ਕਿਤੀ ਚਖਉ ਸਾਡੜੇ ਕਿਤੀ ਵੇਸ ਕਰੇਉ ॥
किती चखउ साडड़े किती वेस करेउ ॥
निस्संकोच कितने ही पदाथों के स्वाद चखती रहूँ, कितने ही सुन्दर पहनावे धारण करती रहूँ,
ਪਿਰ ਬਿਨੁ ਜੋਬਨੁ ਬਾਦਿ ਗਇਅਮੁ ਵਾਢੀ ਝੂਰੇਦੀ ਝੂਰੇਉ ॥੫॥
पिर बिनु जोबनु बादि गइअमु वाढी झूरेदी झूरेउ ॥५॥
परन्तु प्रभु के बिना यौवन व्यर्थ है, उससे बिछुड़ी चिंताग्रस्त रहती हूँ॥ ५॥
ਸਚੇ ਸੰਦਾ ਸਦੜਾ ਸੁਣੀਐ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰਿ ॥
सचे संदा सदड़ा सुणीऐ गुर वीचारि ॥
गुरु के ज्ञान-विचार द्वारा सच्चे प्रभु का सच्चा उपदेश सुनना चाहिए।
ਸਚੇ ਸਚਾ ਬੈਹਣਾ ਨਦਰੀ ਨਦਰਿ ਪਿਆਰਿ ॥੬॥
सचे सचा बैहणा नदरी नदरि पिआरि ॥६॥
जब सच्चे की प्रेम भरी कृपा-दृष्टि हो जाती है तो जीव-स्त्री का आचरण सत्य-सा हो जाता है और वह उसके प्रेम में ही लीन रहती है॥ ६॥
ਗਿਆਨੀ ਅੰਜਨੁ ਸਚ ਕਾ ਡੇਖੈ ਡੇਖਣਹਾਰੁ ॥
गिआनी अंजनु सच का डेखै डेखणहारु ॥
ज्ञानी व्यक्ति देखने के लिए सत्य का अञ्जन लगाकर ईश्वर को ही देखता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਜਾਣੀਐ ਹਉਮੈ ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰਿ ॥੭॥
गुरमुखि बूझै जाणीऐ हउमै गरबु निवारि ॥७॥
अगर गुरमुख बनकर अहम् अभिमान का निवारण किया जाए तो सत्य को बूझा एवं जाना जा सकता है॥ ७॥
ਤਉ ਭਾਵਨਿ ਤਉ ਜੇਹੀਆ ਮੂ ਜੇਹੀਆ ਕਿਤੀਆਹ ॥
तउ भावनि तउ जेहीआ मू जेहीआ कितीआह ॥
हे पति-परमेश्वर ! जो जीव-स्त्रियों तुझे प्रिय हैं, वह तो तुझ जैसी ही सुन्दर हैं परन्तु मुझ जैसी अनेक (दुहागिन) हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਹੁ ਨ ਵੀਛੁੜੈ ਤਿਨ ਸਚੈ ਰਤੜੀਆਹ ॥੮॥੧॥੯॥
नानक नाहु न वीछुड़ै तिन सचै रतड़ीआह ॥८॥१॥९॥
हे नानक ! जो प्रभु-प्रेम में रत रहती हैं, उनका कदापि वियोग नहीं होता॥ ८॥ १॥ ६॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥
ਨਾ ਭੈਣਾ ਭਰਜਾਈਆ ਨਾ ਸੇ ਸਸੁੜੀਆਹ ॥
ना भैणा भरजाईआ ना से ससुड़ीआह ॥
बहन, भाभी एवं सास कोई भी सदा नहीं रहती,
ਸਚਾ ਸਾਕੁ ਨ ਤੁਟਈ ਗੁਰੁ ਮੇਲੇ ਸਹੀਆਹ ॥੧॥
सचा साकु न तुटई गुरु मेले सहीआह ॥१॥
किन्तु गुरु जिन (सत्संगी) सखियों को ईश्वर से मिला देता है, उनका सच्चा रिश्ता कभी नहीं टूटता॥ १॥
ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥
बलिहारी गुर आपणे सद बलिहारै जाउ ॥
मैं अपने गुरु पर कुर्बान हूँ और सदैव कुर्बान जाती हूँ,
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਏਤਾ ਭਵਿ ਥਕੀ ਗੁਰਿ ਪਿਰੁ ਮੇਲਿਮੁ ਦਿਤਮੁ ਮਿਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर बिनु एता भवि थकी गुरि पिरु मेलिमु दितमु मिलाइ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के बिना इधर-उधर भटक कर थक गई थी, लेकिन गुरु ने मुझे पति-प्रभु से मिला दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਫੁਫੀ ਨਾਨੀ ਮਾਸੀਆ ਦੇਰ ਜੇਠਾਨੜੀਆਹ ॥
फुफी नानी मासीआ देर जेठानड़ीआह ॥
फूफी, नानी, मौसी, देवरानी, जेठानी-“
ਆਵਨਿ ਵੰਞਨਿ ਨਾ ਰਹਨਿ ਪੂਰ ਭਰੇ ਪਹੀਆਹ ॥੨॥
आवनि वंञनि ना रहनि पूर भरे पहीआह ॥२॥
ये नातेदार जन्म लेकर आते एवं मृत्यु को प्राप्त होकर चले जाते हैं, ये सदैव के लिए हमारे साथ नहीं रहते और इन रिश्तेदारों के समूह वर्ग यहाँ से चले जाते हैं।॥ २॥
ਮਾਮੇ ਤੈ ਮਾਮਾਣੀਆ ਭਾਇਰ ਬਾਪ ਨ ਮਾਉ ॥
मामे तै मामाणीआ भाइर बाप न माउ ॥
माम-मामी, भाई, पिता-माता, ये नातेदार भी हमारे संग सदैव नहीं रहते,
ਸਾਥ ਲਡੇ ਤਿਨ ਨਾਠੀਆ ਭੀੜ ਘਣੀ ਦਰੀਆਉ ॥੩॥
साथ लडे तिन नाठीआ भीड़ घणी दरीआउ ॥३॥
इन अतिथियों के काफिले लदे हुए जा रहे हैं और भवसागर रूपी दरिया में बहुत भीड़ लगी हुई है॥ ३॥
ਸਾਚਉ ਰੰਗਿ ਰੰਗਾਵਲੋ ਸਖੀ ਹਮਾਰੋ ਕੰਤੁ ॥
साचउ रंगि रंगावलो सखी हमारो कंतु ॥
हे सखी ! हमारा पति-प्रभु बड़ा रंगीला है और सत्य के रंग में ही रत रहता है।
ਸਚਿ ਵਿਛੋੜਾ ਨਾ ਥੀਐ ਸੋ ਸਹੁ ਰੰਗਿ ਰਵੰਤੁ ॥੪॥
सचि विछोड़ा ना थीऐ सो सहु रंगि रवंतु ॥४॥
जो जीव-स्त्री परमेश्वर की स्मृति में लीन रहती है, उसका सत्य से कभी वियोग नहीं होता॥ ४॥
ਸਭੇ ਰੁਤੀ ਚੰਗੀਆ ਜਿਤੁ ਸਚੇ ਸਿਉ ਨੇਹੁ ॥
सभे रुती चंगीआ जितु सचे सिउ नेहु ॥
वे समस्त ऋतुएँ अच्छी हैं, जिनमें सत्य से प्रेम होता है।
ਸਾ ਧਨ ਕੰਤੁ ਪਛਾਣਿਆ ਸੁਖਿ ਸੁਤੀ ਨਿਸਿ ਡੇਹੁ ॥੫॥
सा धन कंतु पछाणिआ सुखि सुती निसि डेहु ॥५॥
जिस जीव रूपी नारी ने परमात्मा को पहचान लिया है, वह सदैव सुखी रहती है॥ ५॥
