ਚਿਤਵਨਿ ਚਿਤਵਉ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬੈਰਾਗੀ ਕਦਿ ਪਾਵਉ ਹਰਿ ਦਰਸਾਈ ॥
चितवनि चितवउ प्रिअ प्रीति बैरागी कदि पावउ हरि दरसाई ॥
प्रियतम के प्रेम में वैराग्यवान चित्त यही चिन्तना करता है कि कब हरि का दर्शन प्राप्त होगा।
ਜਤਨ ਕਰਉ ਇਹੁ ਮਨੁ ਨਹੀ ਧੀਰੈ ਕੋਊ ਹੈ ਰੇ ਸੰਤੁ ਮਿਲਾਈ ॥੧॥
जतन करउ इहु मनु नही धीरै कोऊ है रे संतु मिलाई ॥१॥
अनेक कोशिशों के बावजूद इस मन को धैर्य नहीं होता, कोई संत ही प्रभु से मिलाप करा दे ॥१॥
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਪੁੰਨ ਸਭਿ ਹੋਮਉ ਤਿਸੁ ਅਰਪਉ ਸਭਿ ਸੁਖ ਜਾਂਈ ॥
जप तप संजम पुंन सभि होमउ तिसु अरपउ सभि सुख जांई ॥
मैं जप, तप, संयम तथा पुण्य इत्यादि का बलिदान देकर उसे सभी सुख अर्पण कर दूँगी।
ਏਕ ਨਿਮਖ ਪ੍ਰਿਅ ਦਰਸੁ ਦਿਖਾਵੈ ਤਿਸੁ ਸੰਤਨ ਕੈ ਬਲਿ ਜਾਂਈ ॥੨॥
एक निमख प्रिअ दरसु दिखावै तिसु संतन कै बलि जांई ॥२॥
यदि एक पल भर प्रियतम प्रभु के दर्शन करवा दे तो उस संत पुरुष पर कुर्बान हूँ॥२॥
ਕਰਉ ਨਿਹੋਰਾ ਬਹੁਤੁ ਬੇਨਤੀ ਸੇਵਉ ਦਿਨੁ ਰੈਨਾਈ ॥
करउ निहोरा बहुतु बेनती सेवउ दिनु रैनाई ॥
मैं मनौती एवं बहुत विनती करती हूँ और दिन-रात सेवा में तल्लीन रहती हूँ।
ਮਾਨੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ਹਉ ਸਗਲ ਤਿਆਗਉ ਜੋ ਪ੍ਰਿਅ ਬਾਤ ਸੁਨਾਈ ॥੩॥
मानु अभिमानु हउ सगल तिआगउ जो प्रिअ बात सुनाई ॥३॥
जो प्रियतम की बात सुनाता है, उसके लिए मान-अभिमान त्याग दूँगी ॥३॥
ਦੇਖਿ ਚਰਿਤ੍ਰ ਭਈ ਹਉ ਬਿਸਮਨਿ ਗੁਰਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਪੁਰਖਿ ਮਿਲਾਈ ॥
देखि चरित्र भई हउ बिसमनि गुरि सतिगुरि पुरखि मिलाई ॥
गुरु-सतगुरु ने जब मिलाप करवाया तो उसका चरित देख आश्चर्यचकित हो गई।
ਪ੍ਰਭ ਰੰਗ ਦਇਆਲ ਮੋਹਿ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਪਤਿ ਬੁਝਾਈ ॥੪॥੧॥੧੫॥
प्रभ रंग दइआल मोहि ग्रिह महि पाइआ जन नानक तपति बुझाई ॥४॥१॥१५॥
हे नानक ! दयालु प्रभु को हृदय-घर में पा कर सारी जलन बुझ गई है॥४॥१॥ १५॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ॥
ਰੇ ਮੂੜ੍ਹ੍ਹੇ ਤੂ ਕਿਉ ਸਿਮਰਤ ਅਬ ਨਾਹੀ ॥
रे मूड़्हे तू किउ सिमरत अब नाही ॥
अरे मूर्ख ! अब तू परमेश्वर का सिमरन क्यों नहीं करता,
ਨਰਕ ਘੋਰ ਮਹਿ ਉਰਧ ਤਪੁ ਕਰਤਾ ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਗੁਣ ਗਾਂਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नरक घोर महि उरध तपु करता निमख निमख गुण गांही ॥१॥ रहाउ ॥
गर्भ रूपी घोर नरक में उलटा पड़ा हुआ तप करता था और पल-पल गुण गाता था ॥१॥रहाउ॥।
ਅਨਿਕ ਜਨਮ ਭ੍ਰਮਤੌ ਹੀ ਆਇਓ ਮਾਨਸ ਜਨਮੁ ਦੁਲਭਾਹੀ ॥
