ਬੂਝਹੁ ਗਿਆਨੀ ਬੂਝਣਾ ਏਹ ਅਕਥ ਕਥਾ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
बूझहु गिआनी बूझणा एह अकथ कथा मन माहि ॥
हे ज्ञानवान् पुरुषो ! यदि बूझना है तो इस अकथनीय कथा को मन में ही बुझ लो।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਤਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ਅਲਖੁ ਵਸੈ ਸਭ ਮਾਹਿ ॥
बिनु गुर ततु न पाईऐ अलखु वसै सभ माहि ॥
गुरु के बिना परम तत्व पाया नहीं जा सकता, वह अदृष्ट रूप में सबमें बसा हुआ है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਜਾਣੀਐ ਜਾਂ ਸਬਦੁ ਵਸੈ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
सतिगुरु मिलै त जाणीऐ जां सबदु वसै मन माहि ॥
यदि सतगुरु मिल जाए तो ही इस रहस्य का ज्ञान होता है और मन में शब्द अवस्थित हो जाता है।
ਆਪੁ ਗਇਆ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਗਇਆ ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖ ਜਾਹਿ ॥
आपु गइआ भ्रमु भउ गइआ जनम मरन दुख जाहि ॥
जब अहम् दूर हो गया तो भ्रम-भय मिट गया और जन्म-मरण का दुख भी विनष्ट हो गया।
ਗੁਰਮਤਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਈਐ ਊਤਮ ਮਤਿ ਤਰਾਹਿ ॥
गुरमति अलखु लखाईऐ ऊतम मति तराहि ॥
गुरु-मत से ही अदृष्ट प्रभु के दर्शन होते हैं और उत्तम मत से ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है।
ਨਾਨਕ ਸੋਹੰ ਹੰਸਾ ਜਪੁ ਜਾਪਹੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਤਿਸੈ ਸਮਾਹਿ ॥੧॥
नानक सोहं हंसा जपु जापहु त्रिभवण तिसै समाहि ॥१॥
हे नानक ! वह मैं ही हूँ अर्थात् परमात्मा से लीनता वाले मंत्र का जाप करो, तीनों लोकों में वही समाया हुआ है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਮਨੁ ਮਾਣਕੁ ਜਿਨਿ ਪਰਖਿਆ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਵੀਚਾਰਿ ॥
मनु माणकु जिनि परखिआ गुर सबदी वीचारि ॥
जिन्होंने शब्द-गुरु का विचार करके मन रूपी माणिक्य को परख लिया है,
ਸੇ ਜਨ ਵਿਰਲੇ ਜਾਣੀਅਹਿ ਕਲਜੁਗ ਵਿਚਿ ਸੰਸਾਰਿ ॥
से जन विरले जाणीअहि कलजुग विचि संसारि ॥
ऐसे व्यक्ति कलियुगी संसार में विरले ही जाने जाते हैं।
ਆਪੈ ਨੋ ਆਪੁ ਮਿਲਿ ਰਹਿਆ ਹਉਮੈ ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਰਿ ॥
आपै नो आपु मिलि रहिआ हउमै दुबिधा मारि ॥अपने अहम् एवं दुविधा को मारकर वे आत्मस्वरूप में मिले रहते हैं।॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਦੁਤਰੁ ਤਰੇ ਭਉਜਲੁ ਬਿਖਮੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥੨॥
नानक नामि रते दुतरु तरे भउजलु बिखमु संसारु ॥२॥
हे नानक ! ईश्वर के नाम में लीन रहने वाले ही इस दुस्तर एवं भयानक संसार-सागर से पार हुए हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਮਨਮੁਖ ਅੰਦਰੁ ਨ ਭਾਲਨੀ ਮੁਠੇ ਅਹੰਮਤੇ ॥
मनमुख अंदरु न भालनी मुठे अहमते ॥
स्वेच्छाचारी अपने अन्तर्मन में तलाश नहीं करते, अपितु अभिमान के कारण ठगे गए हैं।
ਚਾਰੇ ਕੁੰਡਾਂ ਭਵਿ ਥਕੇ ਅੰਦਰਿ ਤਿਖ ਤਤੇ ॥
चारे कुंडां भवि थके अंदरि तिख तते ॥
वे चारों दिशाओं में घूमकर थक गए हैं और उनके अन्तर्मन में तृष्णाग्नि प्रज्वलित होती रहती है।
