ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੈ ਸਹਜ ਘਰੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ਖਜੀਨਾ ॥੨॥੧੦॥੩੩॥
कहु नानक मै सहज घरु पाइआ हरि भगति भंडार खजीना ॥२॥१०॥३३॥
हे नानक ! मैंने सहज स्वाभाविक हृदय-घर में हरि-भक्ति का भण्डार पा लिया है ॥२॥ १०॥ ३३॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮੋਹਨ ਸਭਿ ਜੀਅ ਤੇਰੇ ਤੂ ਤਾਰਹਿ ॥
मोहन सभि जीअ तेरे तू तारहि ॥
हे प्रभु ! सभी जीव तेरे हैं और तू मुक्तिदाता है।
ਛੁਟਹਿ ਸੰਘਾਰ ਨਿਮਖ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਕੋਟਿ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਉਧਾਰਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
छुटहि संघार निमख किरपा ते कोटि ब्रहमंड उधारहि ॥१॥ रहाउ ॥
तेरी थोड़ी-सी कृपा से जनसंहार समाप्त हो जाता है और करोड़ों ब्रहमांडो का उद्धार हो जाता है।॥१॥रहाउ॥।
ਕਰਹਿ ਅਰਦਾਸਿ ਬਹੁਤੁ ਬੇਨੰਤੀ ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਸਾਮ੍ਹ੍ਹਾਰਹਿ ॥
करहि अरदासि बहुतु बेनंती निमख निमख साम्हारहि ॥
हम प्रार्थना करते हैं, तुझे विनती करते हैं, हर पल तेरी स्मृति में लीन रहते हैं।
ਹੋਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦੀਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਹਾਥ ਦੇਇ ਨਿਸਤਾਰਹਿ ॥੧॥
होहु क्रिपाल दीन दुख भंजन हाथ देइ निसतारहि ॥१॥
हे दीनों के दुखनाशक ! कृपालु हो जाओ और हाथ देकर निस्तारा करो ॥१॥
ਕਿਆ ਏ ਭੂਪਤਿ ਬਪੁਰੇ ਕਹੀਅਹਿ ਕਹੁ ਏ ਕਿਸ ਨੋ ਮਾਰਹਿ ॥
किआ ए भूपति बपुरे कहीअहि कहु ए किस नो मारहि ॥
ये जो बादशाह हैं, इनके बारे में भला क्या कहा जाए ? बताओ ये किसको मार सकते हैं?
ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਸੁਖਦਾਤੇ ਸਭੁ ਨਾਨਕ ਜਗਤੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਹਿ ॥੨॥੧੧॥੩੪॥
राखु राखु राखु सुखदाते सभु नानक जगतु तुम्हारहि ॥२॥११॥३४॥
नानक विनती करते हैं कि हे सुखदाता ! समूचा जगत तुम्हारा है, रक्षा करो ॥ २ ॥ ११॥ ३४ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਅਬ ਮੋਹਿ ਧਨੁ ਪਾਇਓ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ॥
अब मोहि धनु पाइओ हरि नामा ॥
अब हमने हरिनाम रूपी धन पा लिया है,
ਭਏ ਅਚਿੰਤ ਤ੍ਰਿਸਨ ਸਭ ਬੁਝੀ ਹੈ ਇਹੁ ਲਿਖਿਓ ਲੇਖੁ ਮਥਾਮਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भए अचिंत त्रिसन सभ बुझी है इहु लिखिओ लेखु मथामा ॥१॥ रहाउ ॥
अब हम बेफिक्र हो गए हैं, सारी तृष्णा बुझ गई है और यही भाग्य में लिखा हुआ था ॥१॥रहाउ॥।
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਭਇਓ ਬੈਰਾਗੀ ਫਿਰਿ ਆਇਓ ਦੇਹ ਗਿਰਾਮਾ ॥
