ਹਮ ਤੁਮ ਸੰਗਿ ਝੂਠੇ ਸਭਿ ਬੋਲਾ ॥
हम तुम संगि झूठे सभि बोला ॥
हमारे संग हुए तुम्हारे सब वचन झूठे हैं।
ਪਾਇ ਠਗਉਰੀ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਓ ॥
पाइ ठगउरी आपि भुलाइओ ॥
ईश्वर ने माया का भ्रम डालकर स्वयं ही जीव को कुमार्गगामी किया हुआ है।
ਨਾਨਕ ਕਿਰਤੁ ਨ ਜਾਇ ਮਿਟਾਇਓ ॥੨॥
नानक किरतु न जाइ मिटाइओ ॥२॥
हे नानक ! भाग्य को टाला नहीं जा सकता॥ २॥
ਪਸੁ ਪੰਖੀ ਭੂਤ ਅਰੁ ਪ੍ਰੇਤਾ ॥ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਜੋਨੀ ਫਿਰਤ ਅਨੇਤਾ ॥
पसु पंखी भूत अरु प्रेता ॥ बहु बिधि जोनी फिरत अनेता ॥
वह पशु-पक्षी और भूत-प्रेत इत्यादि अनेक योनियों में भटकता है।
ਜਹ ਜਾਨੋ ਤਹ ਰਹਨੁ ਨ ਪਾਵੈ ॥
जह जानो तह रहनु न पावै ॥
वह जिधर भी जाता है, वहाँ उसे रहने के लिए ठिकाना नहीं मिलता।
ਥਾਨ ਬਿਹੂਨ ਉਠਿ ਉਠਿ ਫਿਰਿ ਧਾਵੈ ॥
थान बिहून उठि उठि फिरि धावै ॥
वह स्थानरिक्त होकर बार-बार योनियों में भटकता है।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਬਾਸਨਾ ਬਹੁਤੁ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥
मनि तनि बासना बहुतु बिसथारा ॥
उसके मन-तन में वासना का विस्तार बहुत ज्यादा है।
ਅਹੰਮੇਵ ਮੂਠੋ ਬੇਚਾਰਾ ॥
अहमेव मूठो बेचारा ॥
अभिमान ने बेचारे जीव को ठग लिया है और
ਅਨਿਕ ਦੋਖ ਅਰੁ ਬਹੁਤੁ ਸਜਾਈ ॥
अनिक दोख अरु बहुतु सजाई ॥
अनेक दोषों के कारण बहुत दण्ड भोगता है।
ਤਾ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥
ता की कीमति कहणु न जाई ॥
उस दण्ड का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
ਪ੍ਰਭ ਬਿਸਰਤ ਨਰਕ ਮਹਿ ਪਾਇਆ ॥ ਤਹ ਮਾਤ ਨ ਬੰਧੁ ਨ ਮੀਤ ਨ ਜਾਇਆ ॥
प्रभ बिसरत नरक महि पाइआ ॥ तह मात न बंधु न मीत न जाइआ ॥
ईश्वर को विस्मृत करके वह नरक में ही पड़ता है और वहां माता, बन्धु एवं पत्नी कोई सहायक नहीं होता।
ਜਿਸ ਕਉ ਹੋਤ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸੁਆਮੀ ॥
जिस कउ होत क्रिपाल सुआमी ॥
हे नानक ! जिस पर भगवान् की कृपा हो जाती है,
ਸੋ ਜਨੁ ਨਾਨਕ ਪਾਰਗਰਾਮੀ ॥੩॥
सो जनु नानक पारगरामी ॥३॥
उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है॥ ३॥
ਭ੍ਰਮਤ ਭ੍ਰਮਤ ਪ੍ਰਭ ਸਰਨੀ ਆਇਆ ॥
भ्रमत भ्रमत प्रभ सरनी आइआ ॥
हे प्रभु! अनेक योनियों में भटकते-भटकते तेरी शरण में आया है।
ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਜਗਤ ਪਿਤ ਮਾਇਆ ॥
दीना नाथ जगत पित माइआ ॥
तू दीनानाथ, जगत् का पिता एवं माता है।
ਪ੍ਰਭ ਦਇਆਲ ਦੁਖ ਦਰਦ ਬਿਦਾਰਣ ॥ ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸ ਹੀ ਨਿਸਤਾਰਣ ॥
प्रभ दइआल दुख दरद बिदारण ॥ जिसु भावै तिस ही निसतारण ॥
तू दयालु है और सब दुख-दर्द मिटाने वाला है। जिसे तू चाहता है, उसकी मुक्ति हो जाती है।
ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਕਾਢਨਹਾਰਾ ॥
अंध कूप ते काढनहारा ॥
संसार रूपी अंधकूप में से तू ही बाहर निकालने वाला है और
