ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਦਰਸੁ ਪੇਖਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਭ ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਆਸਾ ॥੨॥੧੫॥੩੮॥
कहु नानक दरसु पेखि सुखु पाइआ सभ पूरन होई आसा ॥२॥१५॥३८॥
नानक फुरमाते हैं कि प्रभु के दर्शनों से सुख प्राप्त हो गया है और सब कामनाएँ पूरी हो गई हैं।॥२॥ १५ ॥ ३८ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਚਰਨਹ ਗੋਬਿੰਦ ਮਾਰਗੁ ਸੁਹਾਵਾ ॥
चरनह गोबिंद मारगु सुहावा ॥
परमात्मा का मार्ग ही चरणों के लिए सुखमय है,
ਆਨ ਮਾਰਗ ਜੇਤਾ ਕਿਛੁ ਧਾਈਐ ਤੇਤੋ ਹੀ ਦੁਖੁ ਹਾਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आन मारग जेता किछु धाईऐ तेतो ही दुखु हावा ॥१॥ रहाउ ॥
क्योंकि अन्य मार्गों पर जितनी भी दौड़-धूप होती है, उतने ही दुखों का सामना करना पड़ता है।॥१॥रहाउ॥।
ਨੇਤ੍ਰ ਪੁਨੀਤ ਭਏ ਦਰਸੁ ਪੇਖੇ ਹਸਤ ਪੁਨੀਤ ਟਹਲਾਵਾ ॥
नेत्र पुनीत भए दरसु पेखे हसत पुनीत टहलावा ॥
उसके दर्शन करने से आँखें पवित्र होती हैं, सेवा करने से हाथ पवित्र होते हैं,
ਰਿਦਾ ਪੁਨੀਤ ਰਿਦੈ ਹਰਿ ਬਸਿਓ ਮਸਤ ਪੁਨੀਤ ਸੰਤ ਧੂਰਾਵਾ ॥੧॥
रिदा पुनीत रिदै हरि बसिओ मसत पुनीत संत धूरावा ॥१॥
भगवान के बसने से हृदय पवित्र होता है और संतों की चरण धूलि शीश पावन कर देती है॥१॥
ਸਰਬ ਨਿਧਾਨ ਨਾਮਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕੈ ਜਿਸੁ ਕਰਮਿ ਲਿਖਿਆ ਤਿਨਿ ਪਾਵਾ ॥
सरब निधान नामि हरि हरि कै जिसु करमि लिखिआ तिनि पावा ॥
प्रभु का नाम सर्व सुखों का भण्डार है, पर जिसके भाग्य में लिखा होता है, वही इसे पाता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਭੇਟਿਓ ਸੁਖਿ ਸਹਜੇ ਅਨਦ ਬਿਹਾਵਾ ॥੨॥੧੬॥੩੯॥
जन नानक कउ गुरु पूरा भेटिओ सुखि सहजे अनद बिहावा ॥२॥१६॥३९॥
नानक की पूर्ण गुरु से भेंट हुई है, जिससे जीवन स्वाभाविक सुखमय एवं आनंदपूर्वक बीत रहा है॥२॥ १६ ॥ ३६ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਧਿਆਇਓ ਅੰਤਿ ਬਾਰ ਨਾਮੁ ਸਖਾ ॥
धिआइओ अंति बार नामु सखा ॥
हरिनाम का ध्यान करो, अन्तिम समय यही साथ निभाता है,
ਜਹ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਭਾਈ ਨ ਪਹੁਚੈ ਤਹਾ ਤਹਾ ਤੂ ਰਖਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जह मात पिता सुत भाई न पहुचै तहा तहा तू रखा ॥१॥ रहाउ ॥
जहाँ माता-पिता, पुत्र एवं भाई नहीं पहुँचते, वहाँ प्रभु ही रक्षा करता है॥१॥रहाउ॥।
ਅੰਧ ਕੂਪ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਤਿਨਿ ਸਿਮਰਿਓ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਲੇਖੁ ਲਿਖਾ ॥
अंध कूप ग्रिह महि तिनि सिमरिओ जिसु मसतकि लेखु लिखा ॥
