Hindi Page 1010

ਧੰਧੈ ਧਾਵਤ ਜਗੁ ਬਾਧਿਆ ਨਾ ਬੂਝੈ ਵੀਚਾਰੁ ॥
धंधै धावत जगु बाधिआ ना बूझै वीचारु ॥
माया ने संसारी धंधों में व्यस्त जगत् को बन्धनों में बाँध लिया है परन्तु यह सत्य-विचार को नहीं बूझता।

ਜੰਮਣ ਮਰਣੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਮਨਮੁਖ ਮੁਗਧੁ ਗਵਾਰੁ ॥
जमण मरणु विसारिआ मनमुख मुगधु गवारु ॥
मनमुखी जीव जन्म-मरण को भुलाकर मूर्ख एवं गंवार बना हुआ है।

ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਸੇ ਉਬਰੇ ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥੭॥
गुरि राखे से उबरे सचा सबदु वीचारि ॥७॥
जिन्होंने सच्चे शब्द का चिंतन किया है, गुरु ने उनकी रक्षा की है और उनका छुटकारा हो गया है॥ ७॥

ਸੂਹਟੁ ਪਿੰਜਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਕੈ ਬੋਲੈ ਬੋਲਣਹਾਰੁ ॥
सूहटु पिंजरि प्रेम कै बोलै बोलणहारु ॥
शरीर रूपी पिंजरे में बैठा जीव रूपी तोता प्रभु-प्रेम के वही बोल-बोलता है, जो बोल गुरु बोलता है।

ਸਚੁ ਚੁਗੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਐ ਉਡੈ ਤ ਏਕਾ ਵਾਰ ॥
सचु चुगै अम्रितु पीऐ उडै त एका वार ॥
वह नाम रूपी सच्चा चोगा चुगता है और नामामृत पान करता है। वह शरीर रूपी पिंजरे में से एक बार ही उड़ता है अर्थात् जन्म-मरण के चक्र से छूट जाता है।

ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਖਸਮੁ ਪਛਾਣੀਐ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥੮॥੨॥
गुरि मिलिऐ खसमु पछाणीऐ कहु नानक मोख दुआरु ॥८॥२॥
हे नानक ! यदि गुरु मिल जाए तो परमात्मा की पहचान हो जाती है और मोक्ष उपलब्ध हो जाता है॥ ८॥ २॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਤਾ ਮਾਰਿ ਮਰੁ ਭਾਗੋ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਜਾਉ ॥
सबदि मरै ता मारि मरु भागो किसु पहि जाउ ॥
शब्द से मृत्यु को मारो; मृत्यु से भागकर किधर जाओगे ?

ਜਿਸ ਕੈ ਡਰਿ ਭੈ ਭਾਗੀਐ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਤਾ ਕੋ ਨਾਉ ॥
जिस कै डरि भै भागीऐ अम्रितु ता को नाउ ॥
जिसके डर से सब भय भाग जाते हैं, उसका नाम अमृत है।

ਮਾਰਹਿ ਰਾਖਹਿ ਏਕੁ ਤੂ ਬੀਜਉ ਨਾਹੀ ਥਾਉ ॥੧॥
मारहि राखहि एकु तू बीजउ नाही थाउ ॥१॥
हे ईश्वर ! मारने-बचाने वाला केवल तू ही है, तेरे अलावा अन्य कोई नहीं है॥ १॥

ਬਾਬਾ ਮੈ ਕੁਚੀਲੁ ਕਾਚਉ ਮਤਿਹੀਨ ॥
बाबा मै कुचीलु काचउ मतिहीन ॥
हे बाबा ! मैं मैला, झूठा एवं मतिहीन हूँ,

ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੋ ਕਛੁ ਨਹੀ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪੂਰੀ ਮਤਿ ਕੀਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम बिना को कछु नही गुरि पूरै पूरी मति कीन ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु ने यह पूर्ण उपदेश दिया है कि नाम के बिना कुछ भी नहीं॥ १॥ रहाउ॥

ਅਵਗਣਿ ਸੁਭਰ ਗੁਣ ਨਹੀ ਬਿਨੁ ਗੁਣ ਕਿਉ ਘਰਿ ਜਾਉ ॥
अवगणि सुभर गुण नही बिनु गुण किउ घरि जाउ ॥
मैं अवगुणों से भरा हुआ हूँ, मुझमें कोई शुभ गुण नहीं है, गुणों के बिना भला सच्चे घर कैसे जा सकता हूँ।

ਸਹਜਿ ਸਬਦਿ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਬਿਨੁ ਭਾਗਾ ਧਨੁ ਨਾਹਿ ॥
सहजि सबदि सुखु ऊपजै बिनु भागा धनु नाहि ॥
सहजावस्था में शब्द द्वारा मन में सुख उत्पन्न होता है, परन्तु भाग्य के बिना सच्चा धन प्राप्त नहीं होता।

