Hindi Page 1071

ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਸੇਵਾ ਥਾਇ ਨ ਪਾਏ ॥
विचि हउमै सेवा थाइ न पाए ॥
अहम्-भावना में की हुई सेवा साकार नहीं होती,”

ਜਨਮਿ ਮਰੈ ਫਿਰਿ ਆਵੈ ਜਾਏ ॥
जनमि मरै फिरि आवै जाए ॥
इस तरह का जीव जीवन-मृत्यु के चक्र में ही फंसा रहता है।

ਸੋ ਤਪੁ ਪੂਰਾ ਸਾਈ ਸੇਵਾ ਜੋ ਹਰਿ ਮੇਰੇ ਮਨਿ ਭਾਣੀ ਹੇ ॥੧੧॥
सो तपु पूरा साई सेवा जो हरि मेरे मनि भाणी हे ॥११॥
वही तपस्या एवं सेवा पूर्ण है, जो मेरे परमेश्वर के मन को भा गई है।॥ ११॥

ਹਉ ਕਿਆ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਆਖਾ ਸੁਆਮੀ ॥
हउ किआ गुण तेरे आखा सुआमी ॥
हे स्वामी ! मैं तेरे गुणों का क्या वर्णन करूं,

ਤੂ ਸਰਬ ਜੀਆ ਕਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
तू सरब जीआ का अंतरजामी ॥
तू तो सब जीवों के मन की भावना को जानता है।

ਹਉ ਮਾਗਉ ਦਾਨੁ ਤੁਝੈ ਪਹਿ ਕਰਤੇ ਹਰਿ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀ ਹੇ ॥੧੨॥
हउ मागउ दानु तुझै पहि करते हरि अनदिनु नामु वखाणी हे ॥१२॥
हे रचयिता ! मैं तुझसे केवल यही दान माँगता हूँ कि मैं प्रतिदिन तेरे नाम का स्तुतिगान करता रहूँ॥ १२॥

ਕਿਸ ਹੀ ਜੋਰੁ ਅਹੰਕਾਰ ਬੋਲਣ ਕਾ ॥
किस ही जोरु अहंकार बोलण का ॥
किसी मनुष्य में अधिक बोलने का अहंकार तथा ताकत का घमण्ड है।

ਕਿਸ ਹੀ ਜੋਰੁ ਦੀਬਾਨ ਮਾਇਆ ਕਾ ॥
किस ही जोरु दीबान माइआ का ॥
किसी के पास दरबार एवं धन-सम्पति का बल है।

ਮੈ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਟੇਕ ਧਰ ਅਵਰ ਨ ਕਾਈ ਤੂ ਕਰਤੇ ਰਾਖੁ ਮੈ ਨਿਮਾਣੀ ਹੇ ॥੧੩॥
मै हरि बिनु टेक धर अवर न काई तू करते राखु मै निमाणी हे ॥१३॥
लेकिन मुझे तो भगवान् के सिवा अन्य कोई सहारा नहीं है। हे स्रष्टा ! मैं विनीत हूँ तू मुझे बचा ले॥ १३॥

ਨਿਮਾਣੇ ਮਾਣੁ ਕਰਹਿ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ॥
निमाणे माणु करहि तुधु भावै ॥
जब तुझे अच्छा लगता है तो ही तू सम्मानहीन को सम्मान प्रदान करता है,”

ਹੋਰ ਕੇਤੀ ਝਖਿ ਝਖਿ ਆਵੈ ਜਾਵੈ ॥
होर केती झखि झखि आवै जावै ॥
अन्य कितनी ही दुनिया दुखी होकर आवागमन में पड़ी रहती है।

ਜਿਨ ਕਾ ਪਖੁ ਕਰਹਿ ਤੂ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨ ਕੀ ਊਪਰਿ ਗਲ ਤੁਧੁ ਆਣੀ ਹੇ ॥੧੪॥
जिन का पखु करहि तू सुआमी तिन की ऊपरि गल तुधु आणी हे ॥१४॥
हे स्वामी ! तू जिनका भी पक्ष करता है, तूने उनकी बात सर्वोपरि कर दी है॥ १४॥

ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਿਨੀ ਸਦਾ ਧਿਆਇਆ ॥
हरि हरि नामु जिनी सदा धिआइआ ॥
जिन्होंने सदैव ही परमात्मा के नाम का चिंतन किया है,”

