ਹੈ ਹਜੂਰਿ ਕਤ ਦੂਰਿ ਬਤਾਵਹੁ ॥
है हजूरि कत दूरि बतावहु ॥
ईश्वर तो पास ही है, उसे दूर क्यों बता रहे हो।
ਦੁੰਦਰ ਬਾਧਹੁ ਸੁੰਦਰ ਪਾਵਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुंदर बाधहु सुंदर पावहु ॥१॥ रहाउ ॥
कामादिक द्वन्द्वों को नियंत्रण में करो और सुन्दर ईश्वर को प्राप्त कर लो॥१॥ रहाउ॥
ਕਾਜੀ ਸੋ ਜੁ ਕਾਇਆ ਬੀਚਾਰੈ ॥
काजी सो जु काइआ बीचारै ॥
काजी वही है, जो शरीर का चिंतन करता है,
ਕਾਇਆ ਕੀ ਅਗਨਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਜਾਰੈ ॥
काइआ की अगनि ब्रहमु परजारै ॥
शरीर की अग्नि में ब्रह्म को प्रज्वलित करता और
ਸੁਪਨੈ ਬਿੰਦੁ ਨ ਦੇਈ ਝਰਨਾ ॥
सुपनै बिंदु न देई झरना ॥
स्वप्न में वीर्य का पतन नहीं करता अर्थात् सपने में भी वासना को फटकने नहीं देता।
ਤਿਸੁ ਕਾਜੀ ਕਉ ਜਰਾ ਨ ਮਰਨਾ ॥੨॥
तिसु काजी कउ जरा न मरना ॥२॥
उस काजी को बुढ़ापा अथवा मौत नहीं घेरती॥२॥
ਸੋ ਸੁਰਤਾਨੁ ਜੁ ਦੁਇ ਸਰ ਤਾਨੈ ॥
सो सुरतानु जु दुइ सर तानै ॥
सुलतान वही है, जो ज्ञान वैराग्य के दो तीरों को ह्रदय की डोरी पर तानता है और
ਬਾਹਰਿ ਜਾਤਾ ਭੀਤਰਿ ਆਨੈ ॥
बाहरि जाता भीतरि आनै ॥
भटकते मन को भीतर ले आए।
ਗਗਨ ਮੰਡਲ ਮਹਿ ਲਸਕਰੁ ਕਰੈ ॥
गगन मंडल महि लसकरु करै ॥
दसम द्वार में गुणों की फौज बना ले,
ਸੋ ਸੁਰਤਾਨੁ ਛਤ੍ਰੁ ਸਿਰਿ ਧਰੈ ॥੩॥
सो सुरतानु छत्रु सिरि धरै ॥३॥
ऐसा सुलतान ही छत्र धारण करने का हकदार है॥३॥
ਜੋਗੀ ਗੋਰਖੁ ਗੋਰਖੁ ਕਰੈ ॥
जोगी गोरखु गोरखु करै ॥
योगी ईश्वर को ‘गोरख गोरख’ नाम से रटते रहते हैं,
ਹਿੰਦੂ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਉਚਰੈ ॥
हिंदू राम नामु उचरै ॥
हिन्दू राम नाम का उच्चाण करते हैं और
ਮੁਸਲਮਾਨ ਕਾ ਏਕੁ ਖੁਦਾਇ ॥
मुसलमान का एकु खुदाइ ॥
मुसलमान केवल खुदा ही मानता है,
ਕਬੀਰ ਕਾ ਸੁਆਮੀ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੪॥੩॥੧੧॥
कबीर का सुआमी रहिआ समाइ ॥४॥३॥११॥
पर कबीर का स्वामी सब में व्याप्त है॥४॥३॥ ११॥
ਮਹਲਾ ੫ ॥
महला ५ ॥
महला ५॥
ਜੋ ਪਾਥਰ ਕਉ ਕਹਤੇ ਦੇਵ ॥
जो पाथर कउ कहते देव ॥
जो पत्थर की मूर्ति को ईश्वर मानते हैं,
ਤਾ ਕੀ ਬਿਰਥਾ ਹੋਵੈ ਸੇਵ ॥
ता की बिरथा होवै सेव ॥
उनकी सेवा व्यर्थ ही जाती है।
ਜੋ ਪਾਥਰ ਕੀ ਪਾਂਈ ਪਾਇ ॥
जो पाथर की पांई पाइ ॥
जो पत्थर की मूर्ति पर नतमस्तक होते हैं,
ਤਿਸ ਕੀ ਘਾਲ ਅਜਾਂਈ ਜਾਇ ॥੧॥
तिस की घाल अजांई जाइ ॥१॥
उनकी मेहनत बेकार ही जाती है॥१॥
ਠਾਕੁਰੁ ਹਮਰਾ ਸਦ ਬੋਲੰਤਾ ॥
ठाकुरु हमरा सद बोलंता ॥
हमारा मालिक शाश्वत है, एवं सदैव बातें करने वाला है,