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਹੋਵਤ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥
प्रेम भगति होवत निसतारा ॥
प्रेम-भक्ति द्वारा जीव का निस्तार होता है।
ਸਾਧ ਰੂਪ ਅਪਨਾ ਤਨੁ ਧਾਰਿਆ ॥
साध रूप अपना तनु धारिआ ॥
तूने स्वयं ही साधु-रूप में शरीर धारण किया है और
ਮਹਾ ਅਗਨਿ ਤੇ ਆਪਿ ਉਬਾਰਿਆ ॥
महा अगनि ते आपि उबारिआ ॥
स्वयं ही माया रूपी महा अग्नि से बचाया है।
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਇਸ ਤੇ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ॥
जप तप संजम इस ते किछु नाही ॥
जप, तप एवं संयम इस जीव से नहीं होता,
ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭ ਅਗਮ ਅਗਾਹੀ ॥
आदि अंति प्रभ अगम अगाही ॥
सृष्टि के आदि एवं अन्त में अगम्य, असीम परमेश्वर का ही अस्तित्व है।
ਨਾਮੁ ਦੇਹਿ ਮਾਗੈ ਦਾਸੁ ਤੇਰਾ ॥
नामु देहि मागै दासु तेरा ॥
नानक विनती करते हैं कि हे हरि ! तेरा दास तुझसे नाम की ही कामना करता है,
ਹਰਿ ਜੀਵਨ ਪਦੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ॥੪॥੩॥੧੯॥
हरि जीवन पदु नानक प्रभु मेरा ॥४॥३॥१९॥
मेरा प्रभु जीवन प्रदाता है॥ ४॥ ३॥ १६॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਕਤ ਕਉ ਡਹਕਾਵਹੁ ਲੋਗਾ ਮੋਹਨ ਦੀਨ ਕਿਰਪਾਈ ॥੧॥
कत कउ डहकावहु लोगा मोहन दीन किरपाई ॥१॥
हे लोगो ! क्यों छल कर रहे हो, ईश्वर तो मुझ दीन पर मेहरबान है॥ १॥
ਐਸੀ ਜਾਨਿ ਪਾਈ ॥ ਸਰਣਿ ਸੂਰੋ ਗੁਰ ਦਾਤਾ ਰਾਖੈ ਆਪਿ ਵਡਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ऐसी जानि पाई ॥ सरणि सूरो गुर दाता राखै आपि वडाई ॥१॥ रहाउ ॥
मुझे यह ज्ञान हो गया है कि गुरु ही दाता है, शरण में आने वाले की शूरवीर की तरह रक्षा करता है और स्वयं ही कीर्ति प्रदान करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਭਗਤਾ ਕਾ ਆਗਿਆਕਾਰੀ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਈ ॥੨॥
भगता का आगिआकारी सदा सदा सुखदाई ॥२॥
भक्तवत्सल होने के कारण वह अपने भक्तों की बात मानने वाला है और सदा ही सुख देने वाला है॥ २॥
ਅਪਨੇ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਕਰੀਅਹੁ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ॥੩॥
अपने कउ किरपा करीअहु इकु नामु धिआई ॥३॥
हे भक्तवत्सल ! अपने दास पर कृपा करो कि तेरे नाम का ध्यान करता रहे॥ ३॥
ਨਾਨਕੁ ਦੀਨੁ ਨਾਮੁ ਮਾਗੈ ਦੁਤੀਆ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਈ ॥੪॥੪॥੨੦॥
नानकु दीनु नामु मागै दुतीआ भरमु चुकाई ॥४॥४॥२०॥
दीन नानक तेरे नाम की ही कामना करता है ताकि मेरा द्वैत भ्र्म मिट जाए॥ ४॥ ४॥ २०॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਮੇਰਾ ਠਾਕੁਰੁ ਅਤਿ ਭਾਰਾ ॥
मेरा ठाकुरु अति भारा ॥
मेरा स्वामी महान् है और
ਮੋਹਿ ਸੇਵਕੁ ਬੇਚਾਰਾ ॥੧॥
मोहि सेवकु बेचारा ॥१॥
मैं तो उसका छोटा-सा सेवक हूँ॥ १॥
ਮੋਹਨੁ ਲਾਲੁ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੀਤਮ ਮਨ ਪ੍ਰਾਨਾ ॥
