ਤੁਧੁ ਥਾਪੇ ਚਾਰੇ ਜੁਗ ਤੂ ਕਰਤਾ ਸਗਲ ਧਰਣ ॥
तुधु थापे चारे जुग तू करता सगल धरण ॥
तूने ही सतियुग, त्रैता, द्वापर एवं कलियुग की स्थापना की है, तू ही समूची धरती का रचयिता है।
ਤੁਧੁ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਕੀਆ ਤੁਧੁ ਲੇਪੁ ਨ ਲਗੈ ਤ੍ਰਿਣ ॥
तुधु आवण जाणा कीआ तुधु लेपु न लगै त्रिण ॥
जीवों का जन्म-मरण बेशक तूने ही बनाया है, किंन्तु तुझे तिल मात्र भी इसका दोष नहीं लगता।
ਜਿਸੁ ਹੋਵਹਿ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਤਿਸੁ ਲਾਵਹਿ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣ ॥
जिसु होवहि आपि दइआलु तिसु लावहि सतिगुर चरण ॥
जिस पर तू दयालु हो जाता है, उसे गुरु के चरणों में लगा देता है।
ਤੂ ਹੋਰਤੁ ਉਪਾਇ ਨ ਲਭਹੀ ਅਬਿਨਾਸੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਰਣ ॥੨॥
तू होरतु उपाइ न लभही अबिनासी स्रिसटि करण ॥२॥
हे अविनाशी सृष्टिकर्ता ! गुरु के बिना तू किसी अन्य उपाय से नहीं मिलता।॥ २॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे मः ५ ॥
डखणे महला ५॥
ਜੇ ਤੂ ਵਤਹਿ ਅੰਙਣੇ ਹਭ ਧਰਤਿ ਸੁਹਾਵੀ ਹੋਇ ॥
जे तू वतहि अंङणे हभ धरति सुहावी होइ ॥
हे परमेश्वर ! यदि तू मेरे हृदय रूपी आँगन में आ जाए तो शरीर रूपी सारी धरती सुन्दर बन जाए।
ਹਿਕਸੁ ਕੰਤੈ ਬਾਹਰੀ ਮੈਡੀ ਵਾਤ ਨ ਪੁਛੈ ਕੋਇ ॥੧॥
हिकसु कंतै बाहरी मैडी वात न पुछै कोइ ॥१॥
पति-प्रभु के बिना तो कोई भी मेरी बात नहीं पूछता॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਹਭੇ ਟੋਲ ਸੁਹਾਵਣੇ ਸਹੁ ਬੈਠਾ ਅੰਙਣੁ ਮਲਿ ॥
हभे टोल सुहावणे सहु बैठा अंङणु मलि ॥
मेरा पति-प्रभु मेरे हृदय रूपी आँगन में आकर बैठ गया है, अतः अब मुझे सभी श्रृंगार सुन्दर लगते हैं।
ਪਹੀ ਨ ਵੰਞੈ ਬਿਰਥੜਾ ਜੋ ਘਰਿ ਆਵੈ ਚਲਿ ॥੨॥
पही न वंञै बिरथड़ा जो घरि आवै चलि ॥२॥
जो भी अतिथि संत चलकर मेरे घर आता है, वह खाली हाथ नहीं जाता॥२॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਸੇਜ ਵਿਛਾਈ ਕੰਤ ਕੂ ਕੀਆ ਹਭੁ ਸੀਗਾਰੁ ॥
सेज विछाई कंत कू कीआ हभु सीगारु ॥
मैंने अपने पति-प्रभु के लिए हृदय रूपी सेज बिछा ली है और सारा श्रृंगार कर लिया है
ਇਤੀ ਮੰਝਿ ਨ ਸਮਾਵਈ ਜੇ ਗਲਿ ਪਹਿਰਾ ਹਾਰੁ ॥੩॥
इती मंझि न समावई जे गलि पहिरा हारु ॥३॥
अब अगर गले में हार भी पहन लूं तो यह थोड़ा-सा भी बदाश्त नहीं होता जो प्रभु से जुदाई का कारण बनता है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਤੂ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਜੋਨਿ ਨ ਆਵਹੀ ॥
तू पारब्रहमु परमेसरु जोनि न आवही ॥
हे परब्रह्म परमेश्वर ! तू सदा अमर है, किसी योनि में नहीं आता।
ਤੂ ਹੁਕਮੀ ਸਾਜਹਿ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਾਜਿ ਸਮਾਵਹੀ ॥
तू हुकमी साजहि स्रिसटि साजि समावही ॥
तू अपने हुक्म से ही सृष्टि का निर्माण करता है और निर्माण करके उसमें समाया रहता है।
ਤੇਰਾ ਰੂਪੁ ਨ ਜਾਈ ਲਖਿਆ ਕਿਉ ਤੁਝਹਿ ਧਿਆਵਹੀ ॥