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਨ ਸੋਧਨੀ ਮਨਮੁਖ ਵਿਗੁਤੇ ॥
सिम्रिति सासत न सोधनी मनमुख विगुते ॥
वे स्मृति एवं शास्त्रों का विश्लेषण नहीं करते, अतः स्वेच्छाचारी दुखी हुए हैं।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਸਤੇ ॥
बिनु गुर किनै न पाइओ हरि नामु हरि सते ॥
गुरु के बिना किसी को परम-सत्य प्रभु नाम नहीं मिला।
ਤਤੁ ਗਿਆਨੁ ਵੀਚਾਰਿਆ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਗਤੇ ॥੧੯॥
ततु गिआनु वीचारिआ हरि जपि हरि गते ॥१९॥
जिन्होंने तत्व-ज्ञान का चिंतन किया है, परमात्मा का जाप करके उनकी गति हो गई है। १६॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੨ ॥
सलोक मः २ ॥
श्लोक महला २॥
ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਕਰੇ ਆਪਿ ਆਪੇ ਆਣੈ ਰਾਸਿ ॥
आपे जाणै करे आपि आपे आणै रासि ॥
ईश्वर स्वयं ही जानता है, कर्ता भी स्वयं ही है, स्वयं ही बिगड़े कार्यों को ठीक करता है।
ਤਿਸੈ ਅਗੈ ਨਾਨਕਾ ਖਲਿਇ ਕੀਚੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥੧॥
तिसै अगै नानका खलिइ कीचै अरदासि ॥१॥
हे नानक ! उस दीनदयाल के समक्ष ही प्रार्थना करो॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
मः १ ॥
महला १॥
ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਦੇਖਿਆ ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਸੋਇ ॥
जिनि कीआ तिनि देखिआ आपे जाणै सोइ ॥
जिसने दुनिया को उत्पन्न किया है, उसने ही इसकी देखभाल की है, वह सर्वज्ञाता है।
ਕਿਸ ਨੋ ਕਹੀਐ ਨਾਨਕਾ ਜਾ ਘਰਿ ਵਰਤੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥੨॥
किस नो कहीऐ नानका जा घरि वरतै सभु कोइ ॥२॥
हे नानक ! जब सब हृदय-घर में ही व्याप्त है, फिर किससे कहा जाए॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸਭੇ ਥੋਕ ਵਿਸਾਰਿ ਇਕੋ ਮਿਤੁ ਕਰਿ ॥
सभे थोक विसारि इको मितु करि ॥
हे जीव ! सब पदार्थों को भुलाकर ईश्वर को अपना मित्र बना,
ਮਨੁ ਤਨੁ ਹੋਇ ਨਿਹਾਲੁ ਪਾਪਾ ਦਹੈ ਹਰਿ ॥
मनु तनु होइ निहालु पापा दहै हरि ॥
इससे मन-तन आनंदित हो जाएगा और प्रभु सब पाप मिटा देगा।
ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਚੁਕੈ ਜਨਮਿ ਨ ਜਾਹਿ ਮਰਿ ॥
आवण जाणा चुकै जनमि न जाहि मरि ॥
तेरा आवागमन छूट जाएगा और जन्म-मरण से रहित हो जाओगे।
ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ਸੋਗਿ ਨ ਮੋਹਿ ਜਰਿ ॥
सचु नामु आधारु सोगि न मोहि जरि ॥
सच्चा नाम ही ऐसा सहारा है, जिससे शोक एवं मोह रूपी अग्नि में जलना नहीं पड़ता।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਮਨ ਮਹਿ ਸੰਜਿ ਧਰਿ ॥੨੦॥
नानक नामु निधानु मन महि संजि धरि ॥२०॥
हे नानक ! परमात्मा का नाम सुखों का भण्डार है, इसे अपने मन में संजोकर रख लो॥२०॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਮਾਇਆ ਮਨਹੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਮਾਂਗੈ ਦੰਮਾ ਦੰਮ ॥
माइआ मनहु न वीसरै मांगै दमा दम ॥
आदमी मन से धन-दौलत को नहीं भूलता, अपितु अधिकाधिक धन की ही लालसा करता है।
