ਮਧੁਸੂਦਨੁ ਜਪੀਐ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
मधुसूदनु जपीऐ उर धारि ॥
दिल में परमात्मा का नाम जपो;
ਦੇਹੀ ਨਗਰਿ ਤਸਕਰ ਪੰਚ ਧਾਤੂ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਕਾਢੇ ਮਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
देही नगरि तसकर पंच धातू गुर सबदी हरि काढे मारि ॥१॥ रहाउ ॥
शरीर रूपी नगरी में स्थित कामादिक पाँच लुटेरे गुरु-उपदेश से मारे जा सकते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਨ ਕਾ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਤਿਨ ਕਾਰਜ ਹਰਿ ਆਪਿ ਸਵਾਰਿ ॥
जिन का हरि सेती मनु मानिआ तिन कारज हरि आपि सवारि ॥
जिनका मन ईश्वर में ही रमा रहता है, वह उनके कार्य स्वयं संवार देता है।
ਤਿਨ ਚੂਕੀ ਮੁਹਤਾਜੀ ਲੋਕਨ ਕੀ ਹਰਿ ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਆ ਕਰਤਾਰਿ ॥੨॥
तिन चूकी मुहताजी लोकन की हरि अंगीकारु कीआ करतारि ॥२॥
जिनको परमात्मा ने अंगीकार किया है, उनकी लोगों पर निर्भरता मिट गई है॥२॥
ਮਤਾ ਮਸੂਰਤਿ ਤਾਂ ਕਿਛੁ ਕੀਜੈ ਜੇ ਕਿਛੁ ਹੋਵੈ ਹਰਿ ਬਾਹਰਿ ॥
मता मसूरति तां किछु कीजै जे किछु होवै हरि बाहरि ॥
सलाह-मशविरा तो किया जाए अगर प्रभु से कुछ बाहर हो।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੇ ਸੋਈ ਭਲ ਹੋਸੀ ਹਰਿ ਧਿਆਵਹੁ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰਿ ॥੩॥
जो किछु करे सोई भल होसी हरि धिआवहु अनदिनु नामु मुरारि ॥३॥
दिन-रात परमेश्वर का ध्यान करो; वह जो कुछ करेगा, वही भला होगा॥३॥
ਹਰਿ ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੇ ਸੁ ਆਪੇ ਆਪੇ ਓਹੁ ਪੂਛਿ ਨ ਕਿਸੈ ਕਰੇ ਬੀਚਾਰਿ ॥
हरि जो किछु करे सु आपे आपे ओहु पूछि न किसै करे बीचारि ॥
जो कुछ परमात्मा करता है, वह स्वेच्छा से ही करता है और किसी से सलाह लेकर नहीं करता।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਧਿਆਈਐ ਜਿਨਿ ਮੇਲਿਆ ਸਤਿਗੁਰੁ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥੪॥੧॥੫॥
नानक सो प्रभु सदा धिआईऐ जिनि मेलिआ सतिगुरु किरपा धारि ॥४॥१॥५॥
हे नानक ! सो प्रभु का सदैव ध्यान करो, जिसने कृपा कर सतगुरु से साक्षात्कार करवाया है॥४॥ १॥ ५॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੪ ॥
भैरउ महला ४ ॥
भैरउ महला ४॥
ਤੇ ਸਾਧੂ ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸੁਆਮੀ ਜਿਨ ਜਪਿਆ ਗਤਿ ਹੋਇ ਹਮਾਰੀ ॥
ते साधू हरि मेलहु सुआमी जिन जपिआ गति होइ हमारी ॥
हे स्वामी ! उन साधुगणों से भेंट करा दो, जिनका जाप करने से संसार के बन्धनों से हमारी मुक्ति हो जाए।
ਤਿਨ ਕਾ ਦਰਸੁ ਦੇਖਿ ਮਨੁ ਬਿਗਸੈ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਤਿਨ ਕਉ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੧॥