खोजत खोजत भइओ बैरागी फिरि आइओ देह गिरामा ॥
खोजते-खोजते वैराग्यवान हो गया था तो फिर शरीर रूपी गांव में भ्रमण किया।
ਗੁਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲਿ ਸਉਦਾ ਇਹੁ ਜੋਰਿਓ ਹਥਿ ਚਰਿਓ ਲਾਲੁ ਅਗਾਮਾ ॥੧॥
गुरि क्रिपालि सउदा इहु जोरिओ हथि चरिओ लालु अगामा ॥१॥
गुरु की कृपा से यह सौदा किया और अमूल्य नाम रूपी हीरा मिल गया ॥१॥
ਆਨ ਬਾਪਾਰ ਬਨਜ ਜੋ ਕਰੀਅਹਿ ਤੇਤੇ ਦੂਖ ਸਹਾਮਾ ॥
आन बापार बनज जो करीअहि तेते दूख सहामा ॥
अन्य जितने भी वाणिज्य व्यापार किए जाएँ, इनसे उतने दुख ही नसीब होते हैं।
ਗੋਬਿਦ ਭਜਨ ਕੇ ਨਿਰਭੈ ਵਾਪਾਰੀ ਹਰਿ ਰਾਸਿ ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮਾ ॥੨॥੧੨॥੩੫॥
गोबिद भजन के निरभै वापारी हरि रासि नानक राम नामा ॥२॥१२॥३५॥
नानक का मत है कि गोविन्द भजन का व्यापार करने वाले निर्भय हैं और राम नाम ही उनकी जीवन राशि है ॥२॥ १२॥ ३५ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਮਿਸਟ ਲਗੇ ਪ੍ਰਿਅ ਬੋਲਾ ॥
मेरै मनि मिसट लगे प्रिअ बोला ॥
मेरे मन को प्रिय की वाणी ही मीठी लगती है।
ਗੁਰਿ ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਪ੍ਰਭ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ਸਦ ਦਇਆਲੁ ਹਰਿ ਢੋਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरि बाह पकरि प्रभ सेवा लाए सद दइआलु हरि ढोला ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु ने बाँह पकड़ कर प्रभु-सेवा में लगाया है, वह मेरा पति प्रभु सदा दयालु है॥१॥रहाउ॥।
ਪ੍ਰਭ ਤੂ ਠਾਕੁਰੁ ਸਰਬ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕੁ ਮੋਹਿ ਕਲਤ੍ਰ ਸਹਿਤ ਸਭਿ ਗੋਲਾ ॥
प्रभ तू ठाकुरु सरब प्रतिपालकु मोहि कलत्र सहित सभि गोला ॥
हे प्रभु ! तू मालिक है, सबका प्रतिपालक है, मैं तेरी पत्नी हूँ और अन्य सभी तेरी दासियाँ हैं।
ਮਾਣੁ ਤਾਣੁ ਸਭੁ ਤੂਹੈ ਤੂਹੈ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਮੈ ਓਲ੍ਹ੍ਹਾ ॥੧॥
माणु ताणु सभु तूहै तूहै इकु नामु तेरा मै ओल्हा ॥१॥
तू ही हमारा मान-सम्मान एवं बल है और तेरा नाम मेरा एकमात्र आसरा है॥१॥
ਜੇ ਤਖਤਿ ਬੈਸਾਲਹਿ ਤਉ ਦਾਸ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ਘਾਸੁ ਬਢਾਵਹਿ ਕੇਤਕ ਬੋਲਾ ॥
जे तखति बैसालहि तउ दास तुम्हारे घासु बढावहि केतक बोला ॥
यदि तू सिंहासन पर बैठा देगा तो भी तुम्हारे दास हैं और यदि घास काटने में लगा दोगे तो भी कुछ नहीं बोल सकते।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਅਗਹ ਅਤੋਲਾ ॥੨॥੧੩॥੩੬॥
जन नानक के प्रभ पुरख बिधाते मेरे ठाकुर अगह अतोला ॥२॥१३॥३६॥
