ਸਭ ਮਹਿ ਏਕੁ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਾ ॥
सभ महि एकु रहिआ भरपूरा ॥
सबमें एक परब्रह्म ही पूर्ण रूप से भरपूर है।
ਸੋ ਜਾਪੈ ਜਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ॥
सो जापै जिसु सतिगुरु पूरा ॥
जिसे पूर्ण सतगुरु प्राप्त हो जाता है, वही उसका जाप करता है।
ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਤਾ ਕੋ ਆਧਾਰੁ ॥
हरि कीरतनु ता को आधारु ॥
प्रभु का कीर्तन ही उसका आसरा बन जाता है
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਦਇਆਰੁ ॥੪॥੧੩॥੨੬॥
कहु नानक जिसु आपि दइआरु ॥४॥१३॥२६॥
हे नानक ! जिस पर प्रभु स्वयं दयालु हो जाता है॥४॥ १३॥ २६॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਮੋਹਿ ਦੁਹਾਗਨਿ ਆਪਿ ਸੀਗਾਰੀ ॥
मोहि दुहागनि आपि सीगारी ॥
मुझ दुहागिन का प्रभु ने स्वयं ही श्रृंगार किया है और
ਰੂਪ ਰੰਗ ਦੇ ਨਾਮਿ ਸਵਾਰੀ ॥
रूप रंग दे नामि सवारी ॥
रूप-रंग देकर नाम से संवार दिया है।
ਮਿਟਿਓ ਦੁਖੁ ਅਰੁ ਸਗਲ ਸੰਤਾਪ ॥
मिटिओ दुखु अरु सगल संताप ॥
सभी दुःख और संताप मिट गए
ਗੁਰ ਹੋਏ ਮੇਰੇ ਮਾਈ ਬਾਪ ॥੧॥
गुर होए मेरे माई बाप ॥१॥
जब गुरु मेरे माई बाप (संरक्षक) बन गए॥१॥
ਸਖੀ ਸਹੇਰੀ ਮੇਰੈ ਗ੍ਰਸਤਿ ਅਨੰਦ ॥
सखी सहेरी मेरै ग्रसति अनंद ॥
हे सखी सहेलियो ! मेरे हृदय-घर में आनंद ही आनंद है क्योकि
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭੇਟੇ ਮੋਹਿ ਕੰਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा भेटे मोहि कंत ॥१॥ रहाउ ॥
कृपा कर के मुझे पति-प्रभु मिल गया है॥१॥ रहाउ॥
ਤਪਤਿ ਬੁਝੀ ਪੂਰਨ ਸਭ ਆਸਾ ॥
तपति बुझी पूरन सभ आसा ॥
मेरी जलन बुझ गई है, सब आशाएँ पूर्ण हो गई हैं।
ਮਿਟੇ ਅੰਧੇਰ ਭਏ ਪਰਗਾਸਾ ॥
मिटे अंधेर भए परगासा ॥
अन्धेरा मिटकर प्रकाश हो गया है।
ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਅਚਰਜ ਬਿਸਮਾਦ ॥
अनहद सबद अचरज बिसमाद ॥
अनाहत शब्द का श्रवण अद्भुत व आनंदमय बन गया
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪੂਰਾ ਪਰਸਾਦ ॥੨॥
गुरु पूरा पूरा परसाद ॥२॥
पूर्ण गुरु की पूर्ण कृपा से॥२॥
ਜਾ ਕਉ ਪ੍ਰਗਟ ਭਏ ਗੋਪਾਲ ॥ ਤਾ ਕੈ ਦਰਸਨਿ ਸਦਾ ਨਿਹਾਲ ॥
जा कउ प्रगट भए गोपाल ॥ ता कै दरसनि सदा निहाल ॥
जिसके मन में प्रभु प्रगट हो जाता है, उसके दर्शन से जीव सदा के लिए निहाल हो जाता है।
ਸਰਬ ਗੁਣਾ ਤਾ ਕੈ ਬਹੁਤੁ ਨਿਧਾਨ ॥
सरब गुणा ता कै बहुतु निधान ॥
जिसे सतगुरु प्रभु-नाम की देन प्रदान करता है,
ਜਾ ਕਉ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਓ ਨਾਮੁ ॥੩॥
जा कउ सतिगुरि दीओ नामु ॥३॥
उसके ही पास सर्वगुणों के अनेक भण्डार हैं।॥३॥
