Hindi Page 1221

ਸੋਧਤ ਸੋਧਤ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਿਓ ਭਗਤਿ ਸਰੇਸਟ ਪੂਰੀ ॥
सोधत सोधत ततु बीचारिओ भगति सरेसट पूरी ॥
खोजते-खोजते यही सार-तत्व निकला है कि भक्ति ही श्रेष्ठ एवं पूर्ण है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਇਕ ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਅਵਰ ਸਗਲ ਬਿਧਿ ਊਰੀ ॥੨॥੬੨॥੮੫॥
कहु नानक इक राम नाम बिनु अवर सगल बिधि ऊरी ॥२॥६२॥८५॥
हे नानक ! राम नाम के सिवा अन्य सभी तरीके अधूरे व असफल है ॥२॥ ६२॥ ८५ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਸਾਚੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦਾਤਾਰਾ ॥
साचे सतिगुरू दातारा ॥
सच्चा सतिगुरु सबको देने वाला है,

ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਸਗਲ ਦੁਖ ਨਾਸਹਿ ਚਰਨ ਕਮਲ ਬਲਿਹਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दरसनु देखि सगल दुख नासहि चरन कमल बलिहारा ॥१॥ रहाउ ॥
उसके दर्शनों से सभी दुख दूर हो जाते हैं, मैं उसके चरण-कमल पर कुर्बान जाता हूँ॥१॥रहाउ॥।

ਸਤਿ ਪਰਮੇਸਰੁ ਸਤਿ ਸਾਧ ਜਨ ਨਿਹਚਲੁ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਉ ॥
सति परमेसरु सति साध जन निहचलु हरि का नाउ ॥
परमेश्वर सत्य है, साधुजन सत्य हैं और हरि का नाम निश्चल है।

ਭਗਤਿ ਭਾਵਨੀ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਅਬਿਨਾਸੀ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੧॥
भगति भावनी पारब्रहम की अबिनासी गुण गाउ ॥१॥
हे सज्जनो ! परब्रह्म की भक्ति करो, उस अविनाशी के गुण गाओ ॥१॥

ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈਐ ਸਗਲ ਘਟਾ ਆਧਾਰੁ ॥
अगमु अगोचरु मिति नही पाईऐ सगल घटा आधारु ॥
वह अपहुँच, मन-वाणी से परे है, उसकी शक्ति का रहस्य नहीं पाया जा सकता, वह सबका आसरा है।

ਨਾਨਕ ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਕਹੁ ਤਾ ਕਉ ਜਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰੁ ॥੨॥੬੩॥੮੬॥
नानक वाहु वाहु कहु ता कउ जा का अंतु न पारु ॥२॥६३॥८६॥
नानक का कथन है कि उस परमात्मा की प्रशंसा करो, जिसका कोई अन्त व आर-पार नहीं ॥२॥ ६३॥ ८६ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨ ਬਸੇ ਮਨ ਮੇਰੈ ॥
गुर के चरन बसे मन मेरै ॥
गुरु के चरण मेरे मन में बस गए हैं।

ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਠਾਕੁਰੁ ਸਭ ਥਾਈ ਨਿਕਟਿ ਬਸੈ ਸਭ ਨੇਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पूरि रहिओ ठाकुरु सभ थाई निकटि बसै सभ नेरै ॥१॥ रहाउ ॥
मालिक हर स्थान में मौजूद है, निकट ही रहता है, सबसे पास है॥१॥रहाउ॥।

ਬੰਧਨ ਤੋਰਿ ਰਾਮ ਲਿਵ ਲਾਈ ਸੰਤਸੰਗਿ ਬਨਿ ਆਈ ॥
बंधन तोरि राम लिव लाई संतसंगि बनि आई ॥
संतों के संग प्रेम हुआ तो बन्धनों को तोड़कर हमने ईश्वर में लगन लगा ली।

ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਭਇਓ ਪੁਨੀਤਾ ਇਛਾ ਸਗਲ ਪੁਜਾਈ ॥੧॥
जनमु पदारथु भइओ पुनीता इछा सगल पुजाई ॥१॥
हमारा जन्म पावन हो गया और सब कामनाएँ पूरी हो गई।॥१॥

