ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਜੀਵਨਾ ਸਫਲ ਜੀਵਨ ਸੁਨਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪਿ ਸਦ ਜੀਵਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जीवना सफल जीवन सुनि हरि जपि जपि सद जीवना ॥१॥ रहाउ ॥
उसी का जीवन सफल है, जो ईश्वर की वंदना एवं महिमागान सुन जीवन बिताता है॥ १॥ रहाउ॥
ਪੀਵਨਾ ਜਿਤੁ ਮਨੁ ਆਘਾਵੈ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪੀਵਨਾ ॥੧॥
पीवना जितु मनु आघावै नामु अम्रित रसु पीवना ॥१॥
वही पीना चाहिए, जिससे मन तृप्त हो जाए, इसलिए नामामृत का रस पीना चाहिए॥ १॥
ਖਾਵਨਾ ਜਿਤੁ ਭੂਖ ਨ ਲਾਗੈ ਸੰਤੋਖਿ ਸਦਾ ਤ੍ਰਿਪਤੀਵਨਾ ॥੨॥
खावना जितु भूख न लागै संतोखि सदा त्रिपतीवना ॥२॥
वही खाना चाहिए, जिसे खाने से दोबारा भूख न लगे, मन सदा संतुष्ट एवं तृप्त रहे॥ २॥
ਪੈਨਣਾ ਰਖੁ ਪਤਿ ਪਰਮੇਸੁਰ ਫਿਰਿ ਨਾਗੇ ਨਹੀ ਥੀਵਨਾ ॥੩॥
पैनणा रखु पति परमेसुर फिरि नागे नही थीवना ॥३॥
जिसे पहनने से लाज बनी रहती है तो परमेश्वर का नाम रूपी कपड़ा धारण करो, इससे पुनः कभी निर्लज्ज नहीं होना पड़ता॥ ३॥
ਭੋਗਨਾ ਮਨ ਮਧੇ ਹਰਿ ਰਸੁ ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਮਹਿ ਲੀਵਨਾ ॥੪॥
भोगना मन मधे हरि रसु संतसंगति महि लीवना ॥४॥
मन में हरि-नाम रूपी रस भोगना ही उत्तम है, अतः संतों की संगत में लीन रहो॥ ४॥
ਬਿਨੁ ਤਾਗੇ ਬਿਨੁ ਸੂਈ ਆਨੀ ਮਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤੀ ਸੰਗਿ ਸੀਵਨਾ ॥੫॥
बिनु तागे बिनु सूई आनी मनु हरि भगती संगि सीवना ॥५॥
धागा सूई लाए बिना ही संतजनों का मन भगवान की भक्ति में सिल जाता है॥ ५॥
ਮਾਤਿਆ ਹਰਿ ਰਸ ਮਹਿ ਰਾਤੇ ਤਿਸੁ ਬਹੁੜਿ ਨ ਕਬਹੂ ਅਉਖੀਵਨਾ ॥੬॥
मातिआ हरि रस महि राते तिसु बहुड़ि न कबहू अउखीवना ॥६॥
जो हरि-नाम रूपी रस में मस्त रहता है, वह कभी विचलित नहीं होता।॥ ६॥
ਮਿਲਿਓ ਤਿਸੁ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨਾ ਪ੍ਰਭਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲਿ ਜਿਸੁ ਦੀਵਨਾ ॥੭॥
मिलिओ तिसु सरब निधाना प्रभि क्रिपालि जिसु दीवना ॥७॥
जिसे कृपालु प्रभु ने नाम प्रदान कर दिया, उसे सुखों के सब भण्डार मिल गए हैं।॥ ७॥
ਸੁਖੁ ਨਾਨਕ ਸੰਤਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਚਰਣ ਸੰਤ ਧੋਇ ਪੀਵਨਾ ॥੮॥੩॥੬॥
सुखु नानक संतन की सेवा चरण संत धोइ पीवना ॥८॥३॥६॥
हे नानक ! संतों की सेवा से ही परम सुख प्राप्त होता है, अतः उनके चरण धो कर पीते रहो॥ ८॥ ३॥ ६॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੮ ਅੰਜੁਲੀਆ
मारू महला ५ घरु ८ अंजुलीआ
मारू महला ५ घरु ८ अंजुलीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਜਿਸੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਬਹੁਤੁ ਤਿਸੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਚਿੰਤਾ ॥
