Hindi Page 1042

ਅਤਿ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥
अति रसु मीठा नामु पिआरा ॥
प्यारा नाम बहुत ही मीठा रस है।

ਨਾਨਕ ਕਉ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਦੀਜੈ ਹਰਿ ਜਪੀਐ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥੫॥
नानक कउ जुगि जुगि हरि जसु दीजै हरि जपीऐ अंतु न पाइआ ॥५॥
हे हरि ! नानक को युग-युग अपना यश प्रदान करते रहो, तेरा जाप करके अन्त नहीं पा सका। ॥५॥

ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੀਰਾ ॥
अंतरि नामु परापति हीरा ॥
हरि-नाम रूपी हीरा मन में ही प्राप्त होता है और

ਹਰਿ ਜਪਤੇ ਮਨੁ ਮਨ ਤੇ ਧੀਰਾ ॥
हरि जपते मनु मन ते धीरा ॥
मन में ही हरि-नाम जपने से मन को धैर्य हो जाता है।

ਦੁਘਟ ਘਟ ਭਉ ਭੰਜਨੁ ਪਾਈਐ ਬਾਹੁੜਿ ਜਨਮਿ ਨ ਜਾਇਆ ॥੬॥
दुघट घट भउ भंजनु पाईऐ बाहुड़ि जनमि न जाइआ ॥६॥
जो व्यक्ति कठिन मार्ग पर चलकर भयभंजन परमात्मा को पा लेता है, वह पुनः जन्म-मरण के चक्र में नहीं पड़ता॥ ६॥

ਭਗਤਿ ਹੇਤਿ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਤਰੰਗਾ ॥
भगति हेति गुर सबदि तरंगा ॥
गुरु के शब्द द्वारा भक्ति के लिए मन में उमंग की तरंगें पैदा हो गई हैं और

ਹਰਿ ਜਸੁ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਮੰਗਾ ॥
हरि जसु नामु पदारथु मंगा ॥
हरि-यश एवं नाम-पदार्थ ही माँगता हूँ।

ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਗੁਰ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ਹਰਿ ਤਾਰੇ ਜਗਤੁ ਸਬਾਇਆ ॥੭॥
हरि भावै गुर मेलि मिलाए हरि तारे जगतु सबाइआ ॥७॥
यदि परमात्मा को मंजूर हो तो वह गुरु से मिला देता है और वह समूचे जगत का उद्धारक है॥ ७॥

ਜਿਨਿ ਜਪੁ ਜਪਿਓ ਸਤਿਗੁਰ ਮਤਿ ਵਾ ਕੇ ॥
जिनि जपु जपिओ सतिगुर मति वा के ॥
जिसने हरि का नाम जपा है, उसे गुरु की शिक्षा प्राप्त हो गई है और

ਜਮਕੰਕਰ ਕਾਲੁ ਸੇਵਕ ਪਗ ਤਾ ਕੇ ॥
जमकंकर कालु सेवक पग ता के ॥
यमदूत एवं काल भी उसकी सेवा करते हैं।

ਊਤਮ ਸੰਗਤਿ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਊਤਮ ਜਗੁ ਭਉਜਲੁ ਪਾਰਿ ਤਰਾਇਆ ॥੮॥
ऊतम संगति गति मिति ऊतम जगु भउजलु पारि तराइआ ॥८॥
उत्तम संगति करने से जीवन-मुक्ति प्राप्त हो जाती है और भयानक जगत्-संसार से उद्धार हो जाता है॥ ८॥

ਇਹੁ ਭਵਜਲੁ ਜਗਤੁ ਸਬਦਿ ਗੁਰ ਤਰੀਐ ॥
इहु भवजलु जगतु सबदि गुर तरीऐ ॥
यह जगत्-सागर तो शब्द-गुरु द्वारा ही पार किया जा सकता है,

ਅੰਤਰ ਕੀ ਦੁਬਿਧਾ ਅੰਤਰਿ ਜਰੀਐ ॥
अंतर की दुबिधा अंतरि जरीऐ ॥
शब्द द्वारा मन की दुविधा मन में ही जल जाती है।

ਪੰਚ ਬਾਣ ਲੇ ਜਮ ਕਉ ਮਾਰੈ ਗਗਨੰਤਰਿ ਧਣਖੁ ਚੜਾਇਆ ॥੯॥
पंच बाण ले जम कउ मारै गगनंतरि धणखु चड़ाइआ ॥९॥
सत्य, संतोष, दया, धर्म एवं धैर्य रूपी पाँच बाण लेकर ही यम को मारा जा सकता है और दसम द्वार में धनुष चढ़ाया जा सकता है॥ ९॥