ਜਾ ਕਉ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਸੋ ਹਰਿ ਕਾ ਜਸੁ ਗਾਵੈ ॥
जा कउ क्रिपा करहु प्रभ मेरे सो हरि का जसु गावै ॥
जिस पर मेरा प्रभु कृपा करता है, वही उसका यशोगान करता है।

ਆਠ ਪਹਰ ਗੋਬਿੰਦ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਵੈ ॥੨॥੬੪॥੮੭॥
आठ पहर गोबिंद गुन गावै जनु नानकु सद बलि जावै ॥२॥६४॥८७॥
हे नानक ! वह आठ प्रहर गोविंद के गुण गाता है, मैं सदैव उस पर बलिहारी जाता हूँ॥२॥ ६४॥ ८७ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਜੀਵਨੁ ਤਉ ਗਨੀਐ ਹਰਿ ਪੇਖਾ ॥
जीवनु तउ गनीऐ हरि पेखा ॥
जीवन तो ही सफल माना जाए यदि परमेश्वर के दर्शन हो जाएँ।

ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਪ੍ਰੀਤਮ ਮਨਮੋਹਨ ਫੋਰਿ ਭਰਮ ਕੀ ਰੇਖਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करहु क्रिपा प्रीतम मनमोहन फोरि भरम की रेखा ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रियतम प्रभु ! कृपा करके भ्रम की रेखा को फोड़ दो ॥१॥रहाउ॥।

ਕਹਤ ਸੁਨਤ ਕਿਛੁ ਸਾਂਤਿ ਨ ਉਪਜਤ ਬਿਨੁ ਬਿਸਾਸ ਕਿਆ ਸੇਖਾਂ ॥
कहत सुनत किछु सांति न उपजत बिनु बिसास किआ सेखां ॥
कहने अथवा सुनने से शान्ति प्राप्त नहीं होती और बिना विश्वास के कोई क्या सीख सकता है।

ਪ੍ਰਭੂ ਤਿਆਗਿ ਆਨ ਜੋ ਚਾਹਤ ਤਾ ਕੈ ਮੁਖਿ ਲਾਗੈ ਕਾਲੇਖਾ ॥੧॥
प्रभू तिआगि आन जो चाहत ता कै मुखि लागै कालेखा ॥१॥
प्रभु को त्याग कर जो अन्य को चाहता है, उसके मुँह पर कालिमा ही लगती है॥१॥

ਜਾ ਕੈ ਰਾਸਿ ਸਰਬ ਸੁਖ ਸੁਆਮੀ ਆਨ ਨ ਮਾਨਤ ਭੇਖਾ ॥
जा कै रासि सरब सुख सुआमी आन न मानत भेखा ॥
जिसके पास सर्व सुख देने वाला ईश्वर है, वह किसी सम्प्रदाय अथवा देवी-देवता को नहीं मानता।

ਨਾਨਕ ਦਰਸ ਮਗਨ ਮਨੁ ਮੋਹਿਓ ਪੂਰਨ ਅਰਥ ਬਿਸੇਖਾ ॥੨॥੬੫॥੮੮॥
नानक दरस मगन मनु मोहिओ पूरन अरथ बिसेखा ॥२॥६५॥८८॥
हे नानक ! ईश्वर के दर्शनों में निमग्न मन मोहित हो जाता है और सर्वमनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।॥२॥ ६५ ॥ ८८ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਸਿਮਰਨ ਰਾਮ ਕੋ ਇਕੁ ਨਾਮ ॥
सिमरन राम को इकु नाम ॥
केवल राम नाम का सिमरन करो,”

ਕਲਮਲ ਦਗਧ ਹੋਹਿ ਖਿਨ ਅੰਤਰਿ ਕੋਟਿ ਦਾਨ ਇਸਨਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कलमल दगध होहि खिन अंतरि कोटि दान इसनान ॥१॥ रहाउ ॥
इससे पल में सब पाप-अपराध जल जाते हैं और करोड़ों दान-स्नान का फल प्राप्त होता है॥१॥रहाउ॥