ਜਿਨ ਕੈ ਨਾਮੁ ਨ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸੇ ਬਾਧੇ ਦੂਖ ਸਹਾਹਿ ॥੨॥
जिन कै नामु न मनि वसै से बाधे दूख सहाहि ॥२॥
जिनके मन में नाम अवस्थित नहीं होता, वे यम द्वार में बंधे हुए कष्ट भोगते रहते हैं।॥ २॥

ਜਿਨੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਸੇ ਕਿਤੁ ਆਏ ਸੰਸਾਰਿ ॥
जिनी नामु विसारिआ से कितु आए संसारि ॥
जिन्होंने प्रभु-नाम को विस्मृत कर दिया है, वे क्योंकर दुनिया में आए हैं,

ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਸੁਖੁ ਨਹੀ ਗਾਡੇ ਲਾਦੇ ਛਾਰੁ ॥
आगै पाछै सुखु नही गाडे लादे छारु ॥
उन्हें लोक-परलोक कहीं भी सुख उपलब्ध नहीं होता, उन्होंने अपने ठेले पाप रूपी राख से लाद लिए हैं।

ਵਿਛੁੜਿਆ ਮੇਲਾ ਨਹੀ ਦੂਖੁ ਘਣੋ ਜਮ ਦੁਆਰਿ ॥੩॥
विछुड़िआ मेला नही दूखु घणो जम दुआरि ॥३॥
जिसका सत्य से वियोग हो जाए उसका पुनः मिलाप नहीं होता और वह यम के द्वार पर बहुत दुख भोगता है॥ ३॥

ਅਗੈ ਕਿਆ ਜਾਣਾ ਨਾਹਿ ਮੈ ਭੂਲੇ ਤੂ ਸਮਝਾਇ ॥
अगै किआ जाणा नाहि मै भूले तू समझाइ ॥
हे ईश्वर ! मैं नहीं जानता कि आगे मेरे साथ क्या होगा ? मुझ भूले हुए को तू ही सूझ प्रदान कर।

ਭੂਲੇ ਮਾਰਗੁ ਜੋ ਦਸੇ ਤਿਸ ਕੈ ਲਾਗਉ ਪਾਇ ॥
भूले मारगु जो दसे तिस कै लागउ पाइ ॥
मुझ भूले हुए को जो सन्मार्ग बताएगा, मैं उसके चरणों में लग जाऊँगा।

ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਦਾਤਾ ਕੋ ਨਹੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥੪॥
गुर बिनु दाता को नही कीमति कहणु न जाइ ॥४॥
गुरु के बिना अन्य कोई दाता नहीं और उसकी कीमत ऑकी नहीं जा सकती।॥ ४॥

ਸਾਜਨੁ ਦੇਖਾ ਤਾ ਗਲਿ ਮਿਲਾ ਸਾਚੁ ਪਠਾਇਓ ਲੇਖੁ ॥
साजनु देखा ता गलि मिला साचु पठाइओ लेखु ॥
यदि मैं अपने साजन के दर्शन कर लूं तो उसे आलिंगन होकर मिलूंगा, उस सच्चे ने भाग्य में लिखा है।

ਮੁਖਿ ਧਿਮਾਣੈ ਧਨ ਖੜੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਖੀ ਦੇਖੁ ॥
मुखि धिमाणै धन खड़ी गुरमुखि आखी देखु ॥
हे जीव-स्त्री ! तू मुँह लटका कर क्यों खड़ी है, गुरु के माध्यम से पति-प्रभु को अपनी आँखों से देख।

ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤੂ ਮਨਿ ਵਸਹਿ ਨਦਰੀ ਕਰਮਿ ਵਿਸੇਖੁ ॥੫॥
तुधु भावै तू मनि वसहि नदरी करमि विसेखु ॥५॥
हे प्रभु! यदि तुझे उपयुक्त लगे तो मन में आ बसता है और तेरी कृपा-दृष्टि हो जाती है॥ ५॥

ਭੂਖ ਪਿਆਸੋ ਜੇ ਭਵੈ ਕਿਆ ਤਿਸੁ ਮਾਗਉ ਦੇਇ ॥
भूख पिआसो जे भवै किआ तिसु मागउ देइ ॥
जो स्वयं भूखा-प्यासा भटकता रहता है, उससे क्या माँगा जाए जो वह दे सकता है।

ਬੀਜਉ ਸੂਝੈ ਕੋ ਨਹੀ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪੂਰਨੁ ਦੇਇ ॥
बीजउ सूझै को नही मनि तनि पूरनु देइ ॥
मन-तन में बसने वाले पूर्ण परमेश्वर के अलावा अन्य कोई नहीं सूझ रहा, वही सबकुछ देता है।

ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਦੇਖਿਆ ਆਪਿ ਵਡਾਈ ਦੇਇ ॥੬॥
जिनि कीआ तिनि देखिआ आपि वडाई देइ ॥६॥
जिसने बनाया है, उसने ही देखरेख की है, वह स्वयं ही बड़ाई देता है॥ ६॥