ਸਰਬ ਜੀਆ ਕਉ ਪ੍ਰਭੁ ਦਾਨੁ ਦੇਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब जीआ कउ प्रभु दानु देता ॥१॥ रहाउ ॥
वह सब जीवों को देता रहता है।१॥ रहाउ॥
ਅੰਤਰਿ ਦੇਉ ਨ ਜਾਨੈ ਅੰਧੁ ॥
अंतरि देउ न जानै अंधु ॥
ईश्वर तो हमारे मन में ही है, परन्तु अंधा (अज्ञानांध) जीव मन में बस रहे ईश्वर को नहीं जानता,
ਭ੍ਰਮ ਕਾ ਮੋਹਿਆ ਪਾਵੈ ਫੰਧੁ ॥
भ्रम का मोहिआ पावै फंधु ॥
इसलिए भ्रम में पड़ा फंदे में फंस जाता है।
ਨ ਪਾਥਰੁ ਬੋਲੈ ਨਾ ਕਿਛੁ ਦੇਇ ॥
न पाथरु बोलै ना किछु देइ ॥
हे संसार के लोगो, पत्थर की मूर्ति न ही बोलती है और न ही कुछ देती है,
ਫੋਕਟ ਕਰਮ ਨਿਹਫਲ ਹੈ ਸੇਵ ॥੨॥
फोकट करम निहफल है सेव ॥२॥
अतः मूर्ति नमित्त कर्म बेकार हैं और मूर्ति-पूजा का कोई फल नहीं मिलता॥२॥
ਜੇ ਮਿਰਤਕ ਕਉ ਚੰਦਨੁ ਚੜਾਵੈ ॥
जे मिरतक कउ चंदनु चड़ावै ॥
अगर मृतक (मूर्ति) को चंदन लगाया जाए तो
ਉਸ ਤੇ ਕਹਹੁ ਕਵਨ ਫਲ ਪਾਵੈ ॥
उस ते कहहु कवन फल पावै ॥
बताओ उससे भला क्या फल प्राप्त होगा?
ਜੇ ਮਿਰਤਕ ਕਉ ਬਿਸਟਾ ਮਾਹਿ ਰੁਲਾਈ ॥
जे मिरतक कउ बिसटा माहि रुलाई ॥
अगर मृतक को गन्दगी में मिलाया जाता है तो भी
ਤਾਂ ਮਿਰਤਕ ਕਾ ਕਿਆ ਘਟਿ ਜਾਈ ॥੩॥
तां मिरतक का किआ घटि जाई ॥३॥
मृतक का क्या घट सकता है॥३॥
ਕਹਤ ਕਬੀਰ ਹਉ ਕਹਉ ਪੁਕਾਰਿ ॥
कहत कबीर हउ कहउ पुकारि ॥
कबीर जी विनयपूर्वक कहते हैं कि
ਸਮਝਿ ਦੇਖੁ ਸਾਕਤ ਗਾਵਾਰ ॥
समझि देखु साकत गावार ॥
हे मायावी गंवार ! सोच समझ कर भलीभांति देख।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਬਹੁਤੁ ਘਰ ਗਾਲੇ ॥
दूजै भाइ बहुतु घर गाले ॥
द्वैतभाव ने बहुत सारे लोगों को तंग ही किया है,
ਰਾਮ ਭਗਤ ਹੈ ਸਦਾ ਸੁਖਾਲੇ ॥੪॥੪॥੧੨॥
राम भगत है सदा सुखाले ॥४॥४॥१२॥
केवल राम की भक्ति करने वाले सदा सुखी हैं॥४॥ ४॥ १२॥
ਜਲ ਮਹਿ ਮੀਨ ਮਾਇਆ ਕੇ ਬੇਧੇ ॥
जल महि मीन माइआ के बेधे ॥
जल में मछली भी माया की बंधी हुई है और
ਦੀਪਕ ਪਤੰਗ ਮਾਇਆ ਕੇ ਛੇਦੇ ॥
दीपक पतंग माइआ के छेदे ॥
दीपक के ऊपर मंडराने वाला पतंगा भी माया का बिंधा है।
ਕਾਮ ਮਾਇਆ ਕੁੰਚਰ ਕਉ ਬਿਆਪੈ ॥
काम माइआ कुंचर कउ बिआपै ॥
हाथी को कामवासना की माया लगी रहती है और
ਭੁਇਅੰਗਮ ਭ੍ਰਿੰਗ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਖਾਪੇ ॥੧॥
भुइअंगम भ्रिंग माइआ महि खापे ॥१॥
सांप तथा भंवरा भी माया में आसक्त हैं॥१॥
ਮਾਇਆ ਐਸੀ ਮੋਹਨੀ ਭਾਈ ॥
माइआ ऐसी मोहनी भाई ॥
हे भाई ! माया ऐसी मोहिनी है,
ਜੇਤੇ ਜੀਅ ਤੇਤੇ ਡਹਕਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जेते जीअ तेते डहकाई ॥१॥ रहाउ ॥
संसार में जितने जीव हैं, इसने सबको बहकाया हुआ है॥१॥ रहाउ॥
ਪੰਖੀ ਮ੍ਰਿਗ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਰਾਤੇ ॥