मोहनु लालु मेरा प्रीतम मन प्राना ॥
मेरा प्रियतम मोहन मुझे मन एवं प्राणों से भी दुलारा है।
ਮੋ ਕਉ ਦੇਹੁ ਦਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मो कउ देहु दाना ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रियवर ! मुझे नाम दान दीजिए॥ १॥ रहाउ॥
ਸਗਲੇ ਮੈ ਦੇਖੇ ਜੋਈ ॥ ਬੀਜਉ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੨॥
सगले मै देखे जोई ॥ बीजउ अवरु न कोई ॥२॥
मैंने सब अवलम्य खोज कर देख लिए हैं परन्तु ईश्वर के अलावा अन्य कोई नहीं है॥ २॥
ਜੀਅਨ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਿ ਸਮਾਹੈ ॥ ਹੈ ਹੋਸੀ ਆਹੇ ॥੩॥
जीअन प्रतिपालि समाहै ॥ है होसी आहे ॥३॥
वह सब जीवों का पोषण एवं उनकी संभाल करता है। वह अब (वर्तमान में) भी है, भविष्य में भी होगा और अतीत में भी वही था॥ ३॥
ਦਇਆ ਮੋਹਿ ਕੀਜੈ ਦੇਵਾ ॥
दइआ मोहि कीजै देवा ॥
नानक कहते हैं कि हे देवाधिदेव ! मुझ पर दया करो ,
ਨਾਨਕ ਲਾਗੋ ਸੇਵਾ ॥੪॥੫॥੨੧॥
नानक लागो सेवा ॥४॥५॥२१॥
ताकि तेरी उपासना में लगा रहूँ॥४॥५॥२१॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਨ ਤਾਰਨ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲੇ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ॥
पतित उधारन तारन बलि बलि बले बलि जाईऐ ॥
हे ईश्वर ! तू पतितों का उद्धारक एवं मोक्षदाता है, मैं तुझ पर कोटि कोटि बलिहारी जाता हूँ।
ਐਸਾ ਕੋਈ ਭੇਟੈ ਸੰਤੁ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਹਰੇ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥
ऐसा कोई भेटै संतु जितु हरि हरे हरि धिआईऐ ॥१॥
मुझे कोई ऐसा संत मिल जाए, जिसके संग तेरा भजन करता रहूँ॥ १॥
ਮੋ ਕਉ ਕੋਇ ਨ ਜਾਨਤ ਕਹੀਅਤ ਦਾਸੁ ਤੁਮਾਰਾ ॥
मो कउ कोइ न जानत कहीअत दासु तुमारा ॥
मुझे कोई नहीं जानता, लेकिन तेरा दास कहलाता हूँ,
ਏਹਾ ਓਟ ਆਧਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एहा ओट आधारा ॥१॥ रहाउ ॥
यही मेरा आसरा है।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਰਬ ਧਾਰਨ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰਨ ਇਕ ਬਿਨਉ ਦੀਨਾ ॥
सरब धारन प्रतिपारन इक बिनउ दीना ॥
हे जगत्पालक, हे सर्वेश्वर ! मुझ दीन की तुझसे एक विनती है,
ਤੁਮਰੀ ਬਿਧਿ ਤੁਮ ਹੀ ਜਾਨਹੁ ਤੁਮ ਜਲ ਹਮ ਮੀਨਾ ॥੨॥
तुमरी बिधि तुम ही जानहु तुम जल हम मीना ॥२॥
तू अपनी लीला को स्वयं ही जानता है, तू जल है और मैं एक मछली हूँ॥ २॥
ਪੂਰਨ ਬਿਸਥੀਰਨ ਸੁਆਮੀ ਆਹਿ ਆਇਓ ਪਾਛੈ ॥
पूरन बिसथीरन सुआमी आहि आइओ पाछै ॥
हे स्वामी ! यह जगत् तेरा पूर्ण विस्तार है और बड़ी जिज्ञासा से तेरे पीछे आया हूँ।
ਸਗਲੋ ਭੂ ਮੰਡਲ ਖੰਡਲ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ ਹੀ ਆਛੈ ॥੩॥
सगलो भू मंडल खंडल प्रभ तुम ही आछै ॥३॥
हे प्रभु ! समूचे भूमण्डल एवं ब्रह्माण्ड के खण्डों में तू ही व्यापक है॥ ३॥