ਜਾ ਕਉ ਭੇਟਿਓ ਠਾਕੁਰੁ ਅਪਨਾ ॥
जा कउ भेटिओ ठाकुरु अपना ॥
जिसे ईश्वर मिल जाता है,
ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਨਾ ॥
मनु तनु सीतलु हरि हरि जपना ॥
प्रभु को जपकर उसका मन तन शीतल हो जाता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜੋ ਜਨ ਪ੍ਰਭ ਭਾਏ ॥
कहु नानक जो जन प्रभ भाए ॥
हे नानक ! जो संतजन प्रभु को अच्छे लगते हैं,
ਤਾ ਕੀ ਰੇਨੁ ਬਿਰਲਾ ਕੋ ਪਾਏ ॥੪॥੧੪॥੨੭॥
ता की रेनु बिरला को पाए ॥४॥१४॥२७॥
उनकी चरणरज कोई विरला ही पाता है॥४॥ १४॥२७॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਚਿਤਵਤ ਪਾਪ ਨ ਆਲਕੁ ਆਵੈ ॥
चितवत पाप न आलकु आवै ॥
पाप करने में जरा-सा आलस्य नहीं करता,
ਬੇਸੁਆ ਭਜਤ ਕਿਛੁ ਨਹ ਸਰਮਾਵੈ ॥
बेसुआ भजत किछु नह सरमावै ॥
वेश्या से भोग करने में थोड़ी-सी भी शर्म नहीं आती,
ਸਾਰੋ ਦਿਨਸੁ ਮਜੂਰੀ ਕਰੈ ॥
सारो दिनसु मजूरी करै ॥
धन पाने के लिए सारा दिन मेहनत-मजदूरी करता है,
ਹਰਿ ਸਿਮਰਨ ਕੀ ਵੇਲਾ ਬਜਰ ਸਿਰਿ ਪਰੈ ॥੧॥
हरि सिमरन की वेला बजर सिरि परै ॥१॥
परन्तु ईश्वर स्मरण के समय सिर पर वज्र पड़ता है।॥१॥
ਮਾਇਆ ਲਗਿ ਭੂਲੋ ਸੰਸਾਰੁ ॥
माइआ लगि भूलो संसारु ॥
माया-मोह में लीन होकर सारा संसार भूला हुआ है।
ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਆ ਭੁਲਾਵਣਹਾਰੈ ਰਾਚਿ ਰਹਿਆ ਬਿਰਥਾ ਬਿਉਹਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आपि भुलाइआ भुलावणहारै राचि रहिआ बिरथा बिउहार ॥१॥ रहाउ ॥
दरअसल भुलाने वाले ईश्वर ने इसे स्वयं ही भुलाया हुआ है और वह व्यर्थ ही इन कार्यों में रचा हुआ है।॥१॥ रहाउ॥
ਪੇਖਤ ਮਾਇਆ ਰੰਗ ਬਿਹਾਇ ॥
पेखत माइआ रंग बिहाइ ॥
माया के रंग देखते पूरी जिन्दगी गुजर जाती है।
ਗੜਬੜ ਕਰੈ ਕਉਡੀ ਰੰਗੁ ਲਾਇ ॥
गड़बड़ करै कउडी रंगु लाइ ॥
जीव एक कौड़ी से लगाव लगाकर हिसाब में गड़बड़ करता है,
ਅੰਧ ਬਿਉਹਾਰ ਬੰਧ ਮਨੁ ਧਾਵੈ ॥
अंध बिउहार बंध मनु धावै ॥
अन्ध व्यवहार में बंधा हुआ मन दौड़ता रहता है,
ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਨ ਜੀਅ ਮਹਿ ਆਵੈ ॥੨॥
करणैहारु न जीअ महि आवै ॥२॥
मगर बनानेवाला परमेश्वर दिल में याद ही नहीं आता॥२॥
ਕਰਤ ਕਰਤ ਇਵ ਹੀ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
करत करत इव ही दुखु पाइआ ॥
ऐसे करते-करते ही दु:ख प्राप्त करता है और
ਪੂਰਨ ਹੋਤ ਨ ਕਾਰਜ ਮਾਇਆ ॥
पूरन होत न कारज माइआ ॥
माया के मोह में फँसकर इसका कार्य पूर्ण नहीं होता।
ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਲੋਭਿ ਮਨੁ ਲੀਨਾ ॥
कामि क्रोधि लोभि मनु लीना ॥
मन केवल काम-क्रोध एवं लोभ में ही आसक्त रहता है और
ਤੜਫਿ ਮੂਆ ਜਿਉ ਜਲ ਬਿਨੁ ਮੀਨਾ ॥੩॥
तड़फि मूआ जिउ जल बिनु मीना ॥३॥
