Hindi Page 1002

ਗੁਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਅਵਖਧੁ ਨਾਮੁ ਦੀਨਾ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸੰਕਟ ਜੋਨਿ ਨ ਪਾਇ ॥੫॥੨॥
गुरि मंत्रु अवखधु नामु दीना जन नानक संकट जोनि न पाइ ॥५॥२॥
हे नानक ! गुरु ने जिसे नाम-मंत्र रूपी औषधि प्रदान की है, वह गर्भ-योनि के संकट से छूट गया है। ५॥ २॥

ਰੇ ਨਰ ਇਨ ਬਿਧਿ ਪਾਰਿ ਪਰਾਇ ॥
रे नर इन बिधि पारि पराइ ॥
हे आदमी ! इस विधि से मुक्ति संभव है,

ਧਿਆਇ ਹਰਿ ਜੀਉ ਹੋਇ ਮਿਰਤਕੁ ਤਿਆਗਿ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੨॥੧੧
धिआइ हरि जीउ होइ मिरतकु तिआगि दूजा भाउ ॥ रहाउ दूजा ॥२॥११॥
द्वैतभाव को त्याग कर और जीवित ही अहम् को मारकर परमात्मा का ध्यान करो॥ रहाउ दूसरा। २॥ ११॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥

ਬਾਹਰਿ ਢੂਢਨ ਤੇ ਛੂਟਿ ਪਰੇ ਗੁਰਿ ਘਰ ਹੀ ਮਾਹਿ ਦਿਖਾਇਆ ਥਾ ॥
बाहरि ढूढन ते छूटि परे गुरि घर ही माहि दिखाइआ था ॥
गुरु ने हृदय-घर में ही परम-सत्य के दर्शन करवा दिए, जिससे ईश्वर को बाहर ढूँढने से छूट गया।

ਅਨਭਉ ਅਚਰਜ ਰੂਪੁ ਪ੍ਰਭ ਪੇਖਿਆ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਛੋਡਿ ਨ ਕਤਹੂ ਜਾਇਆ ਥਾ ॥੧॥
अनभउ अचरज रूपु प्रभ पेखिआ मेरा मनु छोडि न कतहू जाइआ था ॥१॥
मैंने परमात्मा का अद्भुत रूप देख लिया है, इसलिए उसे छोड़कर मेरा मन इधर-उधर नहीं जाता। १॥

ਮਾਨਕੁ ਪਾਇਓ ਰੇ ਪਾਇਓ ਹਰਿ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਥਾ ॥
मानकु पाइओ रे पाइओ हरि पूरा पाइआ था ॥
मैंने पूर्ण परमेश्वर रूपी माणिक्य को पा लिया है।

ਮੋਲਿ ਅਮੋਲੁ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਈ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰੂ ਦਿਵਾਇਆ ਥਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मोलि अमोलु न पाइआ जाई करि किरपा गुरू दिवाइआ था ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की कृपा से परमात्मा रूपी माणिक्य की प्राप्ति हो सकी है, जो बड़ा अमूल्य है और जिसे किसी भी कीमत पर पाया नहीं जा सकता। १॥ रहाउ॥

ਅਦਿਸਟੁ ਅਗੋਚਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਅਕਥੁ ਕਥਾਇਆ ਥਾ ॥
अदिसटु अगोचरु पारब्रहमु मिलि साधू अकथु कथाइआ था ॥
साधुओं के संग मिलकर अदृश्य, अगोचर, अकथनीय परब्रह्म का स्तुतिगान किया।

ਅਨਹਦ ਸਬਦੁ ਦਸਮ ਦੁਆਰਿ ਵਜਿਓ ਤਹ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਚੁਆਇਆ ਥਾ ॥੨॥
अनहद सबदु दसम दुआरि वजिओ तह अम्रित नामु चुआइआ था ॥२॥
जब दसम द्वार में अनाहत शब्द गूंजने लगा तो रसना में नामामृत टपकने लगा॥ २॥

ਤੋਟਿ ਨਾਹੀ ਮਨਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੂਝੀ ਅਖੁਟ ਭੰਡਾਰ ਸਮਾਇਆ ਥਾ ॥
तोटि नाही मनि त्रिसना बूझी अखुट भंडार समाइआ था ॥
मन में अक्षय भण्डार समा गया है, जिससे तृष्णा बुझ गई है और किसी पदार्थ की कोई कमी नहीं।