तेरा रूपु न जाई लखिआ किउ तुझहि धिआवही ॥
तेरा रूप देखा नहीं जा सकता फिर क्योंकर तेरा ध्यान किया जा सकता है।
ਤੂ ਸਭ ਮਹਿ ਵਰਤਹਿ ਆਪਿ ਕੁਦਰਤਿ ਦੇਖਾਵਹੀ ॥
तू सभ महि वरतहि आपि कुदरति देखावही ॥
तू सब जीवों में व्याप्त है और स्वयं ही अपनी कुदरत दिखाता है।
ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵਹੀ ॥
तेरी भगति भरे भंडार तोटि न आवही ॥
तेरी भक्ति के भण्डार भरे हुए हैं और उनमें कभी कोई कमी नहीं आती।
ਏਹਿ ਰਤਨ ਜਵੇਹਰ ਲਾਲ ਕੀਮ ਨ ਪਾਵਹੀ ॥
एहि रतन जवेहर लाल कीम न पावही ॥
यह (भक्ति ही) रत्न, हीरे-जवाहरात एवं मोती हैं, इसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ਜਿਸੁ ਹੋਵਹਿ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਤਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਲਾਵਹੀ ॥
जिसु होवहि आपि दइआलु तिसु सतिगुर सेवा लावही ॥
जिस पर तू दयालु हो जाता है, उसे सतगुरु की सेवा में लगा देता है।
ਤਿਸੁ ਕਦੇ ਨ ਆਵੈ ਤੋਟਿ ਜੋ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹੀ ॥੩॥
तिसु कदे न आवै तोटि जो हरि गुण गावही ॥३॥
हे हरि ! जो तेरा गुणगान करता है, उसे किसी भी वस्तु की कमी नहीं आती॥ ३॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे मः ५ ॥
डखणे महला ५॥
ਜਾ ਮੂ ਪਸੀ ਹਠ ਮੈ ਪਿਰੀ ਮਹਿਜੈ ਨਾਲਿ ॥
जा मू पसी हठ मै पिरी महिजै नालि ॥
जब मैंने अपने दिल में देखा तो मेरा स्वामी साथ ही दिखाई दिया।
ਹਭੇ ਡੁਖ ਉਲਾਹਿਅਮੁ ਨਾਨਕ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥੧॥
हभे डुख उलाहिअमु नानक नदरि निहालि ॥१॥
हे नानक ! उसने अपनी करुणा-दृष्टि से मुझे निहाल कर दिया है और मेरे सब दुख-दर्द दूर कर दिए हैं।॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਨਾਨਕ ਬੈਠਾ ਭਖੇ ਵਾਉ ਲੰਮੇ ਸੇਵਹਿ ਦਰੁ ਖੜਾ ॥
नानक बैठा भखे वाउ लमे सेवहि दरु खड़ा ॥
नानक तो परमात्मा के द्वार पर खड़ा उसकी सेवा में लीन है, चिरकाल से उसके द्वार पर बैठा हवा खा रहा है अर्थात् जीवन व्यतीत कर रहा है।
ਪਿਰੀਏ ਤੂ ਜਾਣੁ ਮਹਿਜਾ ਸਾਉ ਜੋਈ ਸਾਈ ਮੁਹੁ ਖੜਾ ॥੨॥
पिरीए तू जाणु महिजा साउ जोई साई मुहु खड़ा ॥२॥
हे प्रियतम ! मैं क्योंकर खड़ा हूँ, तू मेरा उद्देश्य जानता ही है; मैं तो अपने मालिक के सुन्दर मुख को देखने के लिए ही खड़ा हूँ॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਕਿਆ ਗਾਲਾਇਓ ਭੂਛ ਪਰ ਵੇਲਿ ਨ ਜੋਹੇ ਕੰਤ ਤੂ ॥
किआ गालाइओ भूछ पर वेलि न जोहे कंत तू ॥
अरे मूर्ख ! तू क्या व्यर्थ बातें करता है, तू तभी एक योग्य पति है, यदि पराई नारियों की ओर मत देखे।
ਨਾਨਕ ਫੁਲਾ ਸੰਦੀ ਵਾੜਿ ਖਿੜਿਆ ਹਭੁ ਸੰਸਾਰੁ ਜਿਉ ॥੩॥
नानक फुला संदी वाड़ि खिड़िआ हभु संसारु जिउ ॥३॥
हे नानक ! यह समूचा संसार यू खिला हुआ है, जैसे फूलों की वाटिका खिली होती है। ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਸੁਘੜੁ ਸੁਜਾਣੁ ਸਰੂਪੁ ਤੂ ਸਭ ਮਹਿ ਵਰਤੰਤਾ ॥