अनिक जनम भ्रमतौ ही आइओ मानस जनमु दुलभाही ॥
अनेक जन्म भटकने के पश्चात् अब दुर्लभ मानव जन्म प्राप्त हुआ है।
ਗਰਭ ਜੋਨਿ ਛੋਡਿ ਜਉ ਨਿਕਸਿਓ ਤਉ ਲਾਗੋ ਅਨ ਠਾਂਹੀ ॥੧॥
गरभ जोनि छोडि जउ निकसिओ तउ लागो अन ठांही ॥१॥
गर्भ-योनि को छोड़कर ज्यों ही बाहर निकले तो तुम संसार में लीन हो गए॥१॥
ਕਰਹਿ ਬੁਰਾਈ ਠਗਾਈ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਨਿਹਫਲ ਕਰਮ ਕਮਾਹੀ ॥
करहि बुराई ठगाई दिनु रैनि निहफल करम कमाही ॥
तुम दिन-रात बुराई एवं छल-कपट करते हो और व्यर्थ कर्म ही कर रहे हो।
ਕਣੁ ਨਾਹੀ ਤੁਹ ਗਾਹਣ ਲਾਗੇ ਧਾਇ ਧਾਇ ਦੁਖ ਪਾਂਹੀ ॥੨॥
कणु नाही तुह गाहण लागे धाइ धाइ दुख पांही ॥२॥
तुम अनाज विहीन कृषि की गहाई में लगे हुए हो और दुख पा रहे हो ॥२॥
ਮਿਥਿਆ ਸੰਗਿ ਕੂੜਿ ਲਪਟਾਇਓ ਉਰਝਿ ਪਰਿਓ ਕੁਸਮਾਂਹੀ ॥
मिथिआ संगि कूड़ि लपटाइओ उरझि परिओ कुसमांही ॥
तुम झूठे बनकर झूठ से जुड़े हुए हो व क्षणिक चीजों में उलझे हुए हो ।
ਧਰਮ ਰਾਇ ਜਬ ਪਕਰਸਿ ਬਵਰੇ ਤਉ ਕਾਲ ਮੁਖਾ ਉਠਿ ਜਾਹੀ ॥੩॥
धरम राइ जब पकरसि बवरे तउ काल मुखा उठि जाही ॥३॥
अरे पगले ! जब धर्मराज पकड़ कर ले जाएगा तो मुँह काला करवा कर उठ जाओगे ॥३॥
ਸੋ ਮਿਲਿਆ ਜੋ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲਾਇਆ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਲੇਖੁ ਲਿਖਾਂਹੀ ॥
सो मिलिआ जो प्रभू मिलाइआ जिसु मसतकि लेखु लिखांही ॥
वही प्रभु से मिला है, जिसे उसने स्वयं मिलाया है और जिसके मस्तक पर भाग्य होता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਨੑ ਜਨ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜੋ ਅਲਿਪ ਰਹੇ ਮਨ ਮਾਂਹੀ ॥੪॥੨॥੧੬॥
कहु नानक तिन्ह जन बलिहारी जो अलिप रहे मन मांही ॥४॥२॥१६॥
नानक फुरमाते हैं कि मैं उन पर कुर्बान जाता हूँ, जो मन में अलिप्त रहते हैं।॥४॥२॥ १६ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਕਿਉ ਜੀਵਨੁ ਪ੍ਰੀਤਮ ਬਿਨੁ ਮਾਈ ॥
किउ जीवनु प्रीतम बिनु माई ॥
हे माई ! प्रियतम प्रभु के बिना किस तरह जिंदा रहा जा सकता है,
ਜਾ ਕੇ ਬਿਛੁਰਤ ਹੋਤ ਮਿਰਤਕਾ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਰਹਨੁ ਨ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा के बिछुरत होत मिरतका ग्रिह महि रहनु न पाई ॥१॥ रहाउ ॥
जिसके बिछुड़ने से शरीर लाश बराबर हो जाता है और घर में मृत शरीर रह नहीं पाता ॥१॥रहाउ॥।
ਜੀਅ ਹੀਂਅ ਪ੍ਰਾਨ ਕੋ ਦਾਤਾ ਜਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਸੁਹਾਈ ॥
जीअ हींअ प्रान को दाता जा कै संगि सुहाई ॥
आत्मा हृदय व प्राण देने वाले प्रभु के साथ रहना ही सुखदायी है।
ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਸੰਤਹੁ ਮੋਹਿ ਅਪੁਨੀ ਪ੍ਰਭ ਮੰਗਲ ਗੁਣ ਗਾਈ ॥੧॥
करहु क्रिपा संतहु मोहि अपुनी प्रभ मंगल गुण गाई ॥१॥
हे भक्तजनो ! मुझ पर कृपा करो, ताकि अपने प्रभु का गुणगान करता रहूँ॥१॥
ਚਰਨ ਸੰਤਨ ਕੇ ਮਾਥੇ ਮੇਰੇ ਊਪਰਿ ਨੈਨਹੁ ਧੂਰਿ ਬਾਂਛਾਈਂ ॥
चरन संतन के माथे मेरे ऊपरि नैनहु धूरि बांछाईं ॥
संतों के चरण मेरे माथे पर ही रहें और नयनों से उनकी चरणरज की ही आकांक्षा है।
ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮਿਲੀਐ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਬਲਿ ਬਲਿ ਤਾ ਕੈ ਹਉ ਜਾਈ ॥੨॥੩॥੧੭॥
जिह प्रसादि मिलीऐ प्रभ नानक बलि बलि ता कै हउ जाई ॥२॥३॥१७॥
हे नानक ! जिसकी कृपा से प्रभु से मिलाप होता है, उस पर पुनः पुनः कुर्बान जाता हूँ ॥२॥३॥ १७ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਉਆ ਅਉਸਰ ਕੈ ਹਉ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
उआ अउसर कै हउ बलि जाई ॥
मैं उस अवसर पर बलिहारी जाता हूँ,
ਆਠ ਪਹਰ ਅਪਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਿਮਰਨੁ ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਪਾਂਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आठ पहर अपना प्रभु सिमरनु वडभागी हरि पांई ॥१॥ रहाउ ॥
जब आठ प्रहर अपने प्रभु का चिंतन करके अहोभाग्य से उसे पा लिया ॥१॥रहाउ॥।
ਭਲੋ ਕਬੀਰੁ ਦਾਸੁ ਦਾਸਨ ਕੋ ਊਤਮੁ ਸੈਨੁ ਜਨੁ ਨਾਈ ॥
भलो कबीरु दासु दासन को ऊतमु सैनु जनु नाई ॥
दासों के दास भक्त कबीर भले हैं और सैन भक्त उत्तम हैं।
ਊਚ ਤੇ ਊਚ ਨਾਮਦੇਉ ਸਮਦਰਸੀ ਰਵਿਦਾਸ ਠਾਕੁਰ ਬਣਿ ਆਈ ॥੧॥
ऊच ते ऊच नामदेउ समदरसी रविदास ठाकुर बणि आई ॥१॥
भक्त नामदेव महान् हैं और समदर्शी रविदास की प्रभु से प्रीति बनी रही।॥१॥
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਤਨੁ ਧਨੁ ਸਾਧਨ ਕਾ ਇਹੁ ਮਨੁ ਸੰਤ ਰੇਨਾਈ ॥
जीउ पिंडु तनु धनु साधन का इहु मनु संत रेनाई ॥
यह शरीर, प्राण, तन, धन इत्यादि सब साधु-पुरुषों पर न्यौछावर है और यह मन संतजनों की चरणरज समान है।
ਸੰਤ ਪ੍ਰਤਾਪਿ ਭਰਮ ਸਭਿ ਨਾਸੇ ਨਾਨਕ ਮਿਲੇ ਗੁਸਾਈ ॥੨॥੪॥੧੮॥
संत प्रतापि भरम सभि नासे नानक मिले गुसाई ॥२॥४॥१८॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि संत पुरुषों के प्रताप से सभी भ्रम दूर हो गए हैं और मालिक मिल गया है ॥२॥४॥१८॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮਨੋਰਥ ਪੂਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਆਪਿ ॥
मनोरथ पूरे सतिगुर आपि ॥
सद्गुरु ने मेरी मनोकामनाएँ पूरी कर दी हैं।