ਆਨ ਜੰਜਾਰ ਬ੍ਰਿਥਾ ਸ੍ਰਮੁ ਘਾਲਤ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਫੋਕਟ ਗਿਆਨ ॥
आन जंजार ब्रिथा स्रमु घालत बिनु हरि फोकट गिआन ॥
अन्य जंजालों में मेहनत करना बेकार है और प्रभु के बिना सब ज्ञान अनुपयोगी हैं।

ਜਨਮ ਮਰਨ ਸੰਕਟ ਤੇ ਛੂਟੈ ਜਗਦੀਸ ਭਜਨ ਸੁਖ ਧਿਆਨ ॥੧॥
जनम मरन संकट ते छूटै जगदीस भजन सुख धिआन ॥१॥
जगदीश्वर का भजन करने से जन्म-मरण के संकट से छुटकारा हो जाता है और उसके ध्यान में रत रहने से सुखों की प्राप्ति होती है॥१॥

ਤੇਰੀ ਸਰਨਿ ਪੂਰਨ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦੇਵਹੁ ਦਾਨ ॥
तेरी सरनि पूरन सुख सागर करि किरपा देवहु दान ॥
हे पूर्ण सुखसागर ! मैं तेरी शरण में आया हूँ, कृपा करके भक्ति का दान दो।

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਜੀਵੈ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਅਭਿਮਾਨ ॥੨॥੬੬॥੮੯॥
सिमरि सिमरि नानक प्रभ जीवै बिनसि जाइ अभिमान ॥२॥६६॥८९॥
नानक की विनती है कि हे प्रभु ! तेरे सुमिरन (स्मरण) से ही जीता हूँ और इससे मेरा अभिमान नष्ट हो जाता है॥२॥ ६६ ॥ ८६ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਧੂਰਤੁ ਸੋਈ ਜਿ ਧੁਰ ਕਉ ਲਾਗੈ ॥
धूरतु सोई जि धुर कउ लागै ॥
असली धूर्त वही है, जो ऑकार के चिंतन में लीन होता है।

ਸੋਈ ਧੁਰੰਧਰੁ ਸੋਈ ਬਸੁੰਧਰੁ ਹਰਿ ਏਕ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸ ਪਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सोई धुरंधरु सोई बसुंधरु हरि एक प्रेम रस पागै ॥१॥ रहाउ ॥
वही सर्वोत्तम है, वही धनवान् है, जो परमात्मा के प्रेम-रस में निमग्न होता है।॥१॥रहाउ॥।

ਬਲਬੰਚ ਕਰੈ ਨ ਜਾਨੈ ਲਾਭੈ ਸੋ ਧੂਰਤੁ ਨਹੀ ਮੂੜ੍ਹ੍ਹਾ ॥
बलबंच करै न जानै लाभै सो धूरतु नही मूड़्हा ॥
जो छल-कपट करता है, परन्तु लाभ को नहीं जानता, ऐसा व्यक्ति धूर्त नहीं, असल में मूर्ख है।

ਸੁਆਰਥੁ ਤਿਆਗਿ ਅਸਾਰਥਿ ਰਚਿਓ ਨਹ ਸਿਮਰੈ ਪ੍ਰਭੁ ਰੂੜਾ ॥੧॥
सुआरथु तिआगि असारथि रचिओ नह सिमरै प्रभु रूड़ा ॥१॥
वह लाभ छोड़कर नुक्सान वाले ही कार्यो में रचा रहता है और सुन्दर प्रभु का भजन नहीं करता ॥१॥

ਸੋਈ ਚਤੁਰੁ ਸਿਆਣਾ ਪੰਡਿਤੁ ਸੋ ਸੂਰਾ ਸੋ ਦਾਨਾਂ ॥
सोई चतुरु सिआणा पंडितु सो सूरा सो दानां ॥
वास्तव में वही चतुर, बुद्धिमान, पण्डित है, वही शूरवीर एवं दानशील है।

ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਿਓ ਨਾਨਕ ਸੋ ਪਰਵਾਨਾ ॥੨॥੬੭॥੯੦॥
साधसंगि जिनि हरि हरि जपिओ नानक सो परवाना ॥२॥६७॥९०॥
जिसने साधु संगत में परमात्मा का जाप किया है, नानक का कथन है कि वही प्रभु को परवान होता है।॥२॥ ६७ ॥ ६० ॥

error: Content is protected !!