै नामि सुनिऐ जमु छोडै ता की सरणि न पावसि रे ॥
अरे भोले ! जिसका नाम सुनकर यम भी छोड़ जाता है, उसकी शरण क्यों नहीं लेते।
ਕਾਢਿ ਦੇਇ ਸਿਆਲ ਬਪੁਰੇ ਕਉ ਤਾ ਕੀ ਓਟ ਟਿਕਾਵਸਿ ਰੇ ॥੨॥
काढि देइ सिआल बपुरे कउ ता की ओट टिकावसि रे ॥२॥
अपने मन में से बेचारे गीदड़ रूपी भय को निकाल दो और परमात्मा का सहारा बसा लो॥ २।
ਜਿਸ ਕਾ ਜਾਸੁ ਸੁਨਤ ਭਵ ਤਰੀਐ ਤਾ ਸਿਉ ਰੰਗੁ ਨ ਲਾਵਸਿ ਰੇ ॥
जिस का जासु सुनत भव तरीऐ ता सिउ रंगु न लावसि रे ॥
जिसका यश सुनकर संसार-सागर से छुटकारा हो जाता है, उसकी स्मृति में लीन नहीं होते।
ਥੋਰੀ ਬਾਤ ਅਲਪ ਸੁਪਨੇ ਕੀ ਬਹੁਰਿ ਬਹੁਰਿ ਅਟਕਾਵਸਿ ਰੇ ॥੩॥
थोरी बात अलप सुपने की बहुरि बहुरि अटकावसि रे ॥३॥
छोटे सपने की तरह (माया की प्रीति) थोड़ी सी बात है परन्तु पुनः पुनः उस में ही मन फँसा रहे हो॥ ३॥
ਭਇਓ ਪ੍ਰਸਾਦੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਠਾਕੁਰ ਸੰਤਸੰਗਿ ਪਤਿ ਪਾਈ ॥
भइओ प्रसादु क्रिपा निधि ठाकुर संतसंगि पति पाई ॥
कृपानिधि ठाकुर जी की कृपा से संतों का संग पाकर शोभा प्राप्त हुई है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਭ੍ਰਮੁ ਛੂਟਾ ਜਉ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਸਹਾਈ ॥੪॥੭॥
कहु नानक त्रै गुण भ्रमु छूटा जउ प्रभ भए सहाई ॥४॥७॥
हे नानक ! जब प्रभु सहायक बन जाता है तो त्रिगुणात्मक माया का भ्रम छूट जाता है॥ ४॥ ७॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਸਭ ਬਿਧਿ ਜਾਨੈ ਤਿਸ ਤੇ ਕਹਾ ਦੁਲਾਰਿਓ ॥
अंतरजामी सभ बिधि जानै तिस ते कहा दुलारिओ ॥
जब अन्तर्यामी ईश्वर सब युक्तियाँ जानता है, तो उससे क्या छिपाया जा सकता है।
ਹਸਤ ਪਾਵ ਝਰੇ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਅਗਨਿ ਸੰਗਿ ਲੈ ਜਾਰਿਓ ॥੧॥
हसत पाव झरे खिन भीतरि अगनि संगि लै जारिओ ॥१॥
आदमी के हाथ-पाँव इत्यादि अंग क्षण में खत्म हो जाते हैं और उन्हें अग्नि में जला दिया जाता है।॥१॥