ਚਰਣ ਚਰਣ ਚਰਣ ਗੁਰ ਸੇਵੇ ਅਘੜੁ ਘੜਿਓ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ਥਾ ॥੩॥
चरण चरण चरण गुर सेवे अघड़ु घड़िओ रसु पाइआ था ॥३॥
गुरु-चरणों की सेवा करने से अशिष्ट मन शिष्ट हो गया है, जिससे नामामृत का रस प्राप्त हो गया है॥ ३॥

ਸਹਜੇ ਆਵਾ ਸਹਜੇ ਜਾਵਾ ਸਹਜੇ ਮਨੁ ਖੇਲਾਇਆ ਥਾ ॥
सहजे आवा सहजे जावा सहजे मनु खेलाइआ था ॥
मैं सहज ही आता एवं जाता और सहज ही मन रमण कर रहा है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਰਮੁ ਗੁਰਿ ਖੋਇਆ ਤਾ ਹਰਿ ਮਹਲੀ ਮਹਲੁ ਪਾਇਆ ਥਾ ॥੪॥੩॥੧੨॥
कहु नानक भरमु गुरि खोइआ ता हरि महली महलु पाइआ था ॥४॥३॥१२॥
हे नानक ! जब गुरु ने भ्रम को मिटाया तो प्रभु चरणों में स्थान पा लिया। ४॥ ३॥ १२॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥

ਜਿਸਹਿ ਸਾਜਿ ਨਿਵਾਜਿਆ ਤਿਸਹਿ ਸਿਉ ਰੁਚ ਨਾਹਿ ॥
जिसहि साजि निवाजिआ तिसहि सिउ रुच नाहि ॥
जिस परमात्मा ने तुझे उत्पन्न करके गौरव प्रदान किया है, उससे तेरी कोई रुचि नहीं।

ਆਨ ਰੂਤੀ ਆਨ ਬੋਈਐ ਫਲੁ ਨ ਫੂਲੈ ਤਾਹਿ ॥੧॥
आन रूती आन बोईऐ फलु न फूलै ताहि ॥१॥
यदि अन्य ऋतु में अन्य बीज बोया जाए तो उसे कोई फल-फूल नहीं लगता॥ १॥

ਰੇ ਮਨ ਵਤ੍ਰ ਬੀਜਣ ਨਾਉ ॥
रे मन वत्र बीजण नाउ ॥
हे भोले मन ! यह मानव-जीवन नाम रूपी बीज बोने का सुअवसर है,

ਬੋਇ ਖੇਤੀ ਲਾਇ ਮਨੂਆ ਭਲੋ ਸਮਉ ਸੁਆਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बोइ खेती लाइ मनूआ भलो समउ सुआउ ॥१॥ रहाउ ॥
मन लगाकर हृदय रूपी खेत में नाम-बोने के इस शुभ-समय का लाभ प्राप्त कर लो॥ १॥ रहाउ॥

ਖੋਇ ਖਹੜਾ ਭਰਮੁ ਮਨ ਕਾ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣੀ ਜਾਇ ॥
खोइ खहड़ा भरमु मन का सतिगुर सरणी जाइ ॥
मन का भ्रम एवं हठ छोड़कर गुरु की शरण में जाओ।

ਕਰਮੁ ਜਿਸ ਕਉ ਧੁਰਹੁ ਲਿਖਿਆ ਸੋਈ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥੨॥
करमु जिस कउ धुरहु लिखिआ सोई कार कमाइ ॥२॥
जिसकी तकदीर में विधाता ने लिखा होता है, वह वही कर्म करता है॥ २॥

ਭਾਉ ਲਾਗਾ ਗੋਬਿਦ ਸਿਉ ਘਾਲ ਪਾਈ ਥਾਇ ॥
भाउ लागा गोबिद सिउ घाल पाई थाइ ॥
गोविन्द से ऐसा अटूट प्रेम लगा है कि सेवा भक्ति सफल हो गई है।

ਖੇਤਿ ਮੇਰੈ ਜੰਮਿਆ ਨਿਖੁਟਿ ਨ ਕਬਹੂ ਜਾਇ ॥੩॥
खेति मेरै जमिआ निखुटि न कबहू जाइ ॥३॥
मेरे हृदय-रूपी खेत में अक्षुण्ण नाम रूपी फसल तैयार हो चुकी है।॥३॥