जिसु ग्रिहि बहुतु तिसै ग्रिहि चिंता ॥
जिस घर में बेशुमार धन-दौलत है, वहाँ चिन्ता ही बनी रहती है,
ਜਿਸੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਥੋਰੀ ਸੁ ਫਿਰੈ ਭ੍ਰਮੰਤਾ ॥
जिसु ग्रिहि थोरी सु फिरै भ्रमंता ॥
पर जिस घर में धन जरूरत से कम है, उसे पाने के लिए वह भाग दौड़ करता रहता है।
ਦੁਹੂ ਬਿਵਸਥਾ ਤੇ ਜੋ ਮੁਕਤਾ ਸੋਈ ਸੁਹੇਲਾ ਭਾਲੀਐ ॥੧॥
दुहू बिवसथा ते जो मुकता सोई सुहेला भालीऐ ॥१॥
इन दोनों परिस्थितियों से जो मुक्त है, वही सुखी मिलता है॥ १॥
ਗ੍ਰਿਹ ਰਾਜ ਮਹਿ ਨਰਕੁ ਉਦਾਸ ਕਰੋਧਾ ॥
ग्रिह राज महि नरकु उदास करोधा ॥
वेदों का यही उपदेश है कि गृहस्थ राज में नरक है और त्यागी बनने से क्रोध बढ़ता है
ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਬੇਦ ਪਾਠ ਸਭਿ ਸੋਧਾ ॥
बहु बिधि बेद पाठ सभि सोधा ॥
मैंने अनेक प्रकार से सभी वेदों का पाठ करके विश्लेषण किया है।
ਦੇਹੀ ਮਹਿ ਜੋ ਰਹੈ ਅਲਿਪਤਾ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੀ ਪੂਰਨ ਘਾਲੀਐ ॥੨॥
देही महि जो रहै अलिपता तिसु जन की पूरन घालीऐ ॥२॥
जो शरीर में माया से निर्लिप्त रहता है, उस व्यक्ति का परिश्रम सफल होता है। २॥
ਜਾਗਤ ਸੂਤਾ ਭਰਮਿ ਵਿਗੂਤਾ ॥
जागत सूता भरमि विगूता ॥
इन्सान जागता सोता हुआ भी हर वक्त भ्रम में ख्वार होता रहता है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈਐ ਮੀਤਾ ॥
बिनु गुर मुकति न होईऐ मीता ॥
हे मित्र ! गुरु के बिना मुक्ति नहीं होती।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਤੁਟਹਿ ਹਉ ਬੰਧਨ ਏਕੋ ਏਕੁ ਨਿਹਾਲੀਐ ॥੩॥
साधसंगि तुटहि हउ बंधन एको एकु निहालीऐ ॥३॥
साधुओं की संगत में सब बन्धन टूट जाते हैं और एक ईश्वर ही दिखाई देता है॥ ३॥
ਕਰਮ ਕਰੈ ਤ ਬੰਧਾ ਨਹ ਕਰੈ ਤ ਨਿੰਦਾ ॥
करम करै त बंधा नह करै त निंदा ॥
यदि कोई धर्म-कर्म करता है तो कमों के जाल में फंस जाता है और यदि नहीं करता तो संसार निन्दा करता है।
ਮੋਹ ਮਗਨ ਮਨੁ ਵਿਆਪਿਆ ਚਿੰਦਾ ॥
मोह मगन मनु विआपिआ चिंदा ॥
मोह में मग्न मन चिंता में फँसा रहता है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸੁਖੁ ਦੁਖੁ ਸਮ ਜਾਣੈ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਾਮੁ ਹਿਆਲੀਐ ॥੪॥
गुर प्रसादि सुखु दुखु सम जाणै घटि घटि रामु हिआलीऐ ॥४॥
गुरु की कृपा से जो सुख दुख को एक समान समझता है, यह घट-घट में व्याप्त राम को महसूस करता है॥ ४॥
ਸੰਸਾਰੈ ਮਹਿ ਸਹਸਾ ਬਿਆਪੈ ॥
संसारै महि सहसा बिआपै ॥
संसार में हर समय कोई न कोई संशय व्याप्त रहता है और
ਅਕਥ ਕਥਾ ਅਗੋਚਰ ਨਹੀ ਜਾਪੈ ॥
अकथ कथा अगोचर नही जापै ॥
ईश्वर की अकथनीय कथा का ज्ञान नहीं होता।
ਜਿਸਹਿ ਬੁਝਾਏ ਸੋਈ ਬੂਝੈ ਓਹੁ ਬਾਲਕ ਵਾਗੀ ਪਾਲੀਐ ॥੫॥
