Hindi Page 1115

ਤਿਨ ਕਾ ਜਨਮੁ ਸਫਲਿਓ ਸਭੁ ਕੀਆ ਕਰਤੈ ਜਿਨ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਸਚੁ ਭਾਖਿਆ ॥
तिन का जनमु सफलिओ सभु कीआ करतै जिन गुर बचनी सचु भाखिआ ॥
जिन्होंने गुरु के वचनानुसार सत्य बोला है, ईश्वर ने उनका समूचा जीवन सफल कर दिया है।

ਤੇ ਧੰਨੁ ਜਨ ਵਡ ਪੁਰਖ ਪੂਰੇ ਜੋ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਭਉ ਬਿਖਮੁ ਤਰੇ ॥
ते धंनु जन वड पुरख पूरे जो गुरमति हरि जपि भउ बिखमु तरे ॥
वही व्यक्ति धन्य एवं महापुरुष हैं जो गुरु के उपदेशानुसार प्रभु का जाप कर विषम संसार-सागर से पार उतर गए हैं।

ਸੇਵਕ ਜਨ ਸੇਵਹਿ ਤੇ ਪਰਵਾਣੁ ਜਿਨ ਸੇਵਿਆ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰੇ ॥੩॥
सेवक जन सेवहि ते परवाणु जिन सेविआ गुरमति हरे ॥३॥
जिन्होंने गुरु-मतानुसार प्रभु की उपासना की है, ऐसे सेवक जन ईशोपासना करके प्रभु-दरबार में मान्य हो गए हैं।॥३॥

ਤੂ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਹਰਿ ਆਪਿ ਜਿਉ ਤੂ ਚਲਾਵਹਿ ਪਿਆਰੇ ਹਉ ਤਿਵੈ ਚਲਾ ॥
तू अंतरजामी हरि आपि जिउ तू चलावहि पिआरे हउ तिवै चला ॥
हे श्री हरि ! तू अन्तर्यामी है, जैसे तू चलाता है, वैसे ही हम चलते हैं।

ਹਮਰੈ ਹਾਥਿ ਕਿਛੁ ਨਾਹਿ ਜਾ ਤੂ ਮੇਲਹਿ ਤਾ ਹਉ ਆਇ ਮਿਲਾ ॥
हमरै हाथि किछु नाहि जा तू मेलहि ता हउ आइ मिला ॥
हमारे हाथ कुछ भी नहीं, अगर तू मिला ले तो हम तुझसे मिल जाते हैं।

ਜਿਨ ਕਉ ਤੂ ਹਰਿ ਮੇਲਹਿ ਸੁਆਮੀ ਸਭੁ ਤਿਨ ਕਾ ਲੇਖਾ ਛੁਟਕਿ ਗਇਆ ॥
जिन कउ तू हरि मेलहि सुआमी सभु तिन का लेखा छुटकि गइआ ॥
हे स्वामी ! जिनको तू अपने साथ मिला लेता है, उनका कर्मों का लेख छूट जाता है।

ਤਿਨ ਕੀ ਗਣਤ ਨ ਕਰਿਅਹੁ ਕੋ ਭਾਈ ਜੋ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਲਇਆ ॥
तिन की गणत न करिअहु को भाई जो गुर बचनी हरि मेलि लइआ ॥
हे भाई ! उनकी गणना नहीं की जा सकती, जिनको गुरु के वचन द्वारा प्रभु ने मिला लिया है।

ਨਾਨਕ ਦਇਆਲੁ ਹੋਆ ਤਿਨ ਊਪਰਿ ਜਿਨ ਗੁਰ ਕਾ ਭਾਣਾ ਮੰਨਿਆ ਭਲਾ ॥
नानक दइआलु होआ तिन ऊपरि जिन गुर का भाणा मंनिआ भला ॥
नानक का फुरमान है कि ईश्वर उन पर ही दयालु हुआ है, जिन्होंने गुरु की रज़ा को भला माना है।

ਤੂ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਹਰਿ ਆਪਿ ਜਿਉ ਤੂ ਚਲਾਵਹਿ ਪਿਆਰੇ ਹਉ ਤਿਵੈ ਚਲਾ ॥੪॥੨॥
तू अंतरजामी हरि आपि जिउ तू चलावहि पिआरे हउ तिवै चला ॥४॥२॥
हे हरि ! तू अन्तर्यामी है, जैसे तू चलाता है, वैसे ही हम चलते हैं॥४॥२॥

ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
तुखारी महला ४ ॥
तुखारी महला ४॥

ਤੂ ਜਗਜੀਵਨੁ ਜਗਦੀਸੁ ਸਭ ਕਰਤਾ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਨਾਥੁ ॥
तू जगजीवनु जगदीसु सभ करता स्रिसटि नाथु ॥
हे जगदीश्वर ! तू जगत का जीवन, सब बनानेवाला एवं सृष्टि का मालिक है।

ਤਿਨ ਤੂ ਧਿਆਇਆ ਮੇਰਾ ਰਾਮੁ ਜਿਨ ਕੈ ਧੁਰਿ ਲੇਖੁ ਮਾਥੁ ॥
तिन तू धिआइआ मेरा रामु जिन कै धुरि लेखु माथु ॥
जिनके ललाट पर प्रारम्भ से ही भाग्य लिखा हुआ है, उन भक्तों ने ही तेरी पूजा-अर्चना की है।

ਜਿਨ ਕਉ ਧੁਰਿ ਹਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਿਆ ॥
जिन कउ धुरि हरि लिखिआ सुआमी तिन हरि हरि नामु अराधिआ ॥
जिनके भाग्य में शुरु से ही लिखा है, उन्होंने हरिनाम की आराधना की है।

ਤਿਨ ਕੇ ਪਾਪ ਇਕ ਨਿਮਖ ਸਭਿ ਲਾਥੇ ਜਿਨ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਹਰਿ ਜਾਪਿਆ ॥
तिन के पाप इक निमख सभि लाथे जिन गुर बचनी हरि जापिआ ॥
जिन्होंने गुरु के वचन द्वारा हरि का जाप किया, उनके पाप एक पल में ही दूर हो गए हैं।

ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਤੇ ਜਨ ਜਿਨ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਿਆ ਤਿਨ ਦੇਖੇ ਹਉ ਭਇਆ ਸਨਾਥੁ ॥
धनु धंनु ते जन जिन हरि नामु जपिआ तिन देखे हउ भइआ सनाथु ॥
जिन्होंने हरिनाम जपा है, वे भक्तजन धन्य हैं, उनके दर्शन पाकर सनाथ बन गया हूँ।

ਤੂ ਜਗਜੀਵਨੁ ਜਗਦੀਸੁ ਸਭ ਕਰਤਾ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਨਾਥੁ ॥੧॥
तू जगजीवनु जगदीसु सभ करता स्रिसटि नाथु ॥१॥
हे ईश्वर ! तू जगत का जीवन, सब बनानेवाला एवं सृष्टि का स्वामी है॥१॥

ਤੂ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਭਰਪੂਰਿ ਸਭ ਊਪਰਿ ਸਾਚੁ ਧਣੀ ॥
तू जलि थलि महीअलि भरपूरि सभ ऊपरि साचु धणी ॥
हे ईश्वर ! तू जल, थल, नभ सब में व्याप्त है, सबसे बड़ा एवं हम सबका मालिक है।

ਜਿਨ ਜਪਿਆ ਹਰਿ ਮਨਿ ਚੀਤਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪਿ ਮੁਕਤੁ ਘਣੀ ॥
जिन जपिआ हरि मनि चीति हरि जपि जपि मुकतु घणी ॥
जिन्होंने एकाग्रचित होकर हरिनाम जपा, ऐसे कितने ही भक्तजन हरिनाम जप-जपकर मुक्ति पा गए हैं।

ਜਿਨ ਜਪਿਆ ਹਰਿ ਤੇ ਮੁਕਤ ਪ੍ਰਾਣੀ ਤਿਨ ਕੇ ਊਜਲ ਮੁਖ ਹਰਿ ਦੁਆਰਿ ॥
जिन जपिआ हरि ते मुकत प्राणी तिन के ऊजल मुख हरि दुआरि ॥
हरिनाम जपने वाले प्राणी संसार के बन्धनों से मुक्त हो गए हैं और प्रभु द्वार में उन्हीं के मुख उज्ज्वल हुए हैं।

ਓਇ ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਜਨ ਭਏ ਸੁਹੇਲੇ ਹਰਿ ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਰਖਨਹਾਰਿ ॥
ओइ हलति पलति जन भए सुहेले हरि राखि लीए रखनहारि ॥
वे लोक-परलोक में सुखी हुए हैं और ईश्वर ही उनका रखवाला बना है।