हृदय रूपी अंधे कुएं में उसने ही परमात्मा का स्मरण किया है, जिसके ललाट पर भाग्य लिखा है।
ਖੂਲ੍ਹ੍ਹੇ ਬੰਧਨ ਮੁਕਤਿ ਗੁਰਿ ਕੀਨੀ ਸਭ ਤੂਹੈ ਤੁਹੀ ਦਿਖਾ ॥੧॥
खूल्हे बंधन मुकति गुरि कीनी सभ तूहै तुही दिखा ॥१॥
उसके सब बन्धन खुल गए हैं, गुरु ने मुक्ति प्रदान की और हर जगह तू ही तू दिखा दिया॥१॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਪੀਆ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਿਆ ਆਘਾਏ ਰਸਨ ਚਖਾ ॥
अम्रित नामु पीआ मनु त्रिपतिआ आघाए रसन चखा ॥
हरि-नामामृत का पान करके मन तृप्त हो गया और जीभ इसे चखकर आनंदित हो गई।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਸਹਜੁ ਮੈ ਪਾਇਆ ਗੁਰਿ ਲਾਹੀ ਸਗਲ ਤਿਖਾ ॥੨॥੧੭॥੪੦॥
कहु नानक सुख सहजु मै पाइआ गुरि लाही सगल तिखा ॥२॥१७॥४०॥
हे नानक ! इस प्रकार मैंने स्वाभाविक सुख पाया और गुरु ने मेरी प्यास बुझा दी॥२॥ १७॥ ४०॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਐਸੇ ਪ੍ਰਭੂ ਧਿਆਇਆ ॥
गुर मिलि ऐसे प्रभू धिआइआ ॥
गुरु को मिलकर (इस प्रकार) प्रभु का चिंतन किया तो
ਭਇਓ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਦਇਆਲੁ ਦੁਖ ਭੰਜਨੁ ਲਗੈ ਨ ਤਾਤੀ ਬਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भइओ क्रिपालु दइआलु दुख भंजनु लगै न ताती बाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
वह दुखनाशक हम पर दयालु कृपालु हो गया, जिस कारण अब कोई दुख-तकलीफ प्रभावित नहीं करती ॥१॥रहाउ॥।
ਜੇਤੇ ਸਾਸ ਸਾਸ ਹਮ ਲੇਤੇ ਤੇਤੇ ਹੀ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
जेते सास सास हम लेते तेते ही गुण गाइआ ॥
हम जितनी जीवन-साँसें लेते हैं, उतनी बार हरि के गुण गाते हैं।
ਨਿਮਖ ਨ ਬਿਛੁਰੈ ਘਰੀ ਨ ਬਿਸਰੈ ਸਦ ਸੰਗੇ ਜਤ ਜਾਇਆ ॥੧॥
निमख न बिछुरै घरी न बिसरै सद संगे जत जाइआ ॥१॥
वह पल भर भी नहीं विछुड़ता, एक घड़ी भी नहीं भूलता, जिधर जाता हूँ, सदा साथ रहता है।॥१॥
ਹਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਚਰਨ ਕਮਲ ਕਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਗੁਰ ਦਰਸਾਇਆ ॥
हउ बलि बलि बलि बलि चरन कमल कउ बलि बलि गुर दरसाइआ ॥
मैं उसके चरणों पर बलिहारी हूँ, गुरु दर्शनों पर कुर्बान जाता हूँ।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਾਹੂ ਪਰਵਾਹਾ ਜਉ ਸੁਖ ਸਾਗਰੁ ਮੈ ਪਾਇਆ ॥੨॥੧੮॥੪੧॥
कहु नानक काहू परवाहा जउ सुख सागरु मै पाइआ ॥२॥१८॥४१॥
हे नानक ! सुखों के सागर प्रभु को पा कर अब मुझे कोई परवाह नहीं ॥२॥ १८ ॥ ४१ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਸਬਦੁ ਲਗੋ ਗੁਰ ਮੀਠਾ ॥
