ਸਾਚਿ ਰਤੇ ਸਚੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਜਿਹਵਾ ਮਿਥਿਆ ਮੈਲੁ ਨ ਰਾਈ ॥
साचि रते सचु अम्रितु जिहवा मिथिआ मैलु न राई ॥
सत्य में लीन सेवक की जिहा पर सत्य रूपी अमृत ही होता है और झूठ की मैल उसे बिल्कुल नहीं लगती।
ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਪਤਿ ਪਾਈ ॥੩॥
निरमल नामु अम्रित रसु चाखिआ सबदि रते पति पाई ॥३॥
उसने निर्मल नामामृत का ही रस चखा है और शब्द में रत रहकर शोभा प्राप्त की है॥३॥
ਗੁਣੀ ਗੁਣੀ ਮਿਲਿ ਲਾਹਾ ਪਾਵਸਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਵਡਾਈ ॥
गुणी गुणी मिलि लाहा पावसि गुरमुखि नामि वडाई ॥
गुणवान व्यक्ति पूर्ण गुणवान संत गुरु से साक्षात्कार कर लाभ ही पाता है और गुरुमुख बनकर प्रभु-नाम का संकीर्तन कर शोभा पाता है।
ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਮਿਟਹਿ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ॥੪॥੫॥੬॥
सगले दूख मिटहि गुर सेवा नानक नामु सखाई ॥४॥५॥६॥
गुरु नानक का फुरमान है कि गुरु की सेवा करने से सब दुख मिट जाते हैं और हरिनाम उसका सहायक होता है।॥४॥५॥६॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੧ ॥
भैरउ महला १ ॥
भैरउ महला १॥
ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਸਰਬ ਧਨੁ ਧਾਰਣੁ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਾਈਐ ॥
हिरदै नामु सरब धनु धारणु गुर परसादी पाईऐ ॥
गुरु की कृपा से हृदय में सर्वोच्च धन प्रभु-नाम प्राप्त होता है।
ਅਮਰ ਪਦਾਰਥ ਤੇ ਕਿਰਤਾਰਥ ਸਹਜ ਧਿਆਨਿ ਲਿਵ ਲਾਈਐ ॥੧॥
अमर पदारथ ते किरतारथ सहज धिआनि लिव लाईऐ ॥१॥
सहज-स्वभाव ध्यान लगाकर प्रभु में लगन लगाने से अमर पदार्थ से जीव कृतार्थ हो जाता है।॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਚਿਤੁ ਲਾਈਐ ॥
मन रे राम भगति चितु लाईऐ ॥
हे मन ! ईश्वर की भक्ति में ध्यान लगाओ।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਹਿਰਦੈ ਸਹਜ ਸੇਤੀ ਘਰਿ ਜਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि राम नामु जपि हिरदै सहज सेती घरि जाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरुमुख बनकर हृदय में राम नाम का जाप करने से सहज ही वास्तविक घर में जाया जा सकता है॥१॥ रहाउ॥
ਭਰਮੁ ਭੇਦੁ ਭਉ ਕਬਹੁ ਨ ਛੂਟਸਿ ਆਵਤ ਜਾਤ ਨ ਜਾਨੀ ॥
भरमु भेदु भउ कबहु न छूटसि आवत जात न जानी ॥
भ्रम, भेदभाव व भय कभी छूट नहीं सका और न ही संसार में आने-जाने के रहस्य को समझा।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕੋ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਵਸਿ ਡੂਬਿ ਮੁਏ ਬਿਨੁ ਪਾਨੀ ॥੨॥
बिनु हरि नाम को मुकति न पावसि डूबि मुए बिनु पानी ॥२॥