सुघड़ु सुजाणु सरूपु तू सभ महि वरतंता ॥
हे ईश्वर ! तू बड़ा निपुण, चतुर एवं सुन्दर रूप वाला है, तू ही सबमें व्याप्त है।
ਤੂ ਆਪੇ ਠਾਕੁਰੁ ਸੇਵਕੋ ਆਪੇ ਪੂਜੰਤਾ ॥
तू आपे ठाकुरु सेवको आपे पूजंता ॥
मालिक एवं सेवक भी तू स्वयं ही है और स्वयं ही अपनी पूजा करता है।
ਦਾਨਾ ਬੀਨਾ ਆਪਿ ਤੂ ਆਪੇ ਸਤਵੰਤਾ ॥
दाना बीना आपि तू आपे सतवंता ॥
तू स्वयं ही सत्यनिष्ठ है और सब कुछ जानने एवं देखने वाला भी स्वयं ही है।
ਜਤੀ ਸਤੀ ਪ੍ਰਭੁ ਨਿਰਮਲਾ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਭਗਵੰਤਾ ॥
जती सती प्रभु निरमला मेरे हरि भगवंता ॥
हे मेरे हरि भगवंत ! तू ही ब्रह्मचारी, सदाचारी एवं निर्मल रहने वाला है।
ਸਭੁ ਬ੍ਰਹਮ ਪਸਾਰੁ ਪਸਾਰਿਓ ਆਪੇ ਖੇਲੰਤਾ ॥
सभु ब्रहम पसारु पसारिओ आपे खेलंता ॥
सब ब्रह्म का ही प्रसार है और उसमें स्वयं ही अपनी लीला खेलता है।
ਇਹੁ ਆਵਾ ਗਵਣੁ ਰਚਾਇਓ ਕਰਿ ਚੋਜ ਦੇਖੰਤਾ ॥
इहु आवा गवणु रचाइओ करि चोज देखंता ॥
जीवों के जन्म-मरण का यह चक्र बनाकर स्वयं अपनी लीला देखता रहता है।
ਤਿਸੁ ਬਾਹੁੜਿ ਗਰਭਿ ਨ ਪਾਵਹੀ ਜਿਸੁ ਦੇਵਹਿ ਗੁਰ ਮੰਤਾ ॥
तिसु बाहुड़ि गरभि न पावही जिसु देवहि गुर मंता ॥
जिसे वह गुरु-मंत्र देता है, उसे पुनः गर्भ योनि में नहीं धकेलता।
ਜਿਉ ਆਪਿ ਚਲਾਵਹਿ ਤਿਉ ਚਲਦੇ ਕਿਛੁ ਵਸਿ ਨ ਜੰਤਾ ॥੪॥
जिउ आपि चलावहि तिउ चलदे किछु वसि न जंता ॥४॥
जैसे वह जीवों को चलाता है, वैसे ही वे चलते हैं, इन जीवों के अपने वश में कुछ भी नहीं॥ ४॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे मः ५ ॥
डखणे महला ५॥
ਕੁਰੀਏ ਕੁਰੀਏ ਵੈਦਿਆ ਤਲਿ ਗਾੜਾ ਮਹਰੇਰੁ ॥
कुरीए कुरीए वैदिआ तलि गाड़ा महरेरु ॥
हे जग रूपी नदी किनारे की पगडण्डी पर चलते जा रहे प्राणी ! तेरे नीचे तो गहरा कीचड़ भरा हुआ है।
ਵੇਖੇ ਛਿਟੜਿ ਥੀਵਦੋ ਜਾਮਿ ਖਿਸੰਦੋ ਪੇਰੁ ॥੧॥
वेखे छिटड़ि थीवदो जामि खिसंदो पेरु ॥१॥
ध्यान से देखना, अगर तेरा पैर फिसल गया तो कीचड़ के छींटों से कलंकित हो जाओगे॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਸਚੁ ਜਾਣੈ ਕਚੁ ਵੈਦਿਓ ਤੂ ਆਘੂ ਆਘੇ ਸਲਵੇ ॥
सचु जाणै कचु वैदिओ तू आघू आघे सलवे ॥
हे जीव रूपी मुसाफिर ! तू काँच रूपी माया को सत्य समझता है और इसे पाने के लिए तू आगे ही आगे दौड़ता जाता है।
ਨਾਨਕ ਆਤਸੜੀ ਮੰਝਿ ਨੈਣੂ ਬਿਆ ਢਲਿ ਪਬਣਿ ਜਿਉ ਜੁੰਮਿਓ ॥੨॥
नानक आतसड़ी मंझि नैणू बिआ ढलि पबणि जिउ जुमिओ ॥२॥
हे नानक ! जैसे घी अग्नि में जल जाता है और दूसरा चौपत्ती (नीलोफर) जल के सूखने पर नाश हो जाती है, वैसे ही जीवन अवधि समाप्त होने पर नाश हो जाओगे॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਭੋਰੇ ਭੋਰੇ ਰੂਹੜੇ ਸੇਵੇਦੇ ਆਲਕੁ ॥
भोरे भोरे रूहड़े सेवेदे आलकु ॥
हे भोलेभाले अनजान जीव ! परमात्मा की उपासना में क्यों आलस्य करता है।
ਮੁਦਤਿ ਪਈ ਚਿਰਾਣੀਆ ਫਿਰਿ ਕਡੂ ਆਵੈ ਰੁਤਿ ॥੩॥
मुदति पई चिराणीआ फिरि कडू आवै रुति ॥३॥
(प्रभु से बिछुड़े) बहुत लम्बा समय बीत गया है, प्रभु-मिलन का यह मौसम (अर्थात् सुनहरी अवसर) कब आएगा॥ ३॥