ਸਾਕਤ ਨਰਿ ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ॥
साकत नरि सबद सुरति किउ पाईऐ ॥
पदार्थवादी जीव शब्द में ध्यान लगाए बिना कैसे मोक्ष पा सकता है।

ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਬਿਨੁ ਆਈਐ ਜਾਈਐ ॥
सबद सुरति बिनु आईऐ जाईऐ ॥
शब्द में लगन लगाए बिना आवागमन बना रहता है।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੁਕਤਿ ਪਰਾਇਣੁ ਹਰਿ ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੧੦॥
नानक गुरमुखि मुकति पराइणु हरि पूरै भागि मिलाइआ ॥१०॥
हे नानक ! गुरु से ही मुक्ति संभव है और पूर्ण भाग्य से ही परमात्मा गुर से मिलाता है॥ १०॥

ਨਿਰਭਉ ਸਤਿਗੁਰੁ ਹੈ ਰਖਵਾਲਾ ॥
निरभउ सतिगुरु है रखवाला ॥
निर्भय सतगुरु सब जीवों का रखवाला है और

ਭਗਤਿ ਪਰਾਪਤਿ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥
भगति परापति गुर गोपाला ॥
गुरु-परमेश्वर से ही भक्ति प्राप्त होती है।

ਧੁਨਿ ਅਨੰਦ ਅਨਾਹਦੁ ਵਾਜੈ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਪਾਇਆ ॥੧੧॥
धुनि अनंद अनाहदु वाजै गुर सबदि निरंजनु पाइआ ॥११॥
शब्द-गुरु से ही ईश्वर पाया जाता है और मन में आनंदमयी अनाहत शब्द बजता रहता है॥ ११॥

ਨਿਰਭਉ ਸੋ ਸਿਰਿ ਨਾਹੀ ਲੇਖਾ ॥
निरभउ सो सिरि नाही लेखा ॥
प्रभु निर्भय है, उसके सिर पर कमों का कोई लेखा नहीं है।

ਆਪਿ ਅਲੇਖੁ ਕੁਦਰਤਿ ਹੈ ਦੇਖਾ ॥
आपि अलेखु कुदरति है देखा ॥
वह स्वयं कर्मो से रहित है और उसकी कुदरत में ही उसे देखा जाता है।

ਆਪਿ ਅਤੀਤੁ ਅਜੋਨੀ ਸੰਭਉ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮਤਿ ਸੋ ਪਾਇਆ ॥੧੨॥
आपि अतीतु अजोनी स्मभउ नानक गुरमति सो पाइआ ॥१२॥
वह स्वयं निर्लेप, योनि से रहित एवं स्वजन्मा है, हे नानक ! गुरु उपदेशानुसार ही उसे पाया जा सकता है॥ १२॥

ਅੰਤਰ ਕੀ ਗਤਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਾਣੈ ॥
अंतर की गति सतिगुरु जाणै ॥
मन की अवस्था सतगुरु ही जानता है।

ਸੋ ਨਿਰਭਉ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੈ ॥
सो निरभउ गुर सबदि पछाणै ॥
जो गुरु के शब्द को पहचान लेता है, वही निडर है।

ਅੰਤਰੁ ਦੇਖਿ ਨਿਰੰਤਰਿ ਬੂਝੈ ਅਨਤ ਨ ਮਨੁ ਡੋਲਾਇਆ ॥੧੩॥
अंतरु देखि निरंतरि बूझै अनत न मनु डोलाइआ ॥१३॥
वह प्रभु को अपने अन्तर्मन में देखकर बूझ लेता है और उसका मन अन्यत्र दोलायमान नहीं होता॥ १३॥

ਨਿਰਭਉ ਸੋ ਅਭ ਅੰਤਰਿ ਵਸਿਆ ॥
निरभउ सो अभ अंतरि वसिआ ॥
निर्भय वही है जिसके अन्तर्मन में सत्य बस गया है और

ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਾਮਿ ਨਿਰੰਜਨ ਰਸਿਆ ॥
अहिनिसि नामि निरंजन रसिआ ॥
वह पावन नाम में ही लीन रहता है।

ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਸੁ ਸੰਗਤਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੧੪॥
नानक हरि जसु संगति पाईऐ हरि सहजे सहजि मिलाइआ ॥१४॥
हे नानक ! सुसंगति में ही हरि-यश प्राप्त होता है और प्रभु सहज स्वभाव ही साथ मिला लेता है॥ १४॥

ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣੈ ॥
अंतरि बाहरि सो प्रभु जाणै ॥
जो भीतर-बाहर प्रभु को ही जानता है,

ਰਹੈ ਅਲਿਪਤੁ ਚਲਤੇ ਘਰਿ ਆਣੈ ॥
रहै अलिपतु चलते घरि आणै ॥
निर्लिप्त रहकर अपने सच्चे घर में स्थित हो जाता है।

ਊਪਰਿ ਆਦਿ ਸਰਬ ਤਿਹੁ ਲੋਈ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥੧੫॥੪॥੨੧॥
ऊपरि आदि सरब तिहु लोई सचु नानक अम्रित रसु पाइआ ॥१५॥४॥२१॥
तीनों लोकों से ऊपर सर्वत्र परमात्मा ही विद्यमान है, हे नानक ! सत्य नाम का अमृत-रस पा लिया है॥१५॥४॥२१॥

ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥

ਕੁਦਰਤਿ ਕਰਨੈਹਾਰ ਅਪਾਰਾ ॥
कुदरति करनैहार अपारा ॥
कुदरत बनाने वाला अपरंपार है,

ਕੀਤੇ ਕਾ ਨਾਹੀ ਕਿਹੁ ਚਾਰਾ ॥
कीते का नाही किहु चारा ॥
उसके उत्पन्न किए जीव का कोई बल नहीं चल सकता।

ਜੀਅ ਉਪਾਇ ਰਿਜਕੁ ਦੇ ਆਪੇ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਹੁਕਮੁ ਚਲਾਇਆ ॥੧॥
जीअ उपाइ रिजकु दे आपे सिरि सिरि हुकमु चलाइआ ॥१॥
जीवों को पैदा करके वह स्वयं ही भोजन दे रहा है और सब पर उसका हुक्म चला रहा है॥ १॥

ਹੁਕਮੁ ਚਲਾਇ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥
हुकमु चलाइ रहिआ भरपूरे ॥
अपना हुक्म चलाकर वह सबमें समा रहा है,

ਕਿਸੁ ਨੇੜੈ ਕਿਸੁ ਆਖਾਂ ਦੂਰੇ ॥
किसु नेड़ै किसु आखां दूरे ॥
फिर किसे निकट एवं किसे उससे दूर कहा जाए ?

ਗੁਪਤ ਪ੍ਰਗਟ ਹਰਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਦੇਖਹੁ ਵਰਤੈ ਤਾਕੁ ਸਬਾਇਆ ॥੨॥
गुपत प्रगट हरि घटि घटि देखहु वरतै ताकु सबाइआ ॥२॥
गुप्त एवं प्रगट ईश्वर को घट-घट (प्रत्येक शरीर) में देखो, वह सब में व्याप्त है॥ २॥

ਜਿਸ ਕਉ ਮੇਲੇ ਸੁਰਤਿ ਸਮਾਏ ॥
जिस कउ मेले सुरति समाए ॥
जिस जीव को वह साथ मिला लेता है, उसकी सुरति में ही समा जाता है।

ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥
गुर सबदी हरि नामु धिआए ॥
ऐसा जीव गुरु के शब्द द्वारा हरि-नाम का ध्यान करता रहता है।

ਆਨਦ ਰੂਪ ਅਨੂਪ ਅਗੋਚਰ ਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਭਰਮੁ ਜਾਇਆ ॥੩॥
आनद रूप अनूप अगोचर गुर मिलिऐ भरमु जाइआ ॥३॥
ईश्वर आनंद-रूप, अनुपम एवं इन्द्रियातीत है, गुरु को मिलने से सारा भ्रम दूर हो जाता है॥ ३॥

ਮਨ ਤਨ ਧਨ ਤੇ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥
मन तन धन ते नामु पिआरा ॥
परमात्मा का नाम मन, तन एवं धन से भी प्रिय है और

ਅੰਤਿ ਸਖਾਈ ਚਲਣਵਾਰਾ ॥
अंति सखाई चलणवारा ॥
अंतकाल चलते समय वही सहायक होता है।

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