वास्तव में हरिनाम बिना कोई भी मुक्ति नहीं पा सकता और नामविहीन बिन पानी ही डूब मरे हैं।॥२॥
ਧੰਧਾ ਕਰਤ ਸਗਲੀ ਪਤਿ ਖੋਵਸਿ ਭਰਮੁ ਨ ਮਿਟਸਿ ਗਵਾਰਾ ॥
धंधा करत सगली पति खोवसि भरमु न मिटसि गवारा ॥
सांसारिक काम करते हुए जीव अपनी इज्जत खो देता है, फिर भी गंवार जीव का भ्रम नहीं मिटता।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦ ਮੁਕਤਿ ਨਹੀ ਕਬ ਹੀ ਅੰਧੁਲੇ ਧੰਧੁ ਪਸਾਰਾ ॥੩॥
बिनु गुर सबद मुकति नही कब ही अंधुले धंधु पसारा ॥३॥
शब्द-गुरु के बिना कभी मुक्ति नहीं मिलती, अंधे जीव ने केवल धंधों का प्रसार किया हुआ है।॥३॥
ਅਕੁਲ ਨਿਰੰਜਨ ਸਿਉ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਮਨ ਹੀ ਤੇ ਮਨੁ ਮੂਆ ॥
अकुल निरंजन सिउ मनु मानिआ मन ही ते मनु मूआ ॥
जब मायातीत परमेश्वर से मन मानता है तो मन से ही मन के विकार समाप्त हो जाते हैं।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਏਕੋ ਜਾਨਿਆ ਨਾਨਕ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਆ ॥੪॥੬॥੭॥
अंतरि बाहरि एको जानिआ नानक अवरु न दूआ ॥४॥६॥७॥
नानक का कथन है केि अन्तर-बाहर सबमें ईश्वर को ही माना है, उसके सिवा किसी अन्य के प्रति कोई रुचि नहीं॥४॥६॥ ७॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੧ ॥
भैरउ महला १ ॥
भैरउ महला १॥
ਜਗਨ ਹੋਮ ਪੁੰਨ ਤਪ ਪੂਜਾ ਦੇਹ ਦੁਖੀ ਨਿਤ ਦੂਖ ਸਹੈ ॥
जगन होम पुंन तप पूजा देह दुखी नित दूख सहै ॥
यज्ञ, होम, दान-पुण्य, तपस्या व पूजा इत्यादि में प्रवृत्त होकर शरीर दुखी होता है और नित्य ही दुख सहता है।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਵਸਿ ਮੁਕਤਿ ਨਾਮਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਲਹੈ ॥੧॥
राम नाम बिनु मुकति न पावसि मुकति नामि गुरमुखि लहै ॥१॥
राम-नाम बिना जीव को मुक्ति प्राप्त नहीं होती और संसार से मुक्ति देने वाला नाम गुरु से ही मिलता है।॥१॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਬਿਰਥੇ ਜਗਿ ਜਨਮਾ ॥
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा ॥
राम-नाम के बिना जगत में जन्म लेना व्यर्थ है,
ਬਿਖੁ ਖਾਵੈ ਬਿਖੁ ਬੋਲੀ ਬੋਲੈ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਨਿਹਫਲੁ ਮਰਿ ਭ੍ਰਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिखु खावै बिखु बोली बोलै बिनु नावै निहफलु मरि भ्रमना ॥१॥ रहाउ ॥
जीव विकार रूपी जहर खाता है, जहर भरी बोली बोलता है और प्रभु-नाम बिना निष्फल मरकर भटकता रहता है।॥१॥ रहाउ॥
ਪੁਸਤਕ ਪਾਠ ਬਿਆਕਰਣ ਵਖਾਣੈ ਸੰਧਿਆ ਕਰਮ ਤਿਕਾਲ ਕਰੈ ॥
पुसतक पाठ बिआकरण वखाणै संधिआ करम तिकाल करै ॥
कोई पुस्तकों का पाठ व व्याकरण की व्याख्या करता है, सुबह, दोपहर एवं शाम को संध्या-वन्दन करता है,