ਪਤਣਿ ਕੂਕੇ ਪਾਤਣੀ ਵੰਞਹੁ ਧ੍ਰੁਕਿ ਵਿਲਾੜਿ ॥
पतणि कूके पातणी वंञहु ध्रुकि विलाड़ि ॥
भवसागर रूपी दरिया के तट पर खड़ा गुरु रूपी मल्लाह पुकार पुकार कर जीव रूपी मुसाफिरों को कह रहा है कि दौड़कर नाम रूपी जहाज में सवार होकर पार हो जाओ।
ਪਾਰਿ ਪਵੰਦੜੇ ਡਿਠੁ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰ ਬੋਹਿਥਿ ਚਾੜਿ ॥੬॥
पारि पवंदड़े डिठु मै सतिगुर बोहिथि चाड़ि ॥६॥
सतगुरु के जहाज में चढ़कर भवसागर में से पार होते अनेक प्राणियों को मैंने स्वयं देखा है॥ ६॥
ਹਿਕਨੀ ਲਦਿਆ ਹਿਕਿ ਲਦਿ ਗਏ ਹਿਕਿ ਭਾਰੇ ਭਰ ਨਾਲਿ ॥
हिकनी लदिआ हिकि लदि गए हिकि भारे भर नालि ॥
किसी ने सत्य रूपी सौदा लाद लिया है, कुछ सत्य का सौदा लादकर पार हो गए हैं। लेकिन कुछ जीव पापों का भार लादकर भवसागर में डूब गए हैं।
ਜਿਨੀ ਸਚੁ ਵਣੰਜਿਆ ਸੇ ਸਚੇ ਪ੍ਰਭ ਨਾਲਿ ॥੭॥
जिनी सचु वणंजिआ से सचे प्रभ नालि ॥७॥
जिन्होंने सत्य का व्यापार किया है, वे सच्चे प्रभु के संग रहते हैं।॥ ७॥
ਨਾ ਹਮ ਚੰਗੇ ਆਖੀਅਹ ਬੁਰਾ ਨ ਦਿਸੈ ਕੋਇ ॥
ना हम चंगे आखीअह बुरा न दिसै कोइ ॥
न हम खुद को अच्छा कहते हैं, न ही कोई बुरा दिखाई देता है।
ਨਾਨਕ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀਐ ਸਚੇ ਜੇਹੜਾ ਸੋਇ ॥੮॥੨॥੧੦॥
नानक हउमै मारीऐ सचे जेहड़ा सोइ ॥८॥२॥१०॥
हे नानक ! जिसने अभिमान को मिटा दिया है, वह सत्य जैसा ही बन गया है॥ ८॥ २॥ १०॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥
ਨਾ ਜਾਣਾ ਮੂਰਖੁ ਹੈ ਕੋਈ ਨਾ ਜਾਣਾ ਸਿਆਣਾ ॥
ना जाणा मूरखु है कोई ना जाणा सिआणा ॥
मैं नहीं मानता कि कोई मूर्ख अथवा कोई चतुर है।
ਸਦਾ ਸਾਹਿਬ ਕੈ ਰੰਗੇ ਰਾਤਾ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣਾ ॥੧॥
सदा साहिब कै रंगे राता अनदिनु नामु वखाणा ॥१॥
मैं तो सदैव परमात्मा के रंग में लीन हूँ और उसका नाम-स्मरण करता रहता हूँ॥ १॥
ਬਾਬਾ ਮੂਰਖੁ ਹਾ ਨਾਵੈ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥
बाबा मूरखु हा नावै बलि जाउ ॥
हे बाबा ! मैं मुर्ख तो परमात्मा के नाम पर बलिहारी जाता हूँ।
ਤੂ ਕਰਤਾ ਤੂ ਦਾਨਾ ਬੀਨਾ ਤੇਰੈ ਨਾਮਿ ਤਰਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तू करता तू दाना बीना तेरै नामि तराउ ॥१॥ रहाउ ॥