जल विन मछली की तरह तड़पता हुआ मरता है॥३॥
ਜਿਸ ਕੇ ਰਾਖੇ ਹੋਏ ਹਰਿ ਆਪਿ ॥
जिस के राखे होए हरि आपि ॥
जिसका रखवाला स्वयं ईश्वर होता है,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਜਪੁ ਜਾਪਿ ॥
हरि हरि नामु सदा जपु जापि ॥
वह सदा प्रभु का भजन करता है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
साधसंगि हरि के गुण गाइआ ॥
साधु-संतों की संगत में जिसने परमात्मा का गुणगान किया है,
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥੪॥੧੫॥੨੮॥
नानक सतिगुरु पूरा पाइआ ॥४॥१५॥२८॥
हे नानक ! उसने पूर्ण सतगुरु को पा लिया है॥४॥ १५॥ २८॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਅਪਣੀ ਦਇਆ ਕਰੇ ਸੋ ਪਾਏ ॥
अपणी दइआ करे सो पाए ॥
जिस पर ईश्वर दया करता है, वही उसे पाता है और
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
हरि का नामु मंनि वसाए ॥
प्रभु का नाम उसके मन में बसाता है।
ਸਾਚ ਸਬਦੁ ਹਿਰਦੇ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
साच सबदु हिरदे मन माहि ॥
जिसके मन में सच्चा शब्द स्थित होता है,
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਵਿਖ ਜਾਹਿ ॥੧॥
जनम जनम के किलविख जाहि ॥१॥
उसके जन्म-जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं।॥१॥
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜੀਅ ਕੋ ਆਧਾਰੁ ॥
राम नामु जीअ को आधारु ॥
राम-नाम ही हमारे प्राणों का आधार है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਜਪਹੁ ਨਿਤ ਭਾਈ ਤਾਰਿ ਲਏ ਸਾਗਰ ਸੰਸਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर परसादि जपहु नित भाई तारि लए सागर संसारु ॥१॥ रहाउ ॥
हे भाई ! गुरु की कृपा से नित्य हरि नाम जपो और संसार-सागर से मुक्ति पा लो॥१॥ रहाउ॥
ਜਿਨ ਕਉ ਲਿਖਿਆ ਹਰਿ ਏਹੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥
जिन कउ लिखिआ हरि एहु निधानु ॥
जिनके भाग्य में हरि-नाम रूपी निधि को पाना लिखा है,
ਸੇ ਜਨ ਦਰਗਹ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨੁ ॥
से जन दरगह पावहि मानु ॥
वही भक्तगण प्रभु-दरबार में शोभा पाते हैं।
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
सूख सहज आनंद गुण गाउ ॥
सहज-स्वभाव आनंदपूर्वक ईश्वर का गुणगान करो,
ਆਗੈ ਮਿਲੈ ਨਿਥਾਵੇ ਥਾਉ ॥੨॥
आगै मिलै निथावे थाउ ॥२॥
इससे आगे निराश्रय को भी आश्रय मिल जाएगा॥२॥
ਜੁਗਹ ਜੁਗੰਤਰਿ ਇਹੁ ਤਤੁ ਸਾਰੁ ॥
जुगह जुगंतरि इहु ततु सारु ॥
युग-युगान्तर से यही सार तत्व है कि
ਹਰਿ ਸਿਮਰਣੁ ਸਾਚਾ ਬੀਚਾਰੁ ॥
हरि सिमरणु साचा बीचारु ॥
ईश्वर का स्मरण ही सच्चा विचार है।