तिन का दरसु देखि मनु बिगसै खिनु खिनु तिन कउ हउ बलिहारी ॥१॥
उनके दर्शन पाकर मन प्रसन्न हो जाता है और पल-पल मैं उन पर बलिहारी हूँ॥१॥
ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰੀ ॥
हरि हिरदै जपि नामु मुरारी ॥
हृदय में प्रभु नाम का जाप करो;
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਜਗਤ ਪਿਤ ਸੁਆਮੀ ਹਮ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ਕੀਜੈ ਪਨਿਹਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
क्रिपा क्रिपा करि जगत पित सुआमी हम दासनि दास कीजै पनिहारी ॥१॥ रहाउ ॥
हे जगतपिता ! कृपा कर हमें अपने दासों के दास का पानी भरने वाला सेवक ही बना दो॥ १॥ रहाउ॥
ਤਿਨ ਮਤਿ ਊਤਮ ਤਿਨ ਪਤਿ ਊਤਮ ਜਿਨ ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਆ ਬਨਵਾਰੀ ॥
तिन मति ऊतम तिन पति ऊतम जिन हिरदै वसिआ बनवारी ॥
जिनके हृदय में परमेश्वर बस गया है, उनकी मति एवं प्रतिष्ठा भी अति उत्तम है।
ਤਿਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਲਾਇ ਹਰਿ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨ ਸਿਮਰਤ ਗਤਿ ਹੋਇ ਹਮਾਰੀ ॥੨॥
तिन की सेवा लाइ हरि सुआमी तिन सिमरत गति होइ हमारी ॥२॥
हे स्वामी ! उनकी सेवा में तल्लीन कर दो, चूंकि उनका स्मरण करने से हमारी मुक्ति हो सकती है॥२॥
ਜਿਨ ਐਸਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਾਧੁ ਨ ਪਾਇਆ ਤੇ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਕਾਢੇ ਮਾਰੀ ॥
जिन ऐसा सतिगुरु साधु न पाइआ ते हरि दरगह काढे मारी ॥
जिन्होंने ऐसा साधु सतगुरु नहीं पाया, उनको प्रभु-दरबार से निकाल दिया गया है।
ਤੇ ਨਰ ਨਿੰਦਕ ਸੋਭ ਨ ਪਾਵਹਿ ਤਿਨ ਨਕ ਕਾਟੇ ਸਿਰਜਨਹਾਰੀ ॥੩॥
ते नर निंदक सोभ न पावहि तिन नक काटे सिरजनहारी ॥३॥
ऐसे निंदक पुरुष शोभा प्राप्त नहीं करते, उनको सृजनहार तिरस्कृत कर देता है॥३॥
ਹਰਿ ਆਪਿ ਬੁਲਾਵੈ ਆਪੇ ਬੋਲੈ ਹਰਿ ਆਪਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਨਿਰਾਹਾਰੀ ॥
हरि आपि बुलावै आपे बोलै हरि आपि निरंजनु निरंकारु निराहारी ॥
परमात्मा स्वयं ही (जीवों में) बुलवाता एवं बोलता है, परन्तु फिर भी वह माया की कालिमा से रहित, आकार रहित एवं सांसारिक पूर्तियों से भी निर्लिप्त है।
ਹਰਿ ਜਿਸੁ ਤੂ ਮੇਲਹਿ ਸੋ ਤੁਧੁ ਮਿਲਸੀ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਿਆ ਏਹਿ ਜੰਤ ਵਿਚਾਰੀ ॥੪॥੨॥੬॥
हरि जिसु तू मेलहि सो तुधु मिलसी जन नानक किआ एहि जंत विचारी ॥४॥२॥६॥
नानक का कथन है कि हे परमेश्वर ! जिसे तू मिला लेता है, वह तुझ में ही विलीन रहता है, यह जीव बेचारा तो कुछ भी करने में असमर्थ है॥४॥२॥ ६॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੪ ॥
भैरउ महला ४ ॥