मेरै मनि सबदु लगो गुर मीठा ॥
मेरे मन को गुरु का उपदेश ही मीठा लगा है,
ਖੁਲ੍ਹ੍ਹਿਓ ਕਰਮੁ ਭਇਓ ਪਰਗਾਸਾ ਘਟਿ ਘਟਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਡੀਠਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
खुल्हिओ करमु भइओ परगासा घटि घटि हरि हरि डीठा ॥१॥ रहाउ ॥
हमारा भाग्य खुल गया है, हृदय में आलोक हुआ है और घट-घट में ईश्वर ही दिखाई दे रहा है॥१॥रहाउ॥।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਆਜੋਨੀ ਸੰਭਉ ਸਰਬ ਥਾਨ ਘਟ ਬੀਠਾ ॥
पारब्रहम आजोनी स्मभउ सरब थान घट बीठा ॥
परब्रह्म परमेश्वर जन्म-मरण से रहित है, स्वयंभू है, सम्पूर्ण संसार में व्याप्त है।
ਭਇਓ ਪਰਾਪਤਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮਾ ਬਲਿ ਬਲਿ ਪ੍ਰਭ ਚਰਣੀਠਾ ॥੧॥
भइओ परापति अम्रित नामा बलि बलि प्रभ चरणीठा ॥१॥
हमें अमृतमय प्रभु-नाम प्राप्त हुआ है और हम प्रभु-चरणों पर कुर्बान हैं॥१॥
ਸਤਸੰਗਤਿ ਕੀ ਰੇਣੁ ਮੁਖਿ ਲਾਗੀ ਕੀਏ ਸਗਲ ਤੀਰਥ ਮਜਨੀਠਾ ॥
सतसंगति की रेणु मुखि लागी कीए सगल तीरथ मजनीठा ॥
सत्संग की चरण-धूल मुँह पर लगाई है, जो समस्त तीर्थों का स्नान करने का फल है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਰੰਗਿ ਚਲੂਲ ਭਏ ਹੈ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਨ ਲਹੈ ਮਜੀਠਾ ॥੨॥੧੯॥੪੨॥
कहु नानक रंगि चलूल भए है हरि रंगु न लहै मजीठा ॥२॥१९॥४२॥
हे नानक ! परमात्मा के प्रेम रंग में लाल हो गए हैं और यह पक्का रंग कभी नहीं उतरता॥२॥ १६ ॥ ४२ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ਗੁਰਿ ਸਾਥੇ ॥
हरि हरि नामु दीओ गुरि साथे ॥
गुरु ने मुझे परमात्मा का नाम दिया है,
ਨਿਮਖ ਬਚਨੁ ਪ੍ਰਭ ਹੀਅਰੈ ਬਸਿਓ ਸਗਲ ਭੂਖ ਮੇਰੀ ਲਾਥੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निमख बचनु प्रभ हीअरै बसिओ सगल भूख मेरी लाथे ॥१॥ रहाउ ॥
उसके निमेष वचन से प्रभु दिल में बस गया है और मेरी सारी भूख दूर हो गई है॥१॥रहाउ॥।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਗੁਣ ਨਾਇਕ ਠਾਕੁਰ ਸੁਖ ਸਮੂਹ ਸਭ ਨਾਥੇ ॥
क्रिपा निधान गुण नाइक ठाकुर सुख समूह सभ नाथे ॥
हे मालिक ! तू कृपानिधान है, गुणों का स्वामी और सर्व सुखों का नाथ है।
ਏਕ ਆਸ ਮੋਹਿ ਤੇਰੀ ਸੁਆਮੀ ਅਉਰ ਦੁਤੀਆ ਆਸ ਬਿਰਾਥੇ ॥੧॥
एक आस मोहि तेरी सुआमी अउर दुतीआ आस बिराथे ॥१॥
मुझे केवल तेरी ही आशा है और अन्य आशाएँ तो सब व्यर्थ हैं।॥१॥
ਨੈਣ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ਦੇਖਿ ਦਰਸਾਵਾ ਗੁਰਿ ਕਰ ਧਾਰੇ ਮੇਰੈ ਮਾਥੇ ॥
नैण त्रिपतासे देखि दरसावा गुरि कर धारे मेरै माथे ॥
गुरु ने मेरे माथे पर अपना हाथ रखा और दर्शन करके ऑखें तृप्त हो गई।