ਪਾਇਆ ਅਮੋਲੁ ਪਦਾਰਥੋ ਛੋਡਿ ਨ ਕਤਹੂ ਜਾਇ ॥
पाइआ अमोलु पदारथो छोडि न कतहू जाइ ॥
अब मुझे सत्य रूपी अमूल्य पदार्थ की प्राप्ति हुई है, जिसे मैं छोड़कर कहीं नहीं जाता।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਰਹੇ ਆਘਾਇ ॥੪॥੪॥੧੩॥
कहु नानक सुखु पाइआ त्रिपति रहे आघाइ ॥४॥४॥१३॥
हे नानक ! मुझे सुख उपलब्ध हो गया है, जिससे में संतुष्ट एवं तृप्त रहता हूँ॥ ४॥ ४॥ १३॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥

ਫੂਟੋ ਆਂਡਾ ਭਰਮ ਕਾ ਮਨਹਿ ਭਇਓ ਪਰਗਾਸੁ ॥
फूटो आंडा भरम का मनहि भइओ परगासु ॥
भ्रम का अण्डा फूट गया हैं एवं मेरे मन में सत्य का प्रकाश हो गया है।

ਕਾਟੀ ਬੇਰੀ ਪਗਹ ਤੇ ਗੁਰਿ ਕੀਨੀ ਬੰਦਿ ਖਲਾਸੁ ॥੧॥
काटी बेरी पगह ते गुरि कीनी बंदि खलासु ॥१॥
पैरों में पड़ी बन्धनों की बेड़ काटकर गुरु ने (माया की) कैद से मुक्ति कर दी हैं॥ १॥

ਆਵਣ ਜਾਣੁ ਰਹਿਓ ॥
आवण जाणु रहिओ ॥
मेरा जन्म-मरण का चक्र मिट गया है।

ਤਪਤ ਕੜਾਹਾ ਬੁਝਿ ਗਇਆ ਗੁਰਿ ਸੀਤਲ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तपत कड़ाहा बुझि गइआ गुरि सीतल नामु दीओ ॥१॥ रहाउ ॥
जब गुरु ने शान्ति उत्पन्न करने वाला हरि-नाम प्रदान किया तो मन में से तृष्णाग्नि की जलती हुई कड़ाही बुझ गई॥ १॥ रहाउ ॥

ਜਬ ਤੇ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਭਇਆ ਤਉ ਛੋਡਿ ਗਏ ਨਿਗਹਾਰ ॥
जब ते साधू संगु भइआ तउ छोडि गए निगहार ॥
जब से साधुओं का संग मिला है, तब से मुझ पर निगाह रखने वाले यमदूत मेरा साथ छोड़ गए हैं।

ਜਿਸ ਕੀ ਅਟਕ ਤਿਸ ਤੇ ਛੁਟੀ ਤਉ ਕਹਾ ਕਰੈ ਕੋਟਵਾਰ ॥੨॥
जिस की अटक तिस ते छुटी तउ कहा करै कोटवार ॥२॥
जिसने बन्धन में डाला था, जब उससे ही छूट गया तो कोतवाल यमराज मेरा क्या बिगाड़ सकता है॥ २॥

ਚੂਕਾ ਭਾਰਾ ਕਰਮ ਕਾ ਹੋਏ ਨਿਹਕਰਮਾ ॥
चूका भारा करम का होए निहकरमा ॥
मेरे पाप-कर्मों का भार सिर से उतर गया है और निष्कर्म हो गया हैं।

ਸਾਗਰ ਤੇ ਕੰਢੈ ਚੜੇ ਗੁਰਿ ਕੀਨੇ ਧਰਮਾ ॥੩॥
सागर ते कंढै चड़े गुरि कीने धरमा ॥३॥
गुरु ने मुझ पर बड़ा उपकार किया है, जिस कारण मैं संसार-सागर से निकल कर तट पर पहुँच गया हैं॥ ३॥

ਸਚੁ ਥਾਨੁ ਸਚੁ ਬੈਠਕਾ ਸਚੁ ਸੁਆਉ ਬਣਾਇਆ ॥
सचु थानु सचु बैठका सचु सुआउ बणाइआ ॥
अब सत्संग रूपी सच्चा स्थान मिल गया है, सच्चा स्थान ही उठने-बैठने-रहने का ठिकाना हैं और सत्य ही मेरा जीवन-उद्देश्य बन गया है।

ਸਚੁ ਪੂੰਜੀ ਸਚੁ ਵਖਰੋ ਨਾਨਕ ਘਰਿ ਪਾਇਆ ॥੪॥੫॥੧੪॥
सचु पूंजी सचु वखरो नानक घरि पाइआ ॥४॥५॥१४॥
हे नानक ! सत्य ही मेरी पूंजी एवं व्यापार का सौदा हैं, जिसे हृदय-घर में ही पा लिया है| ४॥ ५॥१४॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥

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