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਈ ਨਾਨਕ ਨਹੀ ਕਰੰਮ ॥੧॥
सो प्रभु चिति न आवई नानक नही करम ॥१॥
हे नानक ! अगर भाग्य साथ नहीं तो उसे प्रभु भी याद नहीं आता॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਮਾਇਆ ਸਾਥਿ ਨ ਚਲਈ ਕਿਆ ਲਪਟਾਵਹਿ ਅੰਧ ॥
माइआ साथि न चलई किआ लपटावहि अंध ॥
अरे अन्धे ! माया किसी भी जीव के साथ नहीं चलती, फिर क्यों इससे लिपट रहे हो।
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਧਿਆਇ ਤੂ ਤੂਟਹਿ ਮਾਇਆ ਬੰਧ ॥੨॥
गुर के चरण धिआइ तू तूटहि माइआ बंध ॥२॥
तू गुरु के चरणों का ध्यान कर, तेरे माया के बन्धन टूट जाएँगे॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਭਾਣੈ ਹੁਕਮੁ ਮਨਾਇਓਨੁ ਭਾਣੈ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
भाणै हुकमु मनाइओनु भाणै सुखु पाइआ ॥
परमात्मा ने अपनी रज़ा में ही अपना हुक्म मनवाया है और ईश्वरेच्छा में ही जीव ने सुख पाया है।
ਭਾਣੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿਓਨੁ ਭਾਣੈ ਸਚੁ ਧਿਆਇਆ ॥
भाणै सतिगुरु मेलिओनु भाणै सचु धिआइआ ॥
उसने अपनी इच्छा से जिसे सतिगुरु से मिला दिया है, उसने रज़ा में ही परम-सत्य का मनन किया है।
ਭਾਣੇ ਜੇਵਡ ਹੋਰ ਦਾਤਿ ਨਾਹੀ ਸਚੁ ਆਖਿ ਸੁਣਾਇਆ ॥
भाणे जेवड होर दाति नाही सचु आखि सुणाइआ ॥
सतगुरु ने यह सत्य ही कहकर सुनाया है कि ईश्वरेच्छा जैसी बड़ी अन्य कोई देन नहीं।
ਜਿਨ ਕਉ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਤਿਨ ਸਚੁ ਕਮਾਇਆ ॥
जिन कउ पूरबि लिखिआ तिन सचु कमाइआ ॥
जिनके भाग्य में पूर्व से ही ऐसा लिखा है, उसने ही सत्य का आचरण किया है।
ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਸਰਣਾਗਤੀ ਜਿਨਿ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥੨੧॥
नानक तिसु सरणागती जिनि जगतु उपाइआ ॥२१॥
हे नानक ! उसकी शरण में पड़े रहो, जिसने यह जगत् उत्पन्न किया है॥ २१॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥
ਜਿਨ ਕਉ ਅੰਦਰਿ ਗਿਆਨੁ ਨਹੀ ਭੈ ਕੀ ਨਾਹੀ ਬਿੰਦ ॥
जिन कउ अंदरि गिआनु नही भै की नाही बिंद ॥
जिनके अंत:करण में ज्ञान नहीं और परमात्मा का थोड़ा-सा भी भय नहीं,
ਨਾਨਕ ਮੁਇਆ ਕਾ ਕਿਆ ਮਾਰਣਾ ਜਿ ਆਪਿ ਮਾਰੇ ਗੋਵਿੰਦ ॥੧॥
नानक मुइआ का किआ मारणा जि आपि मारे गोविंद ॥१॥
हे नानक ! भला उन मृतक मनुष्यों को और क्या मारना है, जिन्हें प्रभु ने स्वयं ही मार दिया है॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥
ਮਨ ਕੀ ਪਤ੍ਰੀ ਵਾਚਣੀ ਸੁਖੀ ਹੂ ਸੁਖੁ ਸਾਰੁ ॥
मन की पत्री वाचणी सुखी हू सुखु सारु ॥
अपने मन की पत्री को पढ़ना ही परम सुख है।
ਸੋ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਭਲਾ ਆਖੀਐ ਜਿ ਬੂਝੈ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
सो ब्राहमणु भला आखीऐ जि बूझै ब्रहमु बीचारु ॥
वही ब्राह्मण भला कहना चाहिए जो ब्रह्म-विचार को बूझ लेता है।
ਹਰਿ ਸਾਲਾਹੇ ਹਰਿ ਪੜੈ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
हरि सालाहे हरि पड़ै गुर कै सबदि वीचारि ॥
वह गुरु के शब्द (उपदेश) का गहन चिंतन कर परमात्मा की स्तुति एवं उसके गुणों का अध्ययन करता रहता है।