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦ ਮੁਕਤਿ ਕਹਾ ਪ੍ਰਾਣੀ ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਉਰਝਿ ਮਰੈ ॥੨॥
बिनु गुर सबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु उरझि मरै ॥२॥
मगर शब्द-गुरु के बिना ऐसा प्राणी मुक्ति कैसे पा सकता है, राम-नाम के बिना वह अनेक कार्यों में उलझकर मरता है॥२॥
ਡੰਡ ਕਮੰਡਲ ਸਿਖਾ ਸੂਤੁ ਧੋਤੀ ਤੀਰਥਿ ਗਵਨੁ ਅਤਿ ਭ੍ਰਮਨੁ ਕਰੈ ॥
डंड कमंडल सिखा सूतु धोती तीरथि गवनु अति भ्रमनु करै ॥
अगर कोई डंडा, कमण्डल, शिखा, जनेऊ, धोती धारण कर अनेक बार तीर्थों पर भी भ्रमण कर ले,
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਸਾਂਤਿ ਨ ਆਵੈ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੁ ਪਾਰਿ ਪਰੈ ॥੩॥
राम नाम बिनु सांति न आवै जपि हरि हरि नामु सु पारि परै ॥३॥
मगर राम-नाम बिना उसके मन को शान्ति प्राप्त नहीं होती। जो ईश्वर का नाम जपता है, वह संसार-सागर से पार उतर जाता है॥३॥
ਜਟਾ ਮੁਕਟੁ ਤਨਿ ਭਸਮ ਲਗਾਈ ਬਸਤ੍ਰ ਛੋਡਿ ਤਨਿ ਨਗਨੁ ਭਇਆ ॥
जटा मुकटु तनि भसम लगाई बसत्र छोडि तनि नगनु भइआ ॥
अगर योगी बनकर जटाओं का मुकुट बना लिया, शरीर पर भस्म लगा ली और वस्त्र छोड़कर शरीर नग्न हो गया,
ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਆਵੈ ਕਿਰਤ ਕੈ ਬਾਂਧੈ ਭੇਖੁ ਭਇਆ ॥੪॥
राम नाम बिनु त्रिपति न आवै किरत कै बांधै भेखु भइआ ॥४॥
फिर भी राम-नाम बिना तृप्ति नहीं मिलती, यह तो कर्माफल के रूप में वेष बना हुआ है॥४॥
ਜੇਤੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਜਤ੍ਰ ਕਤ੍ਰ ਤੂ ਸਰਬ ਜੀਆ ॥
जेते जीअ जंत जलि थलि महीअलि जत्र कत्र तू सरब जीआ ॥
हे ईश्वर ! जल, थल, नभ में जितने भी जीव-जन्तु हैं, जहाँ कहाँ तू सबमें व्याप्त है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਰਾਖਿ ਲੇ ਜਨ ਕਉ ਹਰਿ ਰਸੁ ਨਾਨਕ ਝੋਲਿ ਪੀਆ ॥੫॥੭॥੮॥
गुर परसादि राखि ले जन कउ हरि रसु नानक झोलि पीआ ॥५॥७॥८॥
नानक की विनती है कि गुरु कृपा से दास को बचा ले, उसने हरि-नाम रस ही पान किया॥५॥७॥८॥
ਰਾਗੁ ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ਚਉਪਦੇ ਘਰੁ ੧
रागु भैरउ महला ३ चउपदे घरु १
रागु भैरउ महला ३ चउपदे घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਜਾਤਿ ਕਾ ਗਰਬੁ ਨ ਕਰੀਅਹੁ ਕੋਈ ॥
जाति का गरबु न करीअहु कोई ॥
हे सज्जनो, जाति का कोई गर्व न करो,
ਬ੍ਰਹਮੁ ਬਿੰਦੇ ਸੋ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਹੋਈ ॥੧॥
ब्रहमु बिंदे सो ब्राहमणु होई ॥१॥
जो ब्रह्म को मानता है, असल में वही ब्राह्मण होता है॥१॥
ਜਾਤਿ ਕਾ ਗਰਬੁ ਨ ਕਰਿ ਮੂਰਖ ਗਵਾਰਾ ॥
जाति का गरबु न करि मूरख गवारा ॥
हे मूर्ख-गंवार ! जाति का गर्व मत कर,