ਤਿਨੀ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥
तिनी गुर परसादि परम पदु पाइआ ॥
गुरु की कृपा से उन्होंने ही मोक्ष पाया है।

ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਬਿਨੁ ਸੇਵਾ ਪਛੋਤਾਣੀ ਹੇ ॥੧੫॥
जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ बिनु सेवा पछोताणी हे ॥१५॥
जिसने भी प्रभु की आराधना की है, उसे ही सुख उपलब्ध हुआ। उसकी सेवा के बिना कितनी ही दुनिया पछता रही है॥ १५॥

ਤੂ ਸਭ ਮਹਿ ਵਰਤਹਿ ਹਰਿ ਜਗੰਨਾਥੁ ॥
तू सभ महि वरतहि हरि जगंनाथु ॥
हे संसार के मालिक ! तू सब जीवों में कार्यशील है।

ਸੋ ਹਰਿ ਜਪੈ ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਮਸਤਕਿ ਹਾਥੁ ॥
सो हरि जपै जिसु गुर मसतकि हाथु ॥
प्रभु को वही जपता है, जिसके माथे पर गुरु का आशीर्वाद होता है।

ਹਰਿ ਕੀ ਸਰਣਿ ਪਇਆ ਹਰਿ ਜਾਪੀ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਦਸਾਣੀ ਹੇ ॥੧੬॥੨॥
हरि की सरणि पइआ हरि जापी जनु नानकु दासु दसाणी हे ॥१६॥२॥
प्रभु की शरण में से ही जाप होता है और नानक तो उसके दासों का भी दास है।॥ १६॥ २॥

ਮਾਰੂ ਸੋਲਹੇ ਮਹਲਾ ੫
मारू सोलहे महला ५
मारू सोलहे महला ५

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥

ਕਲਾ ਉਪਾਇ ਧਰੀ ਜਿਨਿ ਧਰਣਾ ॥
कला उपाइ धरी जिनि धरणा ॥
हे भाई ! जिसने शक्ति को उत्पन्न करके पृथ्वी को धारण किया हुआ है,”

ਗਗਨੁ ਰਹਾਇਆ ਹੁਕਮੇ ਚਰਣਾ ॥
गगनु रहाइआ हुकमे चरणा ॥
गगन को अपने हुक्म रूपी चरणों में टिकाया हुआ है,”

ਅਗਨਿ ਉਪਾਇ ਈਧਨ ਮਹਿ ਬਾਧੀ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਰਾਖੈ ਭਾਈ ਹੇ ॥੧॥
अगनि उपाइ ईधन महि बाधी सो प्रभु राखै भाई हे ॥१॥
अग्नि को उत्पन्न करके ईंधन में बाँध दिया है, सो वह प्रभु ही सबकी रक्षा करता है॥ १॥

ਜੀਅ ਜੰਤ ਕਉ ਰਿਜਕੁ ਸੰਬਾਹੇ ॥
जीअ जंत कउ रिजकु स्मबाहे ॥
जो सब जीवों को आहार पहुँचाता है,”

ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਆਪਾਹੇ ॥
करण कारण समरथ आपाहे ॥
वह स्वयं ही सब कुछ करने-कराने में समर्थ है।

ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਨਹਾਰਾ ਸੋਈ ਤੇਰਾ ਸਹਾਈ ਹੇ ॥੨॥
खिन महि थापि उथापनहारा सोई तेरा सहाई हे ॥२॥
जो पल में बनाने एवं मिटाने वाला है, वह प्रभु ही तेरा सहायक है॥ २॥

ਮਾਤ ਗਰਭ ਮਹਿ ਜਿਨਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਿਆ ॥
मात गरभ महि जिनि प्रतिपालिआ ॥
जिसने माँ के गर्भ में तेरा पोषण किया,”

ਸਾਸਿ ਗ੍ਰਾਸਿ ਹੋਇ ਸੰਗਿ ਸਮਾਲਿਆ ॥
सासि ग्रासि होइ संगि समालिआ ॥
प्रत्येक श्वास एवं ग्रास के साथ तेरा संगी बनकर हिफाजत की है,”

ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਪੀਐ ਸੋ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਵਡੀ ਜਿਸੁ ਵਡਿਆਈ ਹੇ ॥੩॥
सदा सदा जपीऐ सो प्रीतमु वडी जिसु वडिआई हे ॥३॥
सर्वदा उस प्रियतम का ही नाम जपना चाहिए, जिसकी बड़ाई सबसे बड़ी है॥ ३॥

ਸੁਲਤਾਨ ਖਾਨ ਕਰੇ ਖਿਨ ਕੀਰੇ ॥
सुलतान खान करे खिन कीरे ॥
यदि उसकी मर्जी हो तो वह एक क्षण में बड़े-बड़े सुलतानों एवं खानों को छोटा-सा कीड़ा अर्थात् भिखारी बना देता है।

ਗਰੀਬ ਨਿਵਾਜਿ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਮੀਰੇ ॥
गरीब निवाजि करे प्रभु मीरे ॥
प्रभु अपनी कृपा करके गरीब को भी बादशाह बना देता है।

ਗਰਬ ਨਿਵਾਰਣ ਸਰਬ ਸਧਾਰਣ ਕਿਛੁ ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਈ ਹੇ ॥੪॥
गरब निवारण सरब सधारण किछु कीमति कही न जाई हे ॥४॥
अभिमान का निवारण करने वाला परमात्मा सर्व-साधारण का सहारा है, जिसकी महिमा का मूल्य कुछ भी नहीं किया जा सकता॥ ४॥

ਸੋ ਪਤਿਵੰਤਾ ਸੋ ਧਨਵੰਤਾ ॥
सो पतिवंता सो धनवंता ॥
वही इज्जतदार और वही धनवान् है,”

ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਹਰਿ ਭਗਵੰਤਾ ॥
जिसु मनि वसिआ हरि भगवंता ॥
जिसके मन में भगवान की स्मृति बस गई है।

ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਬੰਧਪ ਭਾਈ ਜਿਨਿ ਇਹ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ਹੇ ॥੫॥
मात पिता सुत बंधप भाई जिनि इह स्रिसटि उपाई हे ॥५॥
जिसने यह सृष्टि उत्पन्न की है, वह परम-परमेश्वर ही हमारा माता-पिता, पुत्र, भाई एवं रिश्तेदार है॥ ५॥

ਪ੍ਰਭ ਆਏ ਸਰਣਾ ਭਉ ਨਹੀ ਕਰਣਾ ॥
प्रभ आए सरणा भउ नही करणा ॥
प्रभु की शरण में आने से कोई भय प्रभावित नहीं करता।

ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਨਿਹਚਉ ਹੈ ਤਰਣਾ ॥
साधसंगति निहचउ है तरणा ॥
साधु-संगति में निश्चित ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है।

ਮਨ ਬਚ ਕਰਮ ਅਰਾਧੇ ਕਰਤਾ ਤਿਸੁ ਨਾਹੀ ਕਦੇ ਸਜਾਈ ਹੇ ॥੬॥
मन बच करम अराधे करता तिसु नाही कदे सजाई हे ॥६॥
जो मन, वचन एवं कर्म द्वारा भगवान् की आराधना करता है, उसे कभी कोई दण्ड नहीं मिलता।॥ ६॥

ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਮਨ ਤਨ ਮਹਿ ਰਵਿਆ ॥
गुण निधान मन तन महि रविआ ॥
जिसके मन एवं तन में गुणों के भण्डार परमेश्वर की स्मृति बस गई है,”

ਜਨਮ ਮਰਣ ਕੀ ਜੋਨਿ ਨ ਭਵਿਆ ॥
जनम मरण की जोनि न भविआ ॥
वह जन्म-मरण की योनियों में नहीं भटकता।

ਦੂਖ ਬਿਨਾਸ ਕੀਆ ਸੁਖਿ ਡੇਰਾ ਜਾ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਰਹੇ ਆਘਾਈ ਹੇ ॥੭॥
दूख बिनास कीआ सुखि डेरा जा त्रिपति रहे आघाई हे ॥७॥
जब मन तृप्त होकर हर्षित रहता है तो सब दुख नाश हो जाते हैं और सर्व सुख मन में निवास कर लेते हैं।॥ ७॥

ਮੀਤੁ ਹਮਾਰਾ ਸੋਈ ਸੁਆਮੀ ॥
मीतु हमारा सोई सुआमी ॥
वह स्वामी ही हमारा मित्र है,”

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