पंखी म्रिग माइआ महि राते ॥
मृग, पक्षी इत्यादि माया में लीन हैं।
ਸਾਕਰ ਮਾਖੀ ਅਧਿਕ ਸੰਤਾਪੇ ॥
साकर माखी अधिक संतापे ॥
शक़्कर मक्खियों को बहुत सताती है।
ਤੁਰੇ ਉਸਟ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਭੇਲਾ ॥
तुरे उसट माइआ महि भेला ॥
घोड़े एवं ऊँट माया में लिप्त हैं और
ਸਿਧ ਚਉਰਾਸੀਹ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਖੇਲਾ ॥੨॥
सिध चउरासीह माइआ महि खेला ॥२॥
चौरासी सिद्धगण माया में लिप्त हैं।॥२॥
ਛਿਅ ਜਤੀ ਮਾਇਆ ਕੇ ਬੰਦਾ ॥
छिअ जती माइआ के बंदा ॥
हनुमान, लक्ष्मण, भीम, भैरव इत्यादि छः ब्रह्मचारी भी माया के बंधे हुए हैं।
ਨਵੈ ਨਾਥ ਸੂਰਜ ਅਰੁ ਚੰਦਾ ॥
नवै नाथ सूरज अरु चंदा ॥
नौ नाथ, सूर्य और चंद,
ਤਪੇ ਰਖੀਸਰ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਸੂਤਾ ॥
तपे रखीसर माइआ महि सूता ॥
तपस्वी एवं ऋषि माया में मग्न हैं।
ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਕਾਲੁ ਅਰੁ ਪੰਚ ਦੂਤਾ ॥੩॥
माइआ महि कालु अरु पंच दूता ॥३॥
काल और कामादिक पंच दूत माया से अप्रभावित नहीं॥३॥
ਸੁਆਨ ਸਿਆਲ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਰਾਤਾ ॥
सुआन सिआल माइआ महि राता ॥
कुते, भेड़िए माया में लीन हैं।
ਬੰਤਰ ਚੀਤੇ ਅਰੁ ਸਿੰਘਾਤਾ ॥
बंतर चीते अरु सिंघाता ॥
बंदर, चीते और शेर,
ਮਾਂਜਾਰ ਗਾਡਰ ਅਰੁ ਲੂਬਰਾ ॥
मांजार गाडर अरु लूबरा ॥
बिल्लियां, भेड़े और लूमड़ियां और तो और
ਬਿਰਖ ਮੂਲ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਪਰਾ ॥੪॥
बिरख मूल माइआ महि परा ॥४॥
वृक्षों के फूल भी माया में ही पड़े हुए हैं।॥४॥
ਮਾਇਆ ਅੰਤਰਿ ਭੀਨੇ ਦੇਵ ॥
माइआ अंतरि भीने देव ॥
देवी-देवता माया में लिप्त हैं।
ਸਾਗਰ ਇੰਦ੍ਰਾ ਅਰੁ ਧਰਤੇਵ ॥
सागर इंद्रा अरु धरतेव ॥
सागर, इन्द्र तथा धरती मायामय है।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਜਿਸੁ ਉਦਰੁ ਤਿਸੁ ਮਾਇਆ ॥
कहि कबीर जिसु उदरु तिसु माइआ ॥
कबीर जी कहते हैं कि जिसे पेट लगा है, वही माया में तल्लीन है।
ਤਬ ਛੂਟੇ ਜਬ ਸਾਧੂ ਪਾਇਆ ॥੫॥੫॥੧੩॥
तब छूटे जब साधू पाइआ ॥५॥५॥१३॥
जब साधु प्राप्त हो जाता है तो जीव माया-जाल से छूट जाता है॥५॥ ५॥ १३॥
ਜਬ ਲਗੁ ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰੈ ॥
जब लगु मेरी मेरी करै ॥
जब तक लोग अहम्-अभिमान करते हैं,
ਤਬ ਲਗੁ ਕਾਜੁ ਏਕੁ ਨਹੀ ਸਰੈ ॥
तब लगु काजु एकु नही सरै ॥
तब तक उनका एक भी कार्य सफल नहीं होता।
ਜਬ ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਮਿਟਿ ਜਾਇ ॥
जब मेरी मेरी मिटि जाइ ॥
जब अहंभावना मिट जाती है तो