भैरउ महला ४॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਸਾਈ ਹਰਿ ਤੇਰੀ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਹਰਿ ਸੁਨਣੇ ॥
सतसंगति साई हरि तेरी जितु हरि कीरति हरि सुनणे ॥
हे ईश्वर ! तेरी वही सत्संगति है, जहां भक्तजन हरि-कीर्तन सुनते हैं।
ਜਿਨ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੁਣਿਆ ਮਨੁ ਭੀਨਾ ਤਿਨ ਹਮ ਸ੍ਰੇਵਹ ਨਿਤ ਚਰਣੇ ॥੧॥
जिन हरि नामु सुणिआ मनु भीना तिन हम स्रेवह नित चरणे ॥१॥
जिसने हरिनाम का संकीर्तन सुना है, उसका मन आनंद-विभोर हो गया है और हम नित्य ही उसके चरणों के पूजक हैं।॥१॥
ਜਗਜੀਵਨੁ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਤਰਣੇ ॥
जगजीवनु हरि धिआइ तरणे ॥
संसार के जीवन ईश्वर का भजन करने से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
ਅਨੇਕ ਅਸੰਖ ਨਾਮ ਹਰਿ ਤੇਰੇ ਨ ਜਾਹੀ ਜਿਹਵਾ ਇਤੁ ਗਨਣੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अनेक असंख नाम हरि तेरे न जाही जिहवा इतु गनणे ॥१॥ रहाउ ॥
हे परमेश्वर ! तेरे (अनेकानेक) असंख्य नाम हैं, इनको जीभ से गिना नहीं जा सकता॥१॥ रहाउ॥
ਗੁਰਸਿਖ ਹਰਿ ਬੋਲਹੁ ਹਰਿ ਗਾਵਹੁ ਲੇ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਜਪਣੇ ॥
गुरसिख हरि बोलहु हरि गावहु ले गुरमति हरि जपणे ॥
हे गुरु-शिष्यो ! हरिनाम बोलो, हरि के गुण गाओ और गुरु उपदेश लेकर हरि का जाप करो।
ਜੋ ਉਪਦੇਸੁ ਸੁਣੇ ਗੁਰ ਕੇਰਾ ਸੋ ਜਨੁ ਪਾਵੈ ਹਰਿ ਸੁਖ ਘਣੇ ॥੨॥
जो उपदेसु सुणे गुर केरा सो जनु पावै हरि सुख घणे ॥२॥
जो गुरु का उपदेश सुनता है, वह परम सुख प्राप्त करता है॥२॥
ਧੰਨੁ ਸੁ ਵੰਸੁ ਧੰਨੁ ਸੁ ਪਿਤਾ ਧੰਨੁ ਸੁ ਮਾਤਾ ਜਿਨਿ ਜਨ ਜਣੇ ॥
धंनु सु वंसु धंनु सु पिता धंनु सु माता जिनि जन जणे ॥
वह वंश धन्य है, वे माता-पिता भी धन्य एवं महान् हैं, जिन्होंने भक्त को पैदा किया है।
ਜਿਨ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਧਿਆਇਆ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੇ ਸਾਚੀ ਦਰਗਹ ਹਰਿ ਜਨ ਬਣੇ ॥੩॥
जिन सासि गिरासि धिआइआ मेरा हरि हरि से साची दरगह हरि जन बणे ॥३॥
जिसने श्वास-ग्रास से मेरे प्रभु का चिंतन किया है, ऐसे भक्त ने सच्चे दरबार में कीर्ति प्राप्त की है॥३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਗਮ ਨਾਮ ਹਰਿ ਤੇਰੇ ਵਿਚਿ ਭਗਤਾ ਹਰਿ ਧਰਣੇ ॥
हरि हरि अगम नाम हरि तेरे विचि भगता हरि धरणे ॥
परमेश्वर का नाम अगम्य है और उसने स्वयं ही भक्तों के अन्तर्मन में बसाया है।
ਨਾਨਕ ਜਨਿ ਪਾਇਆ ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪਾਰਿ ਪਵਣੇ ॥੪॥੩॥੭॥
नानक जनि पाइआ मति गुरमति जपि हरि हरि पारि पवणे ॥४॥३॥७॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- जिसने गुरु-उपदेशानुसार प्रभु का जाप किया है, वह संसार-सागर से पार हो गया है॥४॥३॥ ७॥