ਹਰਿ ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਜਨ ਸੁਣਹੁ ਭਾਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਸਫਲ ਬਣੀ ॥
हरि संतसंगति जन सुणहु भाई गुरमुखि हरि सेवा सफल बणी ॥
हे भाई जनो ! सुनो, गुरु-संतों की संगति में ही प्रभु की उपासना सफल हुई है।

ਤੂ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਭਰਪੂਰਿ ਸਭ ਊਪਰਿ ਸਾਚੁ ਧਣੀ ॥੨॥
तू जलि थलि महीअलि भरपूरि सभ ऊपरि साचु धणी ॥२॥
हे मालिक ! एकमात्र तू ही सबसे बड़ा है, जल, थल, नभ सब में तू ही व्याप्त है॥ २॥

ਤੂ ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਹਰਿ ਏਕੁ ਹਰਿ ਏਕੋ ਏਕੁ ਰਵਿਆ ॥
तू थान थनंतरि हरि एकु हरि एको एकु रविआ ॥
हे प्रभु ! एक तू ही सर्वव्यापक है, केवल तू ही कण-कण में रमण कर रहा है,”

ਵਣਿ ਤ੍ਰਿਣਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਸਭ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਚਵਿਆ ॥
वणि त्रिणि त्रिभवणि सभ स्रिसटि मुखि हरि हरि नामु चविआ ॥
वन-वनस्पति, तीनों लोक, समूची सृष्टि हरिनाम जप रही है।

ਸਭਿ ਚਵਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤੇ ਅਸੰਖ ਅਗਣਤ ਹਰਿ ਧਿਆਵਏ ॥
सभि चवहि हरि हरि नामु करते असंख अगणत हरि धिआवए ॥
सभी जीव हरिनाम की स्तुति कर रहे हैं, असंख्य, अनगिनत जीव ईश्वर का भजन करने में तल्लीन हैं।

ਸੋ ਧੰਨੁ ਧਨੁ ਹਰਿ ਸੰਤੁ ਸਾਧੂ ਜੋ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਕਰਤੇ ਭਾਵਏ ॥
सो धंनु धनु हरि संतु साधू जो हरि प्रभ करते भावए ॥
पर वे साधु-संत धन्य हैं, जो कर्ता प्रभु को भा जाते हैं।

ਸੋ ਸਫਲੁ ਦਰਸਨੁ ਦੇਹੁ ਕਰਤੇ ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਸਦ ਚਵਿਆ ॥
सो सफलु दरसनु देहु करते जिसु हरि हिरदै नामु सद चविआ ॥
हे सृष्टिकर्ता ! जिसने हृदय में सदा हरिनामोच्चारण किया है, उस गुरु-संत पुरुष के मुझे सफल दर्शन करवा दो।

ਤੂ ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਹਰਿ ਏਕੁ ਹਰਿ ਏਕੋ ਏਕੁ ਰਵਿਆ ॥੩॥
तू थान थनंतरि हरि एकु हरि एको एकु रविआ ॥३॥
हे प्रभु ! एक तू ही हर स्थान पर मौजूद है, केवल एक तू ही संसार के कण-कण में रमण कर रहा है॥ ३॥

ਤੇਰੀ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ਅਸੰਖ ਜਿਸੁ ਤੂ ਦੇਵਹਿ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਤਿਸੁ ਮਿਲਹਿ ॥
तेरी भगति भंडार असंख जिसु तू देवहि मेरे सुआमी तिसु मिलहि ॥
तेरी भक्ति के भण्डार तो अनगिनत हैं, हे मेरे स्वामी ! पर जिसे तू देता है, उसे ही मिलता है।

ਜਿਸ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਗੁਰ ਹਾਥੁ ਤਿਸੁ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਟਿਕਹਿ ॥
जिस कै मसतकि गुर हाथु तिसु हिरदै हरि गुण टिकहि ॥
जिसके मस्तक पर गुरु का हाथ है, उसके ही हृदय में प्रभु-गुण टिकते हैं।

ਹਰਿ ਗੁਣ ਹਿਰਦੈ ਟਿਕਹਿ ਤਿਸ ਕੈ ਜਿਸੁ ਅੰਤਰਿ ਭਉ ਭਾਵਨੀ ਹੋਈ ॥
हरि गुण हिरदै टिकहि तिस कै जिसु अंतरि भउ भावनी होई ॥
उसके ही हृदय में प्रभु-गुण टिकते हैं, जिसके अन्तर्मन में पूर्ण निष्ठा बनी हुई है।

error: Content is protected !!