नानक का प्रभु परमपुरुष विधाता है, मेरा मालिक असीम व अतुलनीय है॥२॥ १३ ॥ ३६ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਕਹਤ ਗੁਣ ਸੋਹੰ ॥
रसना राम कहत गुण सोहं ॥
जिह्म परमात्मा का यशोगान करती हुई शोभान्वित होती है।
ਏਕ ਨਿਮਖ ਓਪਾਇ ਸਮਾਵੈ ਦੇਖਿ ਚਰਿਤ ਮਨ ਮੋਹੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एक निमख ओपाइ समावै देखि चरित मन मोहं ॥१॥ रहाउ ॥
वह पल भर में बनाकर बिगाड़ देता है, उसकी लीला देखकर मन मोहित हो गया है॥१॥रहाउ॥।
ਜਿਸੁ ਸੁਣਿਐ ਮਨਿ ਹੋਇ ਰਹਸੁ ਅਤਿ ਰਿਦੈ ਮਾਨ ਦੁਖ ਜੋਹੰ ॥
जिसु सुणिऐ मनि होइ रहसु अति रिदै मान दुख जोहं ॥
जिस हरिनाम को सुनने से मन खिल उठता है और हृदय का अभिमान एवं दुख नष्ट होता है।
ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ਦੁਖੁ ਦੂਰਿ ਪਰਾਇਓ ਬਣਿ ਆਈ ਪ੍ਰਭ ਤੋਹੰ ॥੧॥
सुखु पाइओ दुखु दूरि पराइओ बणि आई प्रभ तोहं ॥१॥
हे प्रभु ! तुझसे ही हमारी प्रीति बन गई है, सुख पा लिया है और दुख दूर हो गए हैं।॥१॥
ਕਿਲਵਿਖ ਗਏ ਮਨ ਨਿਰਮਲ ਹੋਈ ਹੈ ਗੁਰਿ ਕਾਢੇ ਮਾਇਆ ਦ੍ਰੋਹੰ ॥
किलविख गए मन निरमल होई है गुरि काढे माइआ द्रोहं ॥
गुरु ने अन्तर्मन से माया के द्वेष को निकाल दिया है, जिससे सब पाप दूर हो गए हैं और मन निर्मल हो गया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੈ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੋਹੰ ॥੨॥੧੪॥੩੭॥
कहु नानक मै सो प्रभु पाइआ करण कारण समरथोहं ॥२॥१४॥३७॥
हे नानक ! जो सर्वकर्ता, सर्वशक्तिमान है, मैंने उस प्रभु को पा लिया है॥२॥ १४ ॥ ३७ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਨੈਨਹੁ ਦੇਖਿਓ ਚਲਤੁ ਤਮਾਸਾ ॥
नैनहु देखिओ चलतु तमासा ॥
इन नयनों से अद्भुत कौतुक तमाशे को देखा है कि
ਸਭ ਹੂ ਦੂਰਿ ਸਭ ਹੂ ਤੇ ਨੇਰੈ ਅਗਮ ਅਗਮ ਘਟ ਵਾਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सभ हू दूरि सभ हू ते नेरै अगम अगम घट वासा ॥१॥ रहाउ ॥
ईश्वर सबंसे दूर भी है, सबके समीप भी है, वह अगम्य असीम है और हर हृदंय में बसा हुआ है॥१॥रहाउ॥।
ਅਭੂਲੁ ਨ ਭੂਲੈ ਲਿਖਿਓ ਨ ਚਲਾਵੈ ਮਤਾ ਨ ਕਰੈ ਪਚਾਸਾ ॥
अभूलु न भूलै लिखिओ न चलावै मता न करै पचासा ॥
वह कोई भूल नहीं करता, न ही कोई हुक्म लिखकर देता है और न ही पचास सलाहकारों से कोई विचार-विमर्श करता है।
ਖਿਨ ਮਹਿ ਸਾਜਿ ਸਵਾਰਿ ਬਿਨਾਹੈ ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਗੁਣਤਾਸਾ ॥੧॥
खिन महि साजि सवारि बिनाहै भगति वछल गुणतासा ॥१॥
वह पल भर में बनाकर तोड़ देता है, वह भक्ति से प्रेम करने वाला और गुणों का भण्डार है॥१॥
ਅੰਧ ਕੂਪ ਮਹਿ ਦੀਪਕੁ ਬਲਿਓ ਗੁਰਿ ਰਿਦੈ ਕੀਓ ਪਰਗਾਸਾ ॥
अंध कूप महि दीपकु बलिओ गुरि रिदै कीओ परगासा ॥
मन रूपी अंधकूप में ज्ञान का दीपक तभी प्रज्वलित होता है, जब गुरु हृदय में प्रकाश करता है।