ਨਗਰੀ ਨਾਇਕੁ ਨਵਤਨੋ ਬਾਲਕੁ ਲੀਲ ਅਨੂਪੁ ॥
नगरी नाइकु नवतनो बालकु लील अनूपु ॥
काया रूपी नगरी का स्वामी नवनूतन है और उसकी जगत् रूपी अद्भुत लीला बाल-लीला के समान है।

ਨਾਰਿ ਨ ਪੁਰਖੁ ਨ ਪੰਖਣੂ ਸਾਚਉ ਚਤੁਰੁ ਸਰੂਪੁ ॥
नारि न पुरखु न पंखणू साचउ चतुरु सरूपु ॥
वह सच्चा परमात्मा बड़ा चतुर एवं अति सुन्दर है, वह न नारी है, न पुरुष है और न कोई पक्षी है।

ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥੀਐ ਤੂ ਦੀਪਕੁ ਤੂ ਧੂਪੁ ॥੭॥
जो तिसु भावै सो थीऐ तू दीपकु तू धूपु ॥७॥
जो उसे मंजूर है, वही होता है। हे परमेश्वर ! तू ही सूर्य रूपी दीपक है और तू ही चन्दन रूपी सुगन्धि है॥ ७॥

ਗੀਤ ਸਾਦ ਚਾਖੇ ਸੁਣੇ ਬਾਦ ਸਾਦ ਤਨਿ ਰੋਗੁ ॥
गीत साद चाखे सुणे बाद साद तनि रोगु ॥
जिन्होंने बेकार के गीत सुने हैं, पदार्थों के स्वाद चखे हैं, इन व्यर्थ स्वादों ने उनके मन में रोग पैदा कर दिया है।

ਸਚੁ ਭਾਵੈ ਸਾਚਉ ਚਵੈ ਛੂਟੈ ਸੋਗ ਵਿਜੋਗੁ ॥
सचु भावै साचउ चवै छूटै सोग विजोगु ॥
जो सत्य से प्रेम करता है, सदा सत्य बोलता है, उसके सब शोक-वियोग मिट जाते हैं।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੁ ਹੋਗੁ ॥੮॥੩॥
नानक नामु न वीसरै जो तिसु भावै सु होगु ॥८॥३॥
हे नानक ! परमात्मा का नाम कभी विस्मृत न हो; जो उसे मंजूर है, वही होगा।॥ ८॥ ३॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਸਾਚੀ ਕਾਰ ਕਮਾਵਣੀ ਹੋਰਿ ਲਾਲਚ ਬਾਦਿ ॥
साची कार कमावणी होरि लालच बादि ॥
सच्चा कार्य करना चाहिए, क्योंकि अन्य सब लालच बेकार हैं।

ਇਹੁ ਮਨੁ ਸਾਚੈ ਮੋਹਿਆ ਜਿਹਵਾ ਸਚਿ ਸਾਦਿ ॥
इहु मनु साचै मोहिआ जिहवा सचि सादि ॥
यह मन सत्य ने मोह लिया है और जिह्म सत्य के स्वाद में ही लीन रहती है।

ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਕੋ ਰਸੁ ਨਹੀ ਹੋਰਿ ਚਲਹਿ ਬਿਖੁ ਲਾਦਿ ॥੧॥
बिनु नावै को रसु नही होरि चलहि बिखु लादि ॥१॥
प्रभु-नाम के बिना कोई आनंद नहीं, ज्ञानहीन लोग विकार रूपी विष लादकर जगत् से चले जाते हैं।॥ १॥

ਐਸਾ ਲਾਲਾ ਮੇਰੇ ਲਾਲ ਕੋ ਸੁਣਿ ਖਸਮ ਹਮਾਰੇ ॥
ऐसा लाला मेरे लाल को सुणि खसम हमारे ॥
हे मेरे मालिक ! मेरी विनती सुनो; मैं तेरा ऐसा आज्ञाकारी गुलाम हूँ,

ਜਿਉ ਫੁਰਮਾਵਹਿ ਤਿਉ ਚਲਾ ਸਚੁ ਲਾਲ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिउ फुरमावहि तिउ चला सचु लाल पिआरे ॥१॥ रहाउ ॥
तू जैसे हुक्म करता है, वैसे ही पालन करता हूँ॥ १॥ रहाउ॥

ਅਨਦਿਨੁ ਲਾਲੇ ਚਾਕਰੀ ਗੋਲੇ ਸਿਰਿ ਮੀਰਾ ॥
अनदिनु लाले चाकरी गोले सिरि मीरा ॥
तेरा ही आदेश है और इस गुलाम ने दिन-रात तेरी ही चाकरी करनी है।

ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਮਨੁ ਵੇਚਿਆ ਸਬਦਿ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥
गुर बचनी मनु वेचिआ सबदि मनु धीरा ॥
मैंने गुरु के वचनों द्वारा अपना मन उसे बेच दिया है, शब्द गुरु द्वारा मन को धैर्य हो गया है।

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