जिसहि बुझाए सोई बूझै ओहु बालक वागी पालीऐ ॥५॥
भगवान बालक की तरह पोषण करता है, जिसे ज्ञान देता है, उसे ही सूझ होती है॥ ५॥
ਛੋਡਿ ਬਹੈ ਤਉ ਛੂਟੈ ਨਾਹੀ ॥
छोडि बहै तउ छूटै नाही ॥
अगर कोई धन का मोह छोड़ भी दे तो भी छूटता नहीं।
ਜਉ ਸੰਚੈ ਤਉ ਭਉ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
जउ संचै तउ भउ मन माही ॥
जो बेशुमार धन संचित करता है, उसके मन में खोने का डर बना रहता है।
ਇਸ ਹੀ ਮਹਿ ਜਿਸ ਕੀ ਪਤਿ ਰਾਖੈ ਤਿਸੁ ਸਾਧੂ ਚਉਰੁ ਢਾਲੀਐ ॥੬॥
इस ही महि जिस की पति राखै तिसु साधू चउरु ढालीऐ ॥६॥
इस से निर्लिप्त रहने वाले की जिसकी भगवान लाज रखता है, उस साधु के सिर पर यश रूपी चैंवर झूलता है॥ ६॥
ਜੋ ਸੂਰਾ ਤਿਸ ਹੀ ਹੋਇ ਮਰਣਾ ॥
जो सूरा तिस ही होइ मरणा ॥
जो शूरवीर होता है, वही युद्ध में लड़कर वीरगति प्राप्त करता है।
ਜੋ ਭਾਗੈ ਤਿਸੁ ਜੋਨੀ ਫਿਰਣਾ ॥
जो भागै तिसु जोनी फिरणा ॥
जो पीठ दिखाकर भाग जाता है, उसे योनेि चक्र में भटकना पड़ता है।
ਜੋ ਵਰਤਾਏ ਸੋਈ ਭਲ ਮਾਨੈ ਬੁਝਿ ਹੁਕਮੈ ਦੁਰਮਤਿ ਜਾਲੀਐ ॥੭॥
जो वरताए सोई भल मानै बुझि हुकमै दुरमति जालीऐ ॥७॥
परमात्मा जो करता है, उसे भला मानना चाहिए और उसके हुक्म को समझकर दुर्मति को जला देना चाहिए॥ ७॥
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਲਾਵਹਿ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗਨਾ ॥
जितु जितु लावहि तितु तितु लगना ॥
जिधर ईश्वर ने लगाना है, जीव ने उधर ही लगना है।
ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਅਪਣੇ ਜਚਨਾ ॥
करि करि वेखै अपणे जचना ॥
जो उसे ठीक लगता है, वही कर-करके देखता रहता है।
ਨਾਨਕ ਕੇ ਪੂਰਨ ਸੁਖਦਾਤੇ ਤੂ ਦੇਹਿ ਤ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲੀਐ ॥੮॥੧॥੭॥
नानक के पूरन सुखदाते तू देहि त नामु समालीऐ ॥८॥१॥७॥
हे नानक के पूर्ण सुखदाता ! यदि तू नाम-दान दे तो तेरा नाम-स्मरण करता है॥८॥१॥७॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५ ॥
मारू महला ५॥
ਬਿਰਖੈ ਹੇਠਿ ਸਭਿ ਜੰਤ ਇਕਠੇ ॥
बिरखै हेठि सभि जंत इकठे ॥
जगत् रूपी पेड़ के नीचे सभी जीव इकट्टे हो जाते हैं।
ਇਕਿ ਤਤੇ ਇਕਿ ਬੋਲਨਿ ਮਿਠੇ ॥
इकि तते इकि बोलनि मिठे ॥
इन में कुछ स्वभाव वाले हैं और कुछ मधुरभाषी हैं।
ਅਸਤੁ ਉਦੋਤੁ ਭਇਆ ਉਠਿ ਚਲੇ ਜਿਉ ਜਿਉ ਅਉਧ ਵਿਹਾਣੀਆ ॥੧॥
असतु उदोतु भइआ उठि चले जिउ जिउ अउध विहाणीआ ॥१॥
जब जीवन रूपी सूर्यास्त हो जाता है तथा नया उदय होने वाला होता है (जीवन-रात्रि समाप्त हुई) तो ज्यों-ज्यों जीवों की जीवन अवधि खत्म हो जाती है तो वे जगत् से उठकर चले जाते हैं।॥ १॥
ਪਾਪ ਕਰੇਦੜ ਸਰਪਰ ਮੁਠੇ ॥
पाप करेदड़ सरपर मुठे ॥
पाप कर्म करने वाले अवश्य ही लुट जाते हैं और
ਅਜਰਾਈਲਿ ਫੜੇ ਫੜਿ ਕੁਠੇ ॥
अजराईलि फड़े फड़ि कुठे ॥
यमराज पकड़-पकड़कर उन्हें कठोर दण्ड देता है।