ਜਿਨ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸੇ ਜਨ ਸੋਹੇ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਸਾਏ ॥੩॥
जिन मनि वसिआ से जन सोहे हिरदै नामु वसाए ॥३॥
जिसके मन में प्रभु बस गया है, वही व्यक्ति शोभा का पात्र है और उसके हृदय में प्रभु नाम की स्मृति बसी रहती है॥३॥
ਘਰੁ ਦਰੁ ਮਹਲੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦਿਖਾਇਆ ਰੰਗ ਸਿਉ ਰਲੀਆ ਮਾਣੈ ॥
घरु दरु महलु सतिगुरू दिखाइआ रंग सिउ रलीआ माणै ॥
जिसे सतगुरु ने सच्चा घर-द्वार दिखा दिया है, वह आनंद ही पाता है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਹੈ ਸੁ ਭਲਾ ਕਰਿ ਮਾਨੈ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ॥੪॥੬॥੧੬॥
जो किछु कहै सु भला करि मानै नानक नामु वखाणै ॥४॥६॥१६॥
हे नानक ! वह जो कुछ कहता है, उसे ही भला मानता है और प्रभु-नाम का ही उच्चारण करता रहता है॥४॥६॥१६॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ॥
भैरउ महला ३ ॥
भैरउ महला ३॥
ਮਨਸਾ ਮਨਹਿ ਸਮਾਇ ਲੈ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਵੀਚਾਰ ॥
मनसा मनहि समाइ लै गुर सबदी वीचार ॥
जो गुरु-उपदेश का चिंतन कर अपनी लालसाओं को मन में से दूर कर लेता है,
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਸੋਝੀ ਪਵੈ ਫਿਰਿ ਮਰੈ ਨ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥੧॥
गुर पूरे ते सोझी पवै फिरि मरै न वारो वार ॥१॥
तदन्तर पूरे गुरु से सूझ पाकर वह जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है॥१॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ॥
मन मेरे राम नामु आधारु ॥
हे मेरे मन ! राम नाम एकमात्र आसरा है,
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਸਭ ਇਛ ਪੁਜਾਵਣਹਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर परसादि परम पदु पाइआ सभ इछ पुजावणहारु ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की कृपा से मोक्ष प्राप्त हुआ है और सब इच्छाएँ पूरी हो गई हैं।॥१॥ रहाउ॥
ਸਭ ਮਹਿ ਏਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਬੂਝ ਨ ਪਾਇ ॥
सभ महि एको रवि रहिआ गुर बिनु बूझ न पाइ ॥
सबमें एक ईश्वर ही रमण कर रहा है, मगर गुरु के बिना इस तथ्य का ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰਗਟੁ ਹੋਆ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੨॥
गुरमुखि प्रगटु होआ मेरा हरि प्रभु अनदिनु हरि गुण गाइ ॥२॥
गुरु द्वारा ही मेरा प्रभु अन्तर्मन में प्रकट होता है और फिर नित्य उसका गुणगान होता रहता है॥२॥
ਸੁਖਦਾਤਾ ਹਰਿ ਏਕੁ ਹੈ ਹੋਰ ਥੈ ਸੁਖੁ ਨ ਪਾਹਿ ॥
सुखदाता हरि एकु है होर थै सुखु न पाहि ॥
केवल परमात्मा ही सुख देने वाला है और कहीं अन्य सुख प्राप्त नहीं होता।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਜਿਨੀ ਨ ਸੇਵਿਆ ਦਾਤਾ ਸੇ ਅੰਤਿ ਗਏ ਪਛੁਤਾਹਿ ॥੩॥
सतिगुरु जिनी न सेविआ दाता से अंति गए पछुताहि ॥३॥
जिन्होंने दाता सतगुरु की उपासना नहीं की, वे अन्ततः पछताते ही गए हैं।॥३॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਫਿਰਿ ਦੁਖੁ ਨ ਲਾਗੈ ਧਾਇ ॥
सतिगुरु सेवि सदा सुखु पाइआ फिरि दुखु न लागै धाइ ॥
सतगुरु की सेवा से सदा सुख ही प्राप्त होता है और पुनः कोई दुख नहीं लगता।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਈ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਇ ॥੪॥੭॥੧੭॥
नानक हरि भगति परापति होई जोती जोति समाइ ॥४॥७॥१७॥
हे नानक ! फलस्वरूप प्रभु-भक्ति प्राप्त हो जाती है और आत्म-ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो जाती है॥४॥ ७॥ १७॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ॥
भैरउ महला ३ ॥
भैरउ महला ३॥
ਬਾਝੁ ਗੁਰੂ ਜਗਤੁ ਬਉਰਾਨਾ ਭੂਲਾ ਚੋਟਾ ਖਾਈ ॥
बाझु गुरू जगतु बउराना भूला चोटा खाई ॥
गुरु के बिना संसार बावला बनकर भूला हुआ है, अतः दुःख भोगता है।
ਮਰਿ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਸਦਾ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ਦਰ ਕੀ ਖਬਰਿ ਨ ਪਾਈ ॥੧॥
मरि मरि जमै सदा दुखु पाए दर की खबरि न पाई ॥१॥
वह बार-बार मरता-जन्मता है, सदा दुख पाता है परन्तु सच्चे द्वार का ज्ञान प्राप्त नहीं करता॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਸਦਾ ਰਹਹੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਰਣਾ ॥
मेरे मन सदा रहहु सतिगुर की सरणा ॥
हे मेरे मन, सदैव गुरु की शरण में रहो,
ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੀਠਾ ਸਦ ਲਾਗਾ ਗੁਰ ਸਬਦੇ ਭਵਜਲੁ ਤਰਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हिरदै हरि नामु मीठा सद लागा गुर सबदे भवजलु तरणा ॥१॥ रहाउ ॥
फिर प्रभु का नाम हृदय में सदैव मीठा लगता है और गुरु-उपदेश द्वारा संसार-सागर से उद्धार हो जाता है॥१॥ रहाउ॥
ਭੇਖ ਕਰੈ ਬਹੁਤੁ ਚਿਤੁ ਡੋਲੈ ਅੰਤਰਿ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ॥
भेख करै बहुतु चितु डोलै अंतरि कामु क्रोधु अहंकारु ॥
जीव बहुत दिखावे करता है, उसका मन डगमगाता है, अन्तर्मन में काम, क्रोध एवं अहंकार भरा रहता है।
ਅੰਤਰਿ ਤਿਸਾ ਭੂਖ ਅਤਿ ਬਹੁਤੀ ਭਉਕਤ ਫਿਰੈ ਦਰ ਬਾਰੁ ॥੨॥
अंतरि तिसा भूख अति बहुती भउकत फिरै दर बारु ॥२॥
उसके मन को तृष्णा की भूख लगी रहती है और फिर बहुत बकवाद करता है॥२॥
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਰਹਿ ਫਿਰਿ ਜੀਵਹਿ ਤਿਨ ਕਉ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਿ ॥
गुर कै सबदि मरहि फिरि जीवहि तिन कउ मुकति दुआरि ॥
अगर गुरु के उपदेश द्वारा जीव कामादिक विकारों की ओर से मरकर जीवन बिताए तो मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਵੈ ਹਰਿ ਰਾਖਿਆ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥੩॥
अंतरि सांति सदा सुखु होवै हरि राखिआ उर धारि ॥३॥
उसके ही मन को शान्ति प्राप्त होती है, वह प्रभु को मन में बसाकर रखता है और सदा सुखी रहता है।॥३॥
ਜਿਉ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਚਲਾਵੈ ਕਰਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਈ ॥
जिउ तिसु भावै तिवै चलावै करणा किछू न जाई ॥
जैसा ईश्वर चाहता है, वैसे ही चलाता है और अपने आप हम कुछ नहीं कर सकते।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ॥੪॥੮॥੧੮॥
नानक गुरमुखि सबदु सम्हाले राम नामि वडिआई ॥४॥८॥१८॥
नानक का मत है कि जो गुरु के सान्निध्य में शब्द का मनन करता है, उसी को राम-नाम से बड़ाई मिलती है।॥४॥ ८॥ १८॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੩ ॥
भैरउ महला ३ ॥
भैरउ महला ३॥
ਹਉਮੈ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਖੁਆਇਆ ਦੁਖੁ ਖਟੇ ਦੁਖ ਖਾਇ ॥
हउमै माइआ मोहि खुआइआ दुखु खटे दुख खाइ ॥
अहम् एवं माया-मोह में भटककर जीव दुख कमाता है और दुख ही भोगता है।
ਅੰਤਰਿ ਲੋਭ ਹਲਕੁ ਦੁਖੁ ਭਾਰੀ ਬਿਨੁ ਬਿਬੇਕ ਭਰਮਾਇ ॥੧॥
अंतरि लोभ हलकु दुखु भारी बिनु बिबेक भरमाइ ॥१॥
अन्तर्मन में लोभ का पागलपन भारी दुख का कारण बनता है और अविवेक के कारण वह भटकता है॥१॥
ਮਨਮੁਖਿ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਣੁ ਸੈਸਾਰਿ ॥
मनमुखि ध्रिगु जीवणु सैसारि ॥
मनमुखी जीव का संसार में जीना ही धिक्कार योग्य है,
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸੁਪਨੈ ਨਹੀ ਚੇਤਿਆ ਹਰਿ ਸਿਉ ਕਦੇ ਨ ਲਾਗੈ ਪਿਆਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नामु सुपनै नही चेतिआ हरि सिउ कदे न लागै पिआरु ॥१॥ रहाउ ॥
राम नाम उसे सपने में भी याद नहीं आता और प्रभु से वह कभी प्रेम नहीं लगाता॥१॥ रहाउ॥
ਪਸੂਆ ਕਰਮ ਕਰੈ ਨਹੀ ਬੂਝੈ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵੈ ਕੂੜੋ ਹੋਇ ॥
पसूआ करम करै नही बूझै कूड़ु कमावै कूड़ो होइ ॥
वह पशु की तरह कर्म करता है, मगर तथ्य को नहीं बूझता, इस प्रकार झूठ कमाता है और झूठा ही सिद्ध होता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਉਲਟੀ ਹੋਵੈ ਖੋਜਿ ਲਹੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥੨॥
सतिगुरु मिलै त उलटी होवै खोजि लहै जनु कोइ ॥२॥
अगर सतगुरु से साक्षात्कार हो जाए तो उसका जीवन-आचरण बदल जाता है और वह प्रभु को खोज लेता है॥२॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਸਦ ਵਸਿਆ ਪਾਇਆ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ ॥
हरि हरि नामु रिदै सद वसिआ पाइआ गुणी निधानु ॥
जिसके हृदय में सदा हरिनाम बसा रहता है, वह उस गुणों के भण्डार को पा लेता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਚੂਕਾ ਮਨ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥੩॥
गुर परसादी पूरा पाइआ चूका मन अभिमानु ॥३॥
गुरु की कृपा से पूर्ण प्रभु प्राप्त हो जाता है और मन का अभिमान दूर हो जाता है।॥३॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਆਪੇ ਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ॥
आपे करता करे कराए आपे मारगि पाए ॥
हे भाई ! ईश्वर स्वयं ही सब करने-करवाने वाला है और स्वयं ही सन्मार्ग लगाता है।