हे ईश्वर ! तू विश्व का रचयिता है, तू ही चतुर है और तेरे नाम से ही मुक्ति संभव है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੂਰਖੁ ਸਿਆਣਾ ਏਕੁ ਹੈ ਏਕ ਜੋਤਿ ਦੁਇ ਨਾਉ ॥
मूरखु सिआणा एकु है एक जोति दुइ नाउ ॥
मूर्ख एवं चतुर एक ही है, उनके नाम ही दो हैं किन्तु ज्योति एक ही है।
ਮੂਰਖਾ ਸਿਰਿ ਮੂਰਖੁ ਹੈ ਜਿ ਮੰਨੇ ਨਾਹੀ ਨਾਉ ॥੨॥
मूरखा सिरि मूरखु है जि मंने नाही नाउ ॥२॥
जो ईश्वर में निष्ठा नहीं रखता, वह महामूर्ख है॥ २॥
ਗੁਰ ਦੁਆਰੈ ਨਾਉ ਪਾਈਐ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਪਲੈ ਨ ਪਾਇ ॥
गुर दुआरै नाउ पाईऐ बिनु सतिगुर पलै न पाइ ॥
गुरु के द्वारा ही नाम (का भेद) प्राप्त होता है और सच्चे गुरु के बिना प्राप्त नहीं होता।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਮਨਿ ਵਸੈ ਤਾ ਅਹਿਨਿਸਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੩॥
सतिगुर कै भाणै मनि वसै ता अहिनिसि रहै लिव लाइ ॥३॥
यदि सतगुरु की रज़ा से मन में नाम स्थित हो जाए तो रात-दिन उस में ही ध्यान लगा रहता है।॥ ३॥
ਰਾਜੰ ਰੰਗੰ ਰੂਪੰ ਮਾਲੰ ਜੋਬਨੁ ਤੇ ਜੂਆਰੀ ॥
राजं रंगं रूपं मालं जोबनु ते जूआरी ॥
राज्य करने वाले शासक, रंगरलियां मनाने वाले, सौन्दर्य सम्पन्न, धनवान, यौवन सम्पन्न एवं जुआरी-“
ਹੁਕਮੀ ਬਾਧੇ ਪਾਸੈ ਖੇਲਹਿ ਚਉਪੜਿ ਏਕਾ ਸਾਰੀ ॥੪॥
हुकमी बाधे पासै खेलहि चउपड़ि एका सारी ॥४॥
ये सभी परमात्मा के हुक्म में जगत् रूपी चौपड़ की खेल में गोटियों के रूप में खेल खेलते रहते हैं।॥४॥
ਜਗਿ ਚਤੁਰੁ ਸਿਆਣਾ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣਾ ਨਾਉ ਪੰਡਿਤ ਪੜਹਿ ਗਾਵਾਰੀ ॥
जगि चतुरु सिआणा भरमि भुलाणा नाउ पंडित पड़हि गावारी ॥
जग में खुद को चतुर-सयाना समझने वाला व्यक्ति भी भ्रम में भूला हुआ है। यद्यपि वह नाम का पण्डित है किन्तु वह गंवार केवल ग्रंथ ही पढ़ता रहता है।
ਨਾਉ ਵਿਸਾਰਹਿ ਬੇਦੁ ਸਮਾਲਹਿ ਬਿਖੁ ਭੂਲੇ ਲੇਖਾਰੀ ॥੫॥
नाउ विसारहि बेदु समालहि बिखु भूले लेखारी ॥५॥
कोई प्रभु-नाम को भुलाकर वेदों का अध्ययन करता है, जिसका लेखक स्वयं माया रूपी